Thursday 15 October 2015

वीर जवाहर नमन तुझे!

वो जलजला सूरज का, जवाहर जाट कहलाता था,
मनुष्य क्या देवों से भी, खुली छाती भिड़ जाता था,

क्रोधी मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले-घन पर,
पितृहत्या का बदला लूंगा, अपने प्राणों से भी बढ़ कर,

अश्वारोही अपनी सेना को, पल में सम्मुख खड़ा किया,
हुंकार लगा के जवाहर ने, दशों दिशा को गुंजा दिया,

होके सवार अपने तुरंग पर, दिल्ली पे कूच किया,
अपनी गरजती ललकार से, जाट लहू उबाल दिया,

लाल किले की प्राचीरों से, उठने लगी चित्कार वहां,
नंगी तलवार लिए खड़े थे, जाटवीरों के कदम जहां,

अफगान सहमे, ह्रदय कांप उठे, छा गया अंधकार घोर,
जहां अफगान था खड़ा, तलवार मुड़ी जाट की उसी ओर,

छिन के बिजली कड़क उठी, जालिम की खड़ग गिर पड़ी,
क्षमा करदे जाट सूरमे, दुश्मन की आंखे छलक पड़ी,

गद्दार पेशवाओं ने तब, अपनी ही औकात दिखलायी,
समर्पण कर अफगानों से, जाटों की सेवा भुलाई,

पानीपत के तृतीय समर में, जब तुर्कों ने इन्हें भगाया था,
हिन्दू रक्षक सूरजमल ने तब, इनके घावों को सहलाया था,

सुसोभित अष्टधातु पट जहां, जाटों ने वो उखाड़ दिये,
तब लोहागढ़ को लोट चले, दिल्ली की पहचान लिये,

जबसे धरती पर मां जननी, जब से मां ने बेटे जने,
जाटवीरों के ऐसे वकत्व्य, ना देखे कभी ना कभी सुने,

वीर जवाहर नमन तुझे, जो जाटों का गौरव-मान बढाया,
तेरे अदम्य साहस ने ही तो, "बलवीर" को लिखना सिखाया,
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लेखक - बलवीर घिंटाला 'तेजाभक्त'

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