Saturday, 3 August 2024

Sports, Olympics, Medals and impact of DNA

 सुशील कुमार, विजेंद्र सिंह से ले मनू भाकर तक जाटों ने अपने डीएनए पर खुब गर्व करा , करें भी क्यों ना आखिर 150 करोड़ की जनसंख्या को इसी डीएनए ने मेडल दिलाये हैं।

बहुत सारे गैर जाट ये भी बोलते हैं,कि डीएनए वगैरह कुछ नहीं होता डीएनए से होता तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भी यही नस्ल रहती है ,वो भी मेडल जीत जानी चाहिए थी ।
पहला सवाल खङा होता है, क्या डीएनए से फर्क पड़ता है?
इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं फिनलैंड के एक मशहूर ओलम्पियन ईरो मंत्यरांटा की बात करूंगा जो की स्कीयर थे , उन्होंने सात मेडल ओलम्पिक में जीते थे ।
उसके जीन की स्टडी में पाया गया की उसमें एक अलग ही Gene mutations पाया गया जो नोर्मल इंसान से 20% ज्यादा रेड ब्लड सेल्स प्रोड्यूस करता है और ये उसमें ही नहीं उसके कुणबे के 100-150 लोगों में पाया गया।
इससे होता क्या है, उसके बल्ड में ओक्सिजन कैरी करने की क्षमता डेढ़ गुणा बढ़ जाती है
आपने ‌उसेन बोल्ट वगैरह को देखा है,दौङते हुए तो....वो मुंह खोलकर उसकी सेप बदलते हुए दौङते हैं,इस प्रोसेस में वो एयर इनटेक बढ़ा देते हैं
सेल्युलर रेस्पिरेशन में ओक्सिजन ही है जो एनर्जी(ATP) प्रोड्यूस करती है l
मतलब ईरो मंत्यरांटा का शरीर आम एथलीट से ज्यादा एनर्जी प्रोड्यूस करता था, और इसका उसके मेडल जीतने में सबसे बड़ा योगदान रहा ।
इसलिए हां ,DNA से फर्क, बहुत फर्क पड़ता है,
आपका शरीर कितना absorb /डाइजेस्ट करेगा , कितने ग्लुकोज़ को ATP में कितना जल्दी कन्वर्ट करेगा इन सब चीजों में डीएनए का बहुत बड़ा योगदान रहता है ।
और गामङू कौमें लाईक जाट blessed हैं, इससे
अमेरिका, इंग्लैंड चीन बहुत मेडल जीतती हैं, मतलब उनका डीएनए जाटों से भी तकङा होगा फिर तो ?
तकङा होगा ये तो मैं नहीं कह सकता लेकिन इन देशों में genome editing नामकी टेक्नोलॉजी बहुत प्रचलित है, उससे ये बना जरूर सकते हैं, बहुत स्ट्रांग DNA ...
पीछले दो दशक में Genome doping भी इनके एथलीट्स में बहुत हुई है,और मेरा तो ये मानना है, ओलम्पिक का सो काल्ड लेजेंड माइकल फेल्प्स भी जीनोम डोपिंग का रिजल्ट था ।
पर पाकिस्तान अफगानिस्तान का ये डीएनए मेडल क्यों नहीं जीतता?
ओलंपिक के खेल ऐसे खेल हैंं, जिन्हें बहुत कम लोग देखते फोलो करते हैं, पाकिस्तान अफगानिस्तान में तो ना के बराबर ...बिना देखे ,बिना फोलो करे ,बिना खेले ...कभी मेडल आ सकते हैं?
इवन भारत में भी ऐसी ही हालत है, JIO cinema फोन करके मनू भाकर की मां को बोलता है,आप मैच देखो मनू का ... ताकि माहौल बने की देश ऐसे टकटकी लगाये था।
देश की 1% से भी कम जनसंख्या को इन ओलम्पिक को देखती है,और खेलने वाले तो और भी कम।
चाइना में आर्मी की स्नाइपर शुटिंग कम्पिटीशन हुई थी , पाकिस्तान एक नम्बर पर आया था वहां ...तो ऐसा नहीं है,कि वो लोग नहीं जीत सकते मेडल।
भारत में ओलम्पिक देखने खेलने वालों से ज्यादा पबजी की ओडियंस है,और ये हकीकत है,
मनू भाकर के दो दो ओलम्पिक मेडल जीतने के बाद भी एक मिलियन फोलोवर्स नहीं हो पाये जबकि पबजी ,फ्री फायर खेलने वाले प्लेयर्स के 10-10 ,20-20 मिलियन फोलोवर्स हैं।
क्या भारत में कभी ये खेल लोकप्रिय हो पायेंगे ?
मेरे को तो लगता नहीं , हां भविष्य के ओलम्पिक में eSports पबजी जैसे शामिल करने ही होंगे अगर बिजनेस लोबिज को भारत जैसा करोङों युवाओं के देश को एक्सपलोइट करना है,और ओलम्पिक का फेन बनाना है।
बहुत सारे परिवार आज ओलम्पिक के नाम पर बेची गयी इन कहानियों के सहारे अपने बच्चों का कैरियर भी इसमें देख रहे हैं,और मेहनत भी कर रहे हैं, अपनी जिंदगी की क़ीमती वस्तुएं ,समय सब इसके लिए दांव पर लगा दे रहे हैं ।
लगाना कोई बुरी बात नहीं है,आप कोई ग़लत काम नहीं कर रहे ,आप एक सच्चे जीवन के साथ ,सच्ची मेहनत कर रहे हो ...मेरा सेल्युट है,आपको ।
लेकिन क्या आपको मालूम है, ये खेल इंडिया जैसे देशों के लिए नहीं हैं,तुम जो आज मेहनत कर रहे हो वो तीस चालीस पहले उस फेज से गुजर चुके हैं , अब वो genetic screening , genome doping ना जाने कैसे टेक्नोलॉजी के साथ हैं,और तुम हो मात्र खुद के साथ ...
कार के साथ आदमी की रेस करवाने जैसा हो जायेगा भविष्य में ऐसै ही Genome sequencing, doping चलती रही तो ....
अब देख लो आपको किसके साथ फाइट करना है ।
हो सकता है ,भविष्य में इंडियन सरकार भी इन सब पर ध्यान दे और क्या पता बाहर की मेडिकल लोबिज इंडिया में भी ये टेक्नोलॉजी बेचें तो आप भी उनके साथ टक्कर में आ सकते हो वरना तो मुझे लगता नहीं ...
आज तुम देश से बाहर जाकर एक्सपर्ट्स की देख रेख में जो डोपिंग कर रहे हो ...वो वो‌ लोग काफी पहले कर चुके हैं, अब genome doping तक पहुंच चुके हैं ,और हो सकता है जब अपने पास ये Genome doping आये तो वो और कुछ इजाद कर लें ।
रशिया ने इंडिया को मिग दिया तो वो उससे कयी जेनरेशन आगे के लङाकू विमान प्रयोग कर रहा था,जब तक चीन की तरह हम खुद का कुछ नहीं करेंगे तब तक यही आउटडेटेड टेक्नोलोजी लेते रहेंगे और धूल में लठ मारते रहेंगे ।
बाकी भारत का इन सो कॉल्ड देशों से मेडल का डिफरेंस नहीं है,इस टेक्नोलॉजी का ही डिफरेंस है।
अल्जीरिया की बोक्सर जिस पर पुरुष होने के इल्ज़ाम लगा रहे थे, उसमें भी इस प्रकार की टेक्नोलॉजी का ही कमाल था , अब आप सोचो उन्होंने तो नोर्मल डोपिंग वगैरह से हार्मोनल चेंज लाया है, gene doping जिसे तो पकङा ही ना जा सकता उससे तो क्या क्या नहीं हो सकता ?
हो भी रहा है, विकसित देश कर भी रहे हैं।
हमारे पास ह्यूमन रिसोर्सेज बहुत हैं, लेकिन वैसे एथलीट्स नहीं निकल सकते कभी भी ... क्योंकि नोर्मल सिचुएशन होती तो हो जाता लेकिन अब दौङ इंसान को ही रोबोट बनाने की तरफ बढ़ चुकी है ‌।
बाकी आज जो कौमें अपने डीएनए पर गर्व कर रही हैं,उनका कल बहुत माङा है, डीएनए बदला जा सकता है , वर्ल्ड लेवल पर डीएनए प्रोफाइलिंग , डिजिटल हेल्थ आईडी ये सब उसके लिए ही आ रही हैं ।
गामङू कौमों के लिए गोरवान्वित होने से ज्यादा जरूरी है ,उसका खराब होता खान पान , उसके खराब होते खेत व उसकी मार्केट पर बढ़ती डिपेंडेंसी, उसकी विलुप्त होती नेचुरल खेती ...व उसके टुटते परिवार समाज ...पर ध्यान दे ...एक मौका चाहिए तुम्हें तुच्छ घोषित करने का , तुम्हारे कल्चर को घटिया दिखाने का ।
मनू भाकर की मां जैसों के बहाने ये सबसे पहले तुम्हारे कल्चर पर ही अटैक करते हैं, तुम्हें धर्म व बाज़ार का गुलाम बनाना ही इस ब्रांड एंबेसडराई का काम होता है ।
बाकी बहुत सारे लोग आदी किसान को इंडू किचान तो किसी और आइडियोलॉजी को कुछ और बोलते हैं,
आओ साथ बैठो सारी आइडियोलॉजीज में क्या गाम समाज के लिए सबसे सही है ,उसको ले आगे बढ़लो ...ऐसे आपस में ही ओछी हरकत करने से कुछ नहीं होगा।

By: Vikram Singh Jat

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