Sunday 31 January 2016

चौपालें हैं खाप-सभ्यता की वास्तुकला की साक्षी - कड़ी-4

आज के खाप-वंशज खुद विचारें कि उनके पुरखे ज्यादा कला-प्रेमी थे या वह:
अगर जवाब पाओ की पुरखे ज्यादा कला प्रेमी थे, तो गंभीरता से विचारने का विषय है कि हम कहाँ गुम हुए खड़े हैं ऐसे कि हमसे अपनी कलात्मकता भी ना संभाली जा रही? बल्कि उल्टे ऐसे ठप्पे लगवाए जा रहे हैं अपने माथे पे जो हमें कला के प्रति बिलकुल निर्जीव साबित करते हों|
पेश है "चौपालें हैं खाप-सभ्यता की वास्तुकला और 'सोशल-ज्यूरी' प्रणाली की साक्षी" सीरीज की कड़ी-4 - भित्ति चित्र व् नक्काशी विशेष!
किलों-मंदिरों-कंदराओं के भित्ति चित्रों-नक्काशियों में ऐसा अलग क्या होता है जो हमारी चौपालों में नहीं होता? फर्क सिर्फ इतना होता है कि वो उनको बढ़ा-चढ़ा के किसी खास की (कभी किसी व्यक्ति-विशेष के नाम पे तो कभी किसी राजा के नाम पे और नहीं तो कभी दलित प्रवेश निषेध के बोर्ड लगा के ही) बना के दिखाते हैं, जिसे खापों वाले सबकी दिखा के आम बना देते हैं।
किसी ने सिर्फ किले बनाये, तो किसी ने सिर्फ मंदिर!
किसी के यहां सिर्फ राजे हुए तो किसी के यहां सिर्फ पुजारी।
राजा-यौद्धेय-पंचायती, तीनों जिसके यहां हुए वो खाप सभ्यता हमारी।
राजा किले पे गर्व करे, करे खाप चौपाल पे और यौद्धेय करे गढ़ियों पे।
सोर्स: निडाना हाइट्स
जय यौद्धेय! - फूल मलिक





































 

No comments: