Saturday 6 January 2018

कहलवा दो दिल्ली के नवाब को, "जाट सूरमे आये हैं और राणी हिंडौली को साथ लाये हैं! देखें वह राणी ले जाता है या हरदौल को देने घुटनों के बल आता है"!

महाराजाधिराज सूरजमल सुजान की पुण्यतिथि (25 दिसंबर 1763) को समर्पित !

1) दुर्दांत इतना कि जब सब अब्दाली के भय से दुबके हुए थे, वह बेख़ौफ़ अब्दाली के दुश्मनों यानि तीसरे पानीपत युद्ध के घायल बाह्मण पेशवा व् उनकी सेना की मरहमपट्टी कर रहा था!

2) दयालु इतना कि उसी को 'दुशाला पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो रह्यो जाट-गो-जाट' का तंज कसने वाले पेशवा सदाशिवराव भाऊ की घायल फ़ौज को अपने रोहतक से ले जयपुर तक फैले राज्य में शरण-रशद व् दवा-दारु देने का आदेश दे देता है|

3) कूटनैतिक ऐसा कि पानीपत युद्ध के घायल पेशवाओं की मदद करने से उससे क्रुद्ध अब्दाली ने जब उसे धमकाने की कोशिश करी तो ऐसा कुटिल जवाब दिया कि अब्दाली की भरतपुर पर हमला करके जाटों को सबक सिखाने की धरी-की-धरी रह गई|

4) वर्णवाद और जातिवाद से रहित ऐसा कि अपना खजांची चमार बनाया हुआ था और सेनापति-दूत गुज्जर को|

5) धर्मनिरपेक्ष इतना कि एक पाले मस्जिद बनवाता था तो दूसरे पाले मंदिर|

6) कौम समाज की इज्जत का इतना सरोकार कि दिल्ली नवाबों की कैद में पड़ी बाह्मण बेटी हरदौल को अपनी बेटी मानते हुए, अफलातूनी अंदाज में जब, "अरे आवें हो भरतपुर के जाट, दिल्ली के हिला दो चूल और पाट" का हल्कारा बोलता हुआ छुड़ाने निकला तो मुग़ल कह उठे, "तीर-चलें-तलवार-चलें, चलें कटारें इशारों तैं! अल्लाह मियां भी बचा नहीं सकदा जाट भरतपुर वाले तैं!!"

7) दबंग और आत्मविश्वासी इतना कि हरदौल को छुड़ाने वाले युद्ध में रानी हिंडौली को भी नवाब की ख्वाइस पर साथ ले गया था और गुड़गांव में डाल के पड़ाव संदेशा दिया कि, "कह दो नवाब को, जाट सूरमे आये हैं और राणी हिंडौली को साथ लाये हैं! देखें वह राणी ले जाता है या हरदौल को देने घुटनों के बल आता है!"

8) चतुर व् पारखी इतनी कि बाजीराव पेशवा व् सदाशिवराव भाऊ दोनों की उसको बंदी बनाने की, उसकी सेना का इस्तेमाल करने की चालें भांप, उनको चकमा दे तुरंत शिविर से बच निकला|

9) युद्ध कौशल का माहिर ऐसा कि बागरु (मोती-डूंगरी) की लड़ाई में मुग़ल-पुणे पेशवा-राजपूतों की 330000 की 7-7 सेनाओं को मात्र 20000 की छोटी सी फ़ौज के साथ 3-3 दिन रण में छका के हरा देता था|

10) मैत्री इतना कि जयपुर का ताज किसके सर सजेगा इसका फैसला हाथों-हाथ कर देता था और माधो सिंह के सर से ताज उतार राजा ईश्वरी सिंह के सर सजा देता था|

11) उसी की हृदय-विशालता ने समाज को "बिन जाटों किसने पानीपत जीते", "जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो ले" की कहावतें दी|

12) जिसकी दूरदर्शी सोच व् भवन निर्माण कला ने समूचे भारत का ऐसा किला लोहागढ़ दिया कि जिसको अंग्रेज भी 13-13 हमले करके जीत नहीं पाए और आखिरकार 'ट्रीटी ऑफ़ फ्रेंडशिप एंड इक्वलिटी' करनी पड़ी|
हिन्दू-हिन्दू चिल्लाने से हिंदुत्व नहीं आने वाला, असली हिन्दू-हीरों को सम्मान देना सीखो! उनकी महानताओं को बराबरी से गाना और उठाने का जज्बा रखो|

और आज के दिन नोट करो कि इस "एशियाई ओडियसस" व् "जाटों के प्लेटो" के नाम से मशहूर हुए अफलातून को कौन-कौन याद करने की हिम्मत जुटा पाता है| वरना छोड़ दो दोगलों के पीछे दुम हिलाना क्योंकि, 'यूँ व्यर्थ में काका कहें काकड़ी आज तक किसी को मिली हो तो तुम्हें मिलेगी!'

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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