Friday, 31 December 2021

ऐतिहासिक सर्वखाप किसान क्रांति दिवस - 1 जनवरी 1670!

विशाल हरयाणा के उदारवादी जमींदारों की वह क्रांति जिसने 1907 के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन व् 2020-21 के किसान आंदोलन की भांति ही पूरे विश्व में ख्याति पाई थी व् देश के हालातों व् आयामों को नई दिशा दी थी|

 

उसी क्रांति के नायक यौधेय समरवीर अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज व् 21 खाप चौधरियों के बलिदान दिवस (01/01/1670) पर उन ज्योतिपुंजों को कोटि-कोटि गौरवपूर्ण नमन के साथ उनको समर्पित है यह विशेष आर्टिकल!

 

गॉड-गोकुला के नेतृत्व में चले इस विद्रोह का सिलसिला May 1669 से लेकर December 1669 तक 7 महीने चला और अंतिम निर्णायक युद्ध तिलपत, फरीदाबाद में तीन दिन चला| यह हिंदुस्तान के उस वर्ग यानि सर्वखाप की कहानी है जिसमें मिलिट्री-कल्चर पाया जाता है|

 

कहानी बताने का कुछ कविताई अंदाज से आगाज करते हैं:

 

हे री मेरी माय्यड़ राणी, सुनणा चाहूँ 'गॉड-गोकुला' की कहाणी,

गा कें सुणा दे री माता, क्यूँकर फिरी थी शाही-फ़ौज उभाणी!

 

आ ज्या री लाडो, हे आ ज्या मेरी शेरणी,

सुण! न्यूं बणी या तेरे पुरखयां की टेरणी!

 

एक तिलपत नगरी का जमींदार, गोकुला जाट हुया,

सुघड़ शरीर, चुस्त दिमाग, न्याय का अवतार हुया!

गूँज कें बस्या करता, शील अर संतोष की टकसाल हुया,

ब्रजमंडल की धरती पै हे बेबे वो तै, जमींदारी का सरताज हुया!!

यू फुल्ले-भगत गावै हे लाडो, सुन ला कैं सुरती-स्याणी!

 

1) यह खाप-समाजों में पाए जाने वाले मिल्ट्री-कल्चर की वजह से सम्भव हो पाता है कि जब-जब देश-समाज को इनके पुरुषार्थ की जरूरत पड़ी, इन्होनें रातों-रात फ़ौज-की-फौजें और रण के बड़े-से-बड़े मैदान सजा के खड़े कर दिए (एक उदाहरण विगत 28 जनवरी 2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर हुआ था, अभी तरोताजा होगा ही दिमाग में)| आईये जानें उसी मिलिट्री कल्चर से उपजी एक ऐतिहासिक लड़ाई की दास्ताँ, जिसकी अगुवाई करी थी 1 जनवरी 1670 के दिन शहीद हुए 'गॉड-गोकुला जी महाराज' ने|

यह हुई थी औरंगजेब की अन्यायकारी किसान कर-नीति के विरुद्ध गॉड गोकुलाकी सरपरस्ती में|

जाट, मेव, मीणा, अहीर, गुज्जर, नरुका, पंवारों आदि से सजी सर्वखाप की हस्ती में||

 

2) राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं गया था, परन्त "गॉड-गोकुलासे लड़ने औरंगजेब तक को स्वयं आना पड़ा था।

3) हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था| पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु तिलपत (तब मथुरा में, आज के दिन फरीदाबाद में) का युद्ध तीन दिन चला था| यह युद्ध विश्व के भयंकरतम युद्धों में गिना जाता है|

4) अगर 1857 अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का पहला विद्रोह माना जाए तो 1669 मुग़लों की कृषि कर-नीतियों के खिलाफ प्रथम विद्रोह था|

5) एक कविताई अंदाज में तब के वो हालत जिनके चलते God Gokula ने विद्रोह का बिगुल फूंका, इस प्रकार हैं:

सम्पूर्ण ब्रजमंडल में मुगलिया घुड़सवार, गिद्ध, चील उड़ते दिखाई देते थे|

हर तरफ धुंए के बादल और धधकती लपलपाती ज्वालायें चढ़ती थी|

राजे-रजवाड़े झुक चुके थे; फरसों के दम भी जब दुबक चुके थे|

ब्रह्माण्ड के ब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान और कूटनीतियाँ कुंध हो चली थी|

चारों ओर त्राहिमाम-2 का क्रंदन था, ना इंसान ना इंसानियत के रक्षक थे|

तब उन उमस के तपते शोलों से तब प्रकट हुआ था वो महाकाल का यौद्धेय|

उदारवादी जमींदार समरवीर अमरज्योति गॉड-गोकुला जी महाराज|

 

6) इस युद्ध में खाप वीरांगनाओं के पराक्रम की साक्षी तिलपत की रणभूमि की गौरवगाथा कुछ यूँ जानिये:

घनघोर तुमुल संग्राम छिडा, गोलियाँ झमक झन्ना निकली,

तलवार चमक चम-चम लहरा, लप-लप लेती फटका निकली।

चौधराणियों के पराक्रम देख, हर सांस सपाटा ले निकलै,

क्या अहिरणी, क्या गुज्जरी, मेवणियों संग पँवारणी निकलै|

चेतनाशून्य में रक्तसंचारित करती, खाप की एक-2 वीरा चलै,

वो बन्दूक चलावें, यें गोली भरें, वो भाले फेंकें तो ये धार धरैं|

 

7) God Gokula के शौर्य, संघर्ष, चुनौती, वीरता और विजय की टार और टंकार राणा प्रताप से ले शिवाजी महाराज और गुरु गोबिंद सिंह से ले पानीपत के युद्धों से भी कई गुणा भयंकर हुई| जब God Gokula के पास औरंगजेब का संधि प्रस्ताव आया तो उन्होंने कहलवा दिया था कि, "बेटी दे जा और संधि (समधाणा) ले जा|" उनके इस शौर्य भरे उत्तर को पढ़कर घबराये औरंगजेब का सजीव चित्रण कवि बलवीर सिंह ने कुछ यूँ किया है:

पढ कर उत्तर भीतर-भीतर औरंगजेब दहका धधका,

हर गिरा-गिरा में टीस उठी धमनी धमीन में दर्द बढा।

 

8) राजशाही सेना के साथ सात महीनों में हुए कई युद्धों में जब कोई भी मुग़ल सेनापति God Gokula को परास्त नहीं कर सका तो औरंगजेब को विशाल सेना लेकर God Gokula द्वारा चेतनाशून्य उदारवादी जमींदारी जनमानस में उठाये गए जन-विद्रोह को दमन करने हेतु खुद मैदान में उतरना पड़ा| और उसको भी एक के बाद एक तीन हमले लगे थे उस विद्रोह को दबाने में|

9) आज उदारवादी जमींदारी (सीरी-साझी कल्चर वाली व् समातंवादी जमींदारी के विपरीत जमींदारी) की रक्षा का तथा तात्कालिक शोषण, अत्याचार और राजकीय मनमानी की दिशा मोड़ने का यदि किसी को श्रेय है तो वह केवल 'गॉड-गोकुला' को है।

10) 'गॉड-गोकुलाका न राज्य ही किसी ने छीना लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुग़ल-सत्ता, दीनतापूर्वक, संधी करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

11) हर धर्म के खाप विचारधारा (सिख धर्म में मिशल इसका समरूप हैं) को मानने वाले समुदाय के लिए: बौद्ध धर्म के ह्रास के बाद से एक लम्बे काल तक सुसुप्त चली खाप थ्योरी ने महाराजा हर्षवर्धन के बाद से राज-सत्ता से दूरी बना ली थी (हालाँकि जब-जब पानी सर के ऊपर से गुजरा तो ग़ज़नी से सोमनाथ की लूट को छीनने, पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद गौरी को मारने, कुतबुद्दीन ऐबक का विद्रोह करने, तैमूरलंग को हराकर हिंदुस्तान से भगाने, राणा सांगा की मदद करने हेतु सर्वखाप अपनी नैतिकता निभाती रही)| और ऐसे में 1669 में जब खाप थ्योरी का समाज "गॉड-गोकुला" के नेतृत्व में फिर से उठा तो ऐसा उठा कि अल्पकाल में ही भरतपुर और लाहौर जैसी भरतपुर और लाहौर के बीच दर्जनों शौर्य की अप्रतिम रियासतें खड़ी कर दी| ऐसे उदाहरण हमें आश्वस्त करते हैं कि खाप विचारधारा में वो तप, ताकत और गट्स हैं जिनका अनुपालन मात्र करते रहने से हम सदा इतने सक्षम बने रहते हैं कि देश के किसी भी विषम हालात को मोड़ने हेतु जब चाहें तब अजेय विजेता की भांति शिखर पर जा के बैठ सकते हैं|

12) हर्ष होता है जब कोई हिंदूवादी या राष्ट्रवादी संगठन किसी भी अन्य नायक के जन्म या शहादत दिवस पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं| परन्तु जब यही लोग "गॉड गोकुला" जैसे अवतारों को (वो भी हिन्दू होते हुए) याद तक नहीं करते, तब समझ आता है कि इनकी दोगली नियत है व् यह अपने धर्म के कल्चरों में भी भेदभाव करते हैं| ऐसे में इनकी धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति थोथी लगती है| दुर्भाग्य की बात है कि हिंदुस्तान की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख, दरबारी टुकडों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया। बल्कि हमें इनकी जानकारी मनूची नामक यूरोपीय यात्री के वृतान्तों से होती है। अब ऐसे में आजकल भारत के इतिहास को फिर से लिखने की कहने वालों की मान के चलने लगे और विदेशी लेखकों को छोड़ सिर्फ इनको पढ़ने लगे तो मिल लिए हमें हमारे इतिहास के यह सुनहरी पन्ने| खैर इन पन्नों को यह लिखें या ना लिखें (हम इनसे इसकी शिकायत ही क्यों करें), परन्तु अब हम खुद इन अध्यायों को आगे लावेंगे| और यह प्रस्तुति उसी अभियान का एक हिस्सा है| आशा करता हूँ कि यह लेख आपकी आशाओं पर खरा उतरा होगा|

 

जय यौधेय! - फूल मलिक



Saturday, 18 December 2021

Conscious mind व् unconscious mind और धर्म!

धर्म की परिभाषा: आपके दिए दान-दया के बदले अगर आपका धर्म आपकी सामाजिक व् एथनिक स्वायत्तता, सुरक्षा, पहचान, सम्मान की सुनिश्चतता व् निरंतरता नहीं करता है तो वह धर्म नहीं है अपितु वह आपके unconscious mind को hypnotize करके उसमें छुपे भय, ईर्ष्या, काल्पनिकता, अधूरी इच्छाओं को भड़का कर आपका मानसिक-आर्थिक-सामाजिक दोहन करने का धंधा मात्र है| निचौड़ की बात यह है कि धर्म में जहाँ जवाबदेही ना हो, वहां करप्शन एथिक्स बन जाती है|

Unconscious mind यानि छोटा दिमाग, गुद्दी पीछे की मति यानि आपकी कल्पनाओं समेत सारी छोटे स्तर की हीन बातें इसमें स्टोर होती हैं| जो व्यक्ति दिल से ज्यादा काम लेता है उसका कंसलटेंट unconscious mind होता है|
Conscious mind यानि बड़ा दिमाग, जिससे आपको गलत-सही निर्धारित करने की अवस्थाएं चलायमान होती हैं|
कभी सोचा है कि जिस धर्म के फंडी आपको गाय को माता की तरह रक्षित-पूजित रखने की वकालत करते हैं, आखिर वह सड़कों पर कचरा खाती गाय को अपने घर में बाँधने हेतु क्यों नहीं दौड़ते? कभी सोचा है कि जिस धर्म के फंडी आपको गंगा को माता की तरह पुजवाते हैं, आखिर वह कर्मकांड के नाम पर उसके ही पानी को गंदा क्यों करवाते हैं या गंदा होते देखते रह जाते हैं? कायदे से तो गाय-गंगा के नाम की सबसे तीव्र व् भावुक तरंगें इनमें होनी चाहियें; जो कि इन दोनों की दुर्गति पर इनको ठीक करने दौड़ पड़नी चाहियें; क्यों नहीं है ऐसा?
सिर्फ इसीलिए कि इन्होनें अपने unconscious mind को काबू किया होता है| वह कहावत है ना कई "काबू सच्चा, झगड़ा झूठा"; वह इस unconscious mind को ही काबू करके चलने की कवायद भर है|
आपके जिन पुरखों को फंडी "जाट जी" व् "जाट देवता" कहने लिखने को बाधित हुआ, उसकी वजह यह थी कि आपके पुरखे 95% अक्षरी ज्ञान से तथाकथित अनपढ़ व् ग्रामीण होते हुए भी unconscious mind की समझ रख उसको कण्ट्रोल रखते थे व् conscious mind को सधा के रखते थे|
अब देखो आप लोगों को कितना समा लगेगा उस बुलंदी को वापिस पाने में| किसान आंदोलन की जीत उस दिशा में बढ़ने की मात्र बुनियाद बनी है; अगर इस पर सही से सरजोड़ के पुरखों की खाप-खेड़ा-खेत किनशिप इबारत लिखी तो वह पुरखाई बुलंदी वापिस हासिल कर लेना; कोई अतिश्योक्ति ना रहेगी|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 11 December 2021

CDS की शोकसभा में बाबा टिकैत का अपमान व् बाल ठाकरे!

चौधरी राकेश टिकैत के "चीफ ऑफ़ डिफेंस रावत जी" की अंतिम-यात्रा में जाने पर वहां हूटिंग करने वाले वही बेहूदे वर्णवादी फंडी हैं जिनके यही लच्छण देख के मुंबई में बाल ठाकरे पैदा होते हैं| यह शक्ल से ही पहचान में आ रहे थे कि यह संघी ट्रेंड कीड़े थे| इससे समझ लीजिए कि यह संघी विचारधारा कितनी ज्यादा लीचड़ गंदगी है|
इनका इलाज क्या हो?:
एक तो सबसे पहले तो यह जिन राज्यों से आते हैं, वहां से आए मजदूर भाइयों (जो दलित-ओबीसी-माइनॉरिटी वर्गों के हैं वो खासकर) इनसे अलग करो व् इनको चिन्हित करो| फिर इनको लो बोल के| यह कुत्ते यहाँ भी दूसरा बाल ठाकरे चाहते हैं और यही इनका इलाज है| यह इलाज आज कर लो या 10 साल बाद कर लेना| लेकिन वही बात, बाल ठाकरे की तरह सबको एक मत हांकना; मजदूर भाईयों को इनसे अलग जरूर करना|
दूसरा, अपने दादा महाराज सूरजमल सुजान के स्टाइल में करना, जैसे उन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई में अपने अपमान का घूँट पी कर, सही वक्त का इंतज़ार किया व् अपमान करने वाले पेशवाओं को उनकी औकात पता लगी व् वापिस पुणे गए थे| पढ़ो कि वह कैसे वापिस गए थे व् दादा महाराज का क्या कैसे रोल था इनकी विदाई में|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 29 November 2021

29 नवंबर 2021 का दिन किसान आंदोलन के साथ-साथ "उज़मा बैठक" के लिए बेहद ख़ास है!

आज ही के दिन पिछले साल उज़मा बैठक व् khapland.in की टीम जिसके कि फूल कुमार मलिक, सुरेश देसवाल व् भरत सिंह इंचार्ज हैं; ने अपने अन्य उज़मा साथियों जैसे कि नेपाल सिंह सहरावत, सरला चौधरी, चेतनवीर सिंह, अनीता सिंह, विकास पंवार से मंत्रणा करके निर्धारित किया कि अगर किसान आंदोलन को मनोबल की एक सुनिश्चित ऊंचाई (जिससे कि सरकार भी घबराए) तक मजबूती से खड़ा करना है तो खापों का इसके साथ खड़ा होना बहुत जरूरी है| 

इसके बाद मुख्य जिम्मेदारी संभाली सुरेश देसवाल, फूल कुमार मलिक व् नेपाल सिंह सहरावत की टीम ने|

पहले फेज में यह टीम हरयाणा-दिल्ली की खापों की एक सफल पंचायत करवाने में सक्षम रही, 29 नवंबर 2020 को| इस पंचायत में जो-जो खाप चौधरी आए व् इसमें जो-जो निर्णय पास हुए, वह इस लिंक से पढ़ें: http://www.khapland.in/%e2%80%8bsarvkhap-support-farmers-agitation-against-3-agri-bills-and-msp-guarantee-law/?

इसके बाद दूसरे फेज में इस टीम ने वेस्ट यूपी की खापों को खासतौर से मोबिलाइज किया, जिसकी कि पहली पंचायत 14 दिसंबर 2020 के दिन सोरम की ऐतिहासिक चौपाल व् चबूतरे पर सम्पन्न हुई|

व् इसके बाद तो खापों का किसान आंदोलन के भिन्न-भिन्न प्रकार से समर्थन में आने का, लंगर से ले अन्य सुविधाएँ-सेवाएं सिनिश्चित करवाने का निर्बाध सिलसिला अपनी बुलंदी चढ़ता ही गया| व् जिस सोच के साथ यह शुरुवात हुई थी, वह कितनी कारगर साबित हुई है; इसकी बानगी इस आंदोलन की आज की आंशिक जीत (पूरी MSP के साथ होगी) के रूप में आपके समक्ष है|

और संयोग देखिए कि आज की तारीख (29th November 2021) में ही पूरे एक साल बाद लोकसभा में तीनों काले कानून वापिस हो रहे हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 20 November 2021

कृषि बिल वापिस होने की इतनी साधारण सी वजह भी मत मानिए कि यूपी के नतीजों से डर गया मोदी, खेल बहुत बड़ा व् इंटरनेशनल स्तर से हो के आया है!

1) सोचिए, पिछले 7 साल से जो सुप्रीम कोर्ट सत्ताऱूढ़ों ने अपने मन-माफिक फैसले करवाने का अड्डा बना लिया था, वह पिछले 4 हफ्तों से इस सरकार पर उग्र क्यों है?

2) 2002 के गुजरात दंगों की फाइल फिर से क्यों खुल रही है?
3) अक्टूबर-नवंबर में की गई मोदी की विदेश विजिट्स (USA व् G20 summit) में क्या मिला इनको; सिवाए तसल्ली की छीछालेदार करवाने के?
4) किसान आंदोलन को जिस तरीके से यह हैंडल कर रहे थे, उसको देखते हुए विदेशों में इनको "डेमोक्रेसी कैसे चलती है" के लेक्चर पिलाए जा रहे थे, उदाहरण "मोदी-कमला हैरिस" मुलाकात में हुई दोनों की बातें|
5) चीन, अरुणाचल में घुस आया व् यह इसको नहीं रोक पा रहा, रोक क्या बोल भी नहीं रहा उसपे; जिससे कुछ इंटरनेशनल ताकतों को बेचैनी है; जो अब मोदी को ट्रांसफर की जा रही है|
6) इंटरनेशनल लॉबी में राहुल गाँधी का ग्राफ एक दम से क्यों बढ़ता जा रहा है? 7 साल तक जिनको चुस्कने तक नहीं दिया, यूपी-पंजाब में वह कांग्रेस इतना खुल के कैसे खेल पा रही है?
यह सब ठीक उसी पैटर्न पर हो रहा है, जिस पर 2012-2013 में कांग्रेस को घेरा गया था? बाकी आप समझदार हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 18 November 2021

हरयाणा की धरतीपुत्रों की जत्थेबंदियां पंजाब वालों से सीखें पहले!

पंजाब में सरकार व् पोलिटिकल पार्टीज सब धरतीपुत्रों की मुट्ठी में हैं; एक सीएम की बलि भी वहां ली जा चुकी है; सरकार से सारी मांगें "लाइन हाजिर" करवाने वाले स्टाइल से मनवा लेते हैं; उदाहरण कल का ही देख लें| एक हिसाब से कहिए कि इतना जिगरा-जबरा-ब्योंत बिना इलेक्शन लड़े, सत्ता में आए ही इन्होनें बनाया हुआ है; वजह है - सारी जत्थेबंदियों की एकमुश्त एकता या एक-दूसरे को नहीं काटने की नैतिक सूझबूझ व् तालमेल|

हरयाणा में इसके समक्ष क्या स्थिति है; लिखने की जरूरत है क्या? 23-24 जत्थेबंदी हैं; क्या यह एकजुट हैं? आपसी तालमेल-सूझबूझ किधर गायब है इनकी? टोहाना-हिसार-रोहतक-करनाल तक जो नतीजे लिए, वह हांसी में क्यों नहीं हासिल हुए या देरी लग रही है? एक से नहीं 24 की 24 से यह सवाल पूछिए| बिना इलेक्शन लड़े पंजाब वालों जितना काबू व् जबरा क्यों नहीं बना रहे ये या बना ही नहीं सकते? मेरे ख्याल से तो बना सकते हैं अगर छुपे रास्ते पोलिटिकल पार्टीज, ठगपाल कालिख (फरवरी 2016 फेम), जैसों से दिशानिर्देश लेने छोड़, आपस में सरजोडें तो; स्टेट व् सेण्टर के सत्ताऱूढ़ों से पारिवारिक रिश्तों की दुहाइयां देनी छोड़ें तो|
अगर स्टेट लेवल पर पंजाब जैसी एकता के लिए दूसरी स्टेट का हस्तक्षेप नहीं चाहिए तो उसको लागू क्यों नहीं कर रहे?
पंजाब वाले पंजाब में इतने रौब से इसलिए दहाड़ पाते हैं क्योंकि एक तो वो एक हैं, दूसरा स्टेट लेवल का मतलब स्टेट लेवल रखे हुए हैं, मूवमेंट को गैर-राजनैतिक रखने का मतलब सही मायनों में उसी राह पर चले हुए हैं; कहीं कोई अपवाद या अफवाह उठती भी है तो तुरंत उसको कहने मात्र नहीं अपितु वहीँ की वहीँ दबाने वाला खंडन करते हैं| और इसीलिए नेशनल लेवल पर भी कमांड में हैं|
सच्चाई यह है कि जिस स्तर की परिपक्वता पंजाब वालों ने हासिल कर ली है, वह बाकियों को अभी हासिल करनी रहती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 15 November 2021

सर छोटूराम धाम, सांपला में एक कन्वेंशन रखे SKM; दुविधा सी बनी स्थिति के सब बादल छंट जाएंगे!

जब हमने 9 जनवरी 2015 यूनियनिस्ट मिशन की शुरुवात की थी तो मेरी हरयाणा के कम्युनिस्टों से अक्सर बहस होती थी कि आपने कभी सर छोटूराम को क्यों नहीं उठाया; जवाब मिलता था कि इंडियन कम्युनिज्म की बागडौर बंगालियों के हाथ में रही है जो कि अधिकतर "सामंती विचारधारा की तथाकथित स्वघोषित स्वर्ण क्लास" से आते हैं व् सर छोटूराम इनको पसंद नहीं| हालाँकि सर छोटूराम कम्युनिस्ट नहीं थे, वह सेंट्र्लिस्ट थे; लेकिन उनका सेंटरलिस्म लेफ्ट वालों को जमता था|

पंजाब के सबसे बड़े लोकल कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत इस एरिया में अक्सर सर छोटूराम को आगे रखने की वकालत निरंतर करते रहे| सुरजीत जी वाली यह बात मुझे डॉक्टर रणबीर सिंह दहिया जी, रोहतक ने बताई थी| यही SKM को समझना होगा; यहाँ सेंटरलिस्म चलेगा, लेफ्ट या राइट नहीं|
आज जिंद (जींद) की SKM की कन्वेंशन के बाद या पहले; पूरे SKM को मिलके एक बार सर छोटूराम धाम जरूर जाना चाहिए; 24 नवंबर का इंतज़ार किए बिना| सारी दुविधा छंट जाएंगी| हमने पिछले लगभग 10 सालों से जो सर छोटूरामी अलख जगाई है, उसके अनुभव से बता रहा हूँ| क्योंकि उन चंद युवाओं में शामिल रहा हूँ, जिन्होनें सर छोटूराम को फिर से जिन्दा किया है व् विदेशों में तो सबसे अग्रणी रह के किया है और आज भी निरंतर इसी पथ पर अग्रसर हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 14 November 2021

3 दलित भाईयों के सवालों की वेदना कैसी शांत की - पार्ट 1!

"Decoding the 35 vs. 1" Series - 1, Chapter - 1


5 दिन पहले की मेरी पोस्ट में मैंने जिक्र किया था कि 3 दलित भाईयों ने मुझे बताया कि "दलितों को फंडियों ने नीचे-नीचे यह बात बोल के जाट के ज्यादा खिलाफ किया हुआ है कि जमीनें तुम्हारी क्यों नहीं हो सकती; या आज तक तुम्हारी क्यों नहीं होने दी; पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह जाट ही क्यों जमीनों के मालिक बने हुए आ रहे हैं| उन्होंने बताया कि इस पर नमक-मिर्ची यह लगाई जा रही है कि तुम्हारे पुरखों से यह जमीनें छीनी जाटों ने व् तुम्हें कभी उभरने नहीं दिया?

मैंने इन भाईयों को यूँ जवाब दे कर बात समझाई व् जाट समाज की उदारवादिता से परिचित करवाया| पार्ट 1 में सिर्फ सर छोटूराम ने क्या-क्या दिया ला रहा हूँ| पार्ट 2 में सन 1595 में लिखी गई "आइन-ए-अकबरी" पुस्तक में जाट-जमींदार बारे लिखित बातों से ले 1930 तक के दस्तावेजी तथ्य लाऊंगा; व् पार्ट-3 में 1947 की आज़ादी से आज तक के; ताकि फंडी के बनाए इस 35 बनाम 1 के जिंक को तोड़ने बारे भूमिका बंधे| तो पेश है पार्ट-1:

11 ऐसे कानून-अधिकार जो बाबा आंबेडकर से भी 12-14 साल पहले दलित-ओबीसी के हक में सर छोटूराम ने यूनाइटेड पंजाब में बना के लागू कर दिए थे:

वह दलित-ओबीसी भाई इस पर जरूर गौर फरमाएं जो फंडियों के झांसे में आ जाट के प्रति विरोध को बहुतेरी बार अंधविरोध तक ले जाते हैं| हो सकता है कि आपने यह तो सुना हो कि सर छोटूराम ने किसानों के लिए ताबड़तोड़ बहुतेरे कानून बनाए, भाखड़ा बाँध बनाया आदि; परन्तु दलित-ओबीसी के लिए भी बाबा आंबेडकर से भी 12-14 साल पहले इतना ज्यादा कर रखा है कि आप पढोगे तो आपको समझ आएगी कि जाटों बारे आपका गुस्सा कितना जायज है व् कितना नाजायज है| नीचे पढ़ें कि देश का सविंधान तो 26 जनवरी 1950 को कानून-रूप लेता है परन्तु यह 11 कानून 1936 से ले 1940 के बीच तब के यूनाइटेड पंजाब में कानून रूप ले चुके थे:

आधा-दर्जन कानून तो एकमुश्त 11/06/1940 को लागू किए गए, "Professional Labour Act" के तहत| और भारत में मजदूर के हक में (जो कि 90-95% दलित-ओबीसी क्लासों के होते आए) यह सब पहली बार सर छोटूराम ने अपनी स्टेट में लागू किए, जो कि निम्नलिखित थे:

1. सभी वर्किंग सेक्टर्स में Bonded Labour यानि बेगार प्रतिबंधित की गई|
2. Child labour below 14 years age प्रतिबंधित व् आपराधिक घोषित की गई|
3. First time in India working hours were fixed to 61 hrs a week, 11 hrs a day, 14 leaves per year; इससे पहले दिन-रात खटना पड़ता था; जैसे अब की वर्तमान सरकार ने फिर से ऐसी ही स्थिति ला दी है; 8 घंटे प्रतिदिन हटा के 12 घंटे तो कर ही दिया है; एक बार और सरकार आने दो 12 की भी हटाई जाएगी|
4. Sunday work off - कॉर्पोरेट व् दुकानों में इतवार ऑफ का कानून लाया गया ताकि मजदूर एक दिन सुकून का परिवार के साथ बिता सके|
5. छोटी सी गलती पर भी व्यापारी-दुकानदार तनख्वाह में कटौती मार लेता था, इस कटौती को "Auditing of salary deduction on every dollish mistake" के तहत auditable बनाया व् इस तरह मजदूरों पर व्यापारी-दुकानदार की मनमानी पर रोक लगाई|
6. पंचायती चुनावों में दलित-अछूतों को वोटिंग राइट दिया गया|
7. पंजाब के अछूतों को राजकीय नौकरियों में 5% आरक्षण दिया|
8. मुंशी व् जेलदार की पोस्टों पर विशेष आरक्षण दलितों को दिया गया|
9. 1938 में कृषि योग्य खाली पड़ी भूमि को दलितों में आवंटित करवाया| Biggest example was of Multan where 454625 acres of land was given on rate of Rs. 3 per acre on an interest rate of 25 paisa per year to be payable up to 12 years. Dalits rendered him the title of "Deenbandhu" on it.
10. वर्णवादी फंडियों के बहकावे में आ जिधर भी दलितों-अछूतों के अलग कुँए रखे जाते थे या कुँए खोदने ही नहीं दिए जाते थे; वहीँ सर छोटूराम के निर्देश पर भक्त फूल सिंह मलिक (खानपुर वीमेन यूनिवर्सिटी जिनके नाम पर है) ने गामों में दलितों के लिए कुँए खुदवाए| इसमें मोठ-लुहारी में कुआँ खुदवाने का किस्सा सबसे मशहूर है|
11. 1936 Mansukhi Bill: अंग्रेजों ने सैनी-खाती-छिम्बी जातियों (कुछ और भी जातियां थी इस लिस्ट में) को किसानी स्टेटस नहीं माना था, जो सर छोटूराम ने इस बिल के तहत दिया|

इस लेख से दलित भाइयों के, दो जवाब निकल के आते हैं: अब बताइए जो अपनी चलती में लाखों एकड़ की संख्या में दलितों को जमीनें बांटते थे, वह उनसे छीनने वाले कैसे हो जाएंगे; जैसा कि फंडी दलितों को भरमा रहा है? जो ओबीसी में आने वाली अपनी साथी जातियों को भी अंग्रेजों से लड़ के "किसानी स्टेटस" दिलाते थे; क्या वो दूसरों से छीन के जमीनें बनाएंगे?

तो जो भी वर्णवाद व् मिथकों से रहित दलित, ओबीसी व् जाट है; वह इन तथ्यों को 24 नवंबर 2021 सर छोटूराम के जन्मदिन तक सोशल मीडिया पर फ्लोट करके रखे| पूरी पोस्ट नहीं तो चाहे बेशक 11 कानूनी बिंदुओं को ही डालें; परन्तु इसको इतना जरूर फैलाएं कि अधिकतम दलित-ओबीसी तक यह बिंदु पहुंचें; तभी 35 बनाम 1 का आग्गा ले पाएंगे|

फंडियों का साइकोलॉजिकल वर्ड्स वॉर गेम (Psychologiccal Words War Game) ऐसी ही पोस्टें तोड़ पाएंगी| मैं इस जिंक को तोड़ने पर लग चुका हूँ; आप भी अपनी आहुति देवें|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 6 November 2021

अरविंद शर्मा इंसान को इतना जल्दी अपनी पिछोका नहीं भूलना चाहिए!

आ जा तुम्हें बताऊँ कि जाट-जमींदारों जैसे सोच से कैसे शाही थे, हैं और रहेंगे; और तुम्हारे जैसे व् जिन उघाड़ों को साथ ले गलमठे पा रह्या थम कैसे चांडाल थे और रहोगे|

सबसे पहले तो आँख निकाल व् हाथ काट तेरे पुरखों के जो "किसान को राजाओं का राजा लिख-लिख मर गए"| किसानों की सबसे बड़ी बिरादरी जाट को "जाट जी" "जाट देवता" लिख-गा-बोल चले गए| सत्यार्थ प्रकाश उठा के पढ़ लेना|
फिर हाथ काट व् आँख निकाल तेरी दादियों-काकी-ताइयोँ की: जो सदियों से व् आज तलक भी जाट-जमींदारां की रसोई में रोटी-टूका बनाने व् बर्तन-भांडे साफ़ करने बदले में 4 रोटी पा गुजारा करते आए| मेरे बड़े नाना के यहाँ आती थी म्हारी एक मिश्राणी मामी; जिस दिन चाहिए उस दिन दे दूंगा गाम-नाम समेत सारी डिटेल| जा काट आईये उनके हाथ और काढ़ आईये उनकी आँख| परन्तु थारी तरह बेशर्म नहीं सैं हम, अपने कामगारों की भी इज्जत व् मर्यादा निभानी जाणैं सैं; इसलिए फ़िलहाल गाम-नाम समेत नहीं लिख रहा| और यह किस्से हर गाम गेल दे दूंगा; दिखां कितनों की आँख निकालेगा व् कितनों के हाथ काटेगा; जाट-जमींदारों के यहाँ से चूल्हे-चौके करने पे| थम इसलिए कुकाओ सो क्योंकि थारा यह जाट जैसा इतिहास नहीं| जाट-जमींदारों की हृदय-विशालता पर गुजारा करने वाले आज तू स्वघोषित स्वर्ण और शेर बनना चाहू सैं? थारे में से ही एक-दो की जुबानी सही में ठीक ही तेरे जैसों को आरएसएस वाले थारे ही गैर-हरयाणवी भाई, तुम्हें गंवार व् सबसे रद्दी कहवैं हैं| और जैसे जाट और बिरादरियों को दान देता आया, ऐसे तुम्हें तो सबसे ज्यादा ही दिया है|
जाट से इतना पा के जाट के ही नहीं हो सके; और लगे भी तो किनकी गेल, इन उघाड़ों गेल मिल कें आँख निकालोगे? और इन उघाड़ों के चक्रों में पड़ियों भी मत| "धोळी की जमीन की मलकियत खट्टर के हाथों थम खुसवाएं हांडो (म्हारे ही पुरखों से पाई थी, थारे पुरखों ने; जा पहले उनकी आँख निकाल व् हाथ काट) और कदे हाडों इनके फरसों से गर्दन बचाते और इनके साथ मिलके थम जग जितना चाहू सो? क्यों हंसा-हंसा पेट फाड़ै सै म्हारे|
और बोल कितना बोलेगा, जितने कह उतने पज पाडुं थारे तथाकथित आँख निकालूं व् हाथ काटुओं के|
जय यौधेय! - फूल मलिक





स्वघोषित कंधों से ऊपर मजबूतों की मजबूती तड़काता "किसान आंदोलन" पार्ट-2

आज रोहतक में रोहतक सांसद अरविन्द शर्मा तड़क गया और तालिबानी अंदाज में बड़बड़ाया "मनीष ग्रोवर के तरफ आँख उठेगी तो आँख निकाल लेंगे, हाथ उठेंगे तो हाथ तोड़ देंगे, छोड़ेंगे नहीं"|
अच्छा जी खट्टर ने थारी धोळी की जमीन खोस (छीन) ली, बिगाड़ लिया कुछ उसका? फरसे से काटने यह थमनें दौड़ लिए; फिर भी इतना याराना? दीन-ईमान-मान-अक्ल सब बेचें फ़िरों हो कती?
रै बावले ब्रह्मा-विंष्णु वालो अपनी लिमिट पहचानो, सामने शिवजी है तीसरी आँख खोले; नहीं जीत पाओगे यूँ आँख दिखा के तो कभी नहीं; थारे पुरखे कभी जीते हों इस अंदाज से तो थम जीतोगे|
मैं तो अक्सर कहता ही रहा हूँ कि इनका तथाकथित ज्ञान व् बुद्धि तभी तक survive करते हैं जब तक किसान/जमींदार मैदान में नहीं आन उतरते| किसानों ऐसे ही दादा महाराज सूरजमल की भांति शांति धारे धरना देते रहो; यह अरविन्द शर्मा तो ऐसे हवा होगा जैसे इसके पुरखे पूणे पेशवा सदाशिवराव भाऊ को पानीपत की तीसरी लड़ाई में दादा महाराज सूरजमल ने ऐसे ही बिना हथियार उठाये धूल चटवा दी थी| इनकी तरफ तो भर के आँख लखा दो इतना ही बहुत है| अब देख लो कल एक माफ़ी ही तो मंगवाई थी किलोई में, थर्र-थर्र काँप के लगे बड़बड़ाने|
अपने पुरखों के "तीसरी आँख खोले शांति धारे रूप की ताकत पर" भरोसा रखना; इहसे-इहसे तो इतने में ही बह जायेंगे| थारे पुरखों की उस पानीपत की तीसरी लड़ाई से स्थापित वह कहावत कभी मत छोड़ना जो कहती है कि "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"|
कुछ दिन पहले खट्टर, "लठैत तैयार करवाने की बड़बड़ा के" अपनी तथाकथित कंधे से ऊपर की मजबूती के घमंड का पलीता निकलवा चुका और आज यह इंसान भी|
आप लोग जीत चुके हो, इसका अंदाजा इसी बात से लगा लो कि जो लोग हरयाणा में 35 बनाम 1 रचने के पीछे रहे हैं व् कभी राजकुमार सैनी तो कभी रोशनलाल आर्यों जैसों को आगे करके स्वघोषित बुद्धिमान बनते रहे हैं आज आप लोगों के तप ने इनको एक-एक करके सबको बिलों से बाहर आने पर मजबूर कर दिया है| जरा ठहर के किसान वीरो, देखने दो अभी तो इनकी स्वघोषित कंधे से ऊपर की मजबूती पूरे विश्व को|
बाकी किसान वह कौम है जो अपने घर फूंक के चूहों के आँख कर दिया करे| अगर यह भी स्थिति आई तो पंजाब के सिख भाई भलीभांति बता देंगे कि उन पर 1984 करने वाले आज कितने बचे हैं पंजाब में|
और दूसरा अपनी गलती ठीक कर लो, इन फंडियों पे ऐसी लकीर मार दो कि फंडी बनाम नॉन-फंडी में घिर के रह जाएँ यह|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 1 November 2021

टिकैत साहब व् अन्य किसान नेता फिर से सरकार को खिला रहे हैं या?

यह दो कदम पीछे हटते दिखने का मतलब बड़ी तैयारी है या कोई झिझक?


तैयारी है तो चिंता ही नहीं परन्तु झिझक है तो उसके लिए तमाम संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अपने पुरखों की नीतियों व् सोच का अध्ययन कर लें; झिझक स्वत: दूर होती चली जाएगी! ज्यादा पीछे के इतिहास में नहीं जाऊंगा, अन्यथा दर्जनों उदाहरण बादशाहों-राजाओं से कृषि अधिकारों की लड़ाइयों बाबत खापों व् मिशलों की तारीखों में विद्यमान हैं| हम अगर 20वीं सदी से भी शुरू कर लें तो पर्याप्त प्रेरणा व् मार्गदर्शन के उदाहरण मौजूद हैं:

1 - याद करें चाचा सरदार अजित सिंह जी को, जो गुलाम देश होते हुए भी सन 1907 में 9 महीने लगातार आंदोलन चला, अंग्रेजों से ऐसे ही काले बिल वापिस करवा के माने थे|
2 - याद करें सर छोटूराम को, जिन्होनें मुख्यत: तीनों धर्मों (हिन्दू-मुस्लिम-सिख) के किसानों को धार्मिक भावना की कमजोरी व् दब्बूपन से ऊपर उठा, तब के यूनाइटेड पंजाब में लगातार निर्बाध 25 साल निर्बाध सरकार चलाई| याद करें कि सर छोटूराम ने क्यों 1921 के असहयोग आंदोलन से खुद को वापिस हटा लिया था?
3 - याद करें, सरदार प्रताप सिंह कैरों को, कैसे तब फंडियों से लड़ के फंडियों के बीच बेख़ौफ़ सरकारें चलाई!
4 - याद करें, चौधरी चरण सिंह को, कैसे कर्तव्य-परायणता के आगे एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री तक को जेल में डालने से नहीं हिचके थे|
5 - याद करें, कि कैसे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने शुक्रताल, मुज़फ्फरनगर की घटना में फंडी धर्मांधों को उनकी औकात दिखाई थी|

और अगर इतने भर से काम नहीं चलता और धर्म नाम की पीड़ में ना उलझ गए हों तो माइथोलॉजी ही याद कर लें कि कैसे इसमें किसान जाट को शिवजी भोले का रूप बताया गया है| उसी शिवजी भोले का रूप, जो जब ब्रह्मा व् विष्णु से जनता व् समाज अनियंत्रित हो जाते हैं (जैसे कि आज हुई पड़ी है) तो शिवजी तांडव पर उतर उसको आर्डर में लाते हैं| बस आप भी यही काम कर रहे हैं, कोई धर्महानि या धर्महीनता नहीं| बस धर्म वालों के आगे यह शिवजी भोले वाला तर्क पब्लिकली बोल के आगे अड़ा दें (इस एक लाइन से सम्पूर्ण फंडी काबू आ जाएगा), फिर देखें वह आपको कौनसे धर्म की हानि की दुहाई देंगे? अपितु ऐसे भावनाओं में उलझा कर ऐसे लोग ना सिर्फ किसान-मजदूर की हानि कर रहे हैं अपितु सम्पूर्ण मानवता के दुश्मन साबित हो रहे हैं|

यह जड़बुद्धि, कुबुद्धि, मूढ़मति व् स्वकेन्द्रित लोग हैं, इनको इतनी अक्ल नहीं है कि इनसे गलती हो गई है तो पीछे कदम खींच लें; इनको शिवजी भोले की भांति साइड करके, चीजें आर्डर में लानी होती ही हैं| अन्यथा यह यूँ उलटे नहीं हटेंगे चाहे इनको गद्दी ही क्यों ना गंवानी पड़े|

इसलिए बेझिझक आगे बढिये, व् अब असली अस्त्र यानि "आर्थिक असहयोग" को इस्तेमाल कीजिये व् अपना किरदार सार्थक कीजिए|

जय यौधेय! - फूल मलिक