1 - जिसमें औरतों-बच्चों को गाइडलाइन्स दी जाती थी|
2 - उनकी मानसिक-व्यवस्थापिक समस्याएं सुनी जाती थी|
3 - जो बगड़ में अशांति या पाखंड फ़ैलाने की जनक पाई जाती थी तो उनकी खासतौर से counseling से ले डांट-डपट होती थी|
मेरे ठोले-बगड़ की ऐसी आखिरी counseling मीटिंग मैंने मेरे चचेरे पड़दादा चौधरी दरिया सिंह मलिक की अध्यक्षता में होती देखी हुई है; जिसमें हमारे ठोले की तमाम औरतें व् बच्चे बैठे थे व् दादा सबके रिपोर्ट कार्ड से चेक कर रहे थे|
जहाँ-जहाँ बूढ़ों को ऐसे सुनना बंद हुआ है, वहां औरतों के मनों में विचलता फैली है व् ऐसे फंडियों के चक्र काट रही हैं; जैसे "म्हास का काटडू कहीं गोरे पे छूट गया हो, वाली म्हास धारों के बख्त खूंटे पे कटिये काटती होती है"| ऐसी मीटिंग्स में बड़ी दादियां व् बड़े दादे दोनों व्यवस्थानुसार यह किरदार निभाते थे|
वापिस ले आओ इस कल्चर को|
जय यौधेय! - फूल मलिक
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