Wednesday, 10 February 2016

अरे क्यों कबूतर की तरह आँखें मूंदे समाज को बरगला रहे राजकुमार सैनी?

राजकुमार सैनी के अभी-अभी ताजा-ताजा आये प्रेसनोट में राजकुमार सैनी से मेरे सवाल-जवाब|

1. जाति बिशेष के लोगो के दबाब में आकर अपने राजनैतिक स्वार्थ को साधने के लिऐ हमेशा ही पिछड़ा वर्ग के अधिकारो से खिलवाड़ किया। - राजकुमार सैनी

मेरा सवाल-जवाब: आपके अधिकारों से खिलवाड़ तो पिछले 68 सालों से वो लोग कर रहे हैं जिनसे आप आज तक भी अपनी संख्या के अनुपात में आरक्षण नहीं ले पाये। जो पिछड़े वर्ग का बैकलॉग खाते हैं। आपको कौन समझदार, पिछड़ों का हितैषी कह देगा, जबकि आपको यह ही नहीं दीखता कि पिछड़ों का हक कौन खाए जा रहा है?

2. कभी राजधानी बंद, कभी हरियाणा बंद की धमकियां देने वालो को तिहाड़ जेल में बंद करो। बंद के नाम पर भय का महौल बनाने वाले इन दबंगो को तिहाड़ में बंद कर देना चाहीए। इन लोगो से निपटने के लिऐ सरकार भी अपना काम करेगी और पिछड़ा वर्ग 35 बिरादरी के लोग इनको मंहतोड जबाब देगें। - राजकुमार सैनी

मेरा सवाल-जवाब:
a) क्या हुआ आप तो पिछड़ा ब्रिगेड ले के मैदान में उतरने वाले थे? जाटों ने हरयाणा जाम करने भर का क्या कहा कि अब उनको तिहाड़ भिजवाने लगे? जब कोई साथ है ही नहीं तो क्यों समाज को बरगला रहे हो? इससे साबित होता है कि कोई पिछड़ा ब्रिगेड नहीं बन पाई आपसे, वर्ना मैदान में आते। सच भी है ऐसे समाज को सिर्फ नरफत के आधार पे बिखराने वाले का साथ भी कौन देगा, खुद पिछड़ा भी इतना तो समझदार है।
b)और कौनसी 35 बिरादरी श्रीमान? बिश्नोई-त्यागी-रोड़-जाट सिख-जाट मुस्लिम और आधे से ज्यादा दलित भाईयों तक का जाटों को समर्थन हासिल है। दलितों के कई गाँव तो ऐसे हैं जो गाँव-के-गाँव जाटों के समर्थन में आन खड़े हुए हैं। कर लो बात, खामखा मोदी का चेल्ला बन फेंकते घूम रहे हैं।
c) और बंद पे तो रोहित वेमुला को न्याय दिलवाने बारे पूरे देश का पिछड़ा भी सड़कों पे उतरा हुआ है, क्यों नहीं उनकी भी बोलती बंद करवा देते? स्पष्ट है आपको मंडी-फंडी ने जाटों के खिलाफ जहर उगलने मात्र को पठाया हुआ है|

3. पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस ने झुठ के आधार पर जाटो को ओबीसी में शामिल किया| - राजकुमार सैनी

मेरा सवाल-जवाब: कांग्रेस और हुड्डा जी ने तो ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा-खत्री-राजपूत को भी स्पेशल क्लास बना के आरक्षण दिया था? इतना ही नकली और झूठ के आधार पे था तो अब तक जारी क्यों है वो स्टेट में? इससे साफ़ स्पष्ट है कि आपका एजेंडा न्याय की बात करना नहीं सिर्फ नफरत का जहर फैलाना है, वर्ना हरयाणा में तो और भी दबंगों को आरक्षण मिला हुआ है, उनका खत्म करवाने या उनको मिलने पे तो एक शब्द भी नहीं निकलता आपके मुंह से?

4. पिछड़ा वर्ग अब अपने हको और हक्कुक की लड़ाई लडने मे सक्ष्म व परी तरहं एकजुट है। हितो से खिलवाड़ करने वालो को करारा जबाब दिया जाऐगा। - राजकुमार सैनी

मेरा सवाल-जवाब: जी सैनी साहब निसंदेह आपको हक-हकूक की लड़ाई लड़नी चाहिए| चलिए मैं भी आपका साथ देने आता हूँ, उठाइये पिछड़ों के इन मुद्दों पर आवाज:
a) रोहित वेमुला बारे पूरे देश का पिछड़ा सड़कों पर है बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ; चलिए आईये आप भी और मैं भी आता हूँ आपका साथ देने।
b) लालू यादव महीनों से चिल्ला रहे हैं कि जातिगत आंकड़े सार्वजनकि कर, पिछड़ों-दलितों की जनसंख्या सही-सही बताओ। चलिए आईये आप भी और मैं भी आता हूँ आपका साथ देने इस मुद्दे पर।
c) 68 साल से पिछड़ों को अपनी जनसंख्या के अनुपात का आधा ही आरक्षण मिल पाया है, चलिए आईये उठाइये संख्या के अनुपात में आरक्षण दिलवाने बारे आवाज और मैं भी आता हूँ आपका साथ देने।
d) 68 साल से मंडी-फंडी आपके वर्ग के आरक्षण का बैकलॉग खाए जा रहे हैं; चलिए आईये इस पर आवाज उठाते हैं, और मैं भी आता हूँ आपका साथ देने।

तोड़ की बात तो यह है सैनी साहब, पिछड़ा वर्ग को जाट से नहीं इन मंडी-फंडी रुपी बिल्लियों से बचाओ, जिनकी तरफ से आप कबूतर की तरह आँखें मूँद, 'कुम्हार की कुम्हारी पे तो पार बसावे ना, जा के गधी के कान मरोड़े" वाली तर्ज पे जाटों की तरफ मुंह किये हुए हो।

आप क्या समझते हो कि आज का पिछड़ा इतना पिछड़ा है जो यह भी नहीं समझेगा कि आप बोल कौनसी कूण में रहे हो? सब जानते हैं कि सिर्फ मंडी-फंडी की कठपुतली बने कूक रहे हो। खुद सैनी समाज के मेरे जितने मित्र हैं, वो ही आपसे असहमति जताते हैं।

क्या होगा कोई आप जैस मूर्ख आदमी, जिसको इतना भी भान नहीं है कि इन मंडी-फंडी का एजेंट बन भोंकने से आप जाटों का नहीं अपितु पिछड़ों का ही नुकसान कर रहे हो? क्योंकि जिस वक्त आपको "संख्या के अनुपात में आरक्षण", "बैकलॉग के मुद्दों" पे जहां आवाज उठानी चाहिए थी, उस वक्त आप जाटों के खिलाफ बोल उनको एक होने की जरूरत का कारण दिए जा रहे हो? अब भी सुधर जाओ जनाब, वर्ना पिछड़े ही आपको गाली दिया करेंगे, कि जब सत्ता दी थी तो सारा टाइम मंडी-फंडी की पीपनी बन के बजने में गँवा दिया। कुछ नहीं किया-धरा पिछड़ों के लिए। उलझाये रखा जाटों से नफरत करना सिखाने में।

वैसे जाट को लोग खाम्खा दबंग कहने पे तुले रहते हैं! बताओ जाटों से संयम वाला मिलेगा कोई, जो इन जनाब के लगातार एक साल से ज्यादा समय से हो रहे हमलों पर भी शान्ति खींचे हुए है। शायद जाट जानता है कि उनके ऊपर हरयाणा प्रदेश की शांति का भार है, इसके अभिमान और स्वाभिमान का भार है। सैनी साहब आप सिर्फ पिछड़ों का ही भार ढंग से उठा लीजिये, जाट कहीं ना आपकी 'झोटी खोलने को मरे जा रहे!'

विशेष: हालाँकि मैं भी कोशिश कर रहा हूँ, फिर भी इस नोट को राजकुमार सैनी तक पहुंचाने वाले का धन्यवाद!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 7 February 2016

वाह! अपनी माँ उर्फ़ गौमाता को तथाकथित गौ-रक्षक ही अब विदेशियों को काट के परोसेंगे!

क्या बेखळखाना है ये?

खटटर (आरएसएस ब्रांड का टॉप प्रोडक्ट) द्वारा यह जो विदेशियों के लिए बीफ खाने की स्पेशल क्लॉज़ लाई गई है, इसके तहत गायें हरयाणा में ही कत्ल की जाएँगी या बाहर? उन विदेशियों को परोसने वाले भी उनके साथ बैठ के खाएंगे या नहीं? अब कौन कच्छाधारी जायेगा विदेशियों को बीफ की पार्टियां देने वालों की खुद की प्लेटें चेक करने कि वो सिर्फ परोस रहे हैं या खुद भी गौमांस के चटखारे ले रहे हैं?

अरे छोड़ो जी छोड़ो, कच्छाधारियों की देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति और गौमाता के प्रति इनका प्यार, 'गरीब की बहु सबकी भाभी' वाला मामला है; यह गली-सड़कों में गायों को ले जाते ट्रकों-छकड़ों तक को आग लगा सकते हैं बस, इन वेरी-वेरी आईपियों (VVIPs) की प्लेटें थाली चेक कर सकें, जहां इन वीआईपियों के लिए गायें कटेंगी, उन फैक्टरियों को आग लगा सकें, इतनी औकात नहीं इनकी|

इसीलिए तो कहता हूँ कि जो धर्म समानता से लागू नहीं किया जाता हो वो धर्म नहीं हुआ, कोरी राजनीति होती है राजनीति और ऐसे ही गाय एक राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं, यह बीजेपी वालों ने खुद ही खुल के दिखा दिया| क्या जब यह विदेशियों को परोसने के लिए गायें काटेंगे, इनके हृदय नहीं जलेंगे? मनों में कचोटेँ नहीं काटेंगी? काटें तो तब ना जब सनातन कोई धर्म हो, कोरी राजनीति जो ठहरी| जो इस तथ्य को जितना जल्दी पकड़ गया समझो इनकी सोच से पार पा गया|

इसलिए तो इन छद्म राष्ट्रवादियों से तनिक भी प्रभावित नहीं हूँ| सारी दुनियां के भांड मरे होंगे, तब जाकर यह गाय को माँ कहने वाले, विदेशियों के आगे अपनी उसी माँ को काट के परोसने वाले पैदा हुए होंगे| अरे यह तो ठहरी गायमाता, इन्होनें तो अपनी खुद की माता तक का फरसे से गला रेत दिया था; फिर कौनसी काऊ और किसकी माता| कसम से वो मूल-हरयाणवी की औलाद नहीं जो अबकी बार इनमें से कोई गाय पे लेक्चर झाड़ने आवे और उसका मुंह थोब के वापिस ना खंदावे|

अंत में यही कहूँगा कि हे हरयाणवियों गौभक्त बनों तो हरफूल जाट जुलानी वाले जैसे बनों, जिसने ट्रक-छकड़े नहीं सीधे गौ वध की फैक्ट्रियां और हत्थे फूंक और तोड़ डाले थे; वर्ना क्यों अपनी वीरता और शौर्य पर दाग लगवाते हो कि जो एक तरफ तो गाय बचाने के नकली नारे उठाने वालों के बहकावों में टूलते हो और दूसरी तरफ खुद ही विदेशियों को गाय काट के खिलाने के दोषी बनते हो?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

चॉइस इज योअर्स!

कट्टर हिंदुत्व (सनातन) कट्टर इस्लाम से भी जहरीला है| कटटर इस्लाम तो आपको एक गोली या बम मार के पल में आर-पार करके परे होता है, परन्तु कट्टर हिंदुत्व तो मानसिक दासता का वो पिंजरा है कि जन्म लेते ही इसको बनाने वालों के दास बन जाते हो| ज्यादा लाचार और साधनहीन के यहां पैदा हुए तो दलित-शूद्र-पिछड़े में बाँट दिए जाते हो| और स्वछंद और लॉजिकल बातें करने वाले जाटों जैसों के यहां पैदा हुए तो ऐसे आइडेंटिटी क्राइसिस में डाल दिए जाते हो कि पूरा जन्म आपसे जाट बनाम नॉन-जाट का अखाड़ा भुगताया जाता है|

और दोनों में ही औरतों की दशा भी बहुत बुरी है| इस्लाम में कम से कम यह तो है कि औरत के साथ ब्राह्मण या दलित देख के व्यवहार नहीं होता; कि औरत दलित हुई तो भोग्य वस्तु बना के देवदासी बना लो, या ब्राह्मण हुई तो विधवा बना के विधवा आश्रमों में पहुंचा दो (वृन्दावन जैसे विधवा आश्रमों में 80% विधवाएं बंगाली-उड़िया-बिहारी मूल की ब्राह्मणियां हैं) या सति करवा दो| इस्लाम में औरत पे बुर्के का जोर है, सरिया जैसे कानून हैं परन्तु हैं सब औरतों के लिए समान; दलित-ब्राह्मण कुछ नहीं|

लेकिन अगर तीन दशक पहले के इराक-ईरान-टर्की की औरतों की तस्वीरें देखें तो कह ही नहीं पाएंगे कि यह पेरिस की औरतें हैं या इराक-ईरान-टर्की की; क्योंकि उस वक्त इस्लाम ने इतना कट्टरपना नहीं अपनाया था जितना अब अपनाये हुए है| इसलिए इस्लाम जितना सेक्युलर होता जाता है उसके यहां औरत भी आज़ादी पाती है, परन्तु हिन्दू या सनातनी के यहां इसके कोई चांस नहीं| हजारों सालों पहले भी विधवा होते ही इनकी औरतों को असल तो पति के साथ चिता में ही फेंक देते थे अन्यथा विधवा आश्रमों में तो आज भी भेजी जाती हैं| उदाहरण ऊपर दिया है| बाकी के हरिद्वार से ले हुगली तक गंगा के घाटों पे बने विधवा आश्रमों का तो पता नहीं, परन्तु यह जाटलैंड की छाती मथुरा में बना वृन्दावन का विधवा आश्रम मुझे बहुत अखरता है| कभी भगवान ने सामर्थ्य और संसाधन दिए तो इस आश्रम को उखाड़ इन औरतों को जरूर मुक्त करवाऊंगा|

धर्म नाम होता है मानसिक कमजोरियों से उभर के नए जीवन का सृजन करना, जन्मभर किसी का मानसिक गुलाम बना रहना नहीं| और हिंदुत्व यानी सनातन कैसे मानसिक गुलाम बनाते हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिन्दू धर्म का वो समाज है जिसके वंशों को इस धर्म को बनाने वालों के एक अवतार ने 21-21 बार काट फेंका था, परन्तु वो बेचारे नादान फिर भी इनकी ही स्तुति करते हैं; जाट से बेशक लड़ लें, परन्तु क्या मजाल जो अपने 21-21 वंशो के पुरखों के अपमान का बदला लेने हेतु कभी अपने गुस्से और तलवार का मुंह इनकी तरफ मोड़ देवें| इसलिए इस धर्म में अगर आप स्वर्ण भी कहलाये तो रहोगे इनके नीचे ही| और मुझे धर्म के नाम पे किसी के नीचे रहना हरगिज मंजूर नहीं| धर्म बराबरी और सत्कार सिखाता है, दर्जा और दया का पात्र बनना नहीं|

तो सीधी सी बात है और हर नवयुवा को समझनी चाहिए कि जहां समानता और सत्कार ना हो, वो धर्म नहीं हुआ करता, कोरी राजनीति होती है राजनीति| इसलिए हिन्दू यानी सनातन धर्म सिर्फ और सिर्फ इसको घड़ने वालों द्वारा आप पर राज करने की राजनीति के सिवाय भी कुछ नहीं|

या तो दलितों की तरह फिर से बौद्ध धम्म में चले चलो अन्यथा जाट हो तो अपना जाट धर्म खड़ा करना होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 5 February 2016

जाट, अपने इतिहास से जितनी दूरी बना के रखेंगे, उतने ज्यादा फुसलाये जाने की बिसात पर बैठे रहेंगे!

'जाट इतिहास लिखते नहीं हैं, बनाते हैं" और 'पुरानी बातों का क्या करना, इतिहास इतिहास होता है आज की सुध लो' इन दोनों पंक्तियों का जाटों को ही सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है| यह दोनों पंक्तियाँ मैं मेरे पिता की पीढ़ी के जमाने से सुनता आ रहा हूँ और इनका उद्देश्य और अर्थ अब आ के फलफूल रहा है| जब देखता हूँ कि जाट इतिहास का 'अ - ब - स' भी नहीं जानने वाले बालक, युवा यहां तक कि अधेड़ भी सहज ही अंधभक्ति में बहक रहे हैं और कह रहे हैं कि हजारों सालों से हमारा एक ही रंग का झंडा रहा है, यह तिरंगा तो अभी गांधी-नेहरू ने हमपे थोंपा|

खुद के पिछोके और इतिहास का ज्ञान ना होने का यही नुकसान होता है कि गधे जैसी अक्ल वाले भी आपको ज्ञान बाँट जाते हैं| मैं आपसे बस इतना ही कहूँगा कि जो आपको यह हजारों सालों से एक ही झंडा होने की गपेड हाँक के जाते हैं, उनसे पुछवाना जरा कि 1947 में भारत की 562 रियासतों को एक करके भारत बनाया गया था| इन रियासतों के हर एक के अपने झंडे और स्लोगन होते थे| 50 के करीब तो अकेली जाट रियासतें थी, भरतपुर, जींद, पटियाला, बल्ल्भगढ़, गोहद इत्यादि, क्या इन सबका झंडा एक था? राजपूत, मराठे, होल्कर इत्यादि क्या इन सबकी रियासतों के झंडे एक थे? हजार साल से ऊपर के काल में तो यह थे| उससे पहले भी चाहे जमाना अशोक का हो, या चन्द्रगुप्त का, हर्षवर्धन का हो या पोरस का, यहां तक कि महाभारत और रामायण जैसी काल्पनिक कहानियों में भी पूरे भारत में ना ही तो सिर्फ एक रियासत बताई गई है और ना ही एक झंडा|
अंधभक्तों की माया का कोई अंत नहीं| अरे मान लिया जाट इतिहास नहीं पढ़ा होगा, रामायण और महाभारत तो वह भी पढ़ा रहे हैं जो आपको अंधभक्त बनाते हैं? तो उससे भी कॉमन सेंस का प्रश्न नहीं उठता क्या, कि हजारों सालों से सारे भारत का एक झंडा कैसे?

समाजों को पथभ्रष्ट करने की बिसातें एक रात में नहीं हुआ करती, पहले इतिहास ना पढ़ने की आदत डाली, लोगों को इतिहास से रिक्त किया| और अब उनको यह घाघ लोग जो चिपका के जा रहे हैं, इतिहास की जानकारी ना होने के अँधेरे के चलते, उसी को सच मान रहे हैं| जाट का दूसरा नाम तर्क होता है, इतिहास की जानकारी ना भी हो तो तर्क तो इस्तेमाल कीजिये|

और आलम यह है कि 'पुरानी बातों का क्या करना' के हवाले दे के इतिहास पढ़ना या जानना छोड़ चुके लोग ही सबसे ज्यादा अंधभक्त बन रहे हैं और वो भी कौनसी बातों के हवाले पे, 'हजारों साल' के हवाले पे| अरे जब आपको सौ साल की पुरानी बात गंवारा नहीं, तो हजारों साल वाली की स्वीकृति किस आधार पे फिर?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 4 February 2016

कीट-क्रांति के पुरोधा स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल जी को क्यों मिलना चाहिए 'भारत रत्न' या 'पद्म विभूषण' सम्मान!


किसान को भय-भ्रम से मुक्त करवाते थे स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल। आप किसान को विश्व का पहला और मोस्ट इंटेलीजेंट साइंटिस्ट कहते थे। आपने "खाप-खेत-कीट पाठशाला" के जरिये किसानों में कीट ज्ञान की जो अलख जगाई, यह 'हरित-क्रांति', 'श्वेत-क्रांति' की भांति इतनी ही विशाल और क्रन्तिकारी 'कीट-क्रांति' है। इस वीडियो में आप देखेंगे कि कीट-कमांडो माननीय चौधरी मनबीर रेढू जी (Manbir Redhu​), कैसे उनके दिए ज्ञान से हरयाणा-पंजाब और तमाम भारत में जहां तक पहुंचा जा सकता है, वहाँ तक पहुँच-पहुँच कर 'कीट-क्रांति' को और प्रखर बनाने में जुटे हुए हैं। सलंगित वीडियो देखें कि कितनी बड़ी क्रन्तिकारी अलख जग के गए हैं डॉक्टर दलाल किसान जगत में।

इसलिए जैसे चिदंबरम सुब्रमण्यम को 'हरित-क्रांति' के लिए 'भारत-रत्न', वर्घेसे कुरियन को 'श्वेत-क्रांति' के लिए 'पद्म विभूषण' मिला, ऐसे ही स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल को 'कीट-क्रांति' के लिए ऐसे ही सम्मान मिलने चाहियें।

Video Source: https://www.youtube.com/watch?v=YEQiW2oXquM

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 3 February 2016

भारत में भ्रष्टाचार की मूल-जड़!

ईसाई, बुद्ध, मुस्लिम, जैन, सिख कोई धर्म ऐसा नहीं जिसमें उसके संस्थापक, रचयिता शख्स या जमात अपने-आपको हर अपराध-गलती-ग्लानि से ऊपर बताता हो, किसी भी गंभीर से गंभीर अपराध में खुद को दोषी पाया जाना स्वीकार ना करता हो; सिवाय हिन्दू धर्म की मनुस्मृति के| जो कहती है कि एक वर्ग-विशेष चोरी करे, जारी करे, क़त्ल करे, लूट करे चाहे जो अपराध करे वो दंड का प्रतिभागी नहीं होता| वो हर सजा से ऊपर होता है| वो आपसे लूट के खाए, छीन के खाए, धोखे से खाए, वो उसका हक़ है|

दूसरा जो बड़ा अंतर है वो है दान का| हिन्दू धर्म में दान के प्रयोग और बाकी के धर्मों में दान के प्रयोग में जो मूलभेद है वो यह है कि बाकी के धर्मों में उसके तमाम अनुयायियों में बिना किसी पक्षपात के यह पैसा सिर्फ और सिर्फ समरूप तरीके से ना सिर्फ उस धर्म की बौद्धिक अपितु विश्व स्तर की शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने पर खर्च किया जाता है| जबकि हिन्दू धर्म में उस पैसे का उपयोग सिर्फ और सिर्फ दान लेने वाले समुदाय के कल्याण हेतु किया जाता है, या फिर जातिपाती का जहर और दंगे बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है| उदाहरण के तौर पर हरयाणा का जाट बनाम नॉन-जाट का अखाडा या फिर दलित उत्पीड़न के बंदोबस्त|

और जब तक धर्म के नाम पर कब्ज़ा जमाये बैठी, इस दो बिन्दुओं पर केंद्रित यह थ्योरी हिन्दू धर्म और भारत देश से मॉडिफाई नहीं की जाएगी, भारत से भ्रष्टाचार युग-युगांतर तक भी खत्म नहीं होगा, चाहे कोई कितने ही अथक प्रयास कर ले|

इसका सीधा सा और मोटा उदाहरण न्यायव्यवस्था में बैठे जजों के मुकदमों को सुलझाने के रवैये से स्पष्ट समझा जा सकता है| हमारे देश के 90% से ज्यादा जज इसी वर्ग से आते हैं जो हर अपराध-गलती-ग्लानि-दोष-सजा से खुद को ऊपर मानते हैं| इससे होता यह है कि किसी मुकदमे में चाहे कितनी तारीखें लग जावें, चाहे कितने ही साल लग जावें, चाहे कोई पक्ष न्याय ना मिलने की वजह से या न्याय में देरी की वजह से आत्महत्या कर लेवे परन्तु इनको यह अपराधबोध कभी नहीं होता कि फलां व्यक्ति ने तुम्हारे द्वारा की गई देरी या विलंबता के चलते ऐसा किया| और यही वजह है कि आज देश में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे अटके अथवा लटके पड़े हैं|

भारत में जो न्याय व्यवस्था अंग्रेज छोड़ के गए थे जो कि गुलामों के लिए बनाई गई थी, वह मनुस्मृति के लिए यूँ की यूँ फिट बैठी और इन्होनें इसको मॉडिफाई करने में कतई रुचि नहीं ली| क्योंकि एक उपनिवेशिक यानी गुलाम के लिए न्याय की जो नीतियां उन गुलामों पे राज करने वाला बनाता और बरतता है, मनुस्मृति ठीक उसी की वकालत करती है| तो जाहिर सी बात है इसके सिद्धांतों के साये तले पल के देश के सिस्टम में चले जाने वाले लोग, देश को इसके ही अनुसार चलाएंगे और वही हो रहा है|

एक ऐसे देश में जहां एक दिहाड़ी मजदूर से ले फौजी तक की जवाबदेही होती है, एक मैनेजर से ले एक वॉचमैन तक की जवाबदेही होती है, वहाँ एक जज की कोई जवाबदेही नहीं| मुकदमा एक साल चले, दस चले, लटका खड़ा रहे, गवाह मरें, सबूत इधर-उधर हो जावें, कोई जवाबदेही नहीं; क्योंकि यह लोग इस मति से पाले गए होते हैं कि तुमसे तो कोई अपराध हो ही नहीं सकता| तुम तो अपराधी ठहराए ही नहीं जा सकते| जब तक इनके दिमागों से यह विचारधारा नहीं निकलेगी, देश में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद निरंतर चलता रहेगा|

यहां साथ ही मैं यह भी जोड़ दूँ कि भ्रष्टाचार के अनेक रूप हैं, हर देश, समुदाय समाज के हिसाब से भिन्न-भिन्न भी मिलते हैं| परन्तु भारत के भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी जड़ मनुस्मृति से निकलने वाली यह सोच है, जिसकी ऊपर व्याख्या की|

भारत देश से अगर इन बिमारियों को खत्म करना है और अगर हम वाकई में गुलामों वाली न्यायव्यवस्था में नहीं जीना चाहते हैं तो हमें अमेरिका-कनाडा-ऑस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-फ्रांस की तर्ज पर 'सोशल ज्यूरी' सिस्टम लागू करना होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 2 February 2016

मुझे हरयाणा में फैलाये गए जाट बनाम नॉन-जाट के जहर से जो इंसान निजात दिला दे मैं उसके चरण धो-धो पियूं!

मैं जातिवादी नहीं हूँ, ना ही मेरे घर की परवरिश ऐसी है| मेरे घर वालों ने कभी मुझे यह नहीं बताया कि यह ब्राह्मण है, नाई है, छिम्बी है, तेली है, धोबी है, राजपूत है, बनिया है, चमार है धानक है या डूम इत्यादि है| ना ही यह बताया कि यह हिन्दू है, यह मुसलमान है या यह सिख है|

मेरे घर वालों ने मुझे सिखाया तो बस इतना कि गाम-गुहांड की छत्तीस बिरादरी की बेटी-बुआ-बहन तेरी बेटी-बुआ-बहन है| तेरे खेतों में काम करने वाले चमार से ले के, दुकान पे सामान बेचने वाला बनिया और हवन-यज्ञ करने वाला ब्राह्मण, अगर गाम के नेग से तेरा दादा लगता है तो दादा बोल, ताऊ-चाचा लगता है तो ताऊ-चाचा बोल, भाई-भतीजा लगता है तो भाई-भतीजा बोल| उम्र में छोटा हो या बड़ा, तू नेग से बोलना नहीं छोड़ेगा| दादा, ताऊ-चाचा की पीढ़ी वाला उम्र में छोटा भी है तो नाम ले के नहीं अपितु नेग से ही बोलेगा|

एक लम्बे अरसे से विदेश में हूँ, परन्तु यह शिक्षाएं आज भी ज्यों-की-त्यों पल्ले बाँधी हुई हैं| गाम में जाता हूँ तो आज भी नेग के बिना किसी से नहीं बोलता| धानक के घर बैठ के चाय पीने से, चमार के घर बैठ के रोटी खाने से, कुम्हार के साथ आक में मिटटी के बर्तन लगवाने से, लौहार की भट्टी में आग झोंकने से, खाती-छिम्बी के यहां उठने बैठने से, डूम के साथ बैठ के आल्हे-छंद सुनने से आज भी परहेज नहीं करता| कभी किसी शरणार्थी दोस्त या उसके समुदाय को शरणार्थी या रेफ़ुजी नहीं बोला| कभी किसी दलित को जाति-सूचक शब्द नहीं बोले| और जो यह बात झूठ बोलूं तो मेरी लिस्ट में मौजूद मेरे गाम-गुहांड व् बचपन के साथी या बालक मेरे कान पकड़ लेवें| मेरे पिता ने, मेरे भाई-बहनों और मैंने, कभी किसी दलित का छुआ खाने से, उसका दिया पानी पीने से परहेज नहीं किया| तो फिर मैं क्यों झेलूँ यह जाट बनाम नॉन-जाट का जहर?

आखिर कौन लोग हैं यह जो मुझे इन ऊपर बताई मानवताओं से घसीट के जाट होने का अहसास करवा रहे हैं? हरयाणवी होने का अहसास करवा रहे हैं? मैं नहीं समझता कि मुझे जाट और हरयाणवी होने पे किसी को अहसास करवाने की जरूरत हो, यह तो मैं जन्मजात हूँ| तो क्यों यह लोग जाटों के इतने पीछे पड़े हैं कि मुझे जाटों के बारे सोचना पड़ता है? कौन लोग हैं यह जो मेरे अंदर, मेरे समाज के अंदर जाट बनाम नॉन-जाट के जहर के नाम पे गुस्सा और नाराजगी दोनों भर रहे हैं| आखिर क्यों?

मुझे निजात चाहिए ऐसे लोगों से और इनके इस जहरी माहौल से| कोई मुझे इससे निजात दिला दे तो मैं उसके चरण धो-धो पियूं|

विशेष: हरयाणा में दो तरह के गाम होते हैं, पहले एक ही गोत के बसाए हुए, इनमें छत्तीस बिरादरी की बेटी सबकी बेटी मानी जाती है और दूसरे बहुगोतीय यानी कई गोतों के बसाये हुए, इनमें गाम की गाम में ब्याह भी हो सकते हैं| इस नियम बारे ज्यादा विस्तार से इस लेख से पढ़ सकते हैं - http://www.nidanaheights.net/EH-gotra.html

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 31 January 2016

मिस्टर पीएम एक मीडिया क्या पहले से कम था, जो अब आप भी पड़ गए मेरे हरयाणा के पीछे?

कल पीएम की "मन की बात" सुनी| मैं जनाब की बातों को तभी सुनता हूँ जब दोस्तों के जरिये पता चलता है कि आज पीएम ने हरयाणा बारे जिक्र किया| पर कल जो जिक्र किया वह सरासर ऐसी कूटनीति और दबाव की राजनीति करने वाला था कि जिससे हरयाणवी मर्द और औरत के मनों में आपसी दरार पैदा हो जाए या और बढ़ जाए| अबकी बार पीएम को इस पर खुली चिट्ठी लिखने का मन कर रहा है कि आपका यह हर दूसरी 'मन की बात' में हरयाणा की मानहानि करना बहुत हुआ, कृपया रोकें ऐसे शब्दों को| कल जो आपने शब्द बोले हैं कि "जब मैं हरयाणा में गया था तो हमारे अधिकारीयों ने कहा था कि साहब वहाँ मत कीजिये वहाँ तो बड़ा ही नेगेटिव माहौल है|" कमाल है हरयाणा में खड़े हो के भी अधिकारी कौनसे "वहाँ" की बात कर रहे थे, वहाँ खड़े हो के तो 'यहाँ' की बात होगी ना, 'वहाँ' की थोड़े ही? या जिसने जो पकड़ा दिया उसके अर्थ समझे बिना ज्यों-का-त्यों बोल देते हैं?

खैर मैं बड़े ही सलीके से पीएम को चैलेंज देना चाहूंगा कि बाकी भारत और हरयाणा में औरतों की स्थिति की तुलना के साथ मेरे से डिबेट में आवें और साबित करें कि हरयाणा में औरतें बिलकुल आपके 'बड़ा ही नेगेटिव माहौल' के हिसाब के तरीके से पीड़ित हैं या मैं साबित करूँगा कि औरतों की समस्याएं हो सकती हैं, परन्तु इतनी भी नहीं जितनी बाकी के भारत में हैं या जितना आप हव्वा बना रहे हैं|

मैं इस हव्वे का दूरगामी अर्थ और उद्देश्य दोनों भलीभांति समझ सकता हूँ| अर्थ है हरयाणवियों को कभी भी हरयाणत पर गर्व मत होने दो और इनकी औरतों को इनके मर्दों से जुड़ी मत रहने दो, डायलाग में मत रहने दो; ताकि जब कोई फंडी-पाखंडी हरयाणवियों के घरों में पिछले दरवाजे से एंट्री लेना चाहे तो मर्द सवाल ना करें| क्योंकि करेंगे तो औरतें ही पीएम की बात का हवाला दे के कह देंगी कि पीएम ने वाकई सही कहा था|

मतलब आप रोना ही किन चीजों का रोते हो हरयाणा में औरत के नाम पर? मुख्य और बड़े तौर पर एक हॉनर किलिंग, दूजी भ्रूण हत्या, तीजी लिंगानुपात और चौथी दूसरे राज्यों से ब्याह के लाई जाने वाली बहुएं? पहले तो इन पर ही सुन लीजिये:

हॉनर किलिंग, भ्रूण हत्या को आज तक कोई मीडिया या रिसर्च रिपोर्ट यह साबित नहीं करती कि यह सबसे ज्यादा हरयाणा में ही हैं? तो जब ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं है तो आपको यह "हरयाणा-फोबिया" शोभा नहीं देता|

दूसरी बात, लिंगानुपात| आपको भान भी है कि हरयाणा ही इस देश में एकमात्र ऐसा प्रदेश है जिसने सबसे ज्यादा युद्ध और सबसे ज्यादा मानव माइग्रेशन झेली है? आज के दिन यहाँ ऐसी-ऐसी माइग्रेटेड कम्युनिटीज आई बैठी हैं जिनके यहाँ उन्नीसवीं सदी में 24 लड़कों पर मात्र 8 लड़कियां होने का ऑफिसियल रिकॉर्ड होता आया? आपको अंदाजा है कि आज जो गैर-हरयाणवी रोजगार के सिलसिले में अंधाधुंध इधर ही चला आ रहा है (खासकर जब से मुम्बईया हिन्दुओं द्वारा बिहारी-बंगाली-आसामी हिन्दुओं को भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पर को ही पीट-छेत के भगाया तब से) इनमें से 70% बिना परिवार के हरयाणा-एनसीआर में आते हैं? यह भाई अपना राशन कार्ड तो आने के 1-2 साल भीतर ही बनवा लेते हैं, जबकि परिवार को ले के आते हैं औसतन 10-12  साल बाद? समझ रहे हैं ना आप कि इससे गणना में लिंगानुपात पे कितना असर पड़ता है हमारे? अगर गैर-हरयाणवी भाईयों को अपने यहां रोजगार-आसरा देने का हरयाणवी को यह सिला मिलेगा और वो भी सीधा पीएम के मुंह से तो यह एक हरयाणवी के लिए बहुत ही चिंता का विषय है| स्थानीय हरयाणवी का लिंगानुपात कम हो सकता है परन्तु इतना भी कम नहीं कि आप यह कहवें कि "वहाँ तो सामाजिक संतुलन ही बिगड़ गया है|"

और एक बात, मैंने हरयाणा के ग्रामीण बनाम शहरी लिंगानुपात के आंकड़े अध्ययन किये हैं, और पाया है कि इसमें शहरी लिंगानुपात की हालत ज्यादा खस्ता है| इससे मेरे पक्ष को और मजबूती मिलती है कि मूल-हरयाणवी के यहां औसतन लिंगानुपात इतना भी खराब नहीं हो सकता जितना कि इन ऊपर बताई सब वजहों के एक साथ मिलने से हो जाता है|

तीसरा अगर आप हरयाणा का माहौल इस बात पे खराब बता रहे हैं कि यहाँ तो बहुएं खरीद के लाई जा रही हैं, तो सुनिए| हरयाणवी कभी नहीं चाहता कि वो बहु खरीद के लाये| यह तो जहाँ से लाई जा रही हैं वहाँ के राज्यों में सदियों से प्रथा ही ऐसी है कि लड़कियों को जवान होते ही बेच देते हैं| पहले वो कोठों-वेश्यावृति हेतु हैदराबाद-मुंबई-दुबई आदि स्थानों पर जाया करती थी अब उनमें से कुछ हरयाणा आती हैं| वहाँ यह पता नहीं कितनों के बिस्तरों की शोभा बनती थी और जवानी ढलते ही जिंदगी नरक; हरयाणा में आती हैं तो किसी के घर की इज्जत-रौनक बनती हैं| उद्देश्य भले ही कुछ भी हो, परन्तु हरयाणवी इसके जरिये भी कितनी भारत की बेटियों को वेश्यावृति से बचा के अपने घरों की रौनक बना रहे हैं, आपको अंदाजा भी है इसका?

क्या आपने कभी हरयाणवियों से बात करके देखी इस मुद्दे पे? मैंने देखी है| मैंने उनसे सवाल किये हैं कि आप खरीद के क्यों लाते हो, ब्याह के क्यों नहीं लाते? तो बताते हैं कि भाई हम तो ब्याह की ही पेशकश रखते हैं, परन्तु जिसने बेटी बड़ी ही इसलिए की हो कि अंत में जा के बेचनी है तो उनको तो पैसे से मतलब| इसलिए हरयाणवी खरीददारी नहीं चाहता, अपितु वो पैसा चाहते हैं जो बेटी को ब्याहने से ज्यादा बेचने के इच्छुक होते हैं|

अगर आपको जागरूकता संदेश देना है तो अगली 'मन की बात' में 'बंगाल-बिहार-असम' के लोगों को संदेश देवें कि वो हरयाणा, पंजाब या पश्चिमी भारत से उनकी बेटियों को ले जाने आने वालों को बेटियां बेचें नहीं, अपितु ब्याहवें; फिर देखिएगा आप खुद ही कि जो अगर एक भी हरयाणवी, पंजाबी या पश्चिमी भारतीय बहु खरीदने की पेशकश धरे तो|

अब जरा बाकी के भारत से हरयाणा में औरत की स्थिति बेहतर कैसे इसपे भी एक नजर डाल लीजिये:

1) बाकी के भारत की भांति हरयाणा में विधवा को उसके दिवंगत पति की जायदाद से बेदखल कर विधवा आश्रमों में नहीं सड़ाया जाता माननीय पीएम, महोदय| यहाँ सदियों से विधवा औरत अपनी मर्जी की मालकिन है, चाहे तो दूसरी शादी करे नहीं तो अपने दिवंगत पति की प्रॉपर्टी-जायदाद पर स्वाभिमान के साथ बसे| आपको चाहिए तो हरयाणा के किसी भी नगरी (हिंदी में गाँव) में निकल के फिर से देख आवें (फिर से शब्द इसलिए कि आपने हरयाणा के भाजपा प्रभारी होने के काल में हरयाणा की वैसे ही बहुत ख़ाक छानी हुई है, फिर भी अगर यह तथ्य आपकी नजरों से बचा रह गया हो तो इसलिए फिर से देख आवें), एक-एक नगरी में दर्जनों विधवा ऐसी मिलेंगी, जो अपनी मर्जी से दूसरा विवाह ना करते हुए, अपने दिवंगतों की जमीन-जायदाद पर बड़े ही स्वाभिमान से जीवनयापन कर रही हैं|
2) दक्षिण-पूर्वी भारत में दलित-पिछड़े समाज की औरतों को देवदासी बनाना व् कुछ राज्यों में तो आज भी उनको वक्ष-स्थल ढांपने की इजाजत ना होना (वो भी बाकायदा कानून बनने के बावजूद भी); मध्य व् दक्षिणी भारत में सतीप्रथा, हिमाचल-उत्तराखंड में द्रोपदी की भांति बहु-पति प्रथा (इसमें एक औरत के 2 से 6 तक पति होते हैं); उड़ीसा-झारखंड-छत्तीसगढ़ में प्रथमव्या व्रजस्ला होने पर लड़की का मंदिर में पुजारियों द्वारा सामूहिक भोग, पारिवारिक वेश्यावृति आदि-आदि; यह हरयाणा को छोड़ के बाकी के भारत की ऐसी भयावह तस्वीरें हैं कि जिनपे निष्पक्ष मन से अवलोकन करेंगे तो रूह काँप जाएगी आपकी|
3) आपको पता है पीएम साहब, जिस तलाक के बाद औरत के गुजारा-भत्ता बारे भारत का सविंधान अभी 2014 में कानून बनाया है, इस पर हरयाणवी समाज में 'नौ मण अनाज और दो जोड़ी जूती' कानून के तहत सदियों से तलाकशुदा औरत को पिछले पति से गुजारा-भत्ता मिलता आया है?
4) हरयाणवी औरतों ने युद्ध, कला, खेल, विज्ञान और शिक्षा में जो कीर्तिमान गाड़े हैं उसके लिए एक बार अपने अधिकारीयों की बजाये, पूरे विश्व से पूछ लेवेंगे तो भली-भांति पता चल जायेगा कि कितनी बेहतर और स्वछंद स्थिति है औरत की हरयाणा में बाकि के भारत की अपेक्षा|

मतलब क्या मीडिया, क्या पीएम और क्या खुद हरयाणा के सीएम, सबने अपने ख्याली एक्सपेरिमेंट की भूमि बना के रख छोड़ा है हरयाणा को| इनके लिए हरयाणा ना हो गया रोते हुए बालक को चुप कराने वाला 'भय का भूत' हो गया|

विशेष: हालाँकि मैं खुद भी इस लेख को पीएम तक पहुँचाने की कोशिश में हूँ, फिर भी इसको उन तक पहुंचाने वाले मित्र का आभारी होऊंगा|

Source: http://khabar.ndtv.com/video/show/news/pm-modi-addresses-nation-in-mann-ki-baat-401523

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

चौपालें हैं खाप-सभ्यता की वास्तुकला की साक्षी - कड़ी-4

आज के खाप-वंशज खुद विचारें कि उनके पुरखे ज्यादा कला-प्रेमी थे या वह:
अगर जवाब पाओ की पुरखे ज्यादा कला प्रेमी थे, तो गंभीरता से विचारने का विषय है कि हम कहाँ गुम हुए खड़े हैं ऐसे कि हमसे अपनी कलात्मकता भी ना संभाली जा रही? बल्कि उल्टे ऐसे ठप्पे लगवाए जा रहे हैं अपने माथे पे जो हमें कला के प्रति बिलकुल निर्जीव साबित करते हों|
पेश है "चौपालें हैं खाप-सभ्यता की वास्तुकला और 'सोशल-ज्यूरी' प्रणाली की साक्षी" सीरीज की कड़ी-4 - भित्ति चित्र व् नक्काशी विशेष!
किलों-मंदिरों-कंदराओं के भित्ति चित्रों-नक्काशियों में ऐसा अलग क्या होता है जो हमारी चौपालों में नहीं होता? फर्क सिर्फ इतना होता है कि वो उनको बढ़ा-चढ़ा के किसी खास की (कभी किसी व्यक्ति-विशेष के नाम पे तो कभी किसी राजा के नाम पे और नहीं तो कभी दलित प्रवेश निषेध के बोर्ड लगा के ही) बना के दिखाते हैं, जिसे खापों वाले सबकी दिखा के आम बना देते हैं।
किसी ने सिर्फ किले बनाये, तो किसी ने सिर्फ मंदिर!
किसी के यहां सिर्फ राजे हुए तो किसी के यहां सिर्फ पुजारी।
राजा-यौद्धेय-पंचायती, तीनों जिसके यहां हुए वो खाप सभ्यता हमारी।
राजा किले पे गर्व करे, करे खाप चौपाल पे और यौद्धेय करे गढ़ियों पे।
सोर्स: निडाना हाइट्स
जय यौद्धेय! - फूल मलिक





































 

Saturday, 30 January 2016

पंजाब में किसान का भविष्य!


 - चौधरी सर छोटूराम
परिवर्तिनी संसारें ... ( परिवर्तन संसार का अपरिहार्य गुण है ) परिवर्तन कुदरत का नियम है | आज दुनियाँ बदलाव की तेज धाराओं में से गुजर रही है | भारत भी इस ज्वार भाटे की लहरों से अछूता नहीं है | भारत के दूसरे प्रान्तों की भांति पंजाब भी परिवर्तन की लहरों से प्रभावित हुआ है | हर एक व्यक्ति अथवा प्रांत को अपने कल्याण और उत्थान , और प्रगति की चिंता है | पंजाब की दूसरी जातियाँ तो काफी सम्पन्न हो गई लगती है ; परंतु यह स्पष्ट नहीं है अर्थात ऐसा स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है कि साधारण और सामान्य रुचि वाला किसान समुदाय अपने कल्याण और उत्थान तथा हितों और अधिकारों के प्रति सचेत एवं सावधान हुआ है , या वह भी जमी हुई बर्फ की भांति शीतल एवं निश्चेष्ट ही बना हुआ है - कोई नहीं जानता | वर्तमान दौर बहुत नाजुक एवं मनोवैज्ञानिकता का है , और जो लोग इस समय गहरी नींद में सोए रहेंगे , चोर उनका सब कुछ उठाकर ले जाएंगे | जो चौकस हैं , सावधान हैं , पूरी तरह सचेत एवं जागे हुए है , साहसी हैं , वह कभी पिछड़ेंगे नहीं | कोई कितना पाता है , यह उसके उत्साह , उसकी जागरूकता एवं शुरुआत करने तथा आगे बढ़ने की क्षमता पर निर्भर करेगा |
अब तक किसान ने जी भर कर नींद का आनंद लिया है और उसके 'मित्रों' - यार लोगों ने जी भर कर उसके घर को लूटा है | हाल में यह पूरी तरह सोया हुआ तो नहीं है परंतु बिस्तर पर करवटें बादल रहा है | इस की आँखें अलसाई हुई है और यह उन्हें मल रहा है | वह आ...आ... करके जंभाई ले रहा है और उसका शरीर ऊँघने जैसी स्थिति में है | मैं कहता हूँ , किसान तू बिस्तर का मजा तो बहुत लूट चुका , अब पाँव जमीन पर रख-कार्यक्षेत्र में उतार जा | अब तक उसे यही नहीं पता कि कर्मक्षेत्र में उसे बुला कौन रहा है ? और कि क्या वह उसका सच्चा हितैषी एवं प्रशंसक है ? मैं , इस डर से कि कहीं मेरी आवाज़ मेरे भाई के कानों तक न पहुँच पा रही हो , ज़ोर -ज़ोर से चिल्ला रहा हूँ | जिन लोगों ने उसे अफीम जैसा कोई मादक दे रखा है , वे कहते है , ' कौन है यह जो गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा है ? यह क्या उसका हमदर्द है ? अभी सूरज निकला भी नहीं है ; सोने का समय है , कोकला नींद का | जब उठने का समय हो जाएगा तो हम खुद ही न उसे जगा देंगे |' लेकिन मेरे प्यारे किसान भाई , ध्यान से सुन | अब तक तू मेरी आवाज़ को व्यर्थ समझता रहा है ; अब पूरा ध्यान दे | मैं तेरा सच्चा सेवक हूँ , स्वामी नहीं | मैं तेरे प्रति अपने प्यार के कारण ही तुझ से कुछ नाराज हूँ | मैं तुझ से प्यार करता हूँ यही मेरे ऊंचा और तेज (कठोर) बोलने का एकमात्र कारण है | मैं अपने चेतावनी - भरे संदेश तेरे कान तक न पहुंचा पाने का जोखिम नहीं ले सकता | हिल-डुल , उठ जा , जल्दी कर | मैं बहुत देर से इंतजार कर रहा हूँ और काफी धर्य दिखा चुका हूँ | मैं तुझे बिस्तर से नीचे धकेल दूंगा | अब तक मैंने ऐसा इसलिए नहीं किया कि कहीं तू अपने शत्रुओं (बुरा चाहने वालों ) के बहकावे में आकर मुझे अपना विरोधी समझ लेने की भूल न कर बैठे |
ओ किसान ! ओ कुंभकरण !! ओ खरगोश की भांति सपनों के लोक में विचरण करने वाले !! तेरा घर लूट लिया गया है ; तेरे घर में पाड़ गया है ; तेरे चमन में आग लगी हुई है ; तेरी ग्रहस्थी पर वज्रपात हो गया है , और तू फिर भी गहरी नींद में मदहोश पड़ा है ! देख यह समय सोने का नहीं है ; यह उठा खड़े होने का समय है ; हरकत में आने का , क्रियाशील बन जाने का समय है , काम में लग जाने का समय है | अपनी ग्रहस्थी की संभाल कर ; अपने बगीचे और अपने खलिहान की रखवाली कर | चोरों के लिए वरदान , तेरा आलस और प्रमाद तुझे बर्बाद कर रहा है ; तेरी लापरवाही तेरी बगिया को जलाने का काम कर रही है ; और आश्चर्य इस बात का है कि तू फिर भी बेखबर बना हुआ है | यह भी आश्चर्य की बात है कि तू अपने चौकीदार की चेतावनी को अनसुनी कर रहा है |
ओ किसान ! क्या तू जानता है कि मैं इतना चिंतित क्यों हूँ ? मैं तेरे लिए सरकार के साथ लड़ रहा हूँ और निवेदन कर रहा हूँ कि मेरा भाई करों के बोझ तले दबा हुआ है | इसे कम किया जाना चाहिए | मैं तेरे ऊपर से ब्याज का बोझ कम करवाने के लिए साहूकार से भी भिड़ रहा हूँ ; और इसके लिए मैंने भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के साथ भी सींग उलझा लिए है | देखो , मैं व्यक्तिगत रूप से इस विचार का पोषक हूँ कि भारत की आज़ादी की कुंजी इस किसान वर्ग के हाथ है | इस देश की आज़ादी यहाँ के हिंदुओं और मुसलमानों की एकता पर निर्भर है , और इस एकता का सर्वोतम प्रदर्शन पंजाब का किसान कर सकता है | मैं पंजाब के किसान को सम्पन्न और एकजुट देखना चाहता हूँ | मैं , उसे अपने हितों और अधिकारो के प्रति जागृत , अपने पैरों पर खड़ा हुआ और संगठन के कार्य में संलग्न देखना चाहता हूँ |
ओ किसान ! पंजाब की ताजपोशी (राज करने का ) का फैसला विधाता ने तेरे हक में किया हुआ है , लेकिन कुछ शर्तों के साथ | यदि तू इन शर्तों को पूरा कर देता है तो ताजपोशी तेरी होगी और पंजाब का शासन तेरे इशारों पर चलेगा | तेरा भविष्य उज्ज्वल है ; तेरा उत्थान निश्चित है | भगवान के दूत तेरे लिए छत्र और मुकुट लिए खड़े है ; केवल तेरे हुक्म का इंतजार है | ज्यों ही हुक्म होगा छत्र की छाया तेरे सिर पर होगी और मुकुट तेरे मस्तक पर शोभायमन होगा | आदेश कब होगा , यह बहुत कुछ तेरी पहल , तेरी कुशलता और दूरदर्शिता पर निर्भर करेगा |
अब सुन कि परिस्थितियाँ कैसी है | हम दोहरी स्थिति में है | प्रथम तो तुम्हें अवश्य संगठित हो जाना चाहिए | दूसरे तुम्हें यह वायदा करना होगा और विश्वास दिलाना होगा कि सत्ता में आने के बाद तुम सबके साथ न्याय करोगे और दूसरों को उन के अधिकारों से वंचित नहीं करोगे , और कि तुम उन सबको गले लगाओगे जो भाग्य की प्रतिकूलता के कारण दुख भोग चुके है या भोग रहें है | तुम उन सबको अपने विरुद्ध शिकायत रखने का अवसर नहीं दोगे जिनका व्यवहार और बर्ताव तुम्हारे प्रति सहानुभूतिपूर्ण एवं सम्मानपूर्वक नहीं रहा है | इन दो शर्तों को पूरा करो और अपनी उन्नति का नजारा देखो ; अपने गौरवमय भविष्य की झलक देखो ! मुझे विश्वास है कि तुम इस दोहरी शर्त को पूरा करोगे और भगवान की अनुकंपा का पूरा लाभ उठाओगे |
अब यह बता दूँ कि संगठन वाली शर्त किस प्रकार से पूरी की जा सकती है , और इसके मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ आने वाली है | पहले बाधाओं की बात | ज्यों ही संभावित बाधाओं का ज्ञान हो जाएगा , संगठन कार्य सरल हो जाएगा | सदियों तक तू इहलोक और परलोक की चिंता करता है ; अलग-अलग किस्म के लोग अपने-अपने ढंग से तेरा घर लूटने में लगे रहे है | तुझे सपनों की दुनियाँ में अटकाए-भटकाए रखने के लिए धर्म का मार्ग तुझे सुझाया गया | इसी नुस्खे का प्रयोग तुझे गहरी नींद में सुलाए रखने के लिए पहले भी किया जा चुका है | अब चूंकि तुम में जागृति के लक्षण दिखाई पड़ने लगे है , तो वही लोग , जो तुम्हें गहरी नींद में सुलाए रखना चाहते है , कोई नशीली दवा पिलाने की कोशिश करेंगे ताकि तुझे फिर से सुला सकें | वे शरबत में धर्म रूपी मद का मिश्रण करेंगे और तू ज्यों ही इसे पिएगा , बेहोशी की स्थिति में चला जाएगा | वे धर्म को तेरे लिए नशीली दवा के रूप में इस्तेमाल करेंगे | इसकी गोलियां तुझे खिलाएँगे ताकि तुझे तंद्रा की अवस्था में रखा जा सके | कोई कहेगा : सिक्ख पंथ खतरे में है ; कोई कहेगा हिन्दू धर्म पर संकट है ; कोई इस्लाम पर खतरे के बादल मंडरा रहे होने की बात करेगा -दुहाई देगा | लेकिन याद रखना , सिक्ख पंथ , हिन्दू संप्रदाय , और इस्लाम मजहब को तेरे संगठित होने से कोई खतरा नहीं होने वाला | केवल उन स्वार्थी लोगों को जरूर नुकसान पहुंचेगा जो धर्म के नाम पर घृणा , ईर्ष्या-देष और कटुता का प्रचार और प्रसार करने में लगे है |
क्या कोई ऐसा व्यवसाय है जो धर्म को एक तरफ रखकर संगठित न हो सके ? हमारे अपने पंजाब प्रांत में इस प्रकार के कई उदाहरण है | इंजीनियर , डॉक्टर , हकीम , वैध , व्यापारी , वकील ये सब हैं , जो धर्म को आधार बनाए बिना भी संगठित हैं | लेकिन उस समय घोर आश्चर्य होता है जब विश्व के सबसे बड़े और प्राचीनतम व्यवसाय से जुड़े लोग धर्म की सीमाओं से बाहर निकल कर स्वयं को संगठित करने की शुरुआत करते है तो , पुजारी , मौलवी , ग्रथि , ज्योतिषी , मुल्ला , काजी , ज्ञानी , वकील , डॉक्टर , पत्रकार , दुकानदार और कौन नहीं बेहद बेचैनी का अनुभव करने लगते है | क्या तुम्हें यहाँ कोई मकसद या मुद्दा दिखाई नहीं देता ? हाँ , यहाँ मकसद है कि तेरे जाग जाने और संगठित हो जाने की सूरत में इन लोगों को अपनी रोजी और लीडरी खो जाने का डर है |और तू यदि इनका दास ही बना रहना चाहता है तो इन के निर्देशों , संदेशों और उपदेशों के अनुसार आचरण कर ; इन्हें चंदा दे देकर इनके लिए धन जुटाता रह | फिर ये तुम्हें संगठित होने देने के लिए तैयार हो | जरा देखो , कांग्रेस ने लाहौर में 'जिला किसान सभा ' नाम से संगठन बनाया है | कांग्रेस ने इस तरह के संगठन कई जगहों पर खड़े किए है | परंतु जब किसान अपने तौर पर संगठित होने की बात करते है तो गैर जमींदार सांसत में पड़ जाते है - इन पर आफत आ जाती है | क्यों ? इस लिए कि वे किसान समुदाय को नकेल पकड़ कर चलाना और उनके धन पर अपना कब्जा जमाए रखना चाहते है | सरकार भी इस तरह के संगठनों ( स्वतंत्र किसान संगठन ) को कुछ-कुछ संदेह की दृष्टि से देखती है | यह इस हकीकत को नहीं समझती कि अब किसानों के संगठित होने का समय आ गया है और कोई भी उन्हें संगठित होने से रोक नहीं सकता |
अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसा कोई संगठन स्वयं किसानों के आधीन हो , अथवा कांग्रेस या अतिवादी कट्टरपंथी ताकतों के दिशा निर्देशों के अनुसार बने , और उन के द्वारा पहले से बनाए गए किसी संगठन के अधीन और उनके नेतृत्व में चले ? यह सवाल अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है एवं विवादपस्द है , और मैं किसी विवाद के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता | मैं इसके मार्ग में आने वाली बाधाओं की चर्चा जरूर करूंगा |
किसानों के संगठित होने के मार्ग में साहूकार भी रुकावटें डालेंगे , क्योंकि इसमें उसको अपना नुकसान होता दिखाई देता है | भ्रष्ट अधिकारी , और खासतौर से पटवारी , किसानों के संगठन से डरे - सहमे हुए हैं ; और यदि अधिकारी या पटवारी गैर जमींदार है तो फिर यह चिंता और भी बढ़ जाती है | हर गैर-जमींदार अधिकारी चाहे वह ईमानदार है या बेईमान , किसानों के संगठन को प्लेग के रोग से भी अधिक खतरनाक मानता है | असल में उनका वर्ग -हित उनको ऐसा सोचने और करने के लिए मजबूर करता है | वे ऐसे संगठन को बदनाम कर के दबा देना चाहते है |
यदि संगठन के मार्ग में आने वाली संभावित बाधाओं का आकलन पहले से ही नहीं कर लिया जाता है तो इस प्रकार का संगठन सफल नहीं हो सकता | यही कारण है कि मैंने कुछ संभावित बाधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला है ताकि तुम बहदुरी से उनक मुक़ाबला कर सको | आगे होने वाले प्रांतीय एसैम्बली के चुनावों के दृष्टिगत यह संभव है कि इसके (किसान संगठन के ) प्रारूप एवं कार्यप्रणाली में कुछ परिवर्तन करने पड़ें ; लेकिन इस तरह के मामलों में कोई भविष्यवाणी कर सकना बहुत मुश्किल होता है | कहने का तात्पर्य यह है कि आपका संगठन केन्द्रीय जमींदारा लीग के रूप में उभरना चाहिए | प्रत्येक जिला एवं उपमंडल स्तर पर इस पार्टी की शाखाएं स्थापित/सगठित होनी चाहिए और वहाँ कम से कम एक दैनिक अङ्ग्रेज़ी समाचार पत्र और कई हिन्दी , उर्दू , पंजाबी के आने चाहिए | हरेक जिला का अपना साप्ताहिक पत्र होना चाहिए | प्रत्येक जिला व उपमंडल स्तर पर पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करने के लिए जमींदारा लीग के सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक संगठित दल होना चाहिए |
ए किसान , अगर तू इस दोहरी शर्त को पूरा कर देता है तो खुदा के फरिश्ते -भगवान के दूत तुझ को पंजाब के प्रशासन की बागडोर सौंपने के लिए तैयार खड़े है | हताश मत हो ; अपने हौसले को डूबने मत दे | मत सोच कि यह सब होना बहुत कठिन है | अपनी आज की हालत से यह अनुमान मत कर कि तू सदा से ऐसा ही रहा है , और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा | सच्चे बादशाह (भगवान) में भरोसा रख जो शाहों का शाह है | अपने बाजुओं की शक्ति पर भरोसा रख , अपने विचारों में दृढ़ता , ओज और ऊर्जा पैदा कर और प्रगति में विश्वास रख अर्थात उन्नति की चाहत वाला बन | स्वयं में उद्देश्य के प्रति दृढ़ता और आत्मविश्वास पैदा कर - यह विश्वास पैदा कर कि सरकार तुम्हारी है ; तुम सरकार के संरक्षक हो और सरकार चलाने के योग्य हो | यदि तुम में पर्याप्त विश्वास एवं श्रद्धा होगी तो ज्यों ही नए संवैधानिक सुधार लागू किए जाएंगे तुम स्वयं को पंजाब सरकार में शीर्ष पर पाओगे | यदि तुम इन शर्तों को पूरा नहीं कर पाए तो फिर समझ लो कि दासता , दरिद्रता , भुखमरी , अपमान और अवमान , अनादर और विनाश की परिस्थितियां अपने पुराने शिकार की इंतजार में बैठी है | जाओ और अपनी गर्दन इन्हें सौंप दो-उनके ग्रास बन जाओ | तुम्हें कुचल देने की इनकी योजनाओं के लिए सु-पात्र (सहज शिकार) बन जाओ |

श्यामाप्रसाद मुखर्जी और सावरकर, मुस्लिम लीग से मिलके सरकारें चलाते थे!

स्वघोषित राष्ट्रवादियों की झूठ, भ्रम और अफवाह की आंधी और मुस्लिमों से नफरत करने के पैग़ामों में बहने से पहले दो मिनट ठहर कर सोचने की जरूरत है।

यह तो अमूमन सबको पता ही होगा कि आज जिस नेहरू को आरएसएस के लोग गाली देते नहीं छकते, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, नेहरू की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री थे? आईये इससे थोड़ा और आगे जानते हैं|

आज़ादी से पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग से गठबंधन में अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार के मुखिया हुआ करते थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ उस वक्त बंगाल सूबे के मुख्यमंत्री थे और श्यामाप्रसाद उप-मुख्यमंत्री।

इसी तरह से सिंध और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी इसी गठबंधन की सरकारें थीं। सिंध में तो पहले अल्लाह बख्श की सरकार थी। इत्तेहाद पार्टी के नेतृत्व में गठित इस सेकुलर सरकार में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की मदद से मुस्लिम लीग के गुंडों ने 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी। फिर उसके बाद सिंध में मुस्लिम लीग और सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था।

तो इससे साफ़ स्पष्ट है कि हिन्दू-हिंदुत्व कोरी राजनीति के अलावा कुछ नहीं| बात जब व्यवहारिकता पर आती है तो ख्याली पुलावों की दुनिया छू-मंत्र हो जाती है| कल को इनको फिर से सावरकर के शब्दों वाली जरूरत आन पड़ी तो आज जिन मुस्लिमों को यह देश निकाले पे उतारू हैं, कल फिर से गलबहियां डालने में जरा नहीं हिचकेंगे|


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

विभिन्न डिबेटों में खापों पे गरज के टूट पड़ने वाली कविता कृष्णन को जब खुद के समाज के कुकृत्यों पे बोलना हुआ तो कैसे मुद्दे को जनरलाइज़ करती हुई दिखी!

इस नोट में लिखी बातों को समझने से पहले, नोट के अंत में दी वीडियो को देखें!

जब यह मैडम खाप-जाट और हरयाणा के मुद्दों पर बोलती हैं तो स्टूडियो में ऐसा कोहराम मचाती हैं कि क्या मजाल कि कोई और इनकी बात को काट जाए; और दूसरा इनको वो बुराई जिस पर बहस हो रही होती है, वो सिवाय और सिवाय जाट और खाप समाज के अलावा किसी अन्य समाज में नजर आ जाये? नजर आ जाए तो दूर, मैडम तो यह तक साबित करने पर आमादा हो जाती हैं कि जैसे इस सामाजिक बुराई की जड़ बस और बस जाट और खाप समाज ही हों|

लेकिन जब अपनी खुद की ब्राह्मण जाति की फैलाई बुराई पे बोलने की बात आई तो मैडम के सुर-ताल नम्र, बात को रखने का तरीका शालीनता भरा और मुद्दे को मुद्दे की जड़ पर केंद्रित रखने की बजाये कैसे जनरलाइज़ करती दिखीं, जरा नोट कीजिये (साथ ही एंकर महोदया के भी सुर-ताल नोट कीजियेगा):

1) जैसे किसी को जब कोई अटका हुआ काम निकलवाना हो, तो वो बहुत ही चिकलाती-चिकनी-चुपड़ी नरम-मरी हुई सी जुबान में बोलता है, ठीक यही टोन मैडम की रही पूरी डिबेट में| एक पल को भी गुस्सा और आँखें दिखाने और ऊँगली घुमाने की तो नौबत ही नहीं आई| किसी को यह फर्क समझना है तो एक तो इस वीडियो को देख लेवें और एक इनकी किसी खाप की डिबेट वाली वीडियो को देख लेवें|
2) मुद्दे की जड़ थी ब्राह्मणों द्वारा शनि मंदिर में औरतों के तेल चढाने पर प्रतिबंध बारे| गौ (गाय) की जाई के मुंह से जो अगर एक बार भी ब्राह्मण शब्द निकला हो तो| और जब डिबेट हो खाप और जाट की, विरली ही कोई ऐसी लाइन फूटती है इनके मुंह से जिसमें यह दोनों शब्द ना हों|
3) सबसे अहम कैसे ब्राह्मणों के मुद्दे को जनरलाइज़ करके सर्वधर्म में जा घुसाया| समस्या हिन्दू धर्म के शनि मंदिर में ब्राह्मण की वजह से और इसमें घुसा लाई मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी|

कोई दो पल रुक के भी इन लोगों को देख ले तो पहले ही झटके समझ आता है कि यह लोग कितने जहर के भरे हुए होते हैं, जाटों और खापों के प्रति| वो भी बावजूद इसके कि इनके खुद के समाज सामाजिक बुराईयों की दलदल में जाट और खाप समाज से तो कोसों गहरे तक गड़े बैठे हैं|

विशेलषण: मैं मैडम की बुराई नहीं कर रहा, इन फैक्ट मैं भी इनकी जगह होता और मुद्दा जाट और खाप का होता तो बिलकुल इन्हीं की तरह मुद्दे को जनरलाइज़ करके सबसे पहले तो जाट और खाप से फोकस हटा के मुद्दे को सर्वसमाज पे ले जाता| उदाहरण के तौर पर हॉनर किलिंग पे बात होती तो बताता कि क्या जाट, क्या ब्राह्मण, क्या राजपूत, क्या ओबीसी, क्या दलित, यह तो सबकी समस्या है, अकेली खाप की थोड़े ही| और मेरे ख्याल से हर जाट और खाप बुद्धिजीवी को भी यह तकनीकें सीखनी चाहियें; क्योंकि टीवी डिबेटों में आप जिस खूबसूरती से अपने पक्ष को जनरलाइज़ करके डिफेंड करोगे, धरातल पर बैठे आपको सुन रहे आपके समाज का मोराल उतना ही मजबूत और सुरक्षित रहेगा|

बाकी समाज की बुराइयों के नाम पर बरती जाने वाली आक्रामकता कैसे बदल जाती है यह मैडम कविता कृष्णन जी से भली-भांति सीखा जा सकता है कि जब मुद्दा खुद की जाति-समाज का हो तो कितनी विनम्रता से बोलना है और जब मुद्दा जाट-खाप जैसों का हो तो कैसे आगे धर के लेना है|

विशेष: इस नोट को संबंधित मैडम तक पहुँचाने वाले का धन्यवाद!

डिबेट की वीडियो: http://khabar.ndtv.com/video/show/prime-time/prime-time-devendra-fadnavis-meets-women-activists-on-shani-temple-401037

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 28 January 2016

कुंडलियों व् जन्म-पत्रियों में जाट को कहीं "शूद्र" तो कहीं "वैश्य" लिखा जा रहा है!

आज मेरे एक नजदीकी मित्र के दो बच्चों की कुण्डलियाँ देखकर स्तब्ध रह गया| एक ही माता-पिता के बच्चे, सगे भाई-बहन, और उनकी कुंडलियों में एक का वर्ण 'शूद्र' लिखा हुआ है तो दूसरे का 'वैश्य'। उन दोनों बच्चों की कुंडलियों की प्रतियां आपसे साझा कर रहा हूँ| इनमें "लाल-सर्किल" में मार्क किये हिस्से में बच्चे का वर्ण देखेंगे तो एक का वर्ण 'शूद्र' तो दूसरे का वर्ण 'वैश्य' लिखा हुआ है| रिश्तेदार की गोपीनियता हेतु मैंने इन कुंडलियों में बच्चों के पिता का नाम, दादा का नाम व् गोत्र को रंग फेर कर छुपा दिया है|

मशहूर इतिहासकार IRS भीम सिंह दहिया जी के अनुसार, "जाटों ने कभी भी हिन्दू धर्म को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी और ना ही इसकी वर्ण-व्यवस्था को स्वीकारा|" और जाटों के पूर्वजों ने ऐसा क्यों किया होगा, वो इन विचलित कर देने वाली कुंडलियों द्वारा दी गई स्वघोषित व् मनमानी पहचान से सहज ही समझा जा सकता है|

तो क्या हमारे पूर्वज ज्यादा समझदार थे और हम आज उनकी पीढ़ी ज्यादा मूढ़मति हो गई हैं? या ढोंग-पाखंड-आडंबर के दिखावे ने हमपे ऐसी चादर ढांप फेंकी है कि हमें दीखते-दिखाते भी यह चीजें नहीं दिख रही कि समाज का एक समूह अपने मनमाने तरीके से कैसे हमारी कौम की एथनिक आइडेंटिटी के साथ इतना बड़ा घोटाला किये जा रहा है?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक