Friday, 22 July 2016

अपराध में मास्टरमाइंड को फ्री छोड़ता हमारा सुप्रीम-कोर्ट!

राहुल गांधी को डांटते हुए सुप्रीम कोर्ट कहता है कि "गोडसे के अपराध के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं!"

यह तो वही बात हो गई कि 26/11 मुंबई अटैक के लिए सिर्फ कसाब को दोषी ठहराया जाए, इसके मास्टरमाइंड संगठन/गिरोह, हाफिज सईद या पाकिस्तान को नहीं?

क्या हो गया है हमारे कोर्टों तक को? यानि यह साफ़ इशारा है कि मास्टरमाइंड सामने मत आओ, बस गुर्गों से अपराध करवाओ और गुर्गे को ही दोषी ठहराओ और मास्टरमाइंड आजीवन मलाई मारते रहो?

यानि किसी भी प्रकार के साम्प्रदायिक-सामाजिक अपराध-दंगे के मास्टरमाइंड गुंडों को खुला रास्ता होने का सीधा इशारा सुप्रीम कोर्ट से मिल रहा है कि तुम लोग देश में कितने ही दंगे-फसाद करवाओ, तुम्हारे ऊपर कोई आंच नहीं आएगी; बस तुम्हारे गुर्गों को दोषी ठहरा के तुम्हें साफ निकाल दिया जाया करेगा|

यह बहुत ही घातक परिपाटी ईजाद की है सुप्रीम कोर्ट ने जो कि देश को अवसाद की अवस्था में ले जा के खड़ी कर देगी|

बाकी नत्थूराम गोडसे का आरएसएस से क्या कनेक्शन था इसपे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद काफी मटेरियल प्रिंट व् सोशल मीडिया पर आ ही चुका है; जिसके अनुसार ना ही तो गोडसे ने कभी आरएसएस से इस्तीफा दिया और ना ही आरएसएस ने गोडसे को गांधी को मारने के कारण संघ से बाहर किया|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 21 July 2016

जाट की पौराणिक उत्पत्ति में देखें कितना बड़ा विरोधाभाष है!

वर्ण-व्यवस्था आधारित जन्म की ब्राह्मण थ्योरी कहती है कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य उदर यानि पेट से और शुद्र पैरों से पैदा हुए?

अब वैसे तो आजतक यह लोग जाट का वर्ण ही नहीं बता पाए, फिर भी ब्राह्मण तो कहता है कि जाट शुद्र हैं, परन्तु कई खामखा के घमण्ड में और खुद को इस वर्ण-व्यवस्था के ऊपरली भाग में जोड़ने के लोभ वाले जाट कहते हैं कि वो क्षत्रिय हैं। जबकि एक थ्योरी यह भी कहती है कि जाट इस वर्ण-व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं या कहो कि जाट अलग से पांचवा वर्ण माना जाता है। और एक थ्योरी यह भी कहती है कि क्योंकि खेती करने वाले समुदाय को वैश्य माना गया तो जाट वैश्य है। खैर जो भी है क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शुद्र हो; इसके आगे की घचल-मचल वाली सुनो।

शिवजी की जटाओं से जाट की उत्पत्ति वाली थ्योरी कहती है कि जाट शिवजी की जटाओं से उत्पन हुआ है? जबकि सब जानते हैं कि जटाओं से जूं के अलावा एक चींटी भी उत्पन नहीं हो सकती।

हाँ एक तथ्य जरूर निकल के और आया है कि शिवजी भगवान् जाटों के सीथियन ओरिजिन वाली थ्योरी के इनके अपने पूर्वज राजा दादा ओडिन - दी वांडर्र हैं|

खैर, बाकी बातों की बात तो फेर की बात, फिलहाल मुझे कोई यह समझा दे कि जाट ब्रह्मा की भुजाओं से पैदा हुआ तो फिर शिवजी की जटाओं से कैसे हुआ? और अगर शिवजी की जटाओं से हुआ तो क्षत्रिय कैसे हुआ, क्योंकि क्षत्रिय तो सिर्फ वो हैं जो ब्रह्मा की भुजाओं से पैदा हुए?

मेरा अवलोकन तो यही कहता है कि जाट ना ब्रह्मा से पैदा हुआ और ना शिवजी से, परन्तु हाँ शिवजी जो हैं वो जाट के सीथियन ओरिजिन वाली थ्योरी के दादा ओडिन जरूर हैं। और इन्हीं के चरित्र को कॉपी करके भारत में इनका रूप बदल के शिवजी की माइथोलॉजी घड़ दी गई है।

विशेष: इस थ्योरी में किसी की आलोचना या बुराई जैसा कुछ नहीं, कोरे तार्किक सवाल हैं; भावनाओं में बहकर बहस करने वाले कृपया इस पोस्ट से दूर रहें।

जय यौद्धेय! - जय दादा ओडिन उर्फ़ शिवजी महाराज! - फूल मलिक

यह है मनुवाद यानी मंडी-फंडी की कमाई का शिकंजा!

वो कैसे वो ऐसे: मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कहा है कि उनके यहां के जिला सिहोर में किसान आर्थिक तंगी से नहीं अपितु भूत-प्रेत बाधाओं के चलते कर रहे हैं आत्महत्या|

वाह क्या लॉजिक है सीएम साहब, भूत के चलते किसी का हार्ट-अटैक होते सुना था, या किसी को भूत ने मार डाला यह सुना था; अब भूतों की वजह से किसान आत्महत्या भी करने लगे? वैसे यह भूत सूदखोर कब से बन गए, क्योंकि किसान आत्महत्या तो अधिकतर सूदखोरों से तंग हो के ही करते है?

क्या किसान-पिछड़ा-दलित समझे कि एक मुख्यमंत्री के स्तर के आदमी के मुख से, एक ऐसे आदमी के मुख से जिसके जिम्मे समाज से ढोंग-पाखंड-आडम्बर हटवाने की जिम्मेदारी है वो ही समाज को ढोंग-आडम्बर में क्यों धकेल रहा है?

अजी नेक्सस है पूरा, मुख्यमंत्री यह बात कहेगा तो भोले लोगों को बहम होयेगा कि कहीं वाकई में तो भूत-प्रेत का चक्कर नहीं? ऐसे में वो किसके पास जायेगा? किसी काले-भगमे बाणे वाले तबीज-गण्डे वाले पाखंडी-ढोंगी के पास| फिर वो पाखंडी-ढोंगी उस केस को किसको रेफेर करेगा? अपने नाम की उसकी जेब काट के उससे ऊपर वाले के पास? वहाँ भी बात नहीं बनेगी तो उसको तीर्थयात्रा, फलानि यात्रा, सवामणी, जगराता, भंडारा आदि-आदि करने को बोलेगा|

उससे क्या होगा? उससे मंडी में बैठे इन फण्डियों के भाईयों की दुकानों का सामान बिकेगा| वहाँ से इनको कमीशन आएगा और इस तरह किसान एक ऐसे कुचक्र में फंसा दिया जायेगा कि मंडी-फंडी मुफ्त की रोटी तोड़ेंगे और किसान के पास सिर्फ इतना छोड़ेंगे कि उसके सिर्फ प्राण चलते रहें और इनके हांडे से पेट दिन-भर-दिन बढ़ते ही बढ़ते रहें|

पता नहीं देश किस गर्त के रसातल में जा रहा है| इन तथाकथित राष्ट्रवादी नेताओं से देश का जितना जल्दी पिंड छूटे, देश को उतनी ही राहत मिले; क्योंकि जहां राष्ट्रवाद आ गया समझो वहाँ अधिनायकवाद आ गया और अधिनायकवाद नाम है सर झुकाये बिना सवाल-जवाब किये अनुसरण करते रहना| भेड़चाल चलते रहना|

पगड़ी संभाल किसान्ना, दुश्मन पहचान किसान्ना!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

भाई गुजरात में दलितों को पीटने वाले गौभक्तो, इनको पीट के दिखाओ तो जानूँ!

भारत के लगभग हर शहर की हर पॉश कॉलोनी, सेक्टर्स व् पार्कों में इनके रोड्स पर या इनके एंट्री पॉइंट्स पर "कैटल कैचर (Cattle Catcher) लगे होते हैं ताकि अगर कोई गाय या सांड (इनके साइज का दूसरा कोई जानवर तो आवारा है नहीं, इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि इन तथाकथित भक्तों की जिस जानवर पर दृष्टि पड़ जाए समझो उस जानवर की उतनी ही दुर्गति) इन कालोनियों-सेक्टरों में घुसने की कोशिश करें तो बहुत ही दर्दनाक तरीके से उसके खुर उसमे फंस जाएँ, या पीड़ादायक तरीके से पूरा शरीर ही फंस जाए और फिर उनको पकड़ के (बहुतों बार तो पीट-छेत के) वहाँ से भगाये जा सकें|

तो प्यारे गौभगतो सिर्फ गरीब-मजलूमों पर ही अत्याचार करना जानते हो या इन पॉश कालोनी-सेक्टर वालों की क्लास लेने का भी जिगर रखते हो? न्यायकारी बनते हो ना, तो है औकात रोज-रोज इन 'कैटल कैचर्स' में फंसने वाली गाय-सांड को भी न्याय दिलवाने की?

नहीं होगी, क्यों क्योंकि यह अधिकतर गौ-प्रेमी इन्हीं पॉश कालोनी-सेक्टर में तो रहते हैं|

अब है ना ताज्जुब की बात कि इन गौभक्तों की पॉश कालोनी-सेक्टर में कोई गाय-सांड ना घुस जाए, उसके लिए तो "Cattle Catcher" लगाएंगे, परन्तु दूसरी तरफ कोई दलित मृत गाय-सांड की चमड़ी उतार के उसका अंतिम-संस्कार करके, उसको भवसागर पार लगाए तो उसको डंडों से पीटेंगे, या कोई किसान आवारा पशुओं से जिनमें कि मुख्यत: यह भगतों की विशेष अनुकम्पा प्राप्त गाय-सांड ही होते हैं, इनसे अपनी फसल की रक्षा हेतु बाड़ लगा ले या खेत में घुसे को बाहर निकाल दे तो भी सबसे बड़ा उलाहना इन "कैटल कैचर" लगाने वालों को ही होता है? किसान को पीट-छेत इसलिए नहीं सकते, क्योंकि क्या पता किसी लठ वाले जाट के हत्थे चढ़ गए तो कहीं इन्हीं की भ्यां ना बुलवा दे, परन्तु दबी आवाज में उलाहना जरूर देते रहते हैं सोशल मीडिया पर|

तो ऐसे में इनका क्या इलाज हो? इनका सीधा सा देशी इलाज है कि "लातों के भूत, बातों से नहीं मानते!" इनको जब तक किसान-दलित लठ मारने शुरू नहीं करेगा, इनकी बाह्त्तर गज लम्बी हो चुकी जुबानों पे लगाम नहीं लगेगी| और यह काम किसान-दलित जितना शीघ्रतम शुरू कर ले उतना समाज का भला| शुरुवात गुजरात से हो चुकी है, जितनी जल्दी पूरे देश में फैले उतना देश का भला|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 18 July 2016

कृपया "यौद्धेय" शब्द और "यूनियनिस्ट" शब्द को सिर्फ जाट तक ना जोड़ें!

क्योंकि "यौद्धेय" शब्द की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में सर्वखाप के हर धर्म और जाति के सूरमा-हुतात्मा-पुरोधा आते हैं| इनमें क्या जाट क्या दलित, क्या गुज्जर क्या ओबीसी, क्या मुस्लिम क्या सिख हर वो पुरोधा "यौद्धेय" जाना गया जो सर्वखाप के बैनर तले युद्ध लड़ा|

और क्योंकि सर छोटूराम जी की "यूनियनिस्ट पार्टी" का भी धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत था, इसीलिए आज के "यूनियनिस्ट मिशन" की बुनियाद को "यौद्धेय" और "यूनियनिस्ट" शब्द ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों स्तर पर बड़े गहरे जा के जोड़ते हैं| इन शब्दों का आईडिया बड़ी गहरी और महान गौरवशाली प्रेरणा और उद्देश्य वाला है| एक उस परम्परा को आगे बढ़ाने वाला है जो भारत तो क्या शायद विश्व इतिहास में भी इतनी मानवता, परोपकारिता लिए हुए हो| हम हर धर्म और जातियों में हर उस जाति को जोड़ के चल रहे हैं जो मानव को रंग-नश्ल-भेद-ऊंच-नीच में नहीं बांटती है; नेकी का खाती है किसी के आर्थिक हित नहीं मारती|

सर्वखाप के बैनर व् छत्रछाया तले हुए विभिन्न जाति-समुदाय-धर्म-पंथ के सूरमाओं में से कुछेक की सूची:
1) समरवीर प्रथम हिन्दू धर्म-रक्षक अमर ज्योति गॉड गोकुला जी महाराज
2) सर्वखाप योद्धेय दादावीर शाहमल तोमर जी महाराज
3) दुःसाहसी खाप-यौद्धेय दादा भूरा सिंह जी व् दादा निंघाहिया सिंह जी
4) सर्वखाप योद्धेया विलक्षण वीरांगना दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी
5) उच्च स्वाभिमानी संस्कृति-रक्षिका निडर खापबाला दादीराणी समाकौर गठवाला जी
6) सर्वखाप योद्धेया दादीराणी रामप्यारी जी
7) हिन्दू धर्मरक्षिका अमर बलिदानी बृजबाला दादीराणी भंवरकौर जी
8) सर्वखाप सेनापति महाबली दादावीर जोगराज पंवार जी महाराज
9) दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी महाराज
10) दादावीर धूला भंगी जी महाराज
11) दुर्दांत-दुःसाहसी योद्धेय दादावीर जाटवान गठवाला जी महाराज
12) खाप-दार्शनिक चौधरी दादा कबूल सिंह जी
13) 1857 की लड़ाई में सर्वखाप के उप-सेनापति साईं फकरूद्दीन जी अजीज
14) राय बहादुर चौधरी दादा घासीराम जी मलिक
15) दूरदर्शी अमर-हुतात्मा बाबा महेंद्र सिंह टिकैत
16) दादीराणी वीरांगना हरशरणकौर जी
17) बीबी साहिब कौर जाटनी
18) दादीराणी बिशनदेवी बाल्मीकि
19) दादीराणी सोमा देवी जाटनी
20) दादीराणी सोना देवी बाल्मीकि
21) दादीराणी सोना देवी जाटनी
22) दादीराणी हरदेई जाट
23) दादीराणी देवीकौर राजपूत
24) दादीराणी चन्द्रो ब्राह्मण
25) दादीराणी रामदेई त्यागी
26) दादावीर मोहरसिंह वाल्मीकि जी
27) दादावीर मातैन वाल्मीकि जी
28) औरंगजेब के सामने इस्लाम की बजाये मौत चुनने वाले सर्वखाप के 21 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल में एक ब्रह्मण, एक वैश्य, एक सैनी, एक त्यागी, एक गुर्जर, एक खान, एक रोड, तीन राजपूत, और ग्यारह जाट थे|
आदि-आदि!

विशेष: अब अंधभक्त टाइप लोग इसमें कई जगह आये "हिन्दू धर्म रक्षक-रक्षिका" शब्दों में अपने लिए सम्भावना मत ढूँढ़ने लग जाना, क्योंकि 'हिन्द की चादर' कहला के भी विभिन्न सिख सूरमा हिन्दू नहीं हो जाते, वो सिख ही कहलाए हैं| इसी तर्ज पर यौद्धेय जब लड़ता है तो वह किसी एक धर्म विशेष के लिए नहीं अपितु देश और मानवता के लिए लड़ता आया है, इसलिए कोई धर्म विशेष उसको अपने से जोड़ना भी चाहे तो भी वह "यौद्धेय" पहले है, किसी भी धर्म का धर्मी बाद में| "हिन्द की चादर" की भांति खापें "हिन्द का खरड़" रही हैं, दुर्भाग्य यह रहा कि इनको इस तरीके से लिख के प्रमोट करने वाले नहीं थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 8 July 2016

यूनियनिस्ट मिशन, धर्म और राजनीति!

जब से दो जाट आंदोलन हो के हटे हैं, आरएसएस और बीजेपी में बड़ी बेचैनी है कि जाटों को अपने झांसे में कैसे रखा जाए| इसके लिए दो तरह के ट्रोल्स सोशल मीडिया पर चल रहे हैं|

एक तो ब्रेनवाश किये जाट युवा को यह नहीं दिखने दे रहे कि एक हिंदूवादी सरकार ने ही बावजूद "हिन्दू एकता और बराबरी" की संदेशवाहक होने के, बिना देश में विदेशियों का राज हुए भी तुम्हारे जाट समाज के साथ फरवरी माह में हरयाणा में खुला 'जलियांवाला बाग़' खेला है और पुलिस-फ़ौज-तथाकथित ब्रिगेड और स्वंय आरएसएस के गुर्गे लगा के पूरा एड़ी-चोटी तक का जोर लगा के तुम्हें दबाने और कुचलने की जी-तोड़ कोशिश की गई है|

और दूसरा इन्हीं जाट युवाओं को पठा के सोशल मीडिया पर छोड़ा गया है, वो भी वही रटी-रटाई नफरत करने की राजनीति के राष्ट्रवाद भरे कैप्सूल्स और डोज पिला-पिला के कि देखो यह यूनियनिस्ट मिशन वाले मंडी-फंडी के बहाने हिन्दू धर्म पर अटैक कर रहे हैं और मुस्लिमों को कुछ कह ही नहीं रहे?

तो पहली तो बात यह बता दूँ कि उस सावरकर के शागिर्दों से जिसने 6-6 बार तो अंग्रेजों से दया-याचिकाएं लिखित रूप में मांगी और इन्हीं की तर्ज वाली देश को तोड़ने की मंशा रखने वाली मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सावरकर की हिन्दू महासभा ने आज़ादी से पहले के सिंध प्रान्त में सरकार भोगी; उनसे एक यूनियनिस्ट को यह सीखने की जरूरत नहीं कि क्या तो राष्ट्रवाद और कौनसे मुस्लिम से बच के रहें और कौनसे से नहीं|

कहना क्या चाहते हो कि हम उसी महबूबा मुफ़्ती किस्म के मुस्लिमों से बच के रहें, जिनके साथ तुम जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाते हो? तुम बोलते हो कि यूनियनिस्ट मुस्लिमों का विरोध नहीं करते, कर तो रहे हैं तुम्हारे द्वारा जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती के साथ मिलके सरकार बनाने का? है हिम्मत तो दो जवाब कि यह "बगल में छुर्री और मुंह में राम-राम" वाली बेपैंदी के लोटे वाली दिग्भर्मित राजनीति क्यों?

या फिर तुम्हारे संघ के पहले संस्थापक गोलवलकर से सीखें, जिससे कि आज़ादी की लड़ाई लड़ने की कहा जाता था तो कहते थे कि हमें अंग्रेजों से झगड़ा नहीं करना?

या फिर उस श्यामाप्रसाद मुखर्जी से राष्ट्रवाद सीखें जिसने आज़ादी से पहले के बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर ही उप-मुख्य्मंत्री की राजगद्दी भोगी? और भारत छोडो आंदोलन का विरोध किया? नेता जी सुभाष चन्द्र बॉस की आज़ाद हिन्द सेना से मुकाबले हेतु अंग्रेजों के लिए बंगाल में फ़ौज की खुली भर्तियां करवाई?

अरे हम अगर मुस्लिम-सिख-हिन्दू (मंडी-फंडी की किसान-मजदूर के प्रति बुरी नीतियों के पुरजोर विरोधी हैं हम, इसके अलावा जिन किसान-दलित-पिछड़े की हम आवाज उठाते हैं, भूलो मत कि वो भी हिन्दू ही कहलाते हैं) इत्यादि धर्मों से भाईचारा रखते हैं तो साफ़ दिल से रखते हैं; तुम्हारी तरह नहीं कि वैसे तो सोते-उठते-खाते-पीते मुस्लिमों को पानी पी-पी कोसने की भांति कोस के सारे समाज को भड़क बिठाए रखो और जब असली हकीकत सामने आये तो उन्हीं से मिलके कहीं सिंध में सरकारें बनाने से नहीं चूकते तो कहीं बंगाल और कहीं जम्मू-कश्मीर में|

व्यक्तिगत तौर पर मुझे अंधभक्तों की जमात से कोई वैर-विरोध नहीं, कोई मनमुटाव नहीं; बशर्ते इनमें शामिल जाट और हर किसान-दलित-पिछड़े का बेटा-बेटी यह चीजें कर दे; करवा दे इनसे और फिर मेरा इनसे विरोध खत्म:

1) आरएसएस कहे कि हरयाणा में तुरंत-प्रभाव से जाट बनाम नॉन-जाट का अखाडा बंद हो|

2) जिस हिन्दू धर्म की एकता और बराबरी की ख्याली दुहाई की धूनी यह तुम पर घुमाए फिरते हैं, पहले यह इसमें फैले-फैलाए इनके लिखित-मौखिक हर प्रारूप के वर्णवाद व् जातिवाद को सार्वजनिक समारोह करके तिलांजलि देवें|

3) आरएसएस सिर्फ 2-3 जातियों के महापुरुषों के नहीं अपितु हर जाति-वर्ण के महापुरुषों के जन्म व् मरण दिन मनावे| जाति-वर्ण को खत्म करे तो राजाओं-महाराजों, खाप यौद्धेयों की वीरता के पैमानों के आधार पर तय करे कि कौन महापुरुष और कौन नहीं| ऐसे स्वघोषित तरीके से नहीं कि जो अंग्रेजों से छ-छ बार दया-याचिका लिखा करते थे (सावरकर), जो मुस्लिमों के साथ मिलके सरकारें बनाया करते थे (सावरकर और मुखर्जी), जो किसान-दलित पिछड़े के लिए बनके आई साइमन कमिसन का विरोध किया करते थे (लाला लाजपत राय) जैसों को ही अपना आदर्श पुरुष मानती हो|

4) हर जाति का उस जाति के अपने लोगों की राय और समीक्षा के आधार पर निष्पक्ष इतिहास और संस्कृति लिखे व् उसको बराबर तरीके से प्रचारित होने दे व् फलने-फूलने दे| याद है ना आज के दिन हरयाणवी की क्या औकात बना के रख दी है इन्होनें? प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में "मैं हरयाणवी हूँ" की पहचान तक छुपाते फिरते हो और तुम भी| किसी हिन्दू धर्म के ही लाले-बनिए को कहीं यह ना पता लग जाए कि मैं फलानि जाति का हिन्दू हूँ, वो पहचान तक छुपानी पड़ रही है तुम्हें,उसके वहाँ काम करते हुए?

और बात करते हो कि हिन्दू धर्म को यूनियनिस्ट तोड़ रहे हैं? हो औकात और स्वछन्द तरीके से सोचने की शक्ति और समर्थता तो बताओ तुम्हें प्राइवेट नौकरी करते हुए हरयाणवी और जाट होने की पहचान किसी मुस्लमान की वजह से छुपानी पड़ रही है या हिन्दू की वजह से?

अगर इन चीजों पर कार्य नहीं कर या अपने आकाओं से करवा सकते तो, शांति से समझने की कोशिश करो कि हम इन मुद्दों के लिए खड़े हुए हैं और इनके लिए ही आवाम को जगा रहे हैं| साथ नहीं आ सकते तो न्यूट्रल भी रहोगे तो हमारी बहुत मदद होगी| धन्यवाद|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 7 July 2016

ओबीसी को जाटवाद और मनुवाद तुलनात्मकता करते रहने की निरंतर वजहें और बातें देते रहिये!

जाटो, खाकी चड्ढी गैंग आपके साथ क्या दुर्व्यवहार कर रही है इसको जताने से ज्यादा, सोशल मीडिया, सामाजिक समारोहों-सभाओं हर जगह यह उजागर करो और फैलाओ कि ओबीसी के साथ यह कच्छाधारी सरकार क्या कर रही है?

क्योंकि ओबीसी जाटवादियों और मनुवादियों को तराजू के दो पलड़ों में रखता है और उसको जिसका पलड़ा भारी लगता है ओबीसी उसी के साथ रहता है| और इस वक्त मनुवादी एक तीर से दो निशाने साध रहा है, एक तो ओबीसी से दगाबाजी कर ही रहा है (ओबीसी को नौकरी नहीं, रोजगार नहीं, फसलों के दाम नहीं, पदोन्नति के इनके आरक्षण रद्द किये जा रहे हैं, केंद्रीय कैबिनेट में बावजूद 50% ओबीसी जनसंख्या के मात्र 1-2 मंत्री है, जाट तो मात्र 7-8% होने के बावजूद भी 1 केंद्रीय मंत्री तो फिर भी है) और दूसरी तरफ ओबीसी से इसके द्वारा किये जा रहे इस दमन को जाट पर दमन करके छुपा रहा है और ओबीसी को रिझा रहा है|

तो अगर आप अपने दमन को ही गाते रहोगे तो ओबीसी इन्हीं की ओर झुकता चला जायेगा| इसलिए इसकी बजाये ओबीसी को इन द्वारा ओबीसी के दमन बारे दिखाओ, ताकि ओबीसी की आँखें खुली रहें और वो बेहतरीन तरीके से समझ सके कि जाट नेतृत्वों ने ओबीसी का ज्यादा भला किया या मनुवादी नेतृत्वों ने|

ओबीसी को ज्यादा सम्पन्न, धनाढ्य, समर्थ सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, ताऊ देवीलाल, चौधरी बंसीलाल, सरदार प्रताप सिंह कैरों, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत (जो जाट नेता फ़िलहाल जिन्दा हैं उनपर आप अपने विवेक से निर्धारित कर लें) की नीतियों और नियतों ने किया या इन मनुवादियों की विभिन्न पार्टियों की सरकारों और प्रधानमंत्रियों ने या इनके वर्णवादों और जतिवादों के पोथों ने? ओबीसी को इस तुलनात्मकता को दिखाते रहना बहुत अहम है|

इसलिए एक पोस्ट अपने दमन की निकालते हो, एक चर्चा अपने दमन की करते हो तो दो चर्चाएं ओबीसी के दमन की भी करें| ताकि ओबीसी के प्रति मनुवाद से कहीं ज्यादा गुणा मित्रवत रहे जाटवाद से ओबीसी जुड़ा ना भी रहे तो कम से कम मनुवाद उनको हमसे इतना दूर ना कर दे कि वो हमसे छिंटक जाएँ| मनुवाद और जाटवाद के पलड़े को न्यूनतम बैलेंस में अवश्य रखें; अपनी तरफ झुक लेवेंगे तो फिर कहने ही क्या| इसलिए इन कच्छाधारियों की तरह प्रचारक बनो और इनके जाट-ओबीसी दोनों के दमन के अध्याय उजागर करते रहो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 4 July 2016

अगर किसान-दलित-पिछड़े को बौद्धिक एवं आर्थिक सत्ता में भागीदारी चाहिए तो उसको "कमेरा-बनाम-लुटेरा" शब्द की जगह "मंडी-फंडी" शब्द के साथ आगे बढ़ना बेहतर रहेगा!

यह मेरी निजी राय और क्यों और कैसे है, उसका विवरण इस लेख में है| फिर से स्पष्ट कर रहा हूँ, यह मेरा निजी विचार है, किसी पर बाध्यता नहीं| इस पर पक्ष-विपक्ष, सहमति-असहमति हेतु विचार आमंत्रित हैं|

इस बात और समझ पर अगर मैं गलत नहीं हों तो मुझे सही कीजियेगा कि -

कमेरा यानि सिर्फ कार्य से संबंधित मानसिक मेहनत के साथ शारीरिक मेहनत करने वाला, जैसे कि किसान-दलित-पिछड़ा|

लुटेरा यानि सिर्फ और अधिकतर मानसिक मेहनत के दम पर खाने वाला, जैसे कि हर इतिहास-वर्तमान-पत्रकार-कहानीकार हर प्रकार का लेखन करने वाला, धर्म-कर्म के कर्म-कांड करने वाला, दुकानदारी और बही-खातों का लेखा-जोखा करने वाला|

अगर इन परिभाषाओं को मैं सही से और सही परिपेक्ष में रख पाया हों, तो फिर किसान-दलित-पिछड़ा वर्ग से जो लेखन कार्य करने वाले रहे हैं, उनको किस श्रेणी में रखूं? जो किसान-दलित-पिछड़ा वर्ग से होते हुए सूदखोरी से रहित व्यापार और बही-खाते करते हैं, उनको किस श्रेणी में रखूं? जो ढोंग-पाखण्ड से रहित मूर्तिरहित रहित सिर्फ पुरखों और वास्तविकता को पूजने के विधान के बौद्धिक रहे हैं, उनको किस श्रेणी में रखूं?

जब इस सवाल का जवाब ढूंढ़ता हूँ तो जवाब आता है 'मंडी और फंडी' शब्द| यह शब्द जिस मंतव्य को निर्धारित करते हैं उसमें 'दूध का दूध और पानी का पानी' करने की कला है| यानि मंडी में जो सूदखोर है सिर्फ वो और फंडी में जो ढोंगी-पाखंडी-आडंबरी है सिर्फ वो| यानि दोनों के वो पहलु, जिनकी वजह से इन शब्दों को हेय-बदनामी की दृष्टि से देखा जाता है| इस परिभाषा में इत-उत किया जा सकता है, इसका स्कोप कम ज्यादा हो सकता है परन्तु इसमें मुझे लुटेरे-कमेरे से ज्यादा व्यवहारिकता दिखती है| वजहें यह हैं:

1) जिनको लुटेरा कहा जाता है उनको कमेरे के खिलाफ एक मुश्त नफरत और षड्यंत्र करने का बौद्धिक कारण मिल जाता है| यानि साफ़ वर्गीकरण ठहर जाता है|

2) लुटेरा शब्द में जो आते हैं, और जिस प्रकार की बौद्धिक और आर्थिक सत्ता और हस्तांतरण की ताकत वह रखते हैं, जो कि अगर उनसे छीननी, इनमें अपना हक़ लेना है या उपस्थिति और आदर दर्ज करवाना है तो इसमें घुसे बिना नहीं लिया जा सकता| किसान-दलित-पिछड़ा के पास बौद्धिकता है, परन्तु सिर्फ उसके कार्य से संबंधित या ऐसी जिसको यह लोग मान्यता नहीं देते| जिसको पाने-करवाने की कोशिशें हर किसान-दलित-पिछड़ा वर्ग का हर जागरूक और क्रांतिकारी युवा करता हुआ भी दीखता है कि मुझे ज्यादा से ज्यादा लिखना है, समाज की बौद्धिक्ताओं को मिलाना है या जगाना है|

3) किसान-दलित-पिछड़ा वर्ग 'कमेरा-लुटेरा' टैग के साथ राजनैतिक सत्ता तो हासिल कर सकता है, परन्तु इससे उसमें बौद्धिक और आर्थिक सत्ता कब्जाने की प्रेरणा नहीं बन पाती; जो कि वास्तव में राजनैतिक सत्ता की भी माँ है|

4) 'मंडी-फंडी' शब्द ध्यान आते ही इनके अंदर घुस के इनमें अपने अनुसार जो सही नहीं है उसको सही करने की प्रेरणा मिलती है; जबकि 'लुटेरा-कमेरा' शब्द नफरत और अलगाव का भाव ज्यादा लिए हुए है| और नफरत और अलगाव आंदोलनकारी तो बना सकते हैं, अल्पावधि के लिए परिवर्तनकारी भी बना सकते हैं; लेकिन चिरस्थाई शासनकारी नहीं| इस एप्रोच से ली गई सत्ता तभी तक टिक पाती है जब तक बौद्धिक और आर्थिक सत्ता पर आधिपत्य वाले इसका तोड़ नहीं निकाल पाते|

5) इस दोनों मेथडों की कारीगरी जांचने-परखने के लिए हमारे पास बिना नाम लिए सबके दिमाग में आ जाने वाले महापुरुषों के उदाहरण भी समक्ष हैं| सामने आ जाता है कि कैसे एक चिरस्थाई तरीके से इनपर आजीवन विजयी रहते हुए कार्य करके गया और दूसरे को कैसे इन्होनें मौका मिलते ही सत्ता से बाहर कर दिया|

बड़ा ही नाजुक विषय छुआ है मैंने, हो सकता है कि आपमें से किसी की तरफ से इसके ऐसे प्रतिउत्तर आवें कि मुझे मेरी राय ही बदलनी पड़ जाए; इसलिए इस पर खुलकर बहस करें और इनमे से वह ऑप्शन चूज करें जो हमें सिर्फ राजनैतिक सत्ता नहीं, अपितु राजनैतिक के साथ-साथ किसान-दलित-पिछड़े की बौद्धिक व् आर्थिक सत्ता को पहचान भी दिलाता हो और स्थाई भी बनाता हो|

मेरा इन दोनों मेथडों पर जो मानना है, उसका सार इस लेख के शीर्षक में व्यक्त कर चुका|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 3 July 2016

ग़दर फिल्म के 'तारा जट्ट' के बाद 'शोरगुल' में फिर से दिखा जाट का वास्तविक डीएनए!

पता नहीं बॉलीवुड वालों से तुक्का लगा, या क्या; परन्तु एक अर्से बाद किसी फिल्म में जाट को उसके वास्तविक डीएनए यानि "Savior of Society and Socialism" के अनुरुप दर्शाया तो बड़ा शुकुन मिला। इस फिल्म की पूरी टीम को हृदय से धन्यवाद, मुझे एक ऐसी फिल्म देने के लिए कि अगर कोई पूछें कि जाट क्या है तो मैं उसको इस फिल्म का नाम बता सकूं; कि इसमें जो "चौधरी साहब" का करैक्टर है वो ही असली जाट है, वही एक पहुँचे हुए जाट का चरित्र है जिसकी वजह से दुनिया में जाट "जाट-देवता" के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है, जिसकी वजह से उसके लिए कहावत बनी है कि "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, और पढ़ा जाट खुदा जैसा!"; और इस फिल्म में जाट का वो खुदा वाला रूप बखूबी दिखाया गया है|

और कोई इस फिल्म को देखे ना देखे परन्तु अंधभक्ति में चूर और पथभ्रष्ट जाट इस फिल्म को कम-से-कम एक बार जरूर देखें। इस फिल्म को देखते हुए और "चौधरी साहब" के बेटे की मौत के बाद से उनके रवैये को देख फिल्म के अंत तक बार-बार यही आभास हो रहा था इस फिल्म का नाम "शोरगुल" की बजाय "Jat the Savior" रखा गया होता तो निसंदेह सिल्वर-स्क्रीन पर ज्यादा बेहतर उतरती।

जिस तरीके से इस फिल्म में "चौधरी साहब" का चरित्र, दोनों तरफ के धर्म वालों के वहशीपने और पीड़ित के साथ वास्तविक न्यायकारी होते हुए पूरी फिल्म में जद्दोजहद के साथ पिसता हुआ दिखाया गया है, मेरा विश्वास है कि कुछ ऐसा ही हाल और वेदना हर पहुंचे हुए जाट के अंदर आज देश के हालात देख के गुजर रही है। इस फिल्म के लेखक और डायरेक्टर ने इस चरित्र को "चौधरी साहब" का नाम दे, इस रोल के साथ पूरा न्याय किया है। अपने बेटे की मौत पे भी संयम रखने, धर्मान्धों द्वारा भड़काने की लाख कोशिशों पर भी ना भड़कने, जवान बेटे की मौत के गम के माहौल में भी पडोसी की मुस्लिम बेटी को बचाने का जज्बा और होशोहवास रखते हुए (इस सीन पर तो मुझे ग़दर में शकीना को बचाने वाला तारा जट्ट याद हो आया; हालाँकि अगले सीन में पता लगता है कि धर्मान्धों से लड़की को वह बचा के लाये) और उसके न्याय के लिए लड़ने का जज्बा; यही एक सच्चे "गणतांत्रिक न्यायाधीश" का गुण होता है, वास्तव में जाट होता है।

निसंदेह ना सिर्फ जाट युवा अपितु समाज के हर युवा को यह फिल्म झकझोरने के साथ उसको सही राह पर लाने का संदेश लिए हुए है।

धन्यवाद फिल्म के डायरेक्टर पवन कुमार सिंह और जीतेन्द्र तिवारी, एक ऐसे माहौल में यह फिल्म निकालने के लिए जब पूरा उत्तरी भारत सत्ताधारियों ने जाट बनाम नॉन-जाट के लफड़े में सुलगा रखा है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 2 July 2016

यह कैसे पंचायती हैं?

यह कैसे पंचायती हैं?:

कि जरा सी किसी असामाजिक तत्व या तत्वों के समूह ने किसी अपराधी (जैसलमेर कुख्यात चुतर सिंह) को पुलिस द्वारा मार गिराने पे मसले को जातीय रंग क्या दिया कि हरयाणा में हिंदुत्व की फायरब्रांड बनने को आतुर साध्वी देवा ठाकुर ने "हिन्दू एकता और बराबरी" का चोला ही उतार फेंका और किसी "सांप द्वारा केंचुली छोड़ने" की भांति आ खड़ी अपने समाज के अपराधी के पक्ष में? रिफरेन्स के लिए इस मामले से संबंधित कल की उनकी पोस्ट देखें| यह भी नहीं सोचा कि मामला सामाजिक झगड़े का नहीं, अपितु एक नामी बदमाश को पुलिस द्वारा मार गिराने का है?

मैं तो अब भी कह रहा हूँ कि यह कहाँ के पूरे हिंदुत्व के झण्डाबदार बनेंगे, जब अपनी कम्युनिटी-जाति की सोच से ही ऊपर नहीं ऊठ सकते तो? और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम इनके लिए जातीय अभिमान-स्वाभिमान को त्याग के इनसे जुड़ें; इनसे मार्गदर्शन पाएं? यह हिन्दू-हिंदुत्व सिर्फ 2-3 जातियों द्वारा समाज में अपना छद्म रुतबा और सत्ता में अपना आधिपत्य बनाए रखने के सगूफेमात्र से फ़ालतू कुछ नहीं। अत: अब भी वक्त है कि इनसे ध्यान हटा के अपने आर्थिक और सामाजिक हितों और समावेश पर ध्यान लगा लो। जिसका रंग ही अग्नि वाला भगवा हो गया, वो भला समाज में आग लगाने के सिवाय किये हैं कुछ, जो अब करेंगे? देश में हरित-क्रांति और श्वेत-क्रांति के धोतक समझें इस बात को।

बाबा-साधु-मोड्डा ना कभी पंचायती हुआ इतिहास में और ना हो सकता। फिर भी किसी को धक्के से इनको पंचायती बना के सर पे बैठाए रखना है तो ऐसे लोगों को सिर्फ समय की मार ही अक्ल दे सकती है। और फिर वैसे भी साध्वी देवा ठाकुर की जाति तो इनके पुरखों को चूची-बच्चा समेत 21-21 बार मार के जिन्होनें धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया हो, उन्हीं का आजतक कुछ नहीं बिगाड़ पाये तो यह क्या किसी को न्याय देंगे या दिलवाएंगे। या सच्चे पंचायतियों की भांति "दूध का दूध और पानी का पानी" करने का जिगर दिखाएंगे।

इसलिए दूर रहो ऐसे समाज के छद्म हितकरियों से और इनको इनके हाल पे छोड़ देना ही बेहतर। राजस्थान में जिस समाज के अफसर पर यह बरस रहे हैं, वो समाज इनसे चाहे कितना ही "अजगर भाईचारा" निभा ले, चाहे कितना ही इनके समाज से दो-दो पीएम (वीपी सिंह और चन्द्रशेखर) और एक सीएम (भैरो सिंह शेखावत) बनवा दे, परन्तु इन्होनें अंत में जा के गिरना उन्हीं के पैरों में जिन्होनें इनके पुरखों को 21-21 बार मारा।

विशेष: मेरी साध्वी देवा ठाकुर के समाज से यह कोई चिड़ या नफरत नहीं, अपितु सहानुभूति है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

इनको उतना ही दान दो जिससे यह इज्जत से जी सकें!

मंडी-फंडी के लिए जितनी यह कहावत सच है ना कि "जाट छिक्या और राह रुक्या!" इसका उल्टा भी किसान के लिए उतना ही सच है कि "मंडी-फंडी छिक्या और राह रुक्या!"

यानि आज सत्ता और पैसे दोनों से मंडी-फंडी छिक्या हुआ है तो इसने किसान के सारे रास्ते बंद करने शुरू कर रखे हैं, जबकि इस कहावत के अनुसार जब जाट छिक्ता है तो मंडी-फंडी के सिर्फ ढोंग-पाखण्ड-आडंबर-सूदखोरी के रास्ते बंद करता है| जबकि मंडी-फंडी ने तो किसान की नेक-कमाई की ही कीमत ना मिले, ऐसे रास्ते भी बंद कर दिए, उदाहरण स्वामीनाथन रिपोर्ट पर सरकार का ताजा-ताजा रूख|

इसलिए इनको उतना ही दान दो जिससे यह इज्जत से जी सकें व् मानवता बची रह सके, फ़ालतू और बेहिसाबा इनको दोगे तो यह उसको आपके ही रास्ते अवरुद्ध करने में लगाएंगे| उस दिए का हिसाब-किताब लेते रहो इनसे; वर्ना गुप्तदान के चक्कर में पड़के दोगे तो यह उसी गुप्तदान से तुम्हारे ही खिलाफ षड्यंत्र रच-रच एक दिन तुम्हें ही लुप्त कर देंगे और वही हो रहा है| अभी सुधार लें अपनी दान देने की आदत| मंडी-फंडी आपपे कितना जुल्म करे और कितना नहीं, उसकी चाबी यह दान है इसका सही इस्तेमाल कीजिये; इसको अपने डायरेक्ट कंट्रोल में रखिये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 30 June 2016

जब मुग़लों के आगे हताश राजपूत-शिरोमणि छत्रसाल बुंदेला की मदद को आगे आये सर्वखाप यौद्धेय दादावीर चूड़ामण जी महाराज!


सन 1720 में राजा छत्रसाल बुंदेला की रियासत कालपी पर मुग़ल सूबेदार ने अपने नायक दिलेर खाँ को भेज राजपूतों को पराजित कर कालपी समेत जबलपुर पर भी अधिकार कर लिया| राजा छत्रसाल ने बहुत से राजपूत राजाओ से सहायता माँगी परन्तु सब मुग़लों के भय से सहायता से मना कर गए| तब राजा ने दादावीर चूड़ामण से सहायता माँगी। दादावीर ने डट कर सहायता की और 800 मुस्लिम सैनिकों को मौत के घाट उत...ार दिया और दिलेर खाँ को भी मार दिया गया।

यह जाट-राजपूत के उन कई आपसी सहयोग के अमिट पन्नों में से एक पन्ना है जो हमें मिलजुल के संगठित रहने की प्रेरणा देता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 28 June 2016

2013 में मुज़फ्फरनगर में वही दोहराया गया जो सन 1435 में मोखरा, जिला रोहतक में दोहराया गया था!

आजतक टीवी के स्टिंग ऑपरेशन में कपिलदेव अग्रवाल का मुज़फ्फरनगर दंगों में मास्टरमाइंड पाया जाना मुझे "लाला बीहड़" के किस्से की याद दिलाता है| फर्क सिर्फ इतना है कि कपिलदेव ने हिन्दू को मुस्लिम से लड़वाया; और लाला बीहड़ ने जाट को राजपूतों से लड़वाया था|

और ऐसा लड़वाया था कि तमाम तरह के डूबाढाणी, खत्म-कहानी जैसे शब्द भी छोटे पड़ जाएँ|

जानिये गठवाला जाटों द्वारा राजपूतों को हराने, फिर राजपूतों द्वारा जाटों से राजीनामा कर उनको सामूहिक भोज पर आमंत्रित कर, राजीनामा संधि तोड़ते हुए (प्राण जाए पर वचन ना जाए की डींग हांकते ना थकने वालों ने) धोखे से सामूहिक रूप से अग्नि में जला देने और फिर वहाँ से लगभग उजड़ चुके मोखरा के गठवाला जाटों के पुनर-स्थापन का ऐतिहासिक, दर्दनाक एवं गौरवमयी किस्सा|

इस किस्से को सविस्तार इस लिंक से पढ़ सकते हैं: http://www.nidanaheights.net/scv-hn-mokhra.html

लेख में कहाँ जिक्र है इस किस्से का:
इस किस्से को पढ़ने के लिए इस लेख के बांये कॉलम के मध्य जा के "मम का मोखरा नींव रखने के बाद सवा दो सौ साल तक सुखचैन से बसता रहा|" वाले पैराग्राफ से पढ़ें|

यह किस्सा मेरे हृदय से इसलिए भी जुड़ा हुआ है क्योंकि मेरी जन्म-नगरी निडाना, जिला जींद भी हमारे पुरख दादा मंगोल जी महाराज ने सन 1600 में मोखरा से ही आकर बसाई थी| यानि मेरे पुरखों की भी जन्मस्थली है मेरा मोखरा|

मोखरा गाँव से जुडी एक रोचक बात यही भी है कि यही मोखरा सन 1620 में गठवाला खाप के निमंत्रण व् अगुवाई में रांगडों (मुस्लिम राजपूत) की रियासत का कोला तोड़ने की क्रांति का केंद्रबिंदु बना था और कलानौर की ईंट-से-ईंट बजा के पूरी रियासत को तहस-नहस कर दिया था|

लेखक: सर राजकिशन नैन जी
सामग्री उपलब्धकर्ता: सर रणबीर सिंह फोगाट जी (सर राजकिशन नैन जी की सहमति सहित)
वेब-संकलन/प्रस्तुति: फूल मलिक
जय यौद्धेय!