तुम कौनसे वाले जाट हो जी? फंडी जिसकी पीठ पे सवार है या जो फंडी की पीठ
पे सवार है? फंडी के साथ तुम बराबर के दर्जे पर रह लोगे यह तुम चाहोगे तो
भी फंडी देर-सवेर पिछने बिना नहीं रहेगा| फ्रांस में एक ऐसा ही दोस्त मिला
था, इस लेख का आधार वही है नीचे बताऊंगा, इसलिए अंत तक पढ़ते जाना|
हालाँकि मैंने कभी क्लेम नहीं किया, परन्तु जब भी सोचता हूँ तो अचंभित हो
जाता हूँ कि मैंने तो आज तक किसी फंडी को एक गाली तक नहीं दी, असभ्य नहीं
बोला, उनका कभी जाम के बुरा नहीं किया, कोई बद्दुआ तक इनके लिए नहीं की
आजतक; फिर भी मेरा नाम आते ही यह बिदकते पहलम झटके हैं| आखिर ऐसा क्यों है?
क्या इनकी पोल खोलने का मेरा तरीका, लहजा ही इतना सटीक है कि यह मेरा नाम
आते ही कोई प्रतिक्रिया या अटैक करने से बिदक लेना बेहतर समझते हैं? पता
नहीं, इनको ये अहसास कहाँ से आता है कि "और किसी भी तुर्रम खाँ को तुम उलझा
लोगे, डरा-झुका लोगे, छल लोगे" परन्तु यह वह वाला निगर जाट है जिसके बारे
"सत्यार्थ प्रकाश" में महर्षि दयानन्द ब्राह्मण लिख गए कि, "सारा संसार जाट
जी जैसा हो जाए, तो पंडे भूखे मर जाएँ"| अब महर्षि दयानन्द जी की यह बात
तो गलत थी कि, "पंडे भूखे मर जाएँ" और उनके भूखे मरने का इल्जाम जाटों पे
लगेगा? कितने जाट महर्षि की इस बात को पढ़ के भावुक हो जाते हैं? बताओ, जिस
जाट के बाढ (खेत) में आवारा जानवर से ले आवारा पंछी तक छकता हो| जिस जाट के
घर से दलित से ले हर ओबीसी कामगार भाई का वक्त पे हिस्सा जाता रहा हो, वह
भला पंडों को क्यों भूखा मारेगा? महर्षि जी को शायद ज्यादा चाहिए, इसलिए
जाट के पल्ले मढ़ गए कि जाटो तुमने हमसे मुंह मोड़ लिया तो हम भूखे मर
जायेंगे| तो फिर महाराज सीधे-सीधे क्यों नहीं कहे? जाट तो दर पे आये कुत्ते
तक को रोटी या लठ, दोनों में से एक दिए बिना वापिस नहीं मुड़ने देता, तुमसे
सौतेला व्यवहार क्यों करेगा? इसलिए आपा ने तो दादा वाली बैलेंस्ड लाइन पकड़
रखी है कि, "पोता, धर्म इतना ही भतेरा कि कोई मंगता तेरे दर से भूखा-नंगा
ना जाए और इससे ज्यादा जो मुंह बाए, उसको लठ प्याया जाए", ठीक वैसे ही जैसे
हम कुत्ते के लिए करते हैं| कुत्ता जब तक रोटी के लिए बैठा है तो खिलाओ,
उसके बाद ज्यादा कुन्ह-कुन्ह करे तो लठ प्याओ|
बात है 2012 की है,
एक दोस्त था ईस्ट यूपी का यहाँ फ्रांस में, आज भी है| वह फंडी था या नहीं
आप खुद ही निर्धारित कर लेना| हम साथ काम करते थे, एक ही कंपनी में| वह घर
की रोटी-सब्जी बहुत मिस करता था| उसको बनानी नहीं आती थी| जबकि मैं सातवीं
क्लास से ही एसडी स्कूल, जिंद के हॉस्टल में रहते हुए
हलवा-पूरी-खीर-रोटी-सब्जी सब सीखा हुआ था| मैंने उससे कहा कोई नी, वीकेंड
पे मेरे फ्लैट पे आ जाया कर, मैं सीखा दूंगा और तू एक प्योर इंडियन लंच
मेरे साथ कर लिया करना| जब सीख जाए तो मुझे तेरे फ्लैट पे इन्वाइट करके
बदला उतार देना| छह महीने तक हम वीकेंड पे ऐसे ही खाते रहे, किसी वीकेंड वो
मेरे घर, किसी वीकेंड मैं उसके घर| भाई, आपा नी सरमाया करदे, आपा वो वाले
जाट हैं जो फंडी के घर का फंस जाए तो पहले झटके खोसण उतारते हैं; वह भी इस
खौफ से बेख़ौफ़ कि फंडी सबसे ज्यादा जहर में खाना दे के ही मारता है, बेख़ौफ़
इसलिए कि उसी बर्तन से लिया पहले वो खाता था और फिर मैं| इनके साथ तो
दोस्ती ऐसे ही निभानी पड़ती है|
ऐसे ही एक दिन लंच करते-करते आमिर
खान का सत्यमेव जयते शो लगा लिया| महम चौबीसी वाले पधारे हुए थे| दोस्त, को
पता नहीं क्या धुन चढ़ी, वह यह भी भूल गया कि वह इस वक्त एक जाट के साथ
बैठा है, और एक दम से उसके मुंह से फूटा कि, "यह खाप पंचायतें तो सबसे पहले
खत्म कर देनी चाहियें"| मेरा निवाला जहाँ था वहीँ रुक गया, मैंने उसकी तरफ
देखा तो पता नहीं मेरी आँखों में कुछ था या क्या, जब तक रहा खाप के गुण ही
गाता रहा| और बीच-बीच मुझे टटोलता रहा कि क्या स्थिति है| परन्तु इस सबसे
इतना प्रतीत हो गया था कि उसको उससे आज बहुत बड़ी गलती होने का अहसास हो रहा
था|
उसके बाद, वह मुझसे ऐसा बिदका (जबकि मैंने उससे कभी यह
प्रतिउत्तर भी आज तक भी नहीं माँगा है कि एक हिन्दू होते हुए भी तुझे
हिन्दुओं की सबसे बड़ी सोशल इंजीनियरिंग व्यवस्था यानि खाप खत्म क्यों
चाहिए) कि फिर कभी खाने पे नहीं आया (अपने आप आया करता था बिन बुलाये) और
मुझे बुलाने की शायद हिम्मत नहीं कर पाया उसके यहाँ, उस इंसिडेंट के बाद|
ऑफिस में भी डेस्क मेरे से दूर शिफ्ट कर लिया| एक बार परफैक्चर (कोर्ट) में
(वीजा एक्सटेंशन हेतु गए हुए थे दोनों ही) मिला तो मेरे से 2 नंबर
आगे था लाइन में| मेरे को देखा और अस्थिर आँखों व् मुस्कान के साथ हाय-हाय
करता दिखा, ऐसे जैसे उसके चेहरे की हवाइयां उड़ रखी हों, परन्तु उस वीजा
लाइन से 2 मिनट में गायब हो गया, जिसमें लोगों को घंटों खड़े हो अपने नंबर
का वेट करना पड़ता है| सुबह 7 बजे आ के लाइन में लगे का दोपहर 2 बजे मेरा
काम हुआ, परन्तु वो नहीं दिखा मुझे कहीं भी|
शायद समझ गया था कि
तूने जिसके ऊपर सवाल किया था, उसके लिए यह जाट तुझे मार ना दे| परन्तु इतना
खौफ तो नाजायज है ना, उसके मन में? मैंने तो उससे मुड़ के सवाल भी नहीं
किया, आज तक नहीं किया|
जो भी कहो, फंडी की पीठ पे सवार होवो तो
इसी हस्ती और रौब के साथ सवार होवो कि मुंह से उसको एक गाली नहीं दी, लठ
उठा के मारना तो बहुत दूर की बात, बस आँखों-आँखों में इतना निचोड़ दिया उसको
कि आज भी किसी गेट-टू-गैदर में दीखता है तो ऐसे भागता है जैसे शिकारी को
देख तीतर| अब महर्षि दयानन्द जी, अगर ऐसे हमारा कोई दोष हुए बिना भी कोई
फंडी भूखा मरे (खाने का भूखा हो या दोस्ती का) तो वो मेरी दादी वाली बात 14
बार मरे, इसमें मेरा क्या कसूर?
अब भी देख लो, ना उसकी जाति का
जिक्र किया, ना उसके नाम का; परन्तु किस्सा पूरा कर दिया, वह भी एक
सभ्य-शालीन तरीके से| और अच्छी खासी कंपनी में टीम लीडर है यहाँ पे वो|
पता है यह बिना गाली, बिना लाठी कैसे सम्भव होता है? क्योंकि मैं आज भी
मेरे पुरखों के कल्चर-कस्टम-वैल्यू सिस्टम-एथिक्स-ह्यूमैनिटी-भाषा-जेंडर
सेंसिटिविटी पर कायम हूँ इसलिए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक