Tuesday, 13 October 2015

कैप्टन अभिमन्यु ही असली सीएम हैं, खट्टर तो नाममात्र हैं - पत्रकार सतीश त्यागी

सतीश त्यागी जी हो सकता है कि आपकी ऑब्जरवेशन आपके अनुसार सही हो परन्तु यह भी हो सकता है कि आप जैसे पत्रकार के जरिये आरएसएस और बीजेपी के लिए श्रीमान खट्टर ने जो हर्याणवियों को कंधों से ऊपर कमजोर कहा उस ब्यान से श्रीमान खट्टर और उनके समाज के प्रति हरयाणवी समाज में बना "नेगेटिव वर्ड ऑफ़ माउथ" (negative word of mouth) का डैमेज कंट्रोल (damage control) करने का एक जरिया बन जाए|
माफ़ करना परन्तु आपका बयान आया ही ऐसे वक्त में जब आपकी बात के इसके अलावा इसकी टक्कर के और कोई मायने निकलते ही नहीं।

वैसे भी आपकी बात लॉजिक्स के आधार पर भी ख़ारिज है। क्योंकि अभियमन्यु असली सीएम होते तो जाट तो जाट जो अन्य जातियों के किसान भाई शायद किसी बहमवश जाट से दूर चले गए थे (शायद अभी भी पास आने में वक्त लगे, परन्तु मुझे भरोसा है अगर बीजेपी साल-दर-साल इसी तरह फसलों के भावों को तली-तोड़ गोते खिलवाती रही तो अहम में पास ना भी आवें परन्तु इतना जरूर समझ आ जायेगा कि फसल के भाव तो जाट सीएम ही दिया करें थे), उनकी धान मंडियों में कम से कम इतनी बुरी दुर्गति से तो नहीं पिट रही होती कि कहाँ तो विगत सरकार INR 4000-4200 प्रति किवंटल देती थी और कहाँ श्रीमान खटटर सरकार INR 1200-1400 में पीट रही है।

क्या यही इनाम होता है नॉन-जाट किसान को जाट से छींटक के बीजेपी और आरएसएस के लिए वोट करने का? चलो एक पल को जाट को ना दो तो ना दो, कम से कम इन हमारे नॉन-जाट किसान भाइयों को तो इनकी वफ़ादारी का भुगतान करते खट्टर साहब? मतलब सारे हिन्दू भी तो हैं, क्या यह हिन्दूपना भी एक किसान को उसकी फसल का जायज भाव दिलवाने में कारगर नहीं? चोखा, अगर नॉन-जाट किसान इस सच्चाई को समझ जावें कि तुम्हारी फसलों के दाम हिन्दू कहलवाने से नहीं बढ़ते, वो सिर्फ किसान कहलवाने से ही बढ़ते हैं।
और अगर आपकी बात सच होती और वास्तव में अभिमन्यु ही सरकार चला रहे होते तो वो भी कम से कम ना ही तो इतने कम भाव देते और शायद अन्य नॉन-जाट किसानों के साथ जाट किसान को भी उचित भाव मिल रहे होते।

सो कृपया ऐसे सगूफों पे आधारित सिलसिले मत छोड़िये मार्किट में, सरकार तो श्रीमान खट्टर ही चला रहे हैं। अब हर कोने पे पिट रही सरकार की असफलता का ठीकरा कम से कम एक जाट पर तो मत फोडिये।

खैर इस जाट (यानि मैंने) ने इतना तो सीख ही लिया है कि जाट चाहे जिस भी पार्टी के पाले का हो, उसपे अगर तोहमत की राजनीती होगी तो मैं जरूर बोलूंगा।

तो त्यागी साहब! वो नेवा मत करो कि, "मेरे जामे सारे भुंडे और थारे जामे काणे भी सुथरे।"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

अनिल विज चले माता को पशु घोषित करवाने, भगतो! त्राहि-माम, त्राहि-माम!

भगतो अब हमें दोष ना देना अगर हम गाय को पशु कह देवें तो, क्योंकि अब तो आरएसएस के सबसे बड़े चेलों में से एक श्रीमान अनिल विज, मिनिस्टर हरयाणा सरकार तक ने आपकी माता को राष्ट्रीय पशु घोषित करवाने का बीड़ा उठाया है|

वैसे भगतो ये तमाशा क्या है? कभी संगीत सोम राजपूत जो गाय के लिए मरने-मारने को लोगों को प्रेरित करता है वो खुद एक गौहत्थे का डायरेक्टर निकलता है| अब यह विज महाराज गौ-माता को पशु ही घोषित करवाने पे तुल गए हैं|

भगतो रोको इनको! समझाओ कुछ अक्ल दो कि आप भगत लोग सुतिये हो क्या जो इतनी मेहनत से एक पशु को माता बनाने में दिन-रात एक कर देते हो और फिर यह आपके ही बुद्धिजीवी लोग उसको वापिस पशु घोषित करवाने पे तुल जाते हैं|

लगता है भगत और इनके गुरु लोग दिग्भर्मित हो पथभ्रष्ट हो गए हैं| लगता है जैसे काल्पनिक कथा महाभारत में यादव कुल आपस में कट-कट नष्टप्राय हो गया था अब आधुनिक काल में भगतों में जल्द ही यह दौर आने वाला है|

दया करो ईश्वर, बख्स तो नादान अनिल विज जी को जो अपने ही भगतों की भावना नहीं समझते|

ओन सीरियस नोट: यार भगतो अब तो समझ जाओ, कि जिनके इशारों पे तुम उपरांतळी-अळसु-पळसु हुए रहते हो, वो तुम्हें कितना फद्दु समझते हैं, इसका इससे भी बड़ा जीता-जागता उदाहरण और कोई हो नहीं सकता|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 11 October 2015

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

मुझे पूरा विश्वास है कि हरयाणा में जाटों से खिंचे-खिंचे रहने वाले यादव भाईयों को बिहार चुनाव में बीजेपी और आरएसएस उसी फील की दस्तक दे रही होगी जो हरयाणा में जाटों के साथ पहले से ही चल रही है!

इतना तो पक्का है कि बिहार का यादव सकपकाया हुआ है कि अगर बीजेपी आई तो उनके साथ कहीं यह वही ना करे जो हरयाणा में जाटों के साथ की हुई है|

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

उम्मीद है कि इस बिहार इलेक्शन से हरयाणा का यादव भी सबक लेवेगा और अपने सबसे करीबी और समकक्ष समाज जाट से वापिस आन जुड़ेगा!

वैसे भी आम यादव और आम जाट को केंद्र में केंद्रीय मंत्री या राज्य में सीएम से ज्यादा फसलों के भाव चाहियें! जो कि बीजेपी जबसे आई है तब से तली में बिठा दिए गए हैं| कोई ना अभी तो चार साल और बाकी हैं, तब तक सिर्फ भाव ही नहीं, हर जाति के किसान की जेब भी टाँकियों वाली ना हो जावे तो देखना| चाहे फिर वो राजकुमार सैनी का सैनी किसान समाज भी क्यों ना हो| धान की एकड़ का बाद्धा लागत 30000 तो आमदनी 17000, बचत की तो फिर पूछो ही मत|

वैसे हरयाणा में जाटों के साथ यह राष्ट्रवाद-राष्ट्रवाद खेलने से पहले, गुजरात में पटेलों और महाराष्ट्र में मराठों के साथ बीजेपी, आरएसएस यही खेल चुकी है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

यू लाग्या हरयाणा के नॉन-जाट किसानों के भी ताड़ा सा!

अब भाई इस टाइटल को समझने के लिए शर्त है कि आपको हरयाणवी आनी चाहिए| खैर मैं टाइटल से आगे की बात पे बढ़ता हूँ|

राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की चासनी में वैसे तो एक-आधा जाट भी उतरा हुआ है परन्तु हरयाणे में जाट से ज्यादा नॉन-जाट किसान तो लगभग सारा ही उतरा हुआ है|

अब जब भी नॉन-जाट किसान या नॉन-जाट किसानी-परिवेश के मित्रों से बात करता हूँ तो सारे कहते हैं कि मार दिए इस खटटर ने तो बिन आई| बाधे पे किल्ला लिया 30000 का, उसमें जीरी हुई 17000 की, इसमें क्या तो नंगा नहा ले और क्या निचोड़ ले|

एक दूसरा नॉन-जाट मित्र बोला कि भाई चाचा जी खेती करते हैं, हमारे यहां की जमीन भी तगड़ी है और पानी भी खूब लगे है फिर भी 44000 का किल्ला उतरा, जबकि हुड्डा (जाटों से नफरत करने वाले ध्यान देवें) के राज में 130000 का किल्ला उतरा करता| और अबकी बार तो लागत भी पूरी ना हुई|

मैं भी पटाक दे सी बोल्या की ना मखा और ले ल्यो राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद के सुवाद, और चले जाओ जाटों से दूर और कर लो नफरत अभी बाकी रह री हो तो|

मखा चिंता ना करो, अभी तो एक ही साल हुआ है, चार साल और पड़े हैं| अगर 2019 आते-आते थारे घरों में इन तथाकथित राष्ट्रवादियों ने मुस्सों (चूहों) की कलाबादी ना करवा दी तो कहना| शरीर से धोले-चमकीले बाणे उतरवा के टांकी लगे लित्तर-लतेड़ ना पहरा दी तो कहना मुझे कि भाई के कहवे था|

दोनों भाई यूँ बोले यार क्यों हंसी उड़ा रहा| कोई हल बता|

मैंने भी कह दी मखा हल तो इब या तो श्री राजकुमार सैनी बतावैं या फिर खुद खट्टर| मखा एक काम कर लो आरएसएस के दफ्तरों में जा के ट्राई मार लो, हो सके है कि हिन्दू के नाम पे उनका हृयदा पिघल जा और जाट सीएम वाली सरकार से ज्यादा ना सही तो उसके बराबर भाव दिलवा दे|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 10 October 2015

जयकारा सींगों-वाली का!


जयकारा सींगों-वाली का, बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!
काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!

हो बोलो जय मरदो की, जय हो!
बोलो जय लागढ़ की, जय हो!
बोलो जय बाखड़ी की, जय हो!
बोलो जय हरर्या की, जय हो!
बोलो जय कटवाळ की, जय हो!
बोलो जय झोटी की, जय हो!
दूध जो तेरा पी जाए, जय हो!

वो प्रो-बॉक्सर बन जाए, जय हो!
सबमें बल है भरती, जय हो!
सबके दुःख ये हरती, जय हो!
हो मैया झोटों वाली, जय हो!
भर दो बालट्ट खाली, जय हो!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
मेरी माँ आआआ सींगों वालिये!

पूउउउरे करे अरमान जो सारे, पूउउउरे करे अरमान जो सारे!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

भूअअरी रे एएएएए, काली रे एएएए, झोट्टां-वालिये!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टां-वालिये, मेरिये राणिये!

साअअरे जग को दूध पिलाये, साअअरे जग को दूध पिलाये!
पहलवानों को जो खूब जिताये, पहलवानों को जो खूब जिताये!

एथलीटों की रफ़्तार बढाए, एथलीटों की रफ़्तार बढाए!
पैअअकेट में सबके घर जाए, पैअअकेट में सबके घर जाए!

व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए, व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए!
पंडा-मौलवी सबको भाये, पंडा-मौलवी सबको भाये!

मुर्रे एएएएएएएएए मेरिये, राणिये!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टों वालिये एएएएएएएए, सींगां वालिये एएएएएएएएए

मौत के सौदागर की सवारिये, सींगां वालिये एएएएएएएएए
सेक्युलर गुणों वालिये एएएएएए, ओ माता कालिये एएएएएएएएए

बोल साचे दरबार की जय! बोल सेक्युलर दूध-दरबार की जय!
बोल झोट्टां वाली की जय, बोल सींगां वाली की जय!

जय हो! जय हो! जय हो!

सेकुलरिज्म की प्रतीक भैंस माता!

सेकुलरिज्म से नफरत करने वाले कम्युनल कीड़े, सेक्युलर भैंस माता का दूध पीना छोड़ दें अन्यथा कटटरता और अंधभक्ति के थोथे थूक बिलोने छोड़ दें!

क्योंकि भैंस पे ना मुस्लिम झगड़ा करता है, ना हिन्दू, ना सिख। भैंस सब धर्मों को भाती है, सबकी नाती है।
इसलिए तमाम अंधभक्तों से अनुरोध है कि वो भैंस का दूध ना पीवें अन्यथा सेक्युलर हो जावेंगे!! वो हर उस चीज से नफरत करें, दूर रहें जो सेकुलरिज्म की प्रतीक है!

बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!

मोहन भागवत, जाति अभी जिन्दा है!

दनकौर (नोएडा) में हिन्दू दलित परिवार को हिन्दुओं द्वारा नग्न किये जाने की (कई लोग कह रहे हैं कि वो खुद नग्न हुए थे, फिर भी कोई यूँ-ही बैठे-बिठाये तो नग्न नहीं हो जायेगा, कुछ तो उंच-नीच का पेंच उलझा ही  होगा)  तालिबानी उत्पीड़न की क्षुब्धता विश्व के कौनों-कौनों तक गूंजी है| यूरोप वाले इसको "हिन्दू तालिबान" व् "हिन्दू सऊदी" तक कहने लग गए हैं|

पिछले महीने ही आरएसएस और मोहन भागवत वक्तव्य देते हैं कि नौकरियों में जातीय आधार के आरक्षण की पुनर्विवेचना होनी चाहिए| क्योंकि आपको जातीय आरक्षण देश पर कलंक लगता है और दावा करते हैं कि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि नहीं बन पा रही है| जबकि कहानी उल्टी है, आपकी काल्पनिकता से बिलकुल उल्टी|

दादरी (गाजियाबाद) और दनकौर (नोएडा) की घटनाएं चीख रही हैं कि धर्म और जातीय कटटरता और फूहड़ता अभी जिन्दा हैं| 'हिन्दू एकता और बराबरी' एवं 'हिन्दू बटेगा, देश घटेगा' जैसे स्लोगन्स ढकोसला हैं| और दनकौर की घटना साक्षी है इस बात की| एक पशु के नाम पर उदंडता फ़ैलाने वाले हिन्दुओं के समक्ष ही एक हिन्दू दलित परिवार को सरेआम नग्न किया जा रहा था या वह खुद हो रहा था और किसी हिन्दू का उस परिवार को या उसको नग्न करने वालों के खिलाफ खून नहीं खोला|

दूसरी तरफ एक तथाकथित हिन्दू-हृदय सम्राट संगीत सोम खुद जब एक बूचड़खाने जिसमें की गाय भी कटती हैं के डायरेक्टर निकलते हैं तो यही तथाकथित हिन्दू व् इनके धर्माधिकारी तक भी चूं तक नहीं करते। कम से कम यह आर्टिकल लिखे जाने तक ऐसी कोई खबर नहीं की किसी गाय के भगत ने चूं तक भी किया हो इस खुलासे पे।

यह कैसा धर्म है और कैसी इसकी शिक्षा कि इंसानी अपमान पे जिसके खून में कोई हलचल नहीं होती वो जानवरों के गोबर-मूत पे किन्हीं तालिबानियों की भांति झींगा-लाला-हु-हु झिँगाने लगते हैं|

मैं किसी को आईना नहीं दिखाना चाहता, मुझे तो इनके ड्रामों की रग-रग का पता है| परन्तु मानवता कहीं रोती है या रूलती है तो अंतर्मन क्रंदन करने लगता है|

आखिर लोग कब समझेंगे कि "हिन्दू" नाम का कोई धर्म नहीं (सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं) , "हिन्दू" नाम की कोई स्थाई सोच नहीं| "हिन्दू" शब्द कोरी एक राजनीति है, इसका धर्म-इंसानियत-सभ्यता-जिम्मेदारी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं| "हिन्दू" नाम के पार्सल में आज भी आपको ना सिर्फ धर्म अपितु जातिवाद का जहर ही पिलाया जा रहा है| तभी तो एक पशु के खाने की अफवाह मात्र पर किसी संगीत की धुन की भांति सहायता का सोमरस पिलाने वालों से ले रण के सुरेश बनने वाले "हिन्दू-हृदय सम्राटों" के लावलश्कर तो क्या उनके संदेश तक 'दनकौर' नहीं पहुंचे| यहां तक दलित-पिछड़ों के मॉडर्न-ब्रांड मसीहा महाशय श्री राजकुमार सैनी तक ने एक शब्द अभी तक इसके खंडन पर नहीं बोला|

'पापी के मन में डूम का ढांढा' वाली बात है यह तो श्रीमान भागवत| स्पष्ट है कि 'दनकौर' जैसी घटना अपने आपमें इस बात की पुनर्विवेचना है कि आज भी इस देश में आरक्षण और वो भी आर्थिक या शैक्षणिक नहीं अपितु सामाजिक आरक्षण क्यों जरूरी है|

दलित और किसान 'जातिवाद' को समझें और इस जातीय जहर को इसको लिखने-घड़ने वालों की किताबों तक में ही समेट दो या फिर उनके ही ऊपर उड़ेल दो| क्योंकि मोहन भागवत की तो बाट जोहना मत कि जैसे उन्होंने "नौकरी आरक्षण" की पुनर्विवेचना की कह दी वो कभी सपनों में भी "जातिवाद" की पुनर्विवेचना या इसको समाज से हटाने की कहेंगे या इसमें बसी जातीय-वर्णीय बंटवारे की डंकनी सोच से इसको मुक्त कर पाएंगे अथवा करने की कहेंगे| उनके तो खुद के संगठन में आजतक स्वर्ण से तले कोई प्रधान नहीं बन पाया।

किसान वर्ग की जातियों को यह खेल समझना होगा कि जब आप अपनी वास्तविक "अन्नदेवता" वाली उच्चता (जिसके आगे धर्म भी नतमस्तक है) को छोड़ इनके हिन्दुवाद की अव्यवहारिक व् असामाजिक छद्म उच्चता ओढ़ते हो तो कैसे खुद को दलित के खिलाफ खड़ा कर लेते हो|

इस वायरल का असर यहीं तक थम जावे तो काम चल भी जावे, परन्तु असली खेल तो इससे आगे होवे है| उंच-नीच के नाम पर बंटे आप दलित-किसान को फिर यही जातिवादी आपको वोटों के दो धड़ों के रूप में बड़ी सहजता से प्रयोग करते हैं|

जातिवाद को अपने समाज, दिलों और मस्तिष्कों से निकाल के बाहर करो क्योंकि यह सिवाय "यूज एंड थ्रो" की न्यूनतम दर्जे की अमानवीय-हिंसक राजनीति के कुछ नहीं|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Mr. CM Haryana, please rethink over your 'Education Norm Condition' in forthcoming Panchayati Raj Elections in state!

Look at this report from attachment, there are men and women farmers in hundreds, out of which most of are below 10th or even not having 5th grade official degree but are beating more than 70% scientists, professors and researcher all over the nation with their profound and stunning knowledge of crops insects, their biological life-cycles, their impacts on crops.

One side where in Punjab and ajdacent Haryana layers, farmers have lost most of their cotton crops due to severe mass attack of "White Fly", on the other side farmers in Jind district have successfully shielded their cotton crop with their distinctive know-how of various insects life-cycle.

So please remember Mr. C.M. they also have and even attained a wisdom and wisdom is something which one needs to run or govern the public. So when they can beat yours government's more than 70% of agri-scientists and professors (who not only just have this job rather your system would have spent on them in crores) then how can they not be eligible for electing "Panchayati Raj Elections"?

I feel special compassion and legitimacy to these farmers as the epicenter of this agri-movement has been my native village i.e. Nidana Nagri of my beloved Jind country (we oftenly loved to call it country in student age, a KUK famous compliment) in a state of Yoddheyas i.e. mighty Haryana.

Oh I think, as you don't even consider yourself a Haryanvi (of course otherwise won't have termed Haryavies weak above and strong below shoulders), so all these 'Nagri', 'Country' and 'Yoddheyas' would appear new to you. Don't worry ask your assistances, they would help you out.

Jai Yoddhey! - Phool Malik


 

भगतों का सुतिया कट गया रे!

रै रळदू, न्यूं क्यूकर भाई, (आगे हिंदी में) यह "हिन्दू-ह्रदय सम्राट श्रीमान संगीत सोम" तो खुद ही "अल-दुआ" बीफ प्रोसेसिंग कंपनी जो कि बीफ से ले हर तरह के मांस का व्यापार करती है, उसके डायरेक्टर निकले|

और वो भी भगतों के गुरुओं द्वारा भगतों के लिए भगतों के दुश्मन नंबर वन कौम बताये गए मुस्लिम (जिनके साथ भाईचारा रखने पे भगतगण मेरे जैसे सेक्युलर को गलियाते रहते हैं) के साथ खोल रखी है, भगतो डूब के मरने को जी कर रहा हो तो आसपास कोई नहर, नहर नहीं तो जोहड़-कुँए तो जरूर मिल जायेंगे|

भगतो घर में ही गाय का भक्षक जयचंद पाले बैठे हो और वह तुम्हारा कितना अच्छे से सुतिया भी बनाता है| दादरी में हरसम्भव मदद का दावा करने भागा-भागा आता है और दूसरी तरफ "अल-दुआ" बूचड़खाना भी चलाता है| अंधभक्ति इंसान को मूढ़-हिंसक-अपराधी बना देती है पता था परन्तु सुतिया भी बनाती है यह अब पता चला|

अब उठाना ऊँगली तुम मेरे ऊपर मुस्लिमों को भाई कहने पर, तुम्हारे इन हिन्दू-हृदय सम्राट का नाम आगे अड़ाया करूँगा|

तमाम कृषि-समुदायों से यही कहना है कि शुद्ध कृषक बने रहो, ज्यादा हिन्दू बनने के चक्कर में उलझोगे तो श्री संगीत सिंह सोम राजपूत जैसे छद्म लोग आपका दिन-धोली सुतिया बनाते रहेंगे।

'हिन्दू' शब्द के नाम पर एक छद्मभेषी तबका कैसे अपने स्वार्थ साध इनके बहकावे में आने वालों का कैसे सिर्फ फद्दु ही नहीं अपितु सुतिया भी काटता रहा है उसकी जीती-जागती मिशाल हैं श्री संगीत सोम जी।

मतलब किसी आम आदमी का बूचड़खाना होता तो समझ भी आता, यह तो उस आदमी का निकला जो 2013 में मुज़फ्फरनगर से हिन्दू-हृदय सम्राट बना चल रहा था। और इसपे इनके अति-आत्मविश्वास की इंतहा तो देखो, एक तरफ जनाब खुद एक गाय काटने वाले बूचड़खाने के डायरेक्टर और दूसरी तरफ दादरी में गौ-मांस पर हुए दंगे में जा के गौ-भगतों को मदद आश्वस्त करके आते हैं।

शुक्र है कि मैं तो शुरू दिन से तभी से इनसे तटस्थ रहा और अब तो इनको कतई ना हेजूँ। ऐसी सुतिया बनाने वाली अंधभक्ति तुमको ही मुबारक भगतो और अंधभग्तो। हम तो भक्ति के बिना ही सिर्फ "अन्नदेवता" या "अन्नदेवता की औलाद" कहला के जी लेंगे।

जय योद्धेय! - फूल मलिक

 

Friday, 9 October 2015

“तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्टी पड़ी है!” - महारानी किशोरी

एक जीत, सम्मान, शौर्य और प्रतापी तेज की भूखी शेरनी जाटनी का यही वो तान्ना था जिसने उनके सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह को भारतेंदु बना दिया|

यही वो रूदन था जिसको सुन अपने पिता की अकस्मात मौत के बदले हेतु एक लाख सेना के साथ रणबांकुरे जवाहर ने सीधा दिल्ली पर हमला दे बोला|

महाराजा सूरजमल की बहादुर रानी जिसने लाल किले की चढ़ाई में भाग लिया तथा पुष्कर में भी की जीत का कारण बनी तथा वहां जाट घाट बनवाया।

जब 1763 में महाराजा सूरजमल शाहदरा के पास धोखे से मारे गये तो महारानी किशोरी (होडल के प्रभावशाली सोलंकी जाट नेता चौ. काशीराम की पुत्री) ने महाराजा जवाहरसिंह को एक ही ताने में यह कहकर कि " तुम पगड़ी बांधे फिरते हो और वहां शाहदरा के झाऊओं में तुम्हारे पिता की पगड़ी उल्टी पड़ी है!”, युद्ध के लिए तैयार कर दिया। महाराजा जवाहरसिंह ही पहले हिन्दू नरेश थे जिन्होंने आगरे के किले और दिल्ली के लाल किले को जीतकर विजय-वैजयन्ती फहराई थी और भारतेंदु कहलाये।

दिल्ली के लाल किले के युद्ध में जब किसी भी तरह किला फतह न हो पा रहा था तब महाराजा जवाहरसिंह के मामा और महारानी किशोरी के भाई वीरवर बलराम ने किले के फाटकों के लम्बे-लम्बे कीलों पर छाती अड़ा हाथी के मस्तिष्क पर बड़े-बड़े तवे बन्धवा पीलवान से हाथी हूलने को कहा। हाथी की मार से किले के किवाडों और तवों के बीच में बलराम का शरीर निर्जीव हो उलझ गया पर उनके अमर बलिदान से अजेय दुर्ग के फाटक टूट गए और वह जीत लिया गया।

कई महीनों के घेरे के बाद, जब जवाहर सिंह ने लालकिला दिल्ली के किवाड़ तोड़ डाले तो, आखिरकार दिल्ली में अहमदशाह अब्दाली के द्योतक बादशाह नजीबुद्दीन जाट-महाराजा के रौद्र-रुपी क्रोध के आगे संधि को मजबूर हुए|

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हराने वाला अहमदशाह अब्दाली भी जाट-क्रोध के आगे लूटती दिल्ली को अवाक देखता रहा; और नजीबुद्दीन की मदद को आने की हिम्मत नहीं जुटा पाया| इसपे कहा गया कि “जाट के क्रोध को या तो करतार थाम सके या खुद जाट”|

मुग़ल बादशाह ने मुग़ल राजकुमारी का महाराजा जवाहर सिंह से ब्याह (जिसको बाद में जवाहर सिंह ने फ्रेंच-कैप्टेन समरू को प्रणवा दिया), युद्ध का सारा खर्च वहन करने की संधि की|

महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई में अकबर चित्तौड़गढ़ के किले के प्रवेश द्वार के जो किवाड़ उखाड़ दिल्ली में ले आया था, उन्हीं किवाड़ों को दिल्ली से वापिस छीन जाट-सूरमा वापिस जाट-राजधानी भरतपुर ले आया; और इस तरह राजपूती सम्मान का भी बदला लिया| उस जमाने में चित्तौड़गढ़ ने यही दरवाजे आज की कीमत में लगभग 9 करोड़ रूपये के ऐवज में वापिस मांगे तो लोहागढ़ (भरतपुर) ने कह दिया कि मान-सम्मान की कोई कीमत नहीं हुआ करती; फिर भी किवाड़ चाहियें तो ऐसे ही ले जाओ जैसे हम दिल्ली से लाये हैं| आज भी वह किवाड़ भरतपुर किले में लगे हुए हैं|

काश लेखकवर्ग व् सिनेमावर्ग हमारे इतिहास के अध्यायों को दिखाने में ईमानदार होता तो उनको ऐसे एपिसोड जिसमें भारतीयों ने आक्रान्ताओं और विदेशी शासकों को बेटियां दी के जरिये ही अपनी अपंग वीरता बघारने के अपंग-फूटे किस्सों से काम ना चलाना पड़ता| आज भी अगर जाट इतिहास को कोई सिनेमा उठा ले तो विश्व को जान पड़े कि भारत के राजा सिर्फ बेटियां दिया नहीं करते थे, अपितु ऐसे भी राजा हुए जिनको विदेशी शासकों की बेटियों से विवाह के न्योते मिला करते थे और वो उनको महाराजा जवाहर सिंह की तरह आगे बढ़ा दिया करते थे| और साथ ही यह भी पता लगता है कि भारतीय राजा सिर्फ विरोध करते हुए जंगलों में भूखे नहीं मारे जाया करते थे अपितु दुश्मन के माथे पर चढ़ उसके मान-मर्दन की बोटियाँ भी बिखेरा करते थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

विभिन्न वर्गों की सोशियोलॉजी पढ़नी और समझनी है तो रखें अलग-अलग सोशल एकाउंट्स यानी फेसबुक पेज!

मेरे पास छ: फेसबुक एकाउंट्स हैं, जिनमें 4000 से ले के न्यूनतम 300 तक फ्रेंड्स हैं| एक मुद्दे को जब छ: के छ: में डालता हूँ तो जो प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं उनमें दिन-रात का फर्क होता है|

इन अकाउंट में सिर्फ दो अकाउंट मेरे नाम से हैं बाकी चार मेरी ओनरशिप यानी गवर्नेंस में| कोई भी अकाउंट नकली जानकारी दे के नहीं बनाया है, सब ऑथेंटिक हैं| पर इनके जरिये जो विभिन्न वर्गों की मुद्दों की चॉइस और सोशल सोच का एक स्क्रीन पे बैठे-बैठे अध्यन हो जाता है वो अपने-आप में एक रिसर्च थीसिस लिखने जैसा है| अगर इस रिसर्च के 6 चारित्रिक हाइपोथिसिस बनाऊं जो कुछ यूँ बनेंगे:

1) कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला यानि कॉर्पोरेट ग्रुप: इसमें वो लोग हैं जिनको समाज में क्रीमी लेयर कहा जाता है| इनको समाज की राजनीति-हिंसा-आगजनी के जरिये सिर्फ कमाई होती रहनी चाहिए, फिर चाहे कोई जिए या मरे| इनमें कुछ तो यूँ भी कह देते हैं कि तुम क्यों पड़ते हो इन पचड़ों में| बड़ा उदासीन ग्रुप है साहेब, कोई सहजता से रिस्पांस नहीं करता सिवाय इनमें बैठी अंधभक्त केटेगरी के|

2) सांस्कृतिक चेतना व् जागरूकता ग्रुप (हर तरह की सेंट्रल विंग वाले इसमें हैं): इसमें हरयाणवी संस्कृति को ले के जागरकता और प्रेरणा को कटिबद्ध लोग हैं| इस ग्रुप में आर्थिक आधार की कोई लाइन नहीं है| इसमें कॉर्पोरेट जैसे मनी-माइंडेड से ले नेता-सामाजिक कार्यकर्त्ता सब हैं| परन्तु एक लाइन जरूर है कि 99% सब हैं हरयाणवी| जब इस अकाउंट में पोस्ट डालता हूँ तो बहुत सकारात्मक रिस्पांस आते हैं| लाइक्स के तो कई बार मीटर टूट जाते हैं|

3) मानवाधिकार और सामाजिक अधिकारों की वकालत करने वाले (हर तरह के लेफ्ट विंग वाले): इनके यहां पे बुद्धिजीवियों वाली धुनें चलती हैं| समाज की हर इस-उस थ्योरी और मान्यता में नुक्स निकालने वाले| यहां मेरी लगभग हर ऐसी पोस्ट का खूब मान-मर्दन होता है पोस्टमॉर्टेम होता है जिसमें मैंने हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखा हो| इनके अनुसार हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखे जाने का मतलब सिर्फ और सिर्फ जाट और खाप है| इसलिए यह बेचारे जाटोफोबिया और खापोफोबिया से ऐसे ग्रसित हैं कि पोस्ट डाली नहीं बस टूट पड़े|

4) यह प्योर पोलिटिकल लोगों का अकाउंट है: यहां पता ही नहीं लगता की पोस्ट हिट हुई या पिट गई| लिखने वाला पोस्ट के पक्ष में है या विपक्ष में, कुछ मालूम नहीं पड़ता|

5) यह नॉन-हरयाणवी लोगों का ग्रुप है (मीडिया इनका गुरु है): जहां पोस्ट डाल कर हरयाणवी संस्कृति पर वो क्या सोचते हैं इस बारे जानने को मिलता है| इस ग्रुप में मीडिया की मेहरबानी ज्यादा काम कर रही है| मीडिया की रिफरेन्स से ही यहां हरयाणा की छवि बना के चलते हैं लोग| परन्तु समझाने पे बात को समझ भी लेते हैं| ऐसे ग्रुप्स ऐसे लोगों के समूह हैं जहां हर असली हरयाणवी को होना चाहिए, खासकर उनको तो जरूर जो हरयाणा और हरयाणवी का सही और सटीक प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं|

6) अंधभक्तों का ग्रुप (हर तरह की राइट-विंग वाले इसमें हैं): यहां मैं धर्म-जाति-सम्प्रदाय से संबंधित पोस्टें डालता हूँ और इनके मत की पोस्ट ना हो तो ऐसे झप्पटा मारते हैं जैसे बंदरों का समूह| इन्होनें जो माइंड-सेट बना लिया है उसमें किसी दूसरे विचार की जगह की कोई गुंजाइस नहीं| सबसे रुके हुए, थमे हुए और छके हुए लोग इस समूह में हैं| इनसे इसलिए जिरह और मश्वरा करना चाहिए ताकि आपको अहसास रहे कि आपको इनके जैसा नहीं बनना|

किसी-किसी अकाउंट में कोई अनफिट पोस्ट डालने पे मुझे भी अफ़सोस रहता है परन्तु मेरी नजर उस पोस्ट के जरिये मिलने वाले फीडबैक व् रिस्पांस पे रहती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

प्रणव दा की बात पे एक्शन भी लेवें प्रधानमंत्री जी!

मोदी साहब बिहार के समस्तीपुर में कहते हैं कि प्रणव दा यानि माननीय राष्ट्रपति जी ने जो कहा उसका अनुपालन करो!

अब देखिये राष्ट्रपति जी ने क्या कहा, "धर्म को सता की सीढ़ी ना बनाएं" - राष्टपति प्रणव मुखर्जी!

तो मोदी साहब राष्ट्रपति जी की इस बात का समर्थन सिर्फ जीभ चलाने मात्र को है या इसको क्रियान्वयन में भी लाओगे? आप, आपकी बीजेपी और खुद आरएसएस धर्म को संसद में बिठा दिए हो, कृपया कहलवाइये ना इन अपने वालों को भी कि अपनी धर्म की संसद को राजनैतिक संसद से अलग रखें। उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी प्राची आदि-आदि मेरे ख्याल से यह धर्म के प्रतीक हैं, समाज के तो नहीं?

मुझे नहीं याद आ रहा कि कभी कोई जत्थेदार, मौवली, पादरी आदि देश की किसी भी विधानसभा अथवा लोकसभा में कभी एमएलए/एमपी बनके आया हो, सिवाय इन हमारे साधु-संतों के|

बाकी भी विश्व में ऐसा कहीं नहीं है जहां कोई मौलवी, पादरी, जत्थेदार राजनैतिक भवनों में बैठते हों| वो अपनी धर्म की संसद अलग रखते हैं।

वैसे भी राजनैतिक गुरु चाणक्य तक कह के जा चुके कि धर्म और व्यापार को जो राजा राजनीति से दूर नहीं रखता, वो निरंकुश, उसकी नौकरशाही बेलगाम और शासन अराजक हो जाता है। चाणक्य जैसी हस्ती का आदर करना परन्तु उनकी बातों पे अमल ना करके उनका आदर करने का अपमान क्यों? उनका सही आदर तो तब होगा जब उनकी बात की भी पालना करोगे और करवाओगे।

इंतज़ार किसका जनाब और किस चीज की बाध्यता? एक्शन लीजिये ना?

इसे कहते हैं "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और!"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 8 October 2015

सम-गोत में विवाह निषेधता, छज्जे-छज्जे का तथाकथित प्यार और आन-बान-शान!

सम-गोत में विवाह निषेधता: सम-गोत विवाह निषेधता वंशानुगत थैलीसीमिया की बीमारी से बचने के लिए व् "एक गोत के खेड़े" में लिंग-समानता की थ्योरी को कायम व् पोषित रखने के लिए है|

पश्चिमी बंगाल की जलपाईगुड़ी इलाके की टोटो जनजाति जिनमें मामा-चाचा के बच्चों {नजदीकी खून के गोतों (गोत्रों)} की शादी की जाती है, जिसकी वजह से व् कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र कैंसर रिसर्च सेंटर की शोध के अनुसार इस समुदाय में 56 फीसदी लोग थैलीसीमिया के शिकार हैं। दयानंद मेडिकल कॉलेज, लुधियाना पंजाब के प्रोफेसर सोबती के शोध के अनुसार इन्हीं वजहों के चलते पाकिस्तान पंजाब से आई नश्लों में भी 7.5% लोग थैलिसीमिया की बीमारी से ग्रस्त हैं, जो कि अब बढ़कर 12% तक पहुँच चुकी है| यहां तक कि विश्व के ईसाई समुदाय में भी नजदीकी खून व् सगोतीय विवाह वैज्ञानिक व् सामाजिक दोनों आधार पर मान्य नहीं हैं।

तमाम खापलैंड पर "एक गोत के खेड़े" वाले गाँव-नगरी में सम-गोत विवाह इसलिए वर्जित हैं क्योंकि औलाद बेटे की हो या बेटी की, दोनों के लिए गोत खेड़े का ही चलता है, बहु और दामाद के गोत पीछे छूट जाते हैं अथवा द्वितीय हो जाते हैं। बेटा यानि "मैं", बहु यानि मेरी पत्नी, इस मामले में हमारी औलाद का प्रथम गोत मेरा यानि मेरे खेड़े का गोत होगा। बेटी यानि मेरी बहन, दामाद यानि मेरे जीजा जी, अगर मेरी बहन ससुराल छोड़ के मायके यानि हमारे (मेरे और मेरी बहन का पैतृक गांव) में आन बसती है तो यहां होने वाली बहन और जीजा की औलादों यानि मेरे भांजे-भांजियों का प्रथम गोत भी मेरी बहन का यानी हमारे खेड़े का गोत होगा, मेरे जीजा का गोत द्वितीय बन जायेगा। और हमारे यहां जितनी भी "धाणी की औलाद, बेटी की औलाद, देहल की औलाद" कहलाती हैं वो सब अपनी माँ का गोत उनका प्रथम गोत के रूप में धारण करते हैं।
और मुझे गर्व है कि ऐसी व्यवस्था कि जिसमें मर्द का ही नहीं अपितु माँ का गोत भी औलाद का प्रथम गोत बन सकता हो और बनता है वो सिर्फ-और-सिर्फ "खापोलोजी" की थ्योरी देती है। कोई द्वेष-ईर्ष्या में कितना ही हमारी थ्योरी से नफरत करे, गफलत करे या तिजारत करे, परन्तु वो इन तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकता।
अब बात आती है "छज्जे-छज्जे का तथाकथित" प्यार: इसमें तमाम

जवानी के द्वारे, घर-घेर के चुबारे-अँगनारे, वासना भरे हुंकारे!
जो इसको समझ के सही दिशा दे जावे, वही सामाजिक कुहारे!!
बस इसी लाइन में निचोड़ है इस बात का। छज्जे-छज्जे का प्यार आकस्मिक होता है, तामसिक होता है। कोई कितने ही तणे तुड़ा ले, कितने ही पींघ चढ़ा ले परन्तु समाज से उसपे स्वीकृति नहीं मिलती क्योंकि विश्व के हर कोने-बिरादरी में जो दो तरह के वैध व् अवैध सामाजिक संबंध होते हैं उनकी अवैध वाली केटेगरी में हमारा समाज इनको गिनता है।

अब छुपी घुन्नी मंशा लिए इनको "वैध प्यार" ठहराने की जिद्द वाले हमें यह बता दें कि क्या जिस समाज-गली-चौराहे से वो आते हैं वहाँ की डिक्शनरी में "अवैध" शब्द नहीं है? मेरे ख्याल से विश्व में ऐसा कोई समाज नहीं जिसमें सिर्फ वैधता ही विराजती हो और उसमें अवैधता के नाम से कुछ ना हो? अगर ऐसा हो तो फिर विश्व से कोर्ट-कचहरी-पुलिस सब खत्म हो जाता या कम से कम उनके समाजों में यह चीजें ना मिलती।
दूसरी बात अवैध संबंध विवाह से पहले और विवाहोपरांत दोनों तरह के पाये जाते हैं, और हमारे समाज में उनमें से एक अवैध संबंध की प्रकार है "छज्जे-छज्जे का तथाकथित प्यार"।

छज्जे-छज्जे के प्यार की सबसे बड़ी हास्यास्पद स्थिति यह होती है कि जिनसे कभी छज्जे-छज्जे खेले थे अक्सर वो ही उनके बच्चों से आपको, "बेटू मामा जी को नमस्ते करो!" कहलवाती मिलती हैं। और ऐसे में सिर्फ उनकी ही आँखें गर्व से आशीर्वाद देती हैं जिन्होनें छज्जे नहीं अपितु अच्छे रिश्ते रखे हों। अन्यथा आँखें चुरा के निकल जाना पड़ता है|

आन-बान-शान: अत: वो नादाँ लोग समझें जो "छज्जे-छज्जे के तथाकथित प्यारा का डरावा दे ऐसा माहौल खड़ा कर देते हैं कि जैसे दुनियां खत्म होने को आई, वो इसकी परवाह ना करें। क्योंकि समाज से प्यार मरेगा नहीं और वासना घटेगी नहीं। प्यार हारेगा नहीं, वासना जीतेगी नहीं।

किस्से और रांझे तो गाँव-गोत छोड़ प्यार करने वाले हीर-रांझे के ही गाये जायेंगे, छज्जे-छज्जे के प्यार के तहत दी गई व्यर्थ व् कोरी भावनाओं वाली कुर्बानियों के नहीं। जान-जान में फर्क होता है एक जान हीर-रांझे ने दी तो आजतक अमर और एक कितने ही छज्जे-छज्जे वालों ने दी, एक का भी जिक्र किसी गली-चौराहे-महफ़िल नहीं होता, सिवाय उनकी तेरहवीं तक होने वाली शोकसभा के। इसलिए हे छज्जे-छज्जे की पींघों पे झूलने वालो, इन पींघों को गाँव-गुहांड-गोत से बाहर जा और लम्बी बनाओ क्योंकि सासु के नाक तोड़ के लाने हैं तो पींघ लम्बी ही चाहिए होती है। छोटी पींघ पे झूलोगे तो सासु का नाक क्या अपना भी नहीं तोड़ पाओगे।और अगर जाटलैंड और खापलैंड पे बसते हो तो इतनी लम्बी तो जरूर रखो कि पींघ गोत से तो जरूर-से-जरूर बाहर जाती हो, गाँव-गुहांड की निर्भर है कि आपका गाँव के खेड़े का गोत एक है या अनेक।

"खेड़े का गोत": खापोलोजी में जब भी कोई नया गाँव-नगरी बसाई जाती है तो उस गाँव की नींव का पत्थर यानी "दादा खेड़ा" स्थापित करते वक्त जिन-जिन भी जातियों के जिन-जिन गोत के प्रथम लोग खड़े होते हैं वह उन-उन जातियों का "खेड़े का गोत" कहलाता है। अगर एक ही जाति के दो से ज्यादा गोत के लोग हों तो वो सारे गोत उस जाति के लिए उस गाँव के खेड़े के गोत कहलाते हैं। सिरसा-गंगानगर-हनुमानगढ़ की तरफ अधिकतर गाँव ऐसे हैं जिनमें "एक से ज्यादा खेड़े" के गोत हैं जबकि बाकि की खापलैंड पर अधिकतर गाँवों का एक खेड़े का गोत पाया जाता है। 

जय यौद्धेय! - फूल मलिक