Friday, 1 September 2023

Jat and their religious philosophy

मेरी पिछली पोस्ट पर चौधरी भाई ने कॉमेंट किया कि सनातनियों में भी धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ी है इसलिए बड़े बूढ़ों को ये सब नया लगता है।

अब इस कॉमेंट के वैसे तो कई अर्थ निकलते हैं। जैसे कि हमारे बूढ़ों को ये सब नया लगता है क्योंकि वो जाहिल थे उन्हें ज्ञान नहीं था इसलिए उनमें सनातनी संस्कृति के प्रति जागरूकता नहीं थी? सवाल ये है कि आखिर अब नई पीढ़ी में ये जागरूकता लाया कौन? क्योंकि हमारे बूढ़ों को तो ज्ञान था नहीं, या कह सकते हैं कि उनमें जागरूकता नहीं थी।
खैर, चौधरी भाई की मजबूरी है क्योंकि वो एक विचारधारा से जुड़े हुए हैं इसलिए वो निष्पक्ष नहीं रह सकते। और न ही मैं उनको बदलने के लिए ये लिख रहा हूं। मैं इसलिए लिखता हूं कि कम से कम नई पीढ़ी के पास तर्क करने के लिए जानकारी हो। जागरूकता के नाम पर कोई और ना बहका ले जाए। उनकी जागरूकता की दिशा सही हो।
अब बात बूढ़ों में जागरूकता की। अजय भाई जिस विचारधारा से जुड़े हैं उसको डिफेंड करने के लिए उन्होंने अपने बूढ़ों को अज्ञानी या सुस्त बता दिया। यदि भाई ने इतिहास का बारीकी से, आंकड़ों सहित अध्ययन किया होता तो ऐसा नहीं कहते। भाई को पता होता कि बूढ़े कितने जागरूक थे। आज जो ये धर्मों के नाम पर जागरूकता की मुहीम चल रही है यह कोई नहीं है। हमारे यहां, यानी संयुक्त पंजाब में यह जागरूकता सन 1870-1880 में शुरू हो गई थी। इस क्षेत्र में इसकी शुरुआत की वजह जान लेते हैं पहले।
“The Punjab Past And Present, Vol-XI, Part I-II, Page no. 257 पर लिखा है कि -वास्तव में, 'पंजाब लॉ एक्ट, 1872,' 24 और 25 विक्ट..सी. 67, इंपीरियल पार्लियामेंट द्वारा अधिनियमित, महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के 24वें और 25वें वर्ष में, इसकी धारा 5 द्वारा, विशेष रूप से मान्यता दी गई है कि पंजाब के जाट अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों द्वारा शासित होते हैं - न कि किसी व्यक्तिगत या धार्मिक कानून, जैसे हिंदू कानून द्वारा। पंजाब में बाद के न्यायिक फैसलों ने दोहराया है कि कस्टम (रिवाज) पंजाब में फैसलों का पहला नियम है। मूल रूप से जाट पक्ष होने पर न तो हिंदू कानून और न ही मुस्लिम कानून लागू होता था।”
मतलब साफ है कि हमारे समुदाय में मिक्स कल्चर था। यहां धार्मिक कट्टरता नहीं थी। कबीले के रिवाज धार्मिक रिवाजों से ऊपर थे। फिर यहां कुछ लोग पूर्व से आए, कि इन्हें जागरूक किया जाए। उन्होने जागरुकता मुहीम चलाई और जाट जागरूक भी हुए। बाकि भी हुए पर मैं सिर्फ जाट समुदाय की ही बात करूंगा क्योंकि ये यहां बहुसंख्यक समुदाय है। जाटों में उस जागरुकता का असर ये हुआ कि 1881-1931, यानी के इन 50 सालों में हिंदू जाटों की आबादी 31% तक घट गई, मुस्लिम और सिख जाटों की आबादी में 90% तक की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान जाट इस्लाम में ज्यादा गए। जबकि ये औरंगजेब का दौर भी नहीं था? जाटों के इस पलायन से सनातनियों में बेचैनी हुई, तो उन्होने अखबारों में लेख लिखने शुरू किए कि जाट हिंदू धर्म छोड़ रहें हैं। क्यों छोड़ रहें हैं इसका जवाब चौधरी छोटूराम ने जाट गजट अख़बार में लेखों के ज़रिए दिया।
जागरुकता! बड़ा ही बौद्धिक सा शब्द है। इसको सुनते ही हर कोई प्रभावित होता है। पर ये मायाजाल भी है। इसलिए ये देखने समझने की कोशिश जरूर करो कि तुम्हें जागरूक करने कौन आया है? अजय भाई के लिए सवाल है कि इस दौरान बूढ़े इस सनातन धर्म से क्यों कटे? जबकि इस दौरान में तलवार वाली भी कोई बात नहीं थी।
–राकेश सिंह सांगवान




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