Wednesday, 21 October 2015

गैर-हरयाणवी पत्रकारों तुम अपने लीचड़पने से कब और कैसे बाज आओगे?

यह वीडियो देखिये, इसमें रिपोर्टिंग कर रहे मुकेश सिंह सिंगर के लिए सनपेड़ दलित अग्निकांड में जो हिन्दू स्वर्ण जाति थी उसका नाम ले के बात करने की बजाय यह बताना ज्यादा जरूरी था कि इस वीडियो में चल रहा धरना वहाँ के स्थानीय "जाट-चौक" पर हो रहा है। ताकि अभी तक जिन्होनें इस मामले के बारे नहीं सुना, उनके दिमाग में यही जाए कि इस दंगे में जो स्वर्ण पक्ष है वो जाट है।

दस मिनट लम्बी इस वीडियो में एक नहीं अपितु तीन बार इसने "जाट-चौक" का जिक्र किया। एक 4.40 से 4.45 के बीच, दूसरी बार 7.00 से 7.05  के बीच और तीसरी बार 7.30 से 7.35 मिनट के बीच।

मरोगे तुम गैर-हरयाणवी मीडिया वालो एक दिन "जाटोफोबिया" और "खापोफोबिया" हो के। जाट तो न्यू ही गूँज के बसते रहेंगे और थारे ऐसे ही भट्टे से सुलगते रहेंगे।

फूल मलिक

Concerned Video Link: http://khabar.ndtv.com/video/show/news/rahul-gandhi-met-dalit-family-in-ballabgarh-sunped-village-387698

Tuesday, 20 October 2015

कंधे से ऊपर की मजबूती के दूसरे (पहले खट्टर साहब हैं) ग्लोबल ब्रांड "श्रीमान अनिल विज जी" -

गाय यदि राष्ट्रीय पशु बना तो क्या होगा जरा गौर फरमाइए:

1) किसान गाय का दूध नहीं निकला सकता।
2) न गाय को पाल सकता। क्योंकि पालेगा तो उसे डंडा भी मारेगा। लेकिन राष्ट्रीय पशु को डंडा मारना तो दंडनीय जुर्म होगा|
3) किसान बैल को हल या बुग्गी में जोड़ नहीं सकता।
4) गाय को इंजेक्शन नहीं लगा सकता।
5) वैज्ञानिक भी गाय पर रिसर्च नहीं कर सकते।

और फिर जब यह सब कुछ होगा तो देखते ही देखते एक दिन हिन्दू किसान ही स्वत: गाय-बैल को पालना छोड़ देगा।

6) और इन सबसे बड़ी दुविधा अगर आपने गाय को पशु घोषित करवा दिया तो फिर भगत माँ किसको कहेंगे?
वैसे मेरे ख्याल से गाय को पशु कहने की हिमाकत करने पे भगतों द्वारा सबसे पहला बक्कल उधेड़ना तो आपका ही बनता है|

धन्य हो अंधभक्तों के सरदार तुम्हारी, गाय को मारने के लिए किसी गौ-हत्थे या किसी कसाई की जरूरत ही मिटा दी|

यार भेजा-फ्राई फिल्म बनाने वालो, Bheja Fry Part 1 और Part 2 के बाद Part -3 बनाते हुए यह तो बता देते कि Part 3 दो या तीन घंटे का नहीं बल्कि पूरे 43800 घंटे यानी पांच साल का होगा?

फूल मलिक

जाटों को उनका इतिहास पता है, तुम मचा लो बेगैरतों की भांति उछल-कूद जी भर के!

इससे पहले कि मिर्चपुर कांड की फाइल खोल के नजदीक आते जाट-दलित की नजदीकियों को फिर से बढ़ाने हेतु जाटों पे अपने दमनचक्र का अगला चक्का खट्टर, बीजेपी और आरएसएस मिलके फेंकते कि उधर सनपेड़ दलित अग्निकांड ने इनकी पीपनी बजा के रख दी| पहले से ही कालिख लिबड़े हुए इनके चेहरों को सनपेड़ के दलित के घर से उठती लपटों ने और स्याह कर दिया| म्हारे हरयाणे में इसको कहते हैं "कुत्ते का अपनी मौत मरना|"

देखो हरयाणा वालो इन मेहरबानों का दोहरा रवैया, भारत देखे, दुनिया देखे| जाट पर इस सरकार के जुल्म और दमनचक्र की इंतहा देख के तो शायद ऊपर वाला भी अब जाट के साथ आन खड़ा हुआ है, इनकी असलियतें समाज के सामने खोल-खोल के रख रहा है|

दो दिन पहले खट्टर जनाब की सरकार ने अखबारों में निकलवाया कि हरयाणा सरकार मिर्चपुर कांड की फाइल्स फिर से खोलेगी| बड़े चले थे ना जनाब जाटों को दबाने और मिर्चपुर कांड को फिर से खोल के दलित-जाट को भिड़ाने? ले मेरे प्यारे, आपको अपने शौक पूरे करने के लिए ढके-ढकाए ढोल उघाड़ने की जरूरत नहीं, "ऊपरवाले" ने बिल्कुल नया-ताजा पूरा केस ही खोल के दे दिया है| दिखाओ अब करीब आते जा रहे जाट और दलित को फाड़ने की अपनी कंधे से ऊपर मजबूती और कितनी दिखाओगे|

हालाँकि मैं उन दोनों दलित मासूम बच्चों की नृशंस हत्या से पीड़ित हूँ, और इस सरकार को पुरजोर कोस भी रहा हूँ| परन्तु सरकार की चाल पे जब ऊपर वाले की लाठी पड़ती है तो कैसे उसे पंगु बना के छोड़ती है, इस वाकये से सरकार को समझ लेना चाहिए|

खट्टर साहब, अब जाटों को दोष मत देना कि मेरा तो जाट-दमन से अभी मन ही नहीं भरा था परन्तु इससे पहले जाटों ने ही मुझे नहीं टिकने दिया, क्योंकि अब तो ऊपरवाला ही आपके मंसूबों को नहीं चलने दे रहा है और आपकी चालों को आपके ही मुंह पे मारे दे रहा है, इसमें जाटों का कोई दोष नहीं|

लगे रहो, अपने जी भर-भर के अरमान पूरे करने पे, परन्तु इतना याद रखना यह जाटलैंड है, यहां तो तुम्हारी आइडिओलॉजी के नागपुरी पेशवा 1761 में जाट सम्मान को नकारने की पहले ही गलती कर चुके हैं एक बार| उन पर होनी का ऐसा कुचक्र चला था कि उन्हीं जाटों के द्वारे से उन पेशवाओं को फर्स्ट-ऐड मिली थी|

बुद्ध धर्मी बने जाटों और बाकी समाज (ध्यान दीजियेगा यह बाकी समाज वही हिन्दू था, जिसके कैप्सूल गिटकते और गिटकाते आप थकते नहीं) को कुचलने के कुचक्र में जब आपकी ही विचारधारा के लोगों ने मुग़लों के आने से भी पहले वाले उस ज़माने में आपकी ही आइडियोलॉजी की 1 लाख की सेना जाटों पे चढ़ाई थी तो कैसे मात्र 9000 जाटों ने मात्र 1500 जाट योद्धेय खोते हुए आप 1 लाख की गोभी खोदी के रख दी थी| यदि याद ना हो तो इतिहास में झांक के देख लें| वैसे भी बड़ा शौक है आपकी विचारधारा को नए-नए शिरों से इतिहास लिखने का, तो मुझे विश्वास है कि वो आपको यह अध्याय खोल के जरूर आपका ज्ञानवर्धन कर सकेंगे|

बुद्ध बने जाटों और बाकी समाज पे आपकी आइडियोलॉजी के जुल्म की इतनी इंतहा हुई थी कि हरयाणा में उसपे उसी ज़माने में बनी "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" की कहावतें आज भी जनमानस में चलती हैं| परन्तु फिर भी वो जुल्म का पहिया जाटों ने तोड़ के रख दिया था|

हम अपनी ताकत जानते हैं, इसलिए शांत हैं| हम यह भी जानते हैं कि हमारा गुस्सा घर में लड़ती दो लुगाइयों की भांति सिर्फ एक दुसरे के बालों को खींचने वाली नुक्ताचीनी तक सिमित नहीं रहता, जब फटता है तो फिर मुज़फ्फरनगर, सारागढ़ी, बागरु, आगरा, गोहद, मेरठ, हाँसी-हिसार, रोहतक, दिल्ली, लोहागढ़ के ऐतिहासिक अध्यायों से होते हुए तैमूरलंग-गौरी-गज़नी से होते हुए वहाँ तक जाता है जब जाटों ने आपकी आइडियोलॉजी वालों के मुंह सुजाये थे और तब जा के बुद्ध बने जाटों और बाकी समाज पे इसी तरह के जुल्मों का अंत हुआ था जो आपने आज शुरू कर रखे हैं| हम आपसे नहीं अपितु हमारे क्रोध से डरते हैं| और हमारे क्रोध की इंतहा समाज, इतिहास और आपकी आइडियोलॉजी के पुरखों ने भली-भांति चखी और देखी है, और क्रोध की लपटों में जब उनको भोले के तांडव रुपी क्रोध के भभके झलके थे तभी से जाट को भोले का अवतार कहा जाने लगा| हालाँकि भोला एक म्य्थोलॉजिकल चरित्र है, परन्तु आपको यह मिशाल ही बेहतरी से समझ आएगी|

खैर अब हमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, भगवान ने इशारा दे दिया है कि अब वो खुद आपकी चालों पे नजर रखेगा| वैसे भी कहा गया है कि "शोर खाली भांडे ही किया करते हैं|" इसलिए भगवान ने भी अब आपको खाली भांडे साबित करने की ठान ली है|

हालाँकि अत्यंत दुखी कर देने वाला एपिसोड है, परन्तु जाट को इस एपिसोड से इतना समझ लेना चाहिए कि अब भगवान ने आपके सम्मान को संभल लिया है और आपके लिए उस दिन के लिए चुपचाप तैयारी करने का वक्त आ गया गया है जिस दिन फिर से इतिहास खुद को दोहराएगा| मिर्चपुर कांड की फाइल्स फिर से खोलने की घोषणा करना और उसके मात्र दो दिन बाद ही सनपेड़ दलित अग्निकांड हो जाने का संकेत भगवान ने साफ़ दे दिया है कि यह लोग जितना जाट का अपमान और दमन कर सकते थे कर चुके, अब हमारे मान-अपमान को उसने संभाल लिया है| अब हमें मात्र इनको इनकी ही चालों में थका-थका के ऐसा बना देना है कि यह फिर से हमसे ही फर्स्ट ऐड मांगे|

हमें ना हथियार उठाने ना बोलों के तीर चलाने, अब हमें एक सर छोटूराम की भांति, एक सरदार भगत सिंह की भांति, एक महाराजा सूरजमल की भांति, एक राजा नाहर सिंह की भांति, एक चौधरी चरण सिंह की भांति, एक बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की भांति, एक गॉड गोकुला की भांति, एक महाराजा हर्षवर्धन की भांति, एक महाराजा पोरस की भांति, एक ही नाम के दो महाराजाओं पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और लोहागढ़ में 1804 में विश्व में कभी ना डूबने वाले अंग्रेजों के राज के सूरज को डुबाने वाले महाराजा रणजीत सिंह, इनके हाथों से हेमामालिनी छीन लाने वाले हिमेन धर्मेन्द्र की भांति सिर्फ अपने स्वरूप में ढल के चलना होगा| भान रहे जाट को वरदान है कि जब वो अपने रंग में रम के धरती पर चलता है तो तमाम ताकतें पछाड़ खा के अपने आप गिरती हैं और यह ऊपर गिनवाई तमाम हस्तियां उसकी टेस्टिमनी हैं| इन्होनें कभी दुश्मन पर दाड़ नहीं पीसे, कभी उसको ललकारा नहीं, इनके आगे दुश्मन खुद चल के आये और धराशायी होते गए| नियति जाट का दुश्मन तय करती है, जाट खुद नहीं तय किया करता; जाट तो सिर्फ उस जाट का बुरा चाहने वाले को अंजाम तक पहुँचाने का जरिया मात्र बना करता है और यह ऊपर गिनवाई तमाम हस्तियां उसकी टेस्टिमनी हैं|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

हर की धरती हरयाणा में दलित दमन का दौर द्वार पर!

ये हैं वो दो हिन्दू दलित बच्चे (नीचे सलंगित चित्र में देखें) जो "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढोल पीटने वाली हिंदूवादी सरकार की छत्रछाया तले हिन्दू सवर्णों ने आज तड़के फरीदाबाद के सनपेड़ गाँव में आग के हवाले कर दिए|

राजनीति तो सुनी थी गंदी होती है परन्तु जब उसके साथ धर्म भी मिलके उसमें एकता और बराबरी का नारा उठाये तो उस नारे को फलीभूत करवाने की जिम्मेदारी भी तो ले? धर्म वादा करके या नारा उठा के भूलने की चीज नहीं होती, आगे बढ़के उसके पालन और पालन की सुनिश्चितता करने का नाम होता है| जहां दावे से उठाई हुई बातें-वादे भुला दिए जाएँ वो राजनीति होती है धर्म नहीं|

जैसा कि इसका एक पहलु मीडिया और सरकार बता रही है कि यह सब आपसी रंजिश के चलते हुआ है| तो ऐसा भी क्या तरीका रंजिश निकालने का कि राजपूतों ने ना रात देखी, ना दिन, ना 10 महीने और अढ़ाई साल के बच्चे देखे| निसंदेह एक सच्चा राजपूत तो ऐसा कदापि नहीं कर सकता। यहां तो यह भी नहीं कह सकते कि दिन के वक्त किया इसलिए पता नहीं रहा होगा कि घर के अंदर कौन था और कौन नहीं| रात का वक्त था साफ़ पता था कि मियां-बीवी अपने बच्चों के साथ सो रहे होंगे|

इसपे भी अचरज की बात यह है कि सनपेड़ कांड पर क्यों नहीं एक भी हिन्दू-हिन्दू और इसमें एकता और बराबरी चिल्लाने वाले साक्षी महाराज से ले साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ से ले मोहन भागवत एक शब्द भी नहीं बोले| ना कोई शंकराचार्य बोला, ना कोई महामंडलेश्वर, ना कोई पुजारी चुस्का और ना ही कोई संत| जिनकी जुबान गौ-गाय-मूत्र-गोबर पर जान लेने और देने के लिए बोलते-बोलते नहीं थकती, उन हिन्दू धर्म वालों के यहां और उन्हीं की सरकार के राज में एक हिन्दू दलित के छोटे-छोटे मासूम बच्चों की बस इतनी सी कीमत कि इन महानुभावों के मुख से अभी तक एक शब्द नहीं आया।

सभ्य-सुशील इंसान कोई भी कमेंट करे इस पोस्ट पर परन्तु, अपने यहां के गोबर से दूसरे के वहाँ के गोबर को ज्यादा गन्दा बताने वाले, इस पर तभी कमेंट करें, जब अपने गोबर को साफ़ करने का माद्दा रखते हों| ओह हाँ मैंने गोबर शब्द का जिक्र किया है तो भगतलोग अब इसको गाय वाले गोबर से जोड़ के मेरे कान मत खाने लग जाना, कि कहीं कहते चढ़े आओ मेरे सर पे कि तुमने गौमाता के गोबर को गन्दा कैसे कह दिया| मेरी ओर से तुम जिस चाहे उस जानवर के गोबर को खाओ या शरीर पे लबेड़े घूमो|

फूल मलिक

 

हरयाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मुख्यमंत्री ही बैठा है या किसी व्यापार मंडल का अध्यक्ष!

आज हरयाणा के मुख्यमंत्री उनकी सरकार की एक साल की उपलब्धियां गिनाते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे हरयाणा व्यापार मंडल के अध्यक्ष बोल रहे हों। जनता का नुमाइंदा यानि मुख्यमंत्री वाली तो कोई फील ही नहीं आ रही थी, पूरी कांफ्रेंस के दौरान|

ना किसान का जिक्र, ना जमीन पे आ चुके फसलों के भावों का जिक्र, ना आसमान तक जा चुके दालों-सब्जियों के भावों का जिक्र, ना दलित उत्पीड़न का जिक्र, ना मुस्लिम उत्पीड़न का जिक्र। ना नौकरियों की नियुक्ति में देरी का जिक्र, ना कच्चे अध्यापकों को पक्के करने का जिक्र, ना बढ़ती रिश्वतखोरी और भाईभतीजावाद का जिक्र, ना समाज में पसर रही अशांति और असहनशीलता का जिक्र, ना सरकार के नेताओं के गैर-जिम्मेदाराना ब्यानों और रवैयों का जिक्र; खैर ब्यान तो खुद जनाब कौनसे सम्भल के देते हैं। एक ही झटके में ऐसा मुंह खोलते हैं कि हरयाणा तो हरयाणा बिहार तक में बीजेपी की चुनावी हालत खस्ता कर देते हैं।

कमाल की बात तो यह है कि किसान को तो लागत के पूरी होने तक के भी फसल-भाव नहीं मिल रहे और उसके बावजूद भी दाल-सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं| और सरकार भोंपू बजाये जा रही है कि हमने भ्रष्टाचार मिटा दिया? तो आखिर यह भ्रष्टाचार कौन देखेगा सरकार जी कि किसान से उसकी लागत भी पूरी ना हो उस भाव पे खरीदी जाने वाली दाल कंस्यूमर तक पहुंचते-पहुंचते इतनी महंगी कैसे हुए जा रही है?

किसान के खेत से दाल खरीद है 25-35 रूपये प्रति किलो के बीच,परन्तु शहर-गाँव के ग्राहक को मिल रही है 200 रूपये प्रति किलो। अच्छे दिन तो सिर्फ बिचौलियों, सटोरियों और व्यापारियों के आये हैं। और इसमें सरकार को कोई भ्रष्टाचार, जमाखोरी वगैरह भी नहीं दिखती।

भगत भी बेचारे सुन्न हैं, ना फड़फड़ाहट ना फड़फड़ाहट की गुंजाइस। मुझे तो अचरज इस बात का है कि 200 रूपये किलो की दाल खा के भी भगतों को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के बजाये दंगे कैसे सूझ जाते हैं। हाँ तभी तो अंधभगत कहलाते हैं, खुले दिमाग के भगत होते तो दंगे करने से पहले अपने घरों की बिगड़ रही इकोनॉमी पे आवाज ना सही कम से कम चिंता तो उठाते।

फूल मलिक

यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है कि मामले को आपसी रंजिश का नाम दिया जावे या कांड का!

हरयाणा के डीजीपी साहब सीखा रहे हैं कि जब झगड़ा जाट और दलित का हो तो उसको कैसे उत्पीड़न का बना के दिखाया जाए, और जब झगड़ा आज वाले सनपेड़ गाँव में स्वर्ण जाट के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ण का हो तो कैसे सिर्फ रंजिश बना के दिखाया जाए| मीडिया भी खूब साथ दे रहा है उनका, बिलकुल मुंह-में-मुंह डाल के रिपोर्टिंग हो रही है| क्या बात है क्या तालमेल है मीडिया और सरकार का|

डीजीपी साहब और मीडिया, यूँ तो गोहाना-कांड हो, मिर्चपुर-कांड हो, या आज फरीदाबाद में हुआ सनपेड़-कांड, मामले तो सारे ही आपसी रंजिश के थे, पर किसी एक के भी द्वारा यह "आपसी रंजिश" शब्द तब तो प्रयोग नहीं किया गया जब गोहाना कांड हुआ था या मिर्चपुर कांड हुआ था, वाकया तो एक ही प्रकार का था ना? दलितों के घर उस वक्त भी जलाये गए थे और आज भी? फर्क सिर्फ इतना ही तो था ना कि उस वक्त मसला जाट बनाम दलित था और आज राजपूत बनाम दलित?

ओह समझ गया, यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है ना कि मामले को दो-चार परिवारों की आपसी रंजिश कह के हल्का बताना है या पूरी जाट कौम बनाम दलित कौम का बता के जाटों का दलितों पर आतंक और अत्याचार कह के बड़ा बताना है|

हुड्डा साहब, चौटाला साहब और तमाम तरह के अन्य जाट नेता, सीखें खट्टर साहब और उनके डीजीपी से कि कैसे दलितों के घर तक जलाने पर भी, उनके बच्चे जिन्दा फूंकने के बावजूद भी उस कांड को मात्र आपसी रंजिश का बना के दिखाया जा सकता है| शायद भविष्य में काम आएगा आप लोगों के|

वैसे यह वही खट्टर साहब हैं जिन्होनें रोहतक सिस्टर्स बस छेड़छाड़ मामले में मात्र एक जाटों के बालक होने की वजह भर से बिना जाँच रिपोर्ट का इंतज़ार किये तुरंत-फुरन्त आनन-फानन में इनाम भी घोषित कर दिए थे और आज वाले मामले को कैसे इनके कर्मचारियों और मीडिया द्वारा सिर्फ आपसी रंजिस मात्र का मामला बताया जा रहा है|

चलो हुड्डा हो या चौटाला, उनमें इतनी संवेदना तो थी कि वो दलितों पर हुए अत्याचार को अत्याचार की तरह ही लेते थे, उसको एक रंजिश मात्र कह के रफा-दफा नहीं करते थे| यहां तक कि खट्टर साहब के 10 लाख के मुवावजे की तुलना में 25 लाख मुवावजा देते थे| दलित मकानों को दोबारा से बनवाते थे| उनके बीच जा के उनकी सुनते थे, सुना है खट्टर साहब तो अभी तक चंडीगढ़ से ही नहीं निकले हैं| डीजीपी भी यही कह रहे हैं कि जरूरत हुई तो मिलने भी जाऊंगा|

और ना ही अभी तक उस बेचारे दलित के फूंके हुए घर को दोबारा से बनाने के बारे सरकार ने कोई घोषणा की, क्या सिर्फ 10 लाख में पल्ला झाड़ लिया जायेगा?

और हाँ, वो मिर्चपुर कांड के पीड़ित दलित भाईयों को आश्रय देने वाले तंवर साहब किधर हैं, कोई भेजे उनके पास संदेशा की जनाब आओ इधर सनपेड़ गाँव में भी कुछ आपकी ही जाति के राजपूत भाईयों ने दलितों के घर फूंके हैं, उन पीड़ित दलित भाईयों को भी आपके फार्महाउस में आश्रय दीजिये|

भाई कोई गोल बिंदी वाली रुदालियों को भी संदेशा भेजो, कि सनपेड़ में रूदन मचाने जाना है, या फिर वहाँ घर फूंकने वाले जाट नहीं कोई और थे इसलिए जाना कैंसिल?

फूल मलिक

झगड़ों में भी जातिय रियायत बरतने वाला हिंदुस्तानी मीडिया!

एक मीडिया वाले भाई ने कहा, "काश, आज सनपेड़, फरीदाबाद में जो राजपूतों द्वारा घरों समेत दलित जलाये गए हैं, उनमें दूसरी पार्टी राजपूत की जगह जाट होती तो हमें "दबंग" शब्द इस्तेमाल ना करना पड़ता और टीआरपी भी मीटर तोड़ देती|"

मैंने पूछा वो कैसे?

तो बोलता है कि क्योंकि मामला राजपूतों का है इसलिए सिर्फ "दबंग" बता के दिखाने के निर्देश हैं; लेकिन अगर होते राजपूतों की जगह जाट तो निर्देश यही होते कि इनको 'दबंग' शब्द में कवर नहीं करना, डायरेक्ट 'जाट' बता के खबर चलाना है|

मैंने कहा वाह रे मीडिया, तुम्हारी निष्पक्षता, निडरता और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने के दावे| तुमसे बड़ा खोतंत्र नहीं होगा पूरी दुनिया में कोई| सलाम है तुम्हारी सोच को, झगड़ों में भी जाति के नाम पर रियायत बरत के खबर चलाते हो|

अब इसको क्या कहूँ, "मीडिया की भी जो टीआरपी तोड़ दे जाट ऐसी सबसे बड़ी बड़ी ब्रांड है क्या?"

धन्यवाद घुन्नो, बदनाम ना हुए तो क्या नाम ना होगा? वजह जो भी हो मार्केटिंग तो करते ही हो जाटों की पॉजिटिव ना सही नेगेटिव ही सही| परन्तु याद रखना बड़े-से-बड़े मार्केटिंग प्रोफेशनल्स भी पॉजिटिव से ज्यादा नेगेटिव मार्केटिंग को ज्यादा इफेक्टिव बताते हैं, लगे रहो जाटों को मशहूर करने में|

अभी एक बार हरयाणा में पंचायती राज इलेक्शन हो जाने दो, दोबारा से जब जाट आरक्षण का जिन्न फिर से खड़ा होगा, तो कर लेना अपने यह अरमान भी पूरे| बस इतना ध्यान रखना कि कहीं जाट-जाट चिल्लाते-चिल्लाते तुम्हारी साँसे तुम्हारी ........... टों में ना उलझ जाएँ|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

डबल शर्म करो हिंदूवादी खट्टर साहब!

पहली शर्म इस बात के लिए कि यू.पी. में एक मुस्लिम अख़लाक़ को मारा जाता है तो सपा उसके परिवार को 45 लाख देती है और आपके यहां एक दलित वो भी हिन्दू दलित, खट्टर साहेब जरा फिर से कानों के पट खोल के सुनो, हिन्दू दलित कहा मैंने, "हिन्दू एकता और बराबरी" वाला हिन्दू दलित जनाब; हाँ एक हिन्दू दलित मरता है तो उसकी जान की कीमत सिर्फ मात्र 10 लाख रूपये? मैं मांग करता हूँ कि आज सुबह तीन बजे बल्लभगढ़ में राजपूतों द्वारा घरों समेत जलाये गए मृतकों के परिवारों को कम से कम 1-1 करोड़ का मुवावजा मिलना चाहिए, जायज भी है 45 लाख तो आपके अनुसार सेक्युलर और देशद्रोही लोग भी दे रहे हैं तो फिर आपकी कटटरता उनसे सस्ती कैसे, आपके ही अपने हिन्दू लोगों की जान उनसे सस्ती कैसे?

दूसरी शर्म इस बात के लिए कि "हिन्दू एकता और बराबरी" के ये मण-मण पक्के नारे-भर तो लगाते हो, उसी का चोला पहन और जाटों से निजात दिलाने के नाम पे वोट भी मांगते हो और जब दलितों ने वोट दे के सरकार बनवा दी तो उन्हीं दलितों को स्वर्ण हिन्दुओं से घरों समेत जलवाते हो?

इससे बड़ा तमांचा और नहीं हो सकता खट्टर साहब के मुंह पर कि एक तरफ जनाब प्रेस-कांफ्रेंस करके एक साल की कागजी उपलब्धियां गिना रहे हैं और दूसरी तरफ स्वर्ण हिन्दु इनके "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढकोसले की उपलब्धियों की बख्खियां उद्देडने के स्टाइल में पोल खोल रहे हैं|

बनियानी के राजपूतों के बाद मात्र डेड महीने में अब फरीदाबाद के राजपूतों से तो सीधा घर ही जला दिए खट्टर साहेब!

अब देखेंगे कि जाट-दलित के छोटे से झगड़े को भी ये अंतराष्ट्रीय स्तर का बना-बना के परोसने वाले, उन पर नौ-नौ मण आंसू बहाने वाले मीडिया से ले केंद्रीय नेता, जनवादी संगठनों से ले मार्क्सवादी-कम्युनिष्ट इस जुल्म पे क्या रूख अख्तियार करेंगे|

साथ वो जाट भी बताएं अपना रूख इसपे जो कभी हिंदूवादी राष्ट्रवादी अंधभक्त बने टूलते रहते हैं तो कहीं जाति-पाति, उंच-नीचता, स्वर्ण-दलित के नाम पर दलितों से दुर्व्यवहार करते हैं| जबकि ऐसा करना ना तो शुद्ध जाट थ्योरी "खाप" में कहीं लिखा हुआ और ना ही जाट की कर्मधारा में लिखा हुआ| तो फिर क्यों ना ऐसी किताबों को आग लगा दी जाए जो समाज में इस जातीय, नस्लीय भेद की वकालत करती हैं? और जिनको पढ़ के आप व्यवहारिक, सामाजिक तौर पर दलित के नजदीक होते हुए भी वैचारिक स्तर पर उनसे दूर चले जाते हो और इस वैचारिक आतंकवाद का शिकार बनते हो?

इन सब समस्याओं का निवारण सिर्फ एक ही है, बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम की नीतियों का समन्वय भरा समाज|

फूल मलिक

Monday, 19 October 2015

और ऐसे एक कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर ने बिहार में भाजपा की लुटिया डूबने के कगार तक पहुंचा दी!

कंधे से ऊपर या नीचे मजबूत और कमजोर की चर्चा, उसका अवरोध-गतिरोध अभी थमा भी नहीं था कि एक हरयाणा के नाम से जाने-जानी वाली खापलैंड के उद्भव व् वैभव वाली स्टेट के मुखिया ने अपनी कंधे से ऊपर की मजबूती का नायाब नमूना पेश करते हुए आज के भारत की राजधानी व् प्राचीन विशाल हरयाणा के जिगर दिल्ली के तले बैठे-बैठे ही हजार कोस दूर पाटलीपुत्र उर्फ़ पटना में बीजेपी की लुटिया लगभग डूबाने के कगार पर भेज दी है। अगर यूँ कहूँ कि आने वाली नौ नवंबर को उस डुबाई की आधिकारिक घोषणा हो जावे तो अचरज ना मानियेगा।

इतने भर से पाठक यह तो समझ ही गए होंगे कि यह करिश्मा किसी और ने नहीं अपितु हमारे अपने जाने-पहचाने चिर-परिचित कंधे से ऊपर मजबूत श्रीमान मनोहरलाल खट्टर ने करके दिखाया है।

मैं इतना बड़ा लेखक नहीं, हस्ती नहीं कि कोई मेरी इस विवेचना को गंभीरता से लेवे, परन्तु जिस हद तक मैंने भारत की राजनीति और उसमें भी जातिय जहर की जादूगरी देखी, समझी और परखी है उससे स्पष्ट तौर पर हमारे आदरणीय कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर जी ने वो कारनामा कर दिखाया है कि अगर इसके नतीजे वही आये जो आज के दिन बिहार के हालात बता रहे हैं तो यह जनाब बीजेपी और आरएसएस दोनों के उस डर को साकार करने वाले हैं जिसमें बीजेपी अपनी आगे की दिशा निर्धारण का एक पैमाना लिए बैठी है। और पैमाना यह है कि बीजेपी व् आमजन यह सोच रहे हैं कि अगर बीजेपी बिहार में हार गई तो इनका 2014 की जीत का हनीमून जो दिल्ली की हार से पहले ही फीका पड़ चुका था वो तो बिहार की हार से पूर्णत: खत्म हो ही जायेगा, साथ ही राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद नामी चुनावी जिन्न या तो देश में ऐसा फटेगा कि कहीं गृहयुद्ध ही ना हो जावे या फिर यह बीजेपी को त्यागना ही ना पड़ जावे। गृहयुद्ध इसलिए क्योंकि बीजेपी और आरएसएस के लोगों का जिस तरह का तारतम्य और हार को बर्दाश्त करने के प्रति सहिषुणता का जो स्तर अभी तक देखने को मिला है उसके चलते इस संभावित हार को बीजेपी के कार्यकर्त्ता और शायद आरएसएस भी संभाल ना पावे| मोदी साहब तो खैर अब लगभग मनमोहन मोड में इन्होनें भेज ही दिए हैं। धन्य हो खट्टर-बाणी, खुब्बाखाणी या कहूँ खसमांखाणी!

कुल मिलाकर कंधे से ऊपर मजबूती के इन ग्लोबल सिंबल उर्फ़ खट्टर साहब ने बीजेपी और आरएसएस को ऐसे बारूद के ढेर पर जा बैठाया है कि हारे तो या तो गृहयुद्ध या राष्ट्रवाद-हिन्दुवाद का त्याग। हाँ भूले से जीत भी गए तो सम्पूर्ण बहुमत तक तो शायद ही पहुँच पाएं।

मैं यह दावे निराधार ही नहीं कर रहा हूँ, इसके कुछ पहलु हैं जो यूँ भभक रहे हैं जैसे ईंट-भट्टे में लाल अग्नि के ललाट सी लाल ईंटें, कि कहीं भी गिरे भुनना जरूर है कम से कम जलना तो पक्का है।

हमारे (क्योंकि मैं हरयाणा का हूँ और यह हमारे मुखिया जी) कँधे से ऊपर की मजबूती के ब्रांड अम्बेसडर साहब शायद यह भूल गए थे कि वहाँ लालू यादव से चतुर-लम्पट बैठे हैं, जो आपके बयान को ना सिर्फ ऐसे लपकेंगे जैसे साँप पे नेवला वरन इसका ढंका पूरे बिहार में इस जोर से पिटवाएंगे कि अभी तक जिस मुसलमान को धार्मिक-भाई होने की वजह से ओवैसी में फायदा दिख रहा था वो भी लालू-नितीश के पाले में आन गिरेंगे। और स्थिति यहां तक भी पहुंच सकती है कि बाद में यह कंधे से ऊपर के स्वघोषित अक्लवान ऐसे महसूस करेंगे जैसे "चौबे जी चले छब्बे बनने और दुबे बनके लौटे।"

यह आरएसएस इनके कैडर को यह नहीं सिखाती क्या कि "अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारी जाया करती"? लगभग हर दूसरे अख़बार की कलम, बिहार के गलियारों से नदी-नारों तक इतना चर्चा तो बिहार में खुद नितीश-लालू और मोदी का नहीं, जितना ‘म्हारे आळे छोरे का हो रह्या सै’ यानि खटटर साहब के "बीफ वाले बयान पे मुस्लिमों को दी नसीहत" का हो रहा है।

पहले से ही बिहार के दो दौर के चुनावों में बीजेपी की बेचैनी इसी से साफ स्पष्ट झलक रही थी कि बीजेपी को वहाँ के पोस्टर्स पर राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरों से ज्यादा स्थानीय नेताओं की तस्वीरें उतारनी पड़ी। ऊपर से नितीश का "बाहरी बनाम बिहारी" का नारा, उसपे लालू तो जो बीजेपी को ऐ-लम्बा लठ लिए हाँक रहे थे सो हाँक ही रहे थे। लालू तो बस ताक में ही बैठे थे कि बैठे-बिठाये ये जा लपकाया खट्टर साहब ने विभीषण की तरह राम को रावण की नाभि भेदने का राज। पहले से ही चिंता में पड़ी बीजेपी की हालत "कोढ़ में खाज" वाली करके रख दी।

मोदी साहब, खट्टर साहब को पहले की तरह अपनी रसोई पकाने के लिए वापिस ही बुला लो तो बेहतर होगा वर्ना बाकी जनता का भेजा फ्राई करें या ना करें परन्तु सबसे पहले वो ही लोग इनसे उक्ता जायेंगे, जिन्होनें आपको कम से कम इन कंधे से ऊपर की मजबूती वाली ब्रांड को झेलने के लिए तो वोट नहीं दिए होंगे। क्या है कि अति हर बात की घातक होती है और आपके ही वोटरों की जुबानी खट्टर साहब तो ऐसी अति साबित हो रहे हैं जो खट-खट खाटी ढकार दिल देने वाली खटारा की तरह खटकते-खटकते आपके ही वोट खड्का-खडका के खाती जा रही है।

"सूं दादा खेड़े की!" अगर इनको जाटों को परेशान करने मात्र के लिए ही सीएमशिप दी हुई हो तो उसकी चिंता आप ना करें, क्योकि इससे तो आप उल्टा जाटों का ही भला कर रहे हो। ऐसे ज्ञानी-ध्यानी को सीएम बना के नॉन-जाट को यह अहसास दिलाने का कार्य कर रहे हो कि क्या वाकई में जाट इतने बुरे हैं या थे, जितने बता के कि हमसे वोट लिए गए। हरयाणा में फसलों से ले इंसानों तक के भाव इन्होनें छोड़े नहीं| जाटों तक पे इन्होनें "लठैत" होने के तीर छोड़ लिए| खुद को कंधे से ऊपर अक्ल वाला बताते-बताते हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर तक यह बोल चुके (और यह बोलते हुए यह भी नहीं सोचा कि जिन्होनें बीजेपी को वोट दिए खासकर नॉन-जाटों ने, वो भी तो हरयाणवी ही हैं; नहीं शायद इनके लिए हरयाणवी का पर्यायवाची शायद सिर्फ जाट ही है। खैर जाटोफोबिया रोग ही ऐसा है, खट्टर साहब की गलती नहीं| वैसे धन्य हैं आपके वोटर भी जो आपको वोट भी देवें और आपके बयानबहादुरों से अपने ऊपर कंधे से ऊपर कमजोर होने का ठप्पा लगवा के भी खुश रहवें। वाकई में खुश हैं वो वोटर या सुगबुगाहटें पुरजोर है?), लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने की बजाय नंगा ही घूम लेना चाहिए जैसे तीर भी यह छोड़ चुके और अब तो ऐसा तीर छोड़ा कि वो जा लपका राजनीति के ‘बाहरले-बिल्ले’ उर्फ़ लालू यादव ने और वो भी इतनी मजबूती से कि बीजेपी की लुटिया को शायद अब गौ-गंगा-गायत्री ही बचा पाएं या फिर कुछ करिश्मा कर पाई तो शायद मोदी-ब्रांड ही करे, बाकी कंधे से ऊपर मजबूत वाली ब्रांड तो फायर कर गई।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 18 October 2015

कित-कित तैं रो ल्यूं इन घुन्नों को!

पंचायतों और खाप पंचायतों से एलर्जी रखने वाले और शायद इनसे घृणा करने वाले मीडिया के कार्यक्रमों के नाम तो देखो "पांच की पंचायत", "चार की चौपाल", "पंचायत", "चुनाव की पंचायत" आदि-आदि|

म्हारे हरयाणे में जो इशारों-इशारों में किसी से कोई बात निकलवा ले उसको "जूत झाड़-झाड़ के बुलवाना" कहते हैं, परन्तु यह मीडिया वाले तो ऐसे घुन्ने हैं कि जूत झाड़निये की गरद उतर जाएगी परन्तु ये लोग यह नहीं बता पाएंगे कि यह दोगलापन क्यों?

गाँव-गुहांड-गौहर में पाई जाने वाली पंचायतों और खापों के शब्दों और इन वाले शब्द में ऐसे कौनसे फ्लेवर का फर्क है जो जब इसको गाँव वाले प्रयोग करें तो मीडिया के द्वारा ही तालिबानी-रूढ़ी ठहरा दिए जावें और वही शब्द इनके हाथ पड़ें तो ऐसे शुद्ध और मॉडर्न हो जावें कि जैसे मीडिया के हाथ ना पड़ गए हों अपितु गंगाजल में डुबो दिए हों?

खाएंगे यह भीरु लोग इस देश की संस्कृति को भी और आकृति को भी।

कित-कित तैं रो ल्यूं इन घुन्नों को!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Thursday, 15 October 2015

यकीन नही आता कि बिहार में आज भी ऐसा हो रहा है!


बिहार के जहानाबाद जिले की घोसी विधान सभा क्षेत्र में भूमिहार जाति के दबंगों ने आज तक दलितों और पिछड़ों को वोट नहीं डालने दिया।। पूरी खबर देखिए और तय करिए कि कौन लोगों ने लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास किया है।।

ये है हिंदुत्व के ठेकेदारों की इंसानियत और असलियत, मुस्लिमों के डर से डरा के एक क्या इसलिए कर रहे हैं कि कल को लोगों को उनके लोकतान्त्रिक अधिकारों से ही वंचित कर दें।

सम्भल जाओ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की झूठी बातों से।

है कोई "हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे लगाने वाला इस बात पे जवाब देने वाला, कि आखिर क्यों एक हिन्दू ही दूसरे हिन्दू को वोट नहीं डालने देता?

Phool Malik

Source: https://www.youtube.com/watch?v=VF6phOHDEBE

वीर जवाहर नमन तुझे!

वो जलजला सूरज का, जवाहर जाट कहलाता था,
मनुष्य क्या देवों से भी, खुली छाती भिड़ जाता था,

क्रोधी मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले-घन पर,
पितृहत्या का बदला लूंगा, अपने प्राणों से भी बढ़ कर,

अश्वारोही अपनी सेना को, पल में सम्मुख खड़ा किया,
हुंकार लगा के जवाहर ने, दशों दिशा को गुंजा दिया,

होके सवार अपने तुरंग पर, दिल्ली पे कूच किया,
अपनी गरजती ललकार से, जाट लहू उबाल दिया,

लाल किले की प्राचीरों से, उठने लगी चित्कार वहां,
नंगी तलवार लिए खड़े थे, जाटवीरों के कदम जहां,

अफगान सहमे, ह्रदय कांप उठे, छा गया अंधकार घोर,
जहां अफगान था खड़ा, तलवार मुड़ी जाट की उसी ओर,

छिन के बिजली कड़क उठी, जालिम की खड़ग गिर पड़ी,
क्षमा करदे जाट सूरमे, दुश्मन की आंखे छलक पड़ी,

गद्दार पेशवाओं ने तब, अपनी ही औकात दिखलायी,
समर्पण कर अफगानों से, जाटों की सेवा भुलाई,

पानीपत के तृतीय समर में, जब तुर्कों ने इन्हें भगाया था,
हिन्दू रक्षक सूरजमल ने तब, इनके घावों को सहलाया था,

सुसोभित अष्टधातु पट जहां, जाटों ने वो उखाड़ दिये,
तब लोहागढ़ को लोट चले, दिल्ली की पहचान लिये,

जबसे धरती पर मां जननी, जब से मां ने बेटे जने,
जाटवीरों के ऐसे वकत्व्य, ना देखे कभी ना कभी सुने,

वीर जवाहर नमन तुझे, जो जाटों का गौरव-मान बढाया,
तेरे अदम्य साहस ने ही तो, "बलवीर" को लिखना सिखाया,
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लेखक - बलवीर घिंटाला 'तेजाभक्त'

Wednesday, 14 October 2015

सीवन, जिला कैथल, "सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य गाँव" है!

कुरुक्षेत्र सांसद राजकुमार सैनी व् गुहला विधायक बाजीगर पर सीवन गाव में नारे व् पथराव!

सांसद ने कहा जाति विशेष का काम!

सांसद महोदय शायद आप अपने ही क्षेत्र के डेमोग्राफिक विस्तार से वाकिफ नहीं| जान लेना जरूरी होता है, वर्ना झूठ दिन-धोली पकड़ा जाता है|

सीवन गाँव में 12807 मतदाता हैं पर आपकी बताई जाति विशेष का इस हमले में और वो भी उसी गाँव के लोगों के अनुसार एक भी नही| हाँ, जाति विशेष के मात्र 1200 के करीब मतदाता जरूर हैं उस गाँव में।

जनता विरोध कर रही और कमाल इस बात का है सीवन जैसा गाँव जिसने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एकमुश्त होकर आपको ही अधिकतर वोट दिए, वहाँ आप पर हमला हुआ? बीजेपी के वोट-बैंक वाले गाँव में आप पे हमला हुआ जनाब?

चेत जाओ नही तो सारा देश सभी का यही हाल करेगा ये जाति विशेष का नहीं वरन जनता विशेष का आपकी नीतियों के प्रति विरोध है।

वैसे दुनिया इतनी बावलीबूच भी नहीं है एमपी साहब, सबको पता लग रहा है कि उस गाँव में कौन बहुलयता में है और किसने आपको पत्थर मारे होंगे| जबकि यहाँ तो खुद सीवन वाले कह रहे हैं कि एमपी साहब की बताई जाति विशेष वाला तो एक भी नहीं था आप पर पत्थर बरसाने में|

परन्तु आपके साथ तो वो "कुत्ते को मार गई थी बिजली, और मिराड को देखे और कुकावे-ही-कुकावे" वाली बात हो रखी! बावले हो आप, जाट हमला प्लान करे और सिर्फ पत्थर बरसवा के छोड़ दे, सर कुछ राह लगती तो बात किया करो|

गाँव सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य का और इल्जाम फिर भी जाति-विशेष यानी जाटों पर| शर्म कर लो जनाब कुछ, कुछ तो झांक लो अपने गिरेबान में| असलियत को पहचान लो जनाब, जिन्होनें आपको सबसे ज्यादा वोट दिए, उन्हीं के गांव में आप पे पत्थर बरसे| शायद इस कड़वी सच्चाई से वाकिफ नहीं होना चाहते होंगे आप, इसलिए मन में बहम रखने को "जाति विशेष" का काम बता के उछाल दिया| कोई ना, "क्यों खखावै नदी, आवे तो पुल के तले को ही गी!"

जय योद्धेय! - फूल मलिक