Sunday, 5 June 2022

पृथ्वीराज के जरिए वास्तविक इतिहास में झूठ परोसने की ताकत कहाँ से आती है इनको?!

झूठे तथ्यों पर आधारित फिल्म भी हिट करवा लेंगे का कॉन्फिडेंस इनको इस बात से आता है कि तुमने जब इनकी 30 साल से परोसी जा रही माइथोलॉजी की फिल्मों व् टीवी सीरियलों पर कभी सत्यता की डिबेटें नहीं की व् जिसने की उनको नास्तिक या धर्मविरुद्ध बता के वह सब मिथ्स अपने दिमाग में उड़ेलते रहे तो "पृथ्वीराज" मूवी में 1206 में मरने वाले गौरी को 1192 में मार के दिखा दिया तो क्या जुल्म हो गया? उनमें 30 साल से ऐसा करने का कॉन्फिडेंस तो तुमने ही भरा है ना; भुगतो अब| अभी क्या है, अगर आगे भी नहीं सुधरे तो इतिहास कितना और मरोड़ के दिखाने वाले हैं ये उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते| यह तो शुक्र है कि यूरोप व् अरब की इंटरनेशनल हिस्ट्री को तोड़मरोड़ नहीं सकते व् वह ज्यों-की-त्यों इंटरनेट पर उपलब्ध है; वरना मामला सिर्फ भारत के भीतर का रहा होता तो यह जो इंटरनेट से सच जान लेते हो यह भी गायब होता व् कहीं ढूंढें से भी नहीं मिलता|
और जहाँ-जहाँ इनका काबू है गायब कर भी रहे हैं| ध्यान दो खासकर राखी गढ़ी जैसी खुदाई पर, 2017 में दक्कन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इन इस रिसर्च में राखीगढ़ी की मम्मियों में जाट का DNA मिलना तो बता दिया; तुम्हारी मैथ्स व् माइथोलॉजी को सच मानने की यही स्पीड रही व् यूँ मूर्छा में चलते रहे तो 10-20 साल बाद यह भी गायब मिलेगी| और यह लोग इस काम पर लग भी चुके होंगे| आपके कितने शोधक इस लीड को और गहरी खोद कर उसको बड़ी बनाने में लगे हैं? नहीं लगे हैं तो उनका ध्यान लगवाइए इन बातों की तरफ|
यह मुग़लों-अंग्रेजों से इतिहास बिगाड़ा और उसको यह सुधार के लिखेंगे व् दिखाएंगे| देख लो इनका सुधारना व् दिखाना| और वह जाट जो इनके अंधभक्त बने हैं वह खासतौर से देख लो कि 1206 में खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों मारे जाने वाले गौरी के तथ्य की ऐतिहासिक सच्चाई कैसे छुपाई जा रही है| चलो मान लिया हम तो इनके विरुद्ध हैं, परन्तु आप क्या कर या करवा पा रहे हो इनके साथ रह के अपनी कौम-कल्चर-किनशिप की सत्यता की बहाली के लिए? और अगर नहीं ही कुछ करवा पा रहे या करवाने की चेष्टा तो जो कर रहे हैं उनको कम से कम मूक ही सही परन्तु समर्थन तो दिया करो|
और इस बात से यह भी समझ लो कि "खाप व् खाप वालों के लिए" इनके मन में कितना आदर मान-सम्मान है; रत्ती भर भी नहीं| वरना होता तो मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी के साथ यह तिरष्कार कि उसको राष्ट्रीय हीरो बनाने की बजाए, उसके किये का क्रेडिट कहीं और दिया जा रहा है? यह खाप से संबंधित एक-एक नुमाईंदे-बंदे के लिए विचार-विमर्श का विषय है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 3 June 2022

UCC (Uniform Civil Code) कानून में शादी बारे एक क्लॉज लाया जा रहा है, जिसके ऊपर बैठ कर बड़ी राजनीति की जायेगी!

क्या, किसपे व् कैसी राजनीति की जाएगी?

अमूमन लोकसभा के आगामी मानसून सेशन में क्लॉज़ आ रहा है कि, "ब्याह शादी में पूरे देश में एक कानून होगा व् उसके तहत भाई-बहन को भी आपस में ब्याह की इजाजत होगी"|
अब इसपे इनकी पॉलिटिक्स क्या व् किसपे है?: इसका सबसे ज्यादा विरोध वह समाज व् उसकी सामाजिक संस्थाएं करेंगी जो "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करते हैं व् इसमें भी गौत छोड़ के तो जरूर से जरूर करते हैं| वह उत्तरी भारत का एक ख़ास तबका है, जिसने किसान आंदोलन को भी लीड किया था|
कैसी राजनीति होगी?: देश की बाकी जनता को दिखाया जाएगा कि हम चाहे कुछ भी कर लें, परन्तु इन्होनें रहना हमारे विरोध में| व् इस तरह से इस तबके को बाकी तबके से आइसोलेट करके दिखाया जाएगा| व् विरोधों को देखते हुए इस क्लॉज़ को बाद में वापिस भी ले लेंगे| यानि यह गेम होगा बस इस तबके को जन्मजात विरोध करने वाला दिखा को|
इलाज क्या है इस चाल का?: पहले से ही अपनी बैठकें-पंचयातें करके, डीसी ऑफिसेस व् मीडिया के जरिए संसद तक अपनी यह ऑब्जेक्शन पहुंचा दो, वरना इसके आने के बाद में पहुंचाओगे तो वही होगा जो ऊपर लिखा है|
पता नहीं, "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करने में विश्वास रखने वाले भक्त लोग अब इसपे क्या करेंगे; बेचारे चले थे इनके साथ देश व् धर्म बचाने, पता लगा इनका रक्तबीज ही बदलने जा रहा है| जो जागरूक हैं वह एक्शन ले लें ऊपर बताये तरीके से वक्त रहते|
जय यौधेय! - फूल मलिक

मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर की जय हो!

अक्षय कुमार अभिनीत "पृथ्वीराज चौहान" फिल्म, इतिहास नहीं, एक काल्पनिक उपन्यास की कहानी है! - बकौल यशराज फिल्म्स


एक सामाजिक महासभा ने यशराज फिल्म को लीगल नोटिस भिजवाया कि जब पृथ्वीराज चौहान की मौत सन 1192 में हो चुकी थी व् उसको मारने वाले मोहम्मद गौरी की मौत होती है सन 1206 में जा के हुई, वह भी खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों; तो यह इतना बड़ा झूठ क्यों परोस रहे हो?

तो यशराज फिल्म ने जवाब दिया कि हमने इतिहास पर फिल्म नहीं बनाई है अपितु एक काल्पनिक उपन्यास पर फिल्म बनाई है व् इतिहास से हमारा कोई लेना देना नहीं|

और इस फिल्म के मेकर्स को मजबूर किया गया यह बात फिल्म के बिलकुल शुरू में "Disclaimer" में लगाने को कि यह सच्चा इतिहास नहीं अपितु एक काल्पनिक कथा है| देखिएगा आज फिल्म में यह डिस्क्लेमर है कि नहीं|

उन तथाकथित धर्म-भीरुओं की विडंबना देखो कि वो उनसे राष्ट्रवाद सीखते हैं, जिनको माइथोलॉजी तो माइथोलॉजी, वास्तविक इतिहास तक भी "काल्पनिक उपन्यास" बता के परोसने पड़ते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 1 June 2022

सिद्धू मुसेआळे की चार सबसे बड़ी देन!

1 - किसानां के पुत्त मोटरसाइकिल-कारों से उतार वापिस ट्रैक्टर्स पर बैठने में गर्व करने सीखा दिए|

2 - "झोटा" शब्द को इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया|
3 - कमा-धमा के गामों में ही ठाठ से बसणा सीखा दिया|
4 - किसान-मजदूर का पुत्त हो के भी इंटरनेशनल लेवल का मास-अपील वाला लेखक-गायक हो सकता है, दुनिया को जता दिया|
आओ इस चीज को पुख्ता करें कि उसके जैसी हत्या दोबारा ना हो समाज में, इसके लिए सरकारों के कानों में आवाज ले जानी है तो वो हो; या गैंग्स में सुलह करवानी हो तो वह भी हो| कम-से-कम इतनी सुलह जरूर हो कि अपनी ही कौम-खून-खूम-पिछोके के लोगों को नहीं मारेंगे|
मैं जब कॉलेज लाइफ में था तो मेरा घर-गाम के पशुओं से इतना लगाव था कि उन पशुओं को गली-घर-गोरे पे जहाँ होता वहीँ, मेरी इतनी पहचान थी कि गाम आळा झोटा तो मुझे कहीं भी देख लेता तो लाड में पूंछ उठा दिया करता व् नाड से खस के कहता कि मेरे खाज कर दे| गाम आळा खागड इसी स्टाइल में खुर्रा मारने की कह देता| एक-आध जलकंड हर जगह होते हैं, जिनसे कोई मेरे बारे पूछता तो कहते कि, "बाकी तो छोरा ठीक सै पर जब देखो डांगर-खागड-झोटयां के चीचड़ तोड़ें जा सै"|
एक बार तो म्हारे गाम आळे झोटे को चाबरी में (सीम लगता गुहांड सै म्हारा) षड्यंत्र के तहत अधमरा करके डाल दिया गया था, झोटे से उठा भी नहीं जाता था, ट्राली में डाल के लाया था गाम व् म्हारे घेर में रखा गया था| एक मेडिकल नर्स की भांति उसकी सेवा मैंने अपनी देखरेख में की थी व् न्यूनतम वक्त में उसको वापिस खड़ा होने लायक बना दिया था| उस दौरान वह झोटा जब भी मेरी गोद में सर रख के सोता तो उसकी आँखों से आंसूं टपकते रहते व् मैं उनको पोंछता रहता|
भाई रै सिद्धू मुसेआळे मैं आज भी वही जाट सूं, बैठा बाहर जरूर सूं; पर आत्मा खाप-खेड़े-खेतों में ही रमती है यहाँ बैठे भी| और धन्यवाद "झोटा" शब्द को ब्रांड बनाने का तो खासतौर से|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 31 May 2022

अबकी बार जाट-जट्ट "अपना-अपने को मारे" वाली गलती नहीं कर रहा, डॉन तक इस बात की अहमियत को समझ रहे हैं!

इसीलिए "गोल्डी बराड़" का जब नाम आया मुसेवाला की मौत में तो उसने तुरंत वीडियो जारी करके कहा कि इसमें उसका रोल नहीं है|

वह लोग इस बात पर ध्यान दें, जो यह सोच के हताश हुए जाते हैं कि जट्ट, जट्ट को मार रहा है| मेरे ख्याल से किसान आंदोलन ने इतनी शिक्षा कूट-कूट के भर दी है कि अपने को मारने को अपना ही हथियार नहीं बनेगा| जाट-जट्ट तो क्या किसी भी जाति का किसान ऐसा ना करे|
हाँ, सरकारी तंत्र में किसी अफसर आदि या सीएम तक पे जिम्मेदारी धर के इसको जट्ट बनाम जट्ट रंग देना बहुत बड़ी नादानी व् जल्दबाजी दोनों हो सकती है| इस बात का शुकून लो कि जाट-जट्ट एक चल रहा है|
व् तमाम बिरादरियों के किसान की हर स्तर के फील्ड की औलाद इस बात की अहमियत को समझे| भाई पैसा कहीं और से भी कमा लोगे, किसी और की सुपारी ले के भी कमा लोगे; परन्तु उनकी सुपारी मत लो, जो इस किसान आंदोलन की जड़ हैं/थे| और अगर ऐसा कुछ करना भी पड़े तो ज्योना जट्ट, लजवाणिया दादा भूरा व् दादा निंघहिया की भांति करो; रॉबिनहुड की भांति करो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 30 May 2022

जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!

सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!

अगर अकेले ब्रह्मा में सब कुछ संभालने की क्षमता होती तो तुम्हारे ही ग्रंथ-पुराण वाले त्रिमूर्ति का कांसेप्ट ना रखते, जो साक्षी है इस बात का कि ब्रह्मा अकेला सृष्टि नहीं संभाल सकता| और अकेले विष्णु में ही यह क्षमता होती तो भी त्रिमूर्ति नहीं होती और ऐसे ही शिवजी इस त्रिमूर्ति का हिस्सा है|
ब्रह्मा ही सब कुछ सीखा सकता तो विष्णु अवतार परशुराम, शिवजी का शिष्य नहीं होते|
अब मोटे-तौर पर सांसारिक सरंचना में यह साइकोलॉजिकल तिगड़ी कैसे पूरी होती है वह भी देख लो और अच्छे से यह समझ लो कि जो तुम चाह रहे हो यह हर सिद्धांत पर तुम्हारे बस से बाहर है; वह कैसे?
ब्राह्मण: ब्रह्मा पर कॉपीराइट रखता है|
बनिया: विष्णु पर कॉपीराइट मानता है|
जाट: शिवजी पर कॉपीराइट मानता है, इसीलिए जाटलैंड पर सबसे ज्यादा शिवाले जाटों से जोड़ कर बताए गए हैं; हैं कि नहीं हम तो आज भी फ़िक्र नहीं करते|
शिवजी जाट है, यह हर दूसरे-तीसरे इतिहासकार से ले हर लोक्कोक्ति-कहावतों तक में पढ़ा-बताया जाता रहा है| यह नहीं भी है तो इतना तो फिर भी है कि जाट शिवजी से पैदा हुए बताते हैं तुम्हारे ही तथाकथित इतिहासकार|
अब आज जो तुम कर रहे हो तुम्हारी वर्तमान सरकार के जरिए, जाट को निशाने पर रख कर; इस ऊपर की व्याख्या से समझ जाओ, तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो| क्योंकि यह वह दौर है जब तुम्हारी हर गैर-जिम्मेदारी व् षड्यंत्र की अति हो चुकी है व् उस अति के चलते शिवजी तीसरी आँख खोले चल रहा है व् इसी वजह से किसान आंदोलन में तुमको हार देखनी पड़ी व् तीन कृषि कानून वापिस लेने पड़े|
किसान आंदोलन में हार देख के भी नहीं समझे तो और क्या चाहते हो? नहीं दबा पाओगे, क्योंकि सामने किसानों की एकता की अगुवाई में तुम्हारा ही बताया शिवजी रूप जाट है| समझ लो इस बात को| या हम समझ लें कि फंडी, किसान एकता ने पागल होने के स्तर तक ला छोड़े हैं; और तुम लोग पागल हो चुके हो, दिमाग से पैदल हो चले हो?
यह बहम छोड़ दो कि तुम जाट को आँख दिखा के दो दिन भी चल लोगे| तुम्हारे पुरखे नहीं चल पाए, तुम्हारे पुराण-ग्रंथ लिखने वालों ने यह माना तो तुमको किस बात का बहम हुआ जाता है? यह कहावत यूँ ही नहीं चलती समाज में, पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद से तो सत्यापित तौर पर चलती है कि "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"|
मुझे नहीं लगता कि इससे शालीन व् सभ्य तरीका और कोई हो सकता था तुम्हें यथास्थिति व् तुम्हारी अवस्था समझाने का| आगे तुम्हारी मर्जी|
और जितना आमने-सामने आते जाओगे, उतना कमजोर होते जाओगे; यह श्राप तुमको ब्रह्मा से ही है कि तुम शिवजी का मुकाबला करोगे तो श्रापित हो के भटकोगे, तुम्हारे ही बताएअश्वत्थामा की तरह|
जय यौधेय! - फूल मलिक

कल तक सादगी दिखाने वाले, आज दादगी दिखाने लगे; मतलब आ गए असली औकात पर!

लेख में आगे बढ़ने से पहले SKM को अपील: संयुक्त किसान मोर्चा भी फिर से एक होने की सोचे व् जो इलेक्शन लड़ने चले गए थे, उनको माफ़ करके, अबकी बार एक मिनिमम कॉमन प्रोग्राम बना के फिर से एक हों|


आज बैंगलुरु में चौधरी राकेश टिकैत की सभा को छिनभिन्न करने वालों का हंगामा देख कर, मुझे मेरे बचपन के वो वक्त याद आ गए जब मेरे गाम में किसी फंडी के घर सतसंगी आते थे तो गाम के गाबरू बाळक उनके घर रेत के लिफ़ाफ़े भर-भर फेंक के आते थे, पत्थर तक मारते थे सतसंगियों को; कि गाम का कल्चर बिगाड़ रहे हैं, सिस्टम बिगाड़ रहे हैं व् खड़ताल-ढोलकी बजा लोगों की नींद हराम करते हैं, शोर यानि ध्वनि प्रदूषण करते हैं (जो कि कानूनी भी अवैध होता है), अश्लीलता फैलाते हैं| तब फंडी लोग मिमियानी सी आवाज बना के बोलते कि हम तो म्हारे घर में कर रे सां, किसे नैं के कहवाँ सां; रोळा यानि शोर घर तें बाहर गया सै तो कोए ना गलती होई, फेर ना होवैगी|

आज समझ आई कि वह क्रिया क्यों जरूरी होती थी| वह इसलिए जरूरी होती थी कि जो आज हो रहा है यहाँ तक के हालात कभी समाज में ना बनें| यह वही मिमियाने लोग आज खुद यही हरकतें कर रहे हैं, वह भी किसी शोर-सतसंग की वजह से नहीं; किसानों द्वारा बाकायदा सरकार की परमिशन लिए स्थलों पर अपने हक-हलोल पर चर्चा-मंत्रणा करने मात्र पर| इन हालातों के साथ समझौते किये हैं तो भुगतने तो होंगे ही अन्यथा यह सब ठीक चाहिए तो आ जाओ उसी मोड में|

सोचो क्या हो, जोणसे कनेक्शन जिधर से ढीले छोड़े चल रहे हो, उनको तो वहीँ से टाइट करने से काम चलेगा| वरना इन्नें तो कर दी, "सिंह ना सांड और गादड़ गए हांड" वाली|

जय यौधेय! - फूल मलिक

अभी सिद्धू मुसेवाला की मौत का बहाना बना कर, एंटरटेनमेंट जगत में "गन कल्चर" व् पंजाबी-हरयाणवी गानों में "जट्ट-जाट" के जिक्रे होने को निशाना बनाया जाएगा; इनके ललित निबंधों/उपदेशों से घबराने का नहीं!

बल्कि ऐसे लोगों को एक तो बॉलीवुड की "एंग्री यंगमैन" यानि "लम्बू" यानि "अमिताभ बच्चन" के जमाने से चले इस "गन" व् "डॉन" कल्चर की याद दिला देना, जो आज तक बदस्तूर जारी रहते हुए इतना वाहियात स्तर ले चुका है कि "धाकड़" फिल्म जैसा गोबर तक परोसने लगे हैं|
और जो "जाट-जट्ट" की बात करे, उनको "विनम्रता से, जी लगा के" फिल्मों में फेरे एक ही जाति का पंडित/शास्त्री ही करवाता क्यों दिखाया जाता है इसकी याद दिलवा देना; वह आर्य समाजी जरूर याद दिलवा देना, जहाँ सभी जाति के शास्त्री हवन-फेरे करवाते आए परन्तु आज इस धंधे पर सिनेमा-मीडिया के जरिए जैसे एक जाति विशेष ही अपना कब्जा चाहती हो| क्यों नहीं दूसरी जाति का पंडित-शास्त्री फेरे करवाता दिखाते, नाम लेने तक को भी?
और अभी इधर हरयाणा में "फरसे" व् "तलवारों" वालों समेत सड़कों पर कंधे लाठी धर यात्राएं निकालने वालों की याद दिला देना; स्टेडियम-अखाड़ों की बजाए पार्कों में लाठियां भांजने वालों की याद दिला देना|
जाट-जट्ट के जिक्रे कम-से-कम झूठे तो नहीं होते और ना ही किसी अन्य को रोकते| लगभग-लगभग हर जाति किसी न किसी गाने में मेंशन हो चुकी है| जाट-जट्ट ज्यादा होते हैं तो किस बात की जलन इस बात से? और इनको यह भी याद दिलाना कि यह बॉलीवुड की फ़िल्में देखो इनमें 90% पॉजिटिव कैरेक्टर कौनसे गौत-जात वाले होते हैं व् नेगेटिव कौनसे वाले? इस जातिवाद पर कब बोलोगे, अगर जाट-जट्ट गानों में आने से ही जातिवाद हो जाता है तो?
जाट-जट्ट कभी गानों में जिक्र आता है तो झूठे क्लेम्स का नहीं आता| इसलिए यह रोते हैं तो इनको रोने दो| अपनी अणख यही कहती है कि खुद को महान बताने को "माफीवीरों" को वीर हम तो नहीं कहेंगे व् दूसरों को बहु-बेटियां दे राज बचाने व् रण छोड़ कर भाग जाने वालों को "वीर", "महान", "राष्ट्रवादी" प्रचारित, हम तो करेंगे नहीं|
हम युगों से "सीरी-साझी" का कल्चर पालने जाट-जट्टों को अब यह बहरूपिए फंडी बताएंगे क्या कि जातिवाद क्या होता है| मुंह धो के आओ, जन्म से मरण तक आकंठ जातिवाद व् वर्णवाद में जीने वाले दोगले लोगो|
जाट-जट्ट अपने को गानों में प्रमोट कर लेते हैं तो इसलिए कि वह असल "सीरी-साझी" कल्चर पालते हैं, जो पालना तुम्हारे फरिश्तों की भी औकात नहीं| इसी कल्चर से जाट-जट्ट में यह आत्मबल आता है कि वह इतने आत्मविश्वास से समाज में अपनी बात कह लेता है| तुम पाल के देख लो इस कल्चर को, यह आत्मविश्वास तुम में भी आ जाएगा|
परवर्दिगार, मुसेवाला की आत्मा को शांति दे व् उनके परवार समेत तमाम पंजाबी-हरयाणवी फिल्म-म्यूजिक इंडस्ट्री व् इनके फोल्लोवेर्स समेत किसान यूनियनों को इस क्षति को खेने का संबल दे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 29 May 2022

हरयाणा में नगर परिषद चुनाव जेजेपी को छोड़ अकेले लड़ेगी बीजेपी!

यह बात उन लोगों के लिए सबक होना चाहिए जो यह समझते हैं कि तुम फंडियों से अपनापन दिखाने की होड़ में खुद को व् खुद के परिवार को, अपने पड़दादा को पब्लिकली "असली संघी" भी कह लोगे तो यह तुम्हें अपना मान लेंगे या मानने लगेंगे| किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी से समर्थन वापस लेने बारे हरयाणा विधानसभा में हुई बहस याद है ना?
हमारे जैसे समझाने चलते हैं तो हमें जातिवादी बोल के, 50 साल पुराने विचार बोल के किनारा काटने लगते हो और फिर 100 साल पुराने विचार वालों से गठबंधन करे मिलते हो|
तुम इनसे जितना चाहे चिपक लो, यह तुम्हारा इस्तेमाल करके; तुम्हें फेंकना अच्छे से जानते हैं| इन्होनें बाबा रामरहीम नहीं बख्शा जिसने बैठे-बिठाए 2014 में यह सत्ता में ला दिए थे हरयाणा में; तुम्हें धरते ये सर पे?
अपने कौम-कल्चर के भाईयों से सरजोड़ के नहीं रखने के यही नतीजे होते हैं|
कितनी कोशिश की थी हुड्डा साहब ने कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही कि आ जाओ मिलके सरकार बना लेते हैं, डिप्टी सीएम भी बन जाना; परन्तु नहीं|
"अपना मारे, छाँव में गेरे" की लाइन पे चलते हुए उस वक्त अलायन्स कर लेते कांग्रेस व् जजपा तो आज जजपा के साथ यह कहानी नहीं बनती कि बीजेपी का साथ दे के अपनी क्रेडिट वैल्यू भी खोई, अकेले भी छोड़ दिए गए बीच आधी-टर्म और आगे के रास्ते भी बंद कर लिए| चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की पहली सजा के वक्त तो कांग्रेस व् हुड्डा जी दोषी बता दिए; अब रुकवा ली सजा; स्टेट-सेण्टर दोनों जगह गठबंधन की सरकार होते हुए? ना दादा की रुकवा पाए व् अभी पिता-काका का भी पता नहीं कि शायद फिर से हो जाए|
हालाँकि यह राजनीति है इसलिए इसमें जो इस पल सही हो वह जरूरी नहीं कि हर वक्त सही ही हो; परन्तु वह जरूर हर वक्त सही ही होता है जो आइडियोलॉजी पकड़े रहता है, किनशिप थामे रहता है| और बीजेपी व् आरएसएस को यह अच्छे से आता है कि कौनसी, किसलिए, किनके लिए व् किसकी आइडियोलॉजी पकड़नी है व् वह उसको पकड़े चल रही है; भले ही उससे भला सिर्फ फंडियों का होता हो|
फंडियों ने कौन अपना और कौन "यूज एंड थ्रो" सब निर्धारित कर रखा होता है| यह बात सर छोटूराम समझाते-समझाते जा लिए धरती पर से| फंडियों-संघियों की ताकत यह है कि यह किसी भी हालत में अपनी आइडियोलॉजी नहीं छोड़ते; चाहे यह भूखे मर जाएँ या हँघाए छकें| भूखे होंगे तो मांग के खा लेंगे परन्तु आइडियोलॉजी नहीं छोड़ेंगे और जब छके होते हैं तो वही करते हैं जो बाबा रामरहीम के साथ किया या अभी जजपा व् चौटाला परिवार के साथ हो रहा है कि साथ दे के भी, सरकारें बनवा के भी निताणे के निताणे| और आइडियोलॉजी एक व्यक्ति या पीढ़ी का काम नहीं, इसको कायम रखना पीढ़ी-दर-पीढ़ी रिले-रेस जैसा होता है|
जजपा वालों के लिए मेरे अंदर कोई द्वेष आ ही नहीं सकता अपितु दुःख व् अपनापन ही झलक सकता है क्योंकि हम हैं तो एक ही कल्चर-किनशिप के| अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अगर जजपा इनको लात मार के, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ले तो| आ जाओ इनको छोड़ के, मौका है अभी भी| यह डिप्टी सीएम पद तो कांग्रेस के साथ भी कायम रह जायेगा|
रै रलदू, हुक्का भर ले भाई, स्थाई व् लम्बी राजनीति की ABCD सीखने आ रहा हूँ तेरे से| भाई-भाई को बाँट के कैसे खाना होता है व् बूढ़े जो वह कहावत बता गए ना कि
चलना राह का चाहे फेर क्यों ना हो,
खाना घर का, चाहे जहर क्यों ना हो!
सफर रेल का, चाहे बार क्यों ना हो,
और बैठना भाईयों का, चाहे बैर क्यों ना हो!
इसपे बौराएँगे व् ठहाके लगाएंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 23 May 2022

"जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"!

कभी मीडिया, कभी नेता, कभी कथावाचक; इन सब पर किसी भी जाति के शब्दों के इस्तेमाल पर कानूनी बैन होना चाहिए; ठीक वैसे ही जैसे "मार्केटिंग का कॉर्पोरेट लॉ है" - marketing law for corporates"| कॉर्पोरेट लॉ - corporate law कहता है कि बिना कॉम्पिटिटर - competitor का नाम लिए, उसकी बुराई किए, उससे तुलना किए; सिर्फ अपनी ब्रांड-प्रोडक्ट - brand-product की प्रमोशन करो| और इसके लिए वजह दी जाती है हैल्दी कम्पटीशन - healthy competition की व् कॉर्पोरेट के आपसी रिश्तों की - coporate relations management| यही मीडिया, नेता व् कथावाचकों पर होना चाहिए| आज के दिन इन मामलों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है "जाट" शब्द का और वह भी बड़े ही वाहियात और सेलेक्टिव तरीके से|


कथावाचक हैं इनको तो बाकी किसी जाति का शब्द दीखता ही नहीं, "जाट" के अलावा; ऐसे बना के दिखाएंगे कि ना तो धरती पर जाट से बड़ा कोई भगत ना दाता| और जब इसी जाट पे 35 बनाम 1 होती है तो सबसे बड़ी दड्ड (घुन्नी चुप्पी) यही मारते हैं|

मीडिया तो पिछले 2 दशकों से तो खासतौर से देखते ही आ रहे हो|

हद इन नेताओं ने कर रखी है, मलाल जाति-विशेष में भाजपा को थोक में वोट दे के भी, सीएम की कुर्सी नहीं मिलने का और भाजपा को डराने का औढ़ा "जाट" के जरिए| बल्या, "ये तो राज देख रे हैं, ये तेरे से कैसे खुश होंगे"| रै भले मानस, राज देखने की बात है तो तेरे आळे सेण्टर के टोटल 70 साल में से कितने साल राज देख रे सें, उसको देखते हुए तो फेर अदला-बदली ही करवा दो ना; स्टेट का राज थम ले लो और सेण्टर का हमने दे दो| या आपको जो माँगना सीधी मारो बीजेपी के टक्कर, जाटों को क्यों इस नेगेटिविटी में घसीट रहे हो? पॉजिटिव शायद ही कुछ करके दिया हो जाट के लिए आज तक, पर नेगेटिव में घसीटेंगे|

यार मतलब "जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"|

जाट समाज के जागरूक लोगों को, इन पहलुओं पर बात करनी चाहिए|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 22 May 2022

जाट मुग़लकाल से ज्यादा ब्रिटिश काल में क्यों मुस्लिम व् सिख बन रहे थे?

अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया थ, लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है, देखिये सलंगित पन्ना।


1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3% व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई।


जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि फंडियों की सनातनी चतुर्वर्णीय व्यवस्था, इनको ठीक वैसे ही जलील कर रहा थी, जैसे अब 2014 से जब से यह सरकार आई है 35 बनाम 1 के नाम पर कर रही है। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी।


जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है। इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है लेकिन सनातन ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा। 


हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। चुपके से जाटों के "दादा नगर खेड़ों/बाबा भूमियों/दादा भैयों" से मूर्तिपूजा नहीं करने का कांसेप्ट इनको बिना इस कांसेप्ट का क्रेडिट दिए उठाया व् "जाट जी" और "जाट देवता" लिख-लिख स्तुति करी तो जाट रुके| आज आर्य समाजी ही राममंदिर निर्माण के लिए बधाइयां दे रहे है,चंदा दे रहे है जैसे वहाँ मूर्ति नहीं लगनी हो| खैर,धरती में कोई धर्म नहीं होता है। जबरदस्ती किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। धर्म लोगों का ऐच्छिक विषय है।


जात नहीं बदली जा सकती है इसलिए धर्म बदलकर जीवन मे सरलीकरण ढूंढा जाता रहा है। अँधभक्तों की सुविधा के लिए यह बताना जरूरी है कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने पकड़कर रंगून भेज दिया था व उसके बाद पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज कायम हो गया था।


1857 के बाद में हुए धर्म परिवर्तन का मुगलों से कोई संबंध नहीं था। वैसे भी मुगलों के दरबार मे बैठकर साहित्य रचने वाले ब्राह्मण जजिया कर से मुक्त रहते थे। अगर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का मसला भी होता तो सबसे पहले ब्राह्मण इस्लाम मे होते!


लेख: फूल मलिक द्वारा सोधित, मूलत: लेखक पंडित हिमांशु कुमार 




Saturday, 21 May 2022

भारतीय किसान यूनियन बिखराव पर आज शामली में हुई सर्वखाप पंचायत की मीटिंग के अपडेट!

1) गठवाला खाप की यूपी विंग के सभी थांबेदारों ने पुरानी भारतीय किसान यूनियन में ही विश्वास जताया व् पूरा समर्थन व् आशीर्वाद जारी रखने का निर्णय हुआ| आपको बता दें थांबेदारों के पास खाप के चौधरी को बदलने की वीटो पावर होती है|

2) बाबा श्याम सिंह मलिक जी लाख-बावड़ी के थांबेदार ने गठवाला खाप के चौधरी की अलग किसान यूनियन के संरक्षक बनने की अपनी बात पर पुर्नविचार करने को कहा| उनका लहजा बड़ा सख्त व् स्पष्ट था|
3) खाप थांबेदारों ने पूरी भारतीय किसान यूनियन को बाबा टिकैत की कार्यप्रणाली के अनुसार चलने की तस्दीक की, व् टिकैत बंधुओं को इस पर मंत्रणा की|
4) लगभग 12 साल पहले भारतीय किसान यूनियन से अलग हुए बिजनौर जिले के धड़े ने आज वापिस पुरानी किसान यूनियन जो टिकैत बंधुओं द्वारा चलित है, उसमें अपना विलय किया|
5) इसी विषय पर अगली सर्वखाप महापंचयात काकड़ा गाम मुज़फ्फरनगर 29 may में होनी तय हुई, जिसमें भारतीय किसान यूनियन की एकता बारे बड़े फैसले लिए जायेंगे|

सलंगित है इस सर्वखाप पंचायत में बाबा श्याम सिंह मलिक जी का सम्बोधन -
https://m.youtube.com/watch?v=ys5AueRN0PU&feature=youtu.be

जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 20 May 2022

जो अपने बाप-दादाओं की किनशिप ना ही तो समझ सकते और ना ही उसको आगे बढ़ा सकते; ऐसे शुद्रमती लोगों को ही सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् ताऊ देवीलाल की विचारधारा पुरानी व् बोझ लगने लगती है!

ऐसे लोग एक नंबर के उलंड होते हैं, खाना-खाने का सलीका नहीं और लगते हैं ज्ञान पेलने|
इनसे कोई पूछने वाला हो कि
1) 2020-21 के तीनों काले कृषि कानून वापिस करवाने के फ्रंट पर सफल किसान आंदोलन का आत्मिक बल कौनसी विचारधारा थी? क्यों इस किसान आंदोलन में चौधरी चरण सिंह का ड्राफ्टेड कच्चा मंडी कानून, सर छोटूराम ने फिट बना के APMC एक्ट की शक्ल दे के तब के यूनाइटेड पंजाब में जो लागू किया था, वह इस आंदोलन में 2020 में भी मुख्य मुद्दा था?
2) क्यों सरदार अजित सिंह जी का 1907 का "पगड़ी संभाल जट्टा" आंदोलन ही 2020-21 के किसान आंदोलन की भी प्रेरणा बना?
3) सर छोटूराम, जिनको "किसानी व् उदारवाद" के दुश्मन बता गए, उन्हीं झुंडों का पीएम क्यों 2017 में सर छोटूराम के स्टेचू का उद्धघाटन करने चला आता है; अगर वह आज पुराने व् यथार्थहीन हो चुके हैं तो?
कहते हैं कि यूनियनिस्ट मिशन ने जाट को बाकी समाज से अलग-थलग कर दिया| कौनसी पार्टी, कौनसे नेता के आदेश पर ऐसा कर रहे हो, महाराज?
पहली तो बात यह आइडियोलॉजी किसी की मोहताज नहीं, यह अपने आप में इतना दम रखती है कि यह खुद ही जिन्दा हो-हो बाहर आती रहेगी जैसे कि 2020-21 के किसान आंदोलन में उभरी| हर छोटा-बड़ा किसान नेता, वह भी हर धर्म का पूरे आंदोलन के दौरान जब-तब सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् सरदार अजित सिंह को याद करता नजर आया, उनके जन्मदिन व् मरणदिन मनाता आया व् तुम कहते हो यह खत्म हो चुके?
तुम अगर अपनी कौम की आभा-शोभा-सुश्रुषा नहीं ही संभाल व् कर सकते तो जाओ कुछ उनसे सीखो जो यूनिवर्सल चीजों को भी उसके नाम से रखता है व् फिर भी उसपे जातिवाद का टैग नहीं लगने देता| उनके बनाए शब्दों को कैसे बोल-बरत लेते हो बे तुम अगर एक ऐसी आइडियोलॉजी के बोझ से टूट जाते हो तो जो तुम्हारे अपने पुरखों के तप-बल ने विश्व स्तर तक जानी-पहचनवाई? इसका मतलब तो जब हम इसी तर्ज पर "जाट-जाटांड-जट्टचरियता-जाटकी" ले के आएंगे तब तो तुम बेशुद्ध हो के भागने लगोगे? हम एक भाषा के सम्मान में "हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत" लाएंगे तो तुम तो बावले ही हो जाओगे?
"जाटड़ा और काटड़ा, अपने को ही मारे" की गलत-उछाली गई कहावत की तर्ज पर, तुम्हें यह पुरानापन क्रमश: 77-33 साल पहले हो के गए सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में दिखने लगा है तो यह जो हजारों साल पुराणी के नाम पे माइथोलॉजी ढोते हो, उसपे तो तुमने कोहराम मचा देना चाहिए? पर हमें तो कहीं नहीं तुम चुसकते दीखते?
ऐसा है, कौम के नाम पे चुप रहना सीखो| एक शब्द होता है "KINSHIP" पहले उसको पढ़ो व् जानो| अभी तुम जिस आइडियोलॉजी पे कीचड़ उछाल रहे हो, उसके नर्सरी के लायक भी नहीं हो तुम| किसी नेता व् पार्टी की चमचागिरी मारनी है तो अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए खूब मारो, सभी मारते हैं परन्तु उसके चक्कर में नंबर बनाने को अपने पुरखों की आइडियोलॉजी, हस्ती व् विरासत को मत घसीटो| यूनियनिस्ट मिशन बनने को कलेजा चाहिए, छिछोरापन नहीं|
तुम वो वाले मृग हो जो अपनी ही कस्तूरी की खुशबु को संभालने-समझने की बजाए, उसमें मदहोश व् बावला हुआ आखिरकार मृत्यु को प्राप्त होता है; यही हश्र होगा तुम्हारा अंतदिन ऐ कौम के पुरखों के स्थापित सिद्धांतों व् शौर्यों पर गरद उछालने वाले/वालो| तुम शुद्रमती से ज्यादा कुछ नहीं हो, कहीं अपने आप कोआइडियोलॉजी के "चाणक्य" टाइप कुछ समझने की गलतफहमी में हो| पहले इतना ही सीख लो कि अपनी कौम को जिस आइडियोलॉजी ने 1907 में भी बचाया व् 2020-21 में भी देश के पीएम को झुकाया; उस पर आक्षेप लगा के किसी नेता-पार्टी की चाटुकारिता तो कर लोगे; परन्तु खुद को व् तुम्हें मानने वालों को पुरखों की बुलंदी की जड़ों से काट दोगे|
ऐसा करके तुम तो तुम्हारे पार्टी-नेता को खुश कर लोगे, परन्तु समाज-कौम को सिकोड़ के रख देती हैं तुम्हारे जैसों की यह हरकतें| इसलिए राजनीति करने को जो चाहे करो, परन्तु पुरखों की वैचारिक विरासत को निशाना मत बनाओ| वह उन जमानों में एक ब्राह्मण ऋषि दयानन्द से ग्रामीण व् तथाकथित अक्षरी अनपढ़ होते हुए 1875 में "जाट जी" व् "जाट देवता" कहलवा-लिखवा चले गए; तुम्हारी है क्या आज के दिन उसी आभा को कायम रखने की बिसात? या कहलवा-लिखवा लिया फिर से किसी से या किसी ने लिख दिया हो फिर से उसकी लेखनी में "जाट देवता" व् "जाट जी"? नहीं, बल्कि उल्टा 35 बनाम 1 झेल रहे हो| तो खामोश हो के पहले पुरखों के तेज को सहन करने की औकात बनाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक