Thursday 24 September 2015

ईटीवी के वरिष्ठ सलाहकार श्रीमान गोविन्द ठुकराल जी आपका ब्यान 'डिवाइड एंड रूल' वाला है!


अपनी चालाकियों भरी बाणी से अगर आप यह सोच रहे हैं कि आप जनता को दिग्भर्मित कर लेंगे तो शायद आप गलत हैं| सांगवान साहब ने यह क्या कह दिया कि हरयाणा का सीएम एक हरयाणवी होना चाहिए तो इसपे आपने सिर्फ जाटों को हरयाणवी ठहरा के बाकि हर्याणवियों को अपने पाले में करने की गोटी फेंक दी|

वैसे आज बहुत से हिन्दू खत्री/अरोड़ा महाराष्ट्र में भी हो रखे हैं, परन्तु वहाँ तो राज ठाकरे से ले उद्धव ठाकरे, खुद बीजेपी की सरकार वाले तक सिर्फ मराठी मानुष की बात करते हैं, उसपे तो आप लोगों का कोई बयान ना विरोध आजतक? तो फिर एक हरयाणवी हरयाणा में रह के हरयाणवी की बात कर रहा है तो आपको कुलबुली क्यों हो रही है? इसका मतलब कम से कम इतना तो साफ़ है कि बाकी और कोई हरयाणवी हो या ना हो परन्तु आप तो खुद को हरयाणवी नहीं समझते|

खैर यह फैसला तो मैं आपके द्वारा आपके बयान में विशेष तौर से चिन्हित किये गए जाटों समेत तमाम मूल हर्याणवियों पे छोड़ता हूँ कि वो आपके इस 'डिवाइड एंड रूल' बयान पर क्या रूख अख्तियार करते हैं| आपके इस बयान में आपकी चालाकी को भांप के आपके साथ खड़े होंगे या अपने मूल-हरयाणवी भाईयों की एकता को और सहेजेंगे|

परन्तु आपको एक बात जरूर बता दूँ कि जाट आपके बयान की तरह पेट-भर नहीं| और होते तो आज हरयाणा का दलित-पिछड़ा बाकी सारे देश से अधिक सम्पन्न और अगाड़ी नहीं होता| देश के जिन हिस्सों में आप जैसी सोच के लोग रहते हैं, वहाँ दलित-पिछड़ा की हालत बद से बदतर है| ऐसे में अगर हरयाणा में देश के सबसे सम्पन्न दलित-पिछड़ा हैं तो कहीं-ना-कहीं जाटों की भाईचारा और सौहार्द से बसने और खेतों में एक दूजे से कंधे-से-कन्धा मिला के खटने की वजह भी तो जरूर होगी, या इससे भी इंकार करोगे?

सीएम साहब के एक के बाद एक दो शर्मशार बयानों ("डंडे के जोर पर लेने वाले" और "हरयाणवी कंधे से नीचे ताकतवर और कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं) पर सीएम साहब को माफ़ी मांगने की कहने के बजाय उल्टा जाटों को ही घेर रहे हो? मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे? सीएम साहब के ऐसे बयानों पे एक स्वाभिमानी हरयाणवी तो कम से कम चुप नहीं बैठ सकता|

हरयाणा के सारे मुख्यमंत्रियों की लिस्ट उठा के देखेंगे तो आप पाएंगे कि सिर्फ जाट ही नहीं अपितु ब्राह्मण, बनिया, बिश्नोई, यादव भी यहां सीएम रहे हैं| अगर जाटों को अपनी चलानी होती तो हरयाणा की कंस्यूमर पावर का जो करीब 60% हिस्सा (जबकि जनसंख्या इसके आधे से भी कम अनुपात में है), वो हम आपकी दुकानों से सामान खरीद के आपको पैसे की ताकत नहीं देते| बल्कि हम सिर्फ बनिया या अन्य जातियों की दुकानों से ही सामान खरीदते|

परन्तु अब अगर आप 'डिवाइड एंड रूल' की इतनी ही घिनोनी चाल चल रहे हैं तो अब जाटों को भी अपनी कंस्यूमर पावर रुपी हाथ आपके समाज के सर से खींच लेने में ही भलाई देखनी होगी| और आपकी दुकानों से हर प्रकार के सामान खरीदने का बायकाट का फार्मूला अपनाना होगा| तभी शायद आप लोगों को एक जाट के सहयोग और उसके भाईचारे की कीमत का अहसास होवे|

बाकी यह हरयाणा की विडंबना ही है कि जिन लोगों को ठीक से हरयाणवी बोलनी नहीं आती, इसका आदर-सम्मान तक नहीं, वो आप जैसे लोग यह बता रहे हैं कि कौन हरयाणवी मूल का है और कौन नहीं| यह वास्तव में मूल हरयाणवी पहचान रखने वाले लोगों के लिए गहन चिंतन की घड़ी है|

चलते-चलते यही कहूँगा कि कोई भी भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस आदि-आदि किसी भी देश में चाहे 10 साल से रह रहा हो अथवा 100 साल से उसको और उसके बच्चों तक को हर जगह "भारतीय मूल" व् उसके समूह को "भारतीय" ही बोला जाता है| जब सारे संसार में यह नियम है तो ऐसे में यह बात बिलकुल समझ से परे है कि सांगवान साहब एक "पाकिस्तान मूल" के भारतीय को "पाकिस्तानी मूल" का नहीं तो और कौनसे मूल का कहें? उसके मूल पे उसको पाकिस्तानी नहीं तो और क्या कहें?

इस बात पर इतना बवाल तो खाम्खा जाटों को अपने ही हरयाणवी समाज में विलेन दिखाने और बनाने वाली बात हो रही है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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