Thursday, 15 October 2015

यकीन नही आता कि बिहार में आज भी ऐसा हो रहा है!


बिहार के जहानाबाद जिले की घोसी विधान सभा क्षेत्र में भूमिहार जाति के दबंगों ने आज तक दलितों और पिछड़ों को वोट नहीं डालने दिया।। पूरी खबर देखिए और तय करिए कि कौन लोगों ने लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास किया है।।

ये है हिंदुत्व के ठेकेदारों की इंसानियत और असलियत, मुस्लिमों के डर से डरा के एक क्या इसलिए कर रहे हैं कि कल को लोगों को उनके लोकतान्त्रिक अधिकारों से ही वंचित कर दें।

सम्भल जाओ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की झूठी बातों से।

है कोई "हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे लगाने वाला इस बात पे जवाब देने वाला, कि आखिर क्यों एक हिन्दू ही दूसरे हिन्दू को वोट नहीं डालने देता?

Phool Malik

Source: https://www.youtube.com/watch?v=VF6phOHDEBE

वीर जवाहर नमन तुझे!

वो जलजला सूरज का, जवाहर जाट कहलाता था,
मनुष्य क्या देवों से भी, खुली छाती भिड़ जाता था,

क्रोधी मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले-घन पर,
पितृहत्या का बदला लूंगा, अपने प्राणों से भी बढ़ कर,

अश्वारोही अपनी सेना को, पल में सम्मुख खड़ा किया,
हुंकार लगा के जवाहर ने, दशों दिशा को गुंजा दिया,

होके सवार अपने तुरंग पर, दिल्ली पे कूच किया,
अपनी गरजती ललकार से, जाट लहू उबाल दिया,

लाल किले की प्राचीरों से, उठने लगी चित्कार वहां,
नंगी तलवार लिए खड़े थे, जाटवीरों के कदम जहां,

अफगान सहमे, ह्रदय कांप उठे, छा गया अंधकार घोर,
जहां अफगान था खड़ा, तलवार मुड़ी जाट की उसी ओर,

छिन के बिजली कड़क उठी, जालिम की खड़ग गिर पड़ी,
क्षमा करदे जाट सूरमे, दुश्मन की आंखे छलक पड़ी,

गद्दार पेशवाओं ने तब, अपनी ही औकात दिखलायी,
समर्पण कर अफगानों से, जाटों की सेवा भुलाई,

पानीपत के तृतीय समर में, जब तुर्कों ने इन्हें भगाया था,
हिन्दू रक्षक सूरजमल ने तब, इनके घावों को सहलाया था,

सुसोभित अष्टधातु पट जहां, जाटों ने वो उखाड़ दिये,
तब लोहागढ़ को लोट चले, दिल्ली की पहचान लिये,

जबसे धरती पर मां जननी, जब से मां ने बेटे जने,
जाटवीरों के ऐसे वकत्व्य, ना देखे कभी ना कभी सुने,

वीर जवाहर नमन तुझे, जो जाटों का गौरव-मान बढाया,
तेरे अदम्य साहस ने ही तो, "बलवीर" को लिखना सिखाया,
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लेखक - बलवीर घिंटाला 'तेजाभक्त'

Wednesday, 14 October 2015

सीवन, जिला कैथल, "सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य गाँव" है!

कुरुक्षेत्र सांसद राजकुमार सैनी व् गुहला विधायक बाजीगर पर सीवन गाव में नारे व् पथराव!

सांसद ने कहा जाति विशेष का काम!

सांसद महोदय शायद आप अपने ही क्षेत्र के डेमोग्राफिक विस्तार से वाकिफ नहीं| जान लेना जरूरी होता है, वर्ना झूठ दिन-धोली पकड़ा जाता है|

सीवन गाँव में 12807 मतदाता हैं पर आपकी बताई जाति विशेष का इस हमले में और वो भी उसी गाँव के लोगों के अनुसार एक भी नही| हाँ, जाति विशेष के मात्र 1200 के करीब मतदाता जरूर हैं उस गाँव में।

जनता विरोध कर रही और कमाल इस बात का है सीवन जैसा गाँव जिसने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एकमुश्त होकर आपको ही अधिकतर वोट दिए, वहाँ आप पर हमला हुआ? बीजेपी के वोट-बैंक वाले गाँव में आप पे हमला हुआ जनाब?

चेत जाओ नही तो सारा देश सभी का यही हाल करेगा ये जाति विशेष का नहीं वरन जनता विशेष का आपकी नीतियों के प्रति विरोध है।

वैसे दुनिया इतनी बावलीबूच भी नहीं है एमपी साहब, सबको पता लग रहा है कि उस गाँव में कौन बहुलयता में है और किसने आपको पत्थर मारे होंगे| जबकि यहाँ तो खुद सीवन वाले कह रहे हैं कि एमपी साहब की बताई जाति विशेष वाला तो एक भी नहीं था आप पर पत्थर बरसाने में|

परन्तु आपके साथ तो वो "कुत्ते को मार गई थी बिजली, और मिराड को देखे और कुकावे-ही-कुकावे" वाली बात हो रखी! बावले हो आप, जाट हमला प्लान करे और सिर्फ पत्थर बरसवा के छोड़ दे, सर कुछ राह लगती तो बात किया करो|

गाँव सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य का और इल्जाम फिर भी जाति-विशेष यानी जाटों पर| शर्म कर लो जनाब कुछ, कुछ तो झांक लो अपने गिरेबान में| असलियत को पहचान लो जनाब, जिन्होनें आपको सबसे ज्यादा वोट दिए, उन्हीं के गांव में आप पे पत्थर बरसे| शायद इस कड़वी सच्चाई से वाकिफ नहीं होना चाहते होंगे आप, इसलिए मन में बहम रखने को "जाति विशेष" का काम बता के उछाल दिया| कोई ना, "क्यों खखावै नदी, आवे तो पुल के तले को ही गी!"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

उतरी भारत और शेष भारत की मूल-संस्कृतियों में जो एक सबसे बड़ा फर्क है!

जहां पूरे भारत में मर्द तो कुरता-कमीज-लुंगी-पजामा या धोती ही पहनता है वहीं औरत के पहनावे के मामले में दोनों की भिन्न सोच है|

उत्तरी भारत को छोड़ शेष भारत में औरत पेटलेस और अधिकतर बैकलेस चोली-साड़ी पहनती हैं अथवा उनकी मूल-सांस्कृतिक ड्रेस यही है| मतलब मर्द और औरत की ड्रेस समान नहीं| मर्द ऊपर से नीचे तक ढंका वहीँ औरत पेट और पीठ पर नंगी|

वहीँ उत्तरी भारत में जम्मू-कश्मीर से ले के आगरा तक औरत की मूल-सांस्कृतिक ड्रेस या तो सलवार-सूट है पहनती है या फिर दामन-कुरता या फिर पश्चिमी उत्तरप्रदेश की तरह साड़ी पर पूरा पेट ढंका कुरता| कुल मिला के पुरुष और महिला के पहनावे में एक समानता कि दोनों ऊपर से नीचे तक ढंके हुए हैं|

कई कुतर्की इसमें तर्क अड़ाते हुए आएंगे कि उत्तर भारत में अत्यधिक सर्दियां पड़ती हैं इसलिए औरतें ऐसे कपड़े पहनती हैं तो ऐसे तर्क का जवाब यही है कि पूर्वोत्तर के पहाड़ों में भी इतनी ही ठंड पड़ती है जितनी उत्तर में तो वहाँ पर बैकलेस या पेटलेस चोली क्यों चलती है?

इसका कारण है कि उत्तरी भारत में जाटू (जाट) सभ्यता के अनुसार ड्रेस परम्परा रही है, जबकि बाकी भारत में पौराणिक परम्परा के अनुसार|

इसका क्या मतलब लिया जाए कि उत्तरी भारत का आदमी शेष भारत के आदमी से कम व्यभिचारी या चक्षु-सुखगामी होता है? तभी तो शायद यह लोग देशभक्ति, अन्नभक्ति और खेलभक्ति से ज्यादा भरे होते हैं|

मानो या ना मानो यह मसला जाटू सभ्यता बनाम पौराणिक सभ्यता है|

वैसे जींस-टी-शर्ट सभ्यता में भी मर्द हो या औरत दोनों ही ऊपर से नीचे तक ढंके होते हैं|

विशेष: मेरी बात काटने को बहुत से लोग यह तर्क उठाएंगे कि अब तो जाटणियां भी चोली पहनने लग गई हैं तो मैं उनको कहूँगा कि मैंने यहां विदेशज नहीं अपितु देशज पहनावे की बात की है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

एक किसान का खुला पत्र!

Why the process of deciding the production cost and selling price of a product is not same throughout every business be it corporate business, FMCG business or Agri-business?

Why it is so that be it corporate or FMCG, they recommend and decide it for themselves whereas for farmers it is govt. and corporate lobby out of which one recommends and other decides behind the scene for farmer?

Certainly farmers have to raise up against this odd.

मा• श्री नरेन्द्र मोदी
(प्रधानमंत्री) भारत सरकार,
मा• श्री मनोहर लाल खट्टर
मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार,

एक किसान का खुला पत्र

श्रीमान जी मैं एक छोटा सा किसान हूं जब आप प्रचार कर रहे थे ,तब आपने किसान हित मे बहुत सारी घोषणाये की थी मैने और मेरे परिवार ने आपके अंदर एक किसान हितेषी राजनेता का चेहरा देखा था ओर मेने ही नही सभी किसान भाईयो ने मिलकर आपको प्रचंड बहुमत दिया है आज मे परेशानी मे हूॅ वर्षा कम होने से धान की पैदाबार कम हुई साथ ही मेरी धान को 1000 रु से 1500 रु प्रति किंव्• ही खरीदा जा रहा है।ग्वार भी 2500 से3000 रु प्रति किंव् लिया जा रहा है।मैं अत्यन्त्य घाटे मे पहुंच गया हूँ पर कर्म करना मेरा धर्म है ऐसा सोचकर मेने साहूकारो व्यापारियो ओर बैको से कर्ज लेकर कपास की फसल बो  दी थी फसल अच्छी थी ।लेकिन सफेद मच्छर और कम बारिश के कारण कपास की फसल में बहुत नुकसान हुआ।मैने पांच एकड़ मे कपास की खेती की थी जिसमे 5 किं•कपास हुई है।
मै आपको क्रम अनुसार मेरी लागत का विवरण देता हूं ।

कपास का ख़र्चा प्रति एकड़ बीज~(1000×3)=3000
डीएपी ~(1250×2)=2500
यूरिया~(300×2)=600
ज़िंक ~(300×1)=300
ग्रामोक्सोम् (450×1)=450
खरपतवार नाशक
ट्रेक्टर द्वारा खेत की जुताई 1000
ट्रेक्टर द्वारा बुवाई 400
 निराई गुड़ाई 1500
10 स्प्रे ट्रेक्टर द्वारा=5000,
पानी दिया 4 बार  =5000

एक आदमी जो खेत मे पानी देने स्प्रे करता है उसे चार महीने मे देता तो ज्यादा पड़ता है।पर आप के द्वारा जो भाव  निर्धारित है 4000 रु जिससे 5 एकड़ में मेरी फसल हुई 20000 रु की।
मेरी लागत हुई 20000×5=100000जिसमे मेरी व् मेरे परिवार की मेहनत छोड़ दी है ।
इसमे मुझ 80000 रु का घाटा है अब आप मेरे आंसुओ को देखते हुये बताईये की क्या कृषि कर्मण पुरुस्कार आपको किसकी मेहनत के कारण मिला था कृषि मे कई समस्याये है मेरे बच्चे परिवार का भरण पोषण इस विषम परिस्थिति मे कैसे होगा ।आप कृषि को लाभ का धन्धा बताने की घोषणाये करके क्या साबित करना चाहते हो इस पत्र मे जो बाते लिखी गई है बह बिलकुल तथ्यो के अनुसार लिखी गई है आप जब चाहे हम किसान सभी तथ्यो के साथ आपके समक्ष उपस्थित हो जायेगे। आप से हम यह दर्द बताकर भीख नही मांगना चाहते. हमे बस हमारी फसल का उचित लागत मूल्य चाहिये यह निवेदन ओर प्रार्थना है अन्त मे एक संदेश,

जब तक दुखी किसान रहेगा
धरती पर तूफान रहेगा ।।

      माननीय मोदीजी धान का भाव पिछले से पिछले साल 3500 रु था पिछले साल 3000 रु की थी ओर इस बार आपने 1500 रु कम कर दिए....
अगर कर्मचारियों की सैलेरी मे साल में सिर्फ 500 रु कम कर दिए तो......क्या होगा पता है.......देश मे हड़तालें हो जायेगी... ताल बंदी होगी ....आपके पुतले जलाये जायेंगे  ये लोग आपको निकम्मे कहेगे......

देश का किसान आपको कुछ नही कह रहा है....ये हमारी बेवकूफी नही है भोलापन है।....एक तो सारी फसल कम हुई है और ऊपर से आप भाव भी कम दे रहे हो कुछ तो शर्म करो।

जिस दिन हमारा सब्र का बाँध टूटेगा उस उस दिन आप व आपकी पार्टी का पता नही चलेगा......

किसान के बेटे है तो इतना शेयर करो कि किसान कितना महान है।।।

प्राथी समस्त किसान भाई🏼🏼

Courtesy: Jaswant Ohlan

दुर्गा-पूजा, नवरात्रे, दशहरा और साँझी!

(देशज त्यौहार बनाम विदेशज त्यौहार)

विशेष: इस लेख का उद्देश्य हरयाणवी मूल के नागरिकों को उनके अपने देशज त्यौहार बारे बताना है। मुझे किसी त्यौहार और किसी की श्रद्धा से कोई हर्ज नहीं और उम्मीद करूँगा कि ऐसे ही मेरी बातों और श्रद्धा से किसी पाठक को कोई हर्ज नहीं होगा। अब लेख पे आगे बढ़ता हूँ।

चारों पर्वों में समानता:
1) दुर्गा पूजा और नवरात्रे नौ-नौ दिन मनाये जाते हैं।
2) दशहरा और सांझी दस दिन मनाये जाते हैं।
3) चारों को मनाने का महीना-वक्त-शुरुवाती दिन एक समान हैं।

चारों पर्वों में भिन्नता:
1) हर्याणवियों के पक्ष से सिर्फ सांझी ही हमारा देशज त्यौहार है, बाकी के तीनों विदेशज त्यौहार हैं। देशज और विदेशज शब्द का यहां ठीक वही प्रयोग है जो हिंदी व्याकरण और भाषा में शब्दों के प्रकार बताते हुए बताया जाता है। यानी अपनी भाषा के शब्दों को देशज और दूसरी भाषाओँ से हिंदी भाषा में आये शब्दों को विदेशज बोलते हैं।
2) चारों त्योहारों में सिर्फ साँझी अकेला वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है बाकी तीनों माइथोलॉजी यानी काल्पनिक इतिहास पर आधारित हैं।
3) साँझी में ना व्रत रखने, ना भूखा मरना और ना ही आडम्बर पूजने। शुद्ध वास्तविक एवं व्यवहारिक मान्यताओं में हमारी श्रद्धा व् आदर बना रहे उसके लिए मनाया जाता है।

चारों की अलग-अलग ख़ास और विचित्र बातें:

दुर्गा-पूजा: मुख्यत: बंगाल का त्यौहार है। जबसे बंगाली शरणार्थी दिल्ली-एनसीआर-हरयाणा में आ के बसे हैं तब से यहां जाना जाने लगा है क्योंकि यह हरयाणवियों के जैसे नहीं हैं कि गाँव से मात्र बीस-तीस किलोमीटर शहर में भी क्या आन बसे कि अपने त्योहारों तक को तिलांजलि दे देते हैं। और दो पैसे का जुगाड़ हो के आर्थिक आधार पर थोड़े एडवांस क्या हुए कि लगते हैं त्यौहारों में भी एडवांसपना दिखाने। अंत में हालत वही होती है कि धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का। और यही ढेढस्यानपने वाला एडवांसपना होता है जिसकी वजह से सीएम खट्टर जैसे भी हरयाणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाते हैं।

नवरात्रे: गुजरात के गुजरती और पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों का मुख्य त्यौहार है। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में इसको पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों ने ही यहां आ के मनाना शुरू किया। और आज आलम यह है कि आर्थिक एडवांसमेंट के मारे हरयाणवी तक अपनी "सांझी" को छोड़ इसको मना रहे हैं वो भी बावजूद यह जानने के कि इन्हीं के समाज का सबसे बड़ा नुमाइंदा सीएम हरयाणा हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाता है। बात सही भी है जिनको अपने परम्परागत त्यौहारों तक को संजो के रखने की सुध नहीं तो उनको फिर कोई कुछ भी कह ले।

दशहरा: अवध-अयोध्या का त्यौहार है। देश की आज़ादी के बाद स्थानीय हरयाणवी त्योहारों व् सभ्यता को खत्म करवाने हेतु यहां रामलीलाओं के जरिये इसको फैलाया गया। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में रामलीलाओं का चलन बस इतना ही पुराना है जितना कि देश की आज़ादी। इससे पहले हमारे यहां मुख्यत: शिव, हनुमान व् कान्हा के ही तीज-त्यौहार मनाये जाते थे।

सांझी: सांझी सम्पूर्णत: वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है। प्राचीनकाल से ही हरयाणा में दुल्हन जब पहली बार ससुराल जाती थी तो वो पहले आठ दिन ससुराल में रहती थी और नौवें दिन उसका भाई उसको लिवाने जाता था जो कि चलन में तो आज भी है। सांझी के बारे इससे आगे विस्तार से हरयाणवी भाषा में लिखूंगा जो कि ऐसे है:

सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळआ त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|

पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जाया करदा।

आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं एक तो श्राद (कनागत) खत्म हो ज्यां सें अर दूसरा ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया करदा/जा सै।

के हो सै सांझी का त्युहार: जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।

सांझी नैं बनाण का सामान: आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|

सांझी बनाण का मुहूर्त: जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।

सांझी के भाई के आवण का द्यन: आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|

दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई: इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गंदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।

उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|

भ्रान्ति: सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या तैं आया त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|

जय योद्धेय! - जय हरयाणा!

फूल मलिक

Tuesday, 13 October 2015

यह हरयाणवी ही एक अनोखे ऐसे क्यों हैं?

गुजराती अमेरिका हो या इंग्लैंड, जहां भी हों वहीँ डांडिया मना लेते हैं| बिहार से दिल्ली-एनसीआर में आने वाले बिहारी भी अपनी "छट पूजा" यहां धूम-धाम से मना लेते हैं| बंगाली भी अपनी दुर्गापूजा दिल्ली-एनसीआर में धूमधाम से मना लेते हैं| पंजाबी हो, मलयाली हो, मराठी हो वो अपने प्रदेश में हो, गाँव में हो या शहर में या विदेश, हर जगह अपने त्यौहार साथ रखते हैं|

तो फिर यह हरयाणवी ही एक अनोखे ऐसे क्यों हैं कि गाँव से मात्र तीस-पचास (30-50) किलोमीटर शहर (वो भी अपने ही राज्य के जिले में) तक आते-आते अपने तीज-त्यौहार सब भूल के कोई नवरात्रों में मशगूल है तो कोई दुर्गापूजा में, खुद की "सांझी" विरले-विरले को ही याद दिखती है| 

सांझी की पूछो तो या तो पता ही नहीं होता या जिसको पता होता है वो कहते हैं कि वो भी मनाते हैं परन्तु गाँव में| अरे भाई जब तुम गाँव से शहर आ गए तो उसको साथ शहर में क्यों नहीं मना रहे? आखिर बाकी ये इतने जो ऊपर गिनाये हैं, यह भी तो साथ लिए चलते हैं अपने तीज-त्योहारों को, देश में भी प्रदेश में भी, गाँव में भी शहर में भी, तो एक आप हरयाणवी ही ऐसे क्या अनोखे हो गए कि गाँव से अपने ही राज्य में रहते हुए अपने जिले के शहर तक अपने त्यौहार-रिवाज नहीं निकाल के ला रहे?

ताज्जुब की बात नहीं अगर ऐसे में सीएम खट्टर जैसे यह कहते हुए कि "हरयाणवी कन्धों से ऊपर कमजोर होते हैं" तान्ना मार जाते हैं तो| और वास्तव में पूरे भारत में सिर्फ हरयाणवी ही ऐसे हैं जो गाँव से निकलते वक्त अपने तीज-त्यौहार भी गाँव में ही छोड़ देते हैं|

हरयाणवियो, यह खुद की आइडेंटिटी को खुद के ही हाथों मारने की रीत ठीक नहीं| अगर आप अपने तीज-त्यौहार को ही अपना नहीं कह सकते, उसको साथ ले के नहीं चल सकते, उसको प्रमोट नहीं कर सकते, तो फिर तो दूसरे आप पर तान्ने भी कसें तो कोई ताज्जुब नहीं| 

अपनी संस्कृति को पहचानिये, इसके जमाई नहीं खसम बनिए! इसको साथ ले के चलिए|

जय योद्धेय! - फूल मलिक 

कैप्टन अभिमन्यु ही असली सीएम हैं, खट्टर तो नाममात्र हैं - पत्रकार सतीश त्यागी

सतीश त्यागी जी हो सकता है कि आपकी ऑब्जरवेशन आपके अनुसार सही हो परन्तु यह भी हो सकता है कि आप जैसे पत्रकार के जरिये आरएसएस और बीजेपी के लिए श्रीमान खट्टर ने जो हर्याणवियों को कंधों से ऊपर कमजोर कहा उस ब्यान से श्रीमान खट्टर और उनके समाज के प्रति हरयाणवी समाज में बना "नेगेटिव वर्ड ऑफ़ माउथ" (negative word of mouth) का डैमेज कंट्रोल (damage control) करने का एक जरिया बन जाए|
माफ़ करना परन्तु आपका बयान आया ही ऐसे वक्त में जब आपकी बात के इसके अलावा इसकी टक्कर के और कोई मायने निकलते ही नहीं।

वैसे भी आपकी बात लॉजिक्स के आधार पर भी ख़ारिज है। क्योंकि अभियमन्यु असली सीएम होते तो जाट तो जाट जो अन्य जातियों के किसान भाई शायद किसी बहमवश जाट से दूर चले गए थे (शायद अभी भी पास आने में वक्त लगे, परन्तु मुझे भरोसा है अगर बीजेपी साल-दर-साल इसी तरह फसलों के भावों को तली-तोड़ गोते खिलवाती रही तो अहम में पास ना भी आवें परन्तु इतना जरूर समझ आ जायेगा कि फसल के भाव तो जाट सीएम ही दिया करें थे), उनकी धान मंडियों में कम से कम इतनी बुरी दुर्गति से तो नहीं पिट रही होती कि कहाँ तो विगत सरकार INR 4000-4200 प्रति किवंटल देती थी और कहाँ श्रीमान खटटर सरकार INR 1200-1400 में पीट रही है।

क्या यही इनाम होता है नॉन-जाट किसान को जाट से छींटक के बीजेपी और आरएसएस के लिए वोट करने का? चलो एक पल को जाट को ना दो तो ना दो, कम से कम इन हमारे नॉन-जाट किसान भाइयों को तो इनकी वफ़ादारी का भुगतान करते खट्टर साहब? मतलब सारे हिन्दू भी तो हैं, क्या यह हिन्दूपना भी एक किसान को उसकी फसल का जायज भाव दिलवाने में कारगर नहीं? चोखा, अगर नॉन-जाट किसान इस सच्चाई को समझ जावें कि तुम्हारी फसलों के दाम हिन्दू कहलवाने से नहीं बढ़ते, वो सिर्फ किसान कहलवाने से ही बढ़ते हैं।
और अगर आपकी बात सच होती और वास्तव में अभिमन्यु ही सरकार चला रहे होते तो वो भी कम से कम ना ही तो इतने कम भाव देते और शायद अन्य नॉन-जाट किसानों के साथ जाट किसान को भी उचित भाव मिल रहे होते।

सो कृपया ऐसे सगूफों पे आधारित सिलसिले मत छोड़िये मार्किट में, सरकार तो श्रीमान खट्टर ही चला रहे हैं। अब हर कोने पे पिट रही सरकार की असफलता का ठीकरा कम से कम एक जाट पर तो मत फोडिये।

खैर इस जाट (यानि मैंने) ने इतना तो सीख ही लिया है कि जाट चाहे जिस भी पार्टी के पाले का हो, उसपे अगर तोहमत की राजनीती होगी तो मैं जरूर बोलूंगा।

तो त्यागी साहब! वो नेवा मत करो कि, "मेरे जामे सारे भुंडे और थारे जामे काणे भी सुथरे।"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

अनिल विज चले माता को पशु घोषित करवाने, भगतो! त्राहि-माम, त्राहि-माम!

भगतो अब हमें दोष ना देना अगर हम गाय को पशु कह देवें तो, क्योंकि अब तो आरएसएस के सबसे बड़े चेलों में से एक श्रीमान अनिल विज, मिनिस्टर हरयाणा सरकार तक ने आपकी माता को राष्ट्रीय पशु घोषित करवाने का बीड़ा उठाया है|

वैसे भगतो ये तमाशा क्या है? कभी संगीत सोम राजपूत जो गाय के लिए मरने-मारने को लोगों को प्रेरित करता है वो खुद एक गौहत्थे का डायरेक्टर निकलता है| अब यह विज महाराज गौ-माता को पशु ही घोषित करवाने पे तुल गए हैं|

भगतो रोको इनको! समझाओ कुछ अक्ल दो कि आप भगत लोग सुतिये हो क्या जो इतनी मेहनत से एक पशु को माता बनाने में दिन-रात एक कर देते हो और फिर यह आपके ही बुद्धिजीवी लोग उसको वापिस पशु घोषित करवाने पे तुल जाते हैं|

लगता है भगत और इनके गुरु लोग दिग्भर्मित हो पथभ्रष्ट हो गए हैं| लगता है जैसे काल्पनिक कथा महाभारत में यादव कुल आपस में कट-कट नष्टप्राय हो गया था अब आधुनिक काल में भगतों में जल्द ही यह दौर आने वाला है|

दया करो ईश्वर, बख्स तो नादान अनिल विज जी को जो अपने ही भगतों की भावना नहीं समझते|

ओन सीरियस नोट: यार भगतो अब तो समझ जाओ, कि जिनके इशारों पे तुम उपरांतळी-अळसु-पळसु हुए रहते हो, वो तुम्हें कितना फद्दु समझते हैं, इसका इससे भी बड़ा जीता-जागता उदाहरण और कोई हो नहीं सकता|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 11 October 2015

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

मुझे पूरा विश्वास है कि हरयाणा में जाटों से खिंचे-खिंचे रहने वाले यादव भाईयों को बिहार चुनाव में बीजेपी और आरएसएस उसी फील की दस्तक दे रही होगी जो हरयाणा में जाटों के साथ पहले से ही चल रही है!

इतना तो पक्का है कि बिहार का यादव सकपकाया हुआ है कि अगर बीजेपी आई तो उनके साथ कहीं यह वही ना करे जो हरयाणा में जाटों के साथ की हुई है|

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

उम्मीद है कि इस बिहार इलेक्शन से हरयाणा का यादव भी सबक लेवेगा और अपने सबसे करीबी और समकक्ष समाज जाट से वापिस आन जुड़ेगा!

वैसे भी आम यादव और आम जाट को केंद्र में केंद्रीय मंत्री या राज्य में सीएम से ज्यादा फसलों के भाव चाहियें! जो कि बीजेपी जबसे आई है तब से तली में बिठा दिए गए हैं| कोई ना अभी तो चार साल और बाकी हैं, तब तक सिर्फ भाव ही नहीं, हर जाति के किसान की जेब भी टाँकियों वाली ना हो जावे तो देखना| चाहे फिर वो राजकुमार सैनी का सैनी किसान समाज भी क्यों ना हो| धान की एकड़ का बाद्धा लागत 30000 तो आमदनी 17000, बचत की तो फिर पूछो ही मत|

वैसे हरयाणा में जाटों के साथ यह राष्ट्रवाद-राष्ट्रवाद खेलने से पहले, गुजरात में पटेलों और महाराष्ट्र में मराठों के साथ बीजेपी, आरएसएस यही खेल चुकी है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

यू लाग्या हरयाणा के नॉन-जाट किसानों के भी ताड़ा सा!

अब भाई इस टाइटल को समझने के लिए शर्त है कि आपको हरयाणवी आनी चाहिए| खैर मैं टाइटल से आगे की बात पे बढ़ता हूँ|

राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की चासनी में वैसे तो एक-आधा जाट भी उतरा हुआ है परन्तु हरयाणे में जाट से ज्यादा नॉन-जाट किसान तो लगभग सारा ही उतरा हुआ है|

अब जब भी नॉन-जाट किसान या नॉन-जाट किसानी-परिवेश के मित्रों से बात करता हूँ तो सारे कहते हैं कि मार दिए इस खटटर ने तो बिन आई| बाधे पे किल्ला लिया 30000 का, उसमें जीरी हुई 17000 की, इसमें क्या तो नंगा नहा ले और क्या निचोड़ ले|

एक दूसरा नॉन-जाट मित्र बोला कि भाई चाचा जी खेती करते हैं, हमारे यहां की जमीन भी तगड़ी है और पानी भी खूब लगे है फिर भी 44000 का किल्ला उतरा, जबकि हुड्डा (जाटों से नफरत करने वाले ध्यान देवें) के राज में 130000 का किल्ला उतरा करता| और अबकी बार तो लागत भी पूरी ना हुई|

मैं भी पटाक दे सी बोल्या की ना मखा और ले ल्यो राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद के सुवाद, और चले जाओ जाटों से दूर और कर लो नफरत अभी बाकी रह री हो तो|

मखा चिंता ना करो, अभी तो एक ही साल हुआ है, चार साल और पड़े हैं| अगर 2019 आते-आते थारे घरों में इन तथाकथित राष्ट्रवादियों ने मुस्सों (चूहों) की कलाबादी ना करवा दी तो कहना| शरीर से धोले-चमकीले बाणे उतरवा के टांकी लगे लित्तर-लतेड़ ना पहरा दी तो कहना मुझे कि भाई के कहवे था|

दोनों भाई यूँ बोले यार क्यों हंसी उड़ा रहा| कोई हल बता|

मैंने भी कह दी मखा हल तो इब या तो श्री राजकुमार सैनी बतावैं या फिर खुद खट्टर| मखा एक काम कर लो आरएसएस के दफ्तरों में जा के ट्राई मार लो, हो सके है कि हिन्दू के नाम पे उनका हृयदा पिघल जा और जाट सीएम वाली सरकार से ज्यादा ना सही तो उसके बराबर भाव दिलवा दे|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 10 October 2015

जयकारा सींगों-वाली का!


जयकारा सींगों-वाली का, बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!
काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!

हो बोलो जय मरदो की, जय हो!
बोलो जय लागढ़ की, जय हो!
बोलो जय बाखड़ी की, जय हो!
बोलो जय हरर्या की, जय हो!
बोलो जय कटवाळ की, जय हो!
बोलो जय झोटी की, जय हो!
दूध जो तेरा पी जाए, जय हो!

वो प्रो-बॉक्सर बन जाए, जय हो!
सबमें बल है भरती, जय हो!
सबके दुःख ये हरती, जय हो!
हो मैया झोटों वाली, जय हो!
भर दो बालट्ट खाली, जय हो!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
मेरी माँ आआआ सींगों वालिये!

पूउउउरे करे अरमान जो सारे, पूउउउरे करे अरमान जो सारे!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

भूअअरी रे एएएएए, काली रे एएएए, झोट्टां-वालिये!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टां-वालिये, मेरिये राणिये!

साअअरे जग को दूध पिलाये, साअअरे जग को दूध पिलाये!
पहलवानों को जो खूब जिताये, पहलवानों को जो खूब जिताये!

एथलीटों की रफ़्तार बढाए, एथलीटों की रफ़्तार बढाए!
पैअअकेट में सबके घर जाए, पैअअकेट में सबके घर जाए!

व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए, व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए!
पंडा-मौलवी सबको भाये, पंडा-मौलवी सबको भाये!

मुर्रे एएएएएएएएए मेरिये, राणिये!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टों वालिये एएएएएएएए, सींगां वालिये एएएएएएएएए

मौत के सौदागर की सवारिये, सींगां वालिये एएएएएएएएए
सेक्युलर गुणों वालिये एएएएएए, ओ माता कालिये एएएएएएएएए

बोल साचे दरबार की जय! बोल सेक्युलर दूध-दरबार की जय!
बोल झोट्टां वाली की जय, बोल सींगां वाली की जय!

जय हो! जय हो! जय हो!

सेकुलरिज्म की प्रतीक भैंस माता!

सेकुलरिज्म से नफरत करने वाले कम्युनल कीड़े, सेक्युलर भैंस माता का दूध पीना छोड़ दें अन्यथा कटटरता और अंधभक्ति के थोथे थूक बिलोने छोड़ दें!

क्योंकि भैंस पे ना मुस्लिम झगड़ा करता है, ना हिन्दू, ना सिख। भैंस सब धर्मों को भाती है, सबकी नाती है।
इसलिए तमाम अंधभक्तों से अनुरोध है कि वो भैंस का दूध ना पीवें अन्यथा सेक्युलर हो जावेंगे!! वो हर उस चीज से नफरत करें, दूर रहें जो सेकुलरिज्म की प्रतीक है!

बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!