Wednesday 22 April 2020

बबिता पहलवान बेबे के जरिये आजमाई ट्रिक फ़ैल हो गई तो फंडी देखो क्या नई ट्रिक लेकर आये हैं!

ट्रिक की छोडो, पहले तुम मंडियों में हिन्दू जमींदार-किसान की हो रही बीरान-माटी को ठीक करो, ओ स्टेट-सेण्टर दोनों जगह बैठे हिंदुत्व के ठेकेदारों| तुम्हें जरा भी लिहाज शर्म हो तो जिस ट्रिक का नीचे जिक्र कर रहा हूँ, इसकी बजाये अपने धर्म के जमींदार-किसान की टाइम पे तो फसल उठाने पे ध्यान दो मंडियों में और वक्त पे उसकी पेमेंट करवाने पे|

ट्रिक कौनसी: व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी के जरिये अभी एक पोस्ट मिली जिसमें लिखा है कि लाखनमाजरा व् दनोद में वहां के जाटों ने वहां के मुस्लिमों को वह भी वहां के मुस्लिमों की अपील पर हिन्दू बनाना स्वीकार किया?
ऐसा है फंडियों: यह दूसरों की पीठ पे सवार हो के चलना छोड़ दो| है औकात तो खुद जा के बना लो मुस्लिमों को हिन्दू| हमें मुस्लिम के साथ मुस्लिम रहते हुए एडजस्ट करने में कोई परेशानी नहीं| 70% उदारवादी जमींदार (जिसके बड़े धड़े यानि जाट को तुम बहकाने हेतु सबसे मुख्य निशाने पर रखते हो) ने तो तुम्हें पीठ पे लादा भी नहीं कभी| जो 20-30% ने लाद लिए थे उनमें से आधे से ज्यादा तुम्हें पीठ से उतार धरती पे पटक चुके| और बाकी भी जल्दी ही पटकेंगे| हम महाराजा सूरजमल और सर छोटूराम की राह पर चलते हुए आ रहे हैं, हमें वक्त कितना ही लग जाए परन्तु हम आ रहे हैं और याद रखना, कसम इन पुरखों की, इनसे भी बेहतर तरीके से ना सिर्फ तुमको बाकियों की पीठ से भी पटकवायेंगे अपितु महाराजा सूरजमल और सर छोटूराम की भांति तुम्हारी पीठ पर सवार होने हम आ रहे हैं| और यह दोनों पुरखे व् इनके जैसे अनगिनत पुरखे गवाह हैं इस बात के कि जब-जब उदारवादी जमींदार फंडी की पीठ पे सवार हुआ है फिर तुम सिवाए देखते रह जाने के कुछ नहीं कर पाए हो, जैसे महाराजा सूरजमल और सर छोटूराम के उदाहरण|

हिन्दू धर्म के जमींदार-किसान को वक्त पर व् न्यायकारी तरीके से उसकी फसल के दाम देने तक की शर्म-लिहाज-जिम्मेदारी-नैतिकता नहीं तुम में, और पालोगे अन्य धर्म वालों को हिन्दू धर्म में मिलवा के? जो पहले से हैं तुम्हारे धर्म में इनकी भुखमरी-गरीबी-गुरबत तो मिटा लो? इनको इनके बनते-बनते जायज हक ही दे दो?

अन्यथा वही बात, हम आ रहे हैं, महाराजा सूरजमल और सर छोटूराम के अनुयायी, हमें वक्त भले जितना लग जाए परन्तु हम आ रहे हैं| और तुम्हारी तरह चार पीढ़ियां नहीं लेंगे, असल तो एक ही पीढ़ी में अन्यथा दूसरी में तो तुम्हें जरूर बता देंगे कि अपनी कौम-धर्म-देश की सब वर्गों की जनता-जनार्दन के हक-हलूल कैसे पाले व् रखवाए जाते हैं| याद रखना उदारवादी जमींदार तो किसी को पीठ-कंधे पर बैठा के चल भी लेता है, तुम्हारा तो इतना भी जाथर नहीं है कि अगर उदारवादी जमींदार तुम्हारी पीठ पर बैठ गया तो दो ढंग भी चल सको, उदाहरण महाराजा सूरजमल और सर छोटूराम| वो टूटी ही टूटी समझो, बस एक बार कंधे के ऊपर से मुड़ के देखने की जरूरत भर है| छोड़ दो ये चलित्र, वरना इतना समझ लो कि हमारे मनों से दिन-भर-दिन छिंटकते जा रहे हो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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