Friday, 21 April 2023

आज "ईद-उल-फितर" के मौके पर आईए जानते हैं कि वेस्टर्न यूपी के मुस्लिम भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान ना जा के यहीं क्यों रह गए थे!

एक लाइन का जवाब है: सर्वखाप पंचायत के चौधरियों की वजह से| एक चींटी तक नहीं फटकने दी थी सर्वखाप ने इस हिंसा-हेय के नाम पर खापलैंड में, वेस्टर्न यूप में तो खासतौर से| 


आप जब खाप-पंचायतों का इतिहास पढ़ते हैं तो आपको 1947 में "कांधला सर्वखाप पंचायत" का चैप्टर मिलता है| हुआ यह था कि उस वक्त जब हिन्दू-मुस्लिम मारकाट चल रही थी व् दक्षिण से ले मध्योत्तर भारत से मुस्लिमों को पाकिस्तान जाने का रास्ता अधिकतर पंजाब बॉर्डर से था जहाँ से दोनों तरफ से धर्म-आधारित जनसंख्या के पलायन हो रहे थे व् देश के नए बॉर्डर की तरफ कई जगह भारी दंगे भड़क गए थे| और क्योंकि खाप-पंचायतें, हमेशा मानवता पर नश्लीय हेय व् हिंसक अति होने के विरुद्ध रही हैं; क्योंकि यह बसासत में गणतांत्रिक हैं व् न्याय यानि सोशल-सिक्योरिटी देने में लोकतान्त्रिक तो जब खाप चौधरियों ने यह देखा तो तुरंत "कांधला" में सर्वखाप पंचायत बुलाई गई और ऐलान हुआ कि खापलैंड से कोई पलायन नहीं होगा; जो जहाँ है वहीँ रहे| इसका वेस्टर्न यूपी में तो इतना जोरदार संदेश गया कि ना तो एक भी दंगा हुआ व् शायद ही कोई-कोई मुस्लिम पाकिस्तान गया इधर से| 


और यही वह गणतांत्रिक व् लोकतान्त्रिक सोशियोलॉजी थी, जिस पर तब के यूनाइटेड पंजाब में सर छोटूराम व् यमुनापार चौधरी चरण सिंह की धर्मरहित राजनीति इतनी परवान चढ़ी कि एक ने आज़ादी से पहले ही यूनाइटेड पंजाब पर 25 साल निरतंर राज किया व् दूसरा आज़ादी के बाद देश का प्रधानमंत्री बना| 


बंधे रहिए सभी धर्म व् जातियों के साथ, इस एकता व् पुरख-सोशियोलॉजी से व् इसकी प्रमोशन कीजिए! 


आप सभी को "ईद मुबारक"!


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 18 April 2023

सत्यपाल मलिक जी का इंटरव्यू, क्षत्रिय व् अवर्णीय का फर्क क्रिस्टल क्लियर कर देता है!

अवर्णीय यानि पांचवा वर्ण यानि जो ना स्वभाव से, ना कल्चर से, ना DNA से, ना किनशिप से चतुर्वर्णीय व्यवस्था में फिट बैठता और ना बैठा कभी| ऐसा व्यक्ति चतुर्वर्णियों के साथ काम कर भी लेगा तो उसका प्रोटोस्टेंट स्वभाव फायर-बैक करेगा-ही-करेगा| कर्ण थापर का इंटरव्यू इसकी बानगी है| J&K 370 हटना, UT बनना, सरकार भंग करना; सब वहां इनके कार्यकाल में हुआ व् इन्हीं को देश में Z सिक्योरिटी नहीं तो फिर कौन डिसर्व करता है? व् इसी से उनके आत्म-सम्मान को ठेंस लगी है व् उनका भय भी सच्चा है कि क्या मुझे यह लोग ऐसे मुफ्त में ही निबटाना चाहते हैं? जनता ने भी अब सुनी उनकी बात, वरना 2 बार टीवी पे तो वो 2019 में ही बोल चुके थे| खैर, बीजेपी ने इनके साथ जो व्यवहार किया व् उसपे जिस तरह से आरएसएस चुप है; इससे इतना तो है कि कोई भी सत्यपाल जी की बिरादरी का जो इनसे साथ जुड़ा है वह यह नहीं कह सकेगा कि हमें आरएसएस में यथोचित स्थान व् सम्मान दोनों हैं व् उसकी गारंटी भी है| 


इधर, अपमान व् डिग्रडेशन तो जो पहले गृहमंत्री थे फिर दूसरे नंबर से तीसरे पे डिफेंस में खिसका दिए गए; मोदी ने सरेआम कितनी बार उनका पब्लिकली अपमान भी किया तो भी वह एडजस्ट करके चलते आ रहे हैं| क्योंकि क्षत्रिय को चतुर्वर्णीय व्यवस्था में शिक्षा ही यह है कि चुप रहो| वीरता भी दिखानी है तो जब बोला जाए तब| 


तो यही है अवर्णीय व् क्षत्रिय का फर्क| नादाँ हैं यह "अवर्णीय" जो खामखा अपने DNA, किनशिप एथिक्स सब से लड़ते हैं व् ऐसी व्यवस्था में घुसने को आतुर हैं जो इनकी अंतरात्मा को स्वीकार हो ही नहीं सकती; हकीकत सामने आने पर वह ऐसे ही उबाल मारती है जैसे सत्यपाल मलिक जी की ने मारा| 


लोग कहते तो हमें भी है कि हम तो अपनी जॉब या बिज़नेस सिक्योरिटी के चलते इनमें शामिल होते हैं; इतना भर हो तो सही भी है परन्तु यह लोग इनका प्रचार, प्रसार व् आत्मसात करने तक पहुँच जाते हैं; जिसका सीधा-सीधा असर इनके बच्चों पर पड़ता है व् इसी को "शूद्रता" कहते हैं| 


जिनको शूद्र कहा गया है उनको भी इनके इस शब्द को ओढ़ने से बचना चाहिए; अन्यथा तो आप इसको ओढ़ के इनके इस शब्द को सत्य स्थापित करते हो; जो कि मानवता के ऊपर सबसे भीषण प्रहार है| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Monday, 17 April 2023

"जिस महामानव के कारण 60 के दशक में दुनिया के 100 करोड़ लोग भूखे मरने से बचे, आओ आज उनको जानें…"

आज हम बात कर रहे हैं "हरित क्रांति" के अग्रदूत विश्व विख्यात कृषि वैज्ञानिक राव बहादुर डॉ रामधन सिंह हुड्डा जी की:-

1 मई 1891 में रोहतक जिले के किलोई गांव में साधारण किसान के घर इस असाधारण बालक ने जन्म लिया। हमारी किसान बिरादरी से शायद पहले होंगे जो लंदन कैम्ब्रिज में पढ़ने गए, प्राकृतिक विज्ञान और कृषि में PhD करने के बाद 1925 में Punjab Agriculture College & Research Institute, Layallpur में प्रिंसिपल लगे, 1947 में रिटायरमेंट तक वहीं रहकर भारत ही नहीं दुनिया के लिए गेहूं, जौ, धान, दाल, गन्ना की नई नई किस्में इज़ाद की।
गेहूं की किस्में:
Pb-518, Pb-591 (1933-34)
C-217, C-228, 250, 253, 273, 281और C-285
Canada और Mexico ने सबसे पहले इनकी गेहूं Pb-591 अपनाई और पैदावार के रिकॉर्ड बनाये।
जिस C-306 गेहूं को सबसे स्वादिष्ट माना जाता है उसे भी डॉ रामधन सिंह जी ने इज़ाद किया था।
चावल की किस्में:
Basmati-370, Jhona-349, Mushkans-7 & 41, Palman Suffaid 246 (मैदानी इलाकों के लिए)
Ram Jawain 100, Phul Patas-72 और Lal Nankand 41 (पहाड़ी इलाकों के लिए)
संसार में मशहूर बासमती चावल 370 और Jhona 349 भी डॉ रामधन जी की ही देन है।
जौ की किस्में:
T4, T5, C138, C141 और C155
दालों की किस्में:
Moong No.54, 305 और Mash Variety No.48
1961 में जब Lyallpur Agriculture College के गोल्डन जुबली समारोह में भाग लेने पहुंचे तो पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने डॉ रामधन सिंह जी को राष्ट्रपति गोल्ड मैडल से सम्मानित किया और वह यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय बने।
उनके योगदान का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हो कि जब Mexico से नोबल पुरस्कार विजेता डॉ Norman E Borlog 1963 में डॉक्टर रामधन सिंह जी से Sonipat उनके घर पर मिलने आएं और रामधन सिंह जी के पैर छू कर कहें ''आपने संसार को बेहतर किस्में देकर 100 करोड़ लोगों को भूखे मरने से बचा लिया" और खुशी से रो पड़े।
1965 में लाल बहादुर शास्त्री जी ने डॉ रामधन सिंह जी को किसी भी राज्य के Governor बनने के लिए कहा था लेकिन डॉक्टर रामधन सिंह जी ने कहा ''राज्यपाल बनने से ज्यादा भला मैं वैज्ञानिक के तौर पर कर सकता हूँ देश का'' और उन्होंने ऐसा किया भी।
17 अप्रैल 1977 को भारत के महान सपूत डॉ रामधन सिंह जी इस संसार को अलविदा कह गए लेकिन सबको जिंदा रहने के लिए अथाह अनाज भंडार दे गए।
डॉ रामधन सिंह हुड्डा जी अमर हैं… 🙏

Post: Suman Hooda

अतीक अहमद के कत्ल ने मोदी की "पसमांदा मुस्लिम्स" को लुभाने की पॉलिटिक्स तहस-नहस कर दी है; साथ ही अखिलेश यादव से भी मुसलमानों का मोह भंग होता दिख रहा है!

विवेचना: क्या अब मुस्लिम "जय श्री राम" वालों की बजाए, "हे राम" या "हर-हर महादेव + अल्लाह-हू-अकबर" वाले अपने पुराने समीकरणों की तरफ तो नहीं मुड़ेगा?

अतीक अहमद व् उनका पूरा परवार "पसमांदा मुस्लिम" है वह यादव समुदाय से आते हैं| मोदी-शाह पिछले काफी महीनों से पसमांदाओं को बीजेपी में खींचने की क्या-क्या कैसी-कैसी कोशिशें कर रहे थे; इससे लगभग हर सोशल मीडिया वाला वाकिफ है|
अब यह लाइव-मर्डर का आईडिया जिस किसी का भी था, इससे बनिस्पद वकार अहमद, राष्ट्रीय महासचिव पसमांदा मुस्लिम बोर्ड "मोदी-शाह को तो इस फ्रंट पे तगड़ी मात मिली है| पसमांदा मुस्लिम समुदाय जो बीजेपी के साथ जाने का मन बनाने लगा था, इस तरीके के मर्डर से ठिठक गया है|" योगी को अभी चल रहे ओबीसी जनगणना व् एससी-एसटी मूवमेंट्स व् जागरूकता अभियानों व् उधर किसानों की सबसे बड़ी कम्युनिटी से आने वाले "पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक जी द्वारा इनके खोखले 'राष्ट्रवाद' यानि 'पुलवामा' एपिसोड से ले अडानी-माधव आदि की जो पोल कर्ण थापर के इंटरव्यू में खोली है (यह कम्युनिटी 'राष्ट्रवाद' के शब्द पे सबसे ज्यादा रीझने वालों में है; क्योंकि पुलिस-फ़ौज-खेत-खेल तमाम 'देशप्रेम' के सबसे बड़े फ़ील्ड्स में यह अग्रणी जानी जाती है) व् ऊपर से किसानों के MSP जैसे मुद्दों व् रोज-रोज अभी भी जारी आंदोलनों; इन सबके बीच बाबा का 80-20 भी कितना कामयाब होगा, शायद कर्नाटक-राजस्थान-मध्यप्रदेश के चुनाव बता दें|
अतीक अहमद मर्डर के बाद से मुस्लिमों में चौधरी चरण सिंह जी के दिए "मजगर" फार्मूला के जमानों से ले दिवंगत मुलायम सिंह यादव जी द्वारा "मजगर" को "यम" में तोडना; फिर मुज़फ्फरनगर 2013 दंगों में बीजेपी के साथ वोट बांटने की सपा की गुप्त डील यानि जाटों को बीजेपी ले लेगी व् मुस्लिमों को सपा (चर्चा है कि "पदम्-विभूषण" अवार्ड मुलायम जी को मरणोपरांत "मुज़फ्फरनगर 2013" में इनका साथ देने का पारितोषिक है वरना जिस वर्णवाद की चासनी से आज के सत्तारूढ़ लोग आते हैं, वह किसी पिछड़े समुदाय वाले को यूँ चुपचाप यह इस स्तर का अवार्ड दे दे, कैसे हो सकता है); व् अब अतीक अहमद कत्ल, सब कड़ियाँ जोड़ी जा रही हैं| इस सबके ऊपर 13 अप्रैल से यूट्यूब पर वायरल अतीक अहमद की पत्नी के भाषण ने इन कयासों को और तेज कर दिया है; जिसमें वह अखिलेश यादव को विश्वासघात टाइप का उल्हाना सा देती दिख रही हैं; उनके शब्दों से साफ़ झलक रहा है और वहीँ ओवैसी बैठे हैं| मुज़फ्फरनगर 2013 के लिए चुपचाप सहमति आज़म खान की भी चर्चित होने लगी है|
ऐसे में ईशारा साफ़ है कि बाबा ने बड़ा खेला कर दिया है अतीक अहमद, उनके बेटे व् भाई तीन-तीन कत्ल इस तरीके से होने दे के| यानि बाबा 80-20 तो चाहते ही हैं, उस पर वह यह भी चाहते हैं कि सपा का "यम" फार्मूला भी तहस-नहस कर दूँ व् यह होने के आसार बढ़ चुके हैं; इन तीन मर्डर्स के बाद से| अब मुस्लिम जरूर सपा से अन्य विकल्प को सीरियसली कंसीडर कर रहा है; यह इस समाज के चिंतकों व् प्रबुद्ध हस्तियों के वक्तयों में साफ़ देखा जा सकता है; वह ओवैसी पर जाएगा या ज्यादा दूर की सोचेगा यानि सत्ता तक में आने जितने की तो हो सकता है कि वह "मजगर" टाइप कोई ऑप्शन सोचे| किसान आंदोलन ने इसके इशारे भी दिए थे, जब सितंबर 2021 में मुज़फ्फरनगर की ही किसान महापंचायत में "अल्लाह-हू-अकबर" व् "हर-हर महादेव" के फिर से एक साथ नारे लगे थे| दूसरा मजबूत ऑप्शन "हे राम" वालों के साथ फिर से जा खड़े होने का बन सकता है| लेखक को लगता है कि "हे राम" वाले या "अल्लाह-हू-अकबर" व् "हर-हर महादेव" वाले जो भी इन ताजा बने हालातों में मुस्लिमों में जितना ज्यादा विश्वास बहाल कर सकेगा; मुस्लिम उसको कंसीडर करेगा|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 6 April 2023

लंगर व् भंडारे में फर्क!

लंगर: गुरु नानक देव जी के जमाने से चल रहा है| दाता का नाम, पता, ओहदा गुप्त होता है| शुद्ध मानवता की सेवा की सही वाली निस्वार्थ नियत से लगाया जाता है| आसपास जो कोई किसी भी धर्म-जात से भूखा हो, वह खा सकता है| 


भंडारा: नाम की भूख, पाप धोने का लालच, बोल रखा था इसलिए खिलाना, तथाकथित मन्नत पूरी हुई तो खिलाना या किसी बात का भय दूर भगाने हेतु खिलाना आदि-आदि| भंडारा स्थल पर सबको पता होगा कि कौन खिला रहा है, अथवा अगला स्वत: ही बड़ा बैनर लगाए मिलता है कि मैं खिला रहा/रही हूँ| इसके साथ एक और अवधारणा जुडी है कि इसको जरूर इलेक्शन लड़ने होंगे, बड़ा समाजसेवक दिखाना चाहता/चाहती है खुद को आदि-आदि| निस्वार्थ शब्द झलका कहीं इसके उद्देश्यों में? बल्कि इसमें तमाम वो वजहें हैं जो लोगों को कम्पटीशन की भावना में डाल के जो इसको नहीं भी करना चाहते हों, उनको भी इसको करने को मजबूर करती हैं| अन्यथा तान्ने एक्स्ट्रा तैयार मिलते हैं कि "के धरती म्ह हाथ टिक रे सें", "कीमें धर्म-कर्म भी कर लिया करो", "धर्म नैं मानदे ए कोन्या के" आदि-आदि| 



भंडारों से अच्छा तो म्हारे पुरखों का सदियों पुराना यह सिद्धांत रहा है कि "गाम-नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए" - इसके तहत मैंने मेरी दादी समेत गाम की बहुत औरतों-मर्दों को गाम के किसी भी लाचार व्यक्ति को खाना-कपड़ा देते बालकपन से देखा| गाम की परस में कोई राह चलता रैन-बसेरे रुका तो उसको खाना पहुंचाते/पहुंचवाते देखा (परन्तु वाकई में राहगीर हुआ तो, वरना कोई फंडी-फलहरी इस बात का फायदा उठाने हेतु आया तो वह लठ भी खूब खा के जाता देखा)| और यह लाचार व्यक्ति चाहे जिस किसी जाति-धर्म का रहा हो गाम से, सबके बारे हमारे दादे/दादी यही कहते थे कि "खेड़ों की सदियों पुरानी बसावट से नगर-खेड़ों (भैयों-भूमियों) का यह सिद्धांत रहता आया है| इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता था कि अगर गाम-की-गाम में कोई बेऔलादा, निर्धन या बेवारसा बूढा/बुढ़िया/मंदबुद्धि आदि भूखा होता तो वह हक से भी गाम के किसी भी घर में जा के खा सकता था या कोई-कोई घर ऐसे किसी भी जरूरतमंद को स्थाई तौर पर खाना देते रहते थे| घर के आगे से या गली से निकलते वक्त मुलाकात होती तो आगे से पूछ लेते थे कि आज खाना खाया तो सामने वाला बता देता था व् पूछने वाला उसको अपने घर से आदरसहित बिना दिखावे के खाना दे देता था| और  यही वह सिद्धांत रहा है "गाम-नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए" जिसके चलते खापलैंड बारे यह कहावत मशहूर हुई कि, "यहाँ के गाम-नगर खेड़ों में कोई भिखारी नहीं मिलता/होता"| अगले की हालत देख, आगे से खुद ही हाथ बढ़ा के बिना तंज-ताने के उसको खाना दे देना; ताकि अगले की सेल्फ-एस्टीम व् सेल्फ-रेस्पेक्ट भी कायम रहे| 


आज हम इसको कितना पाल रहे हैं, पता नहीं| आज तो खाना खिलाना भी प्रदर्शन का विषय जो हो चला है या कहो कि फंडियों के फैलाए इस भंडारे के कांसेप्ट ने इससे मानवता निकाल कोरी प्रसिद्धि व् स्वार्थसिद्धि की लालसा का सौदा बना छोड़ा है; जो पूरी हुई कि नहीं यह खुद इसको लगाने वाले अधिकतर को नहीं पता चल पाता| 


विशेष: आशा है कि मैंने भंडारे की तमाम सम्भव परिभाषा देने की कोशिश करी है, फिर भी कोई अन्यत्र पक्ष रह गया हो तो इसमें बिना तू-तू मैं-मैं के शांति से बता दीजिएगा; मैं सीखने को हर वक्त तैयार रहता हूँ| हाँ, भंडारे में इतनी ईमानदारी तो है कि सामने वाला घोषित करके बता चुका होता है कि मैं यह इस स्वार्थसिद्धि के लिए कर रहा हूँ; यही इसका पॉजिटिव एंगल है; बाकी धर्म-कर्म का इसमें कोई बीज तब तक आ ही नहीं सकता, जब तक इसमें "निस्वार्थ" का कांसेप्ट नहीं डलेगा; वह डला तो यह लंगर या खेड़ों वाला ऊपर बताया कांसेप्ट हो जाएगा| धर्म किसी भी कम्पटीशन से बाहर रहने का नाम है; वह धर्म कैसे हो जाता है जहाँ कम्पटीशन-जलनवश या लोगों के तानों से बचने हेतु चीजें की जाती हों? भंडारा वही तो है या कहीं धर्म का भी कुछ है इसमें? अच्छी बात है स्वार्थ के लिए भंडारे लगाओ परन्तु फिर इसको धर्म का चोला क्यों पहनाते हो; यह पहनाते हो इसीलिए तुम्हारे आंतरिक भय-क्लेश-द्वेष-लोभ-लालसा कट नहीं पाते व् आजीवन भरमते फिरते हो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 25 March 2023

खालिस्तान किसी जाट या जट्ट का कांसेप्ट कभी था ही नहीं और ना हो सकता!

यह कांसेप्ट जगजीत सिंह चौहान का है व् उसी का यह मूवमेंट रहता है; फंडियों के इशारे पे|


फंडी की फिलॉसोफी है कि इसको लोकतंत्र व् गणतंत्र से खासी चिढ है यह इसके जेनेटिक रूप से अपोजिट है| संत भिंडरावाला की मांग हमेशा स्टेटस को ज्यादा राइट्स देने की रही (अमेरिका की तर्ज पर), जिससे कि लोकतंत्र व् गणतंत्र जिन्दा होता है| इससे बचने के लिए फंडी इस मुद्दे को एक काल्पनिक सोच तक ले जाता है जो इसकी एक्सट्रीम फंडी लोग मानते हैं| कि आज स्टेटस को राइट्स दे दिए तो कल को हमारे को कौन पूछेगा| यह पेंशन स्कीम बंद करने जैसा मामला है कि लोगों को आर्थिक तौर पर इतने संबल होने ही मत दो कि वह अपनी रोजी-रोटी को छोड़ लोकतंत्र बारे सोचने का वक्त भी पा सकें, बुद्धि चलाने तक तो पहुंचना ही नहीं चाहिए|

इनको चिढ़ है जब कोई सामाजिक तौर पर समाज में इनसे ज्यादा रेपुटेशन रखता हो या रखने लग जाए| किसान आंदोलन 2020-21 ने इसमें जो भी अग्रणी जातियां या संस्थाएं रही जैसे कि जाट-जट्ट व् खाप और गुरूद्वारे; इन चारों का विश्व स्तर पर रुतबा बढ़ा है| और इसको बढ़ाने में सहायक किसान आंदोलन के क्योंकि सूत्रधार सिख थे तो अब यह खालिस्तान का फिर से मुद्दा इनका हवा दिलवाया हुआ है देश व् विदेश दोनों जगह| ताकि जट्टों की रेपुटेशन डाउन की जाए व् इनसे जाट हतोत्साहित हो जट्टों से अलग हो जाए| इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है यह मामला|

संत भिंडरावाला हो या कोई और जट्ट उसने हमेशा खालसराज की बात करी; इसको एक स्टेप आगे के पंख फंडी लगवाते हैं लोगों को पैसे फेंक कर| फिर भी किसी खालसा वाले को कहना ही है तो वह यह लाईन ले कि हम पूरे देश को ही खालिस्तान बनाएंगे जैसे यह हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं| और जो वाकई में फंडियों से लड़ने की सोच रखता होगा वह इस लाइन पे चल के ही काम करेगा और ऐसे संत भिंडरावाला जी ने किया था|

दूसरा पार्ट यह भी देखो कि यह किसी जाट या जट्ट का कांसेप्ट क्यों नहीं है? क्योंकि खालिस्तान में पाकिस्तानी पंजाब का भी आधा पार्ट आता है, क्या उधर कोई हलचल दिखती है? नहीं, hence proved, it has been a purely fandi agenda!

जय यौधेय! - फूल मलिक 

Friday, 24 March 2023

इस पर अब शायद ही कोई शंका हैं कि बिश्नोई पंथ के संस्थापक जांभोजी का जन्म जाट जनजाति में हुआ!

इस पर अब शायद ही कोई शंका हैं कि बिश्नोई पंथ के संस्थापक जांभोजी का जन्म जाट जनजाति में हुआ।

स्वयं वो बिश्नोई, जो यह मानते हैं कि जांभोजी पवार राजपूत थे, बताते हैं कि जांभोजी की बुआ का विवाह नानेऊ गांव के “महिपालजी ईसरवाल” जाट के साथ हुआ था। तो क्या पहले राजपूत अपनी बेटियों का विवाह जाटों से करते थे? क्या राजपूत इस बात को स्वीकार करते हैं?
जांभोजी के नाना “मोहकमजी खिलेरी” थे। खिलेरी जाटों की एक बड़ी गोत हैं, जो पाकिस्तान एवं पंजाब में भी पाई जाती हैं। बही-भाटों ने खिलेरी जाटों को भाटी “नख” दे रखा हैं, जिसके आधार पर और राजपूत जागीरदारों के इशारों पर जांभोजी के परिवार का राजपुतिकरण किया गया हैं।
बही-भाटों ने पवार जाटों को परमार राजपूत बना दिया और खिलेरी जाटों को भाटी राजपूत बना दिया। लेकिन यह सच्चाई हैं कि जांभोजी के ननिहाल वाले खिलेरी जाट थे, जो अब बिश्नोई पंथ में दीक्षित हैं।

Shivatva Beniwal

नमन प्रणाम आसन, शशांक आसन और नमाज; तीनों को करने की पोजीशन व् उद्देश्यों में समानता देखिए!

फंडियों का बचकानापन देखिये:


नमन प्रणाम आसन व् शशांक आसन, हिन्दू करे तो योगा; 

और इन्हीं दोनों आसनों में मुस्लिम नमाज अदा करते वक्त होता है| 


परन्तु स्वमहिमा में अंधे फंडी क्या बर्गलाएँगे, उसका क्या-क्या कह के मजाक बनाया जाता है कहने की जरूरत नहीं| 


बर्गलाएँगे कि हम जो करते हैं वह योग है, तप है; परन्तु उसी को मुस्लिम करे तो उपहास उड़ाएंगे; जबकि मुस्लिम वाले में वह एक नहीं बल्कि दो कार्य सिद्धि एक साथ कर रहा होता है; एक तो अल्लाह को प्रार्थना व् दूसरा जो योग वाले के साथ कॉमन है यानि दिमाग में ब्लड-सर्कुलेशन बढ़ाना| 


और जब इसको करने की बात आती है तो देखें कि किस धर्म वाले इसको करने में सबसे अधिक नियमित हैं? हर कोई कहेगा मुस्लिम| यह लोग रोज दिमाग में  ब्लड-सर्कुलेशन कर लेते हैं व् योग वाले कितने % करते हैं; शायद कुल के 10% भी नहीं| 


आज के मुस्लिम इसके पीछे क्या तर्क देते हैं, एक तर्क देते हैं या दोनों तर्क देते हैं; परन्तु यह माइंड में ब्लड-सर्कुलेशन सबसे नियमित करते हैं| इनके जिस भी पैगंबर ने यह तरीका इनको दिया, जब भी दिया कमाल का दिया है| 


ऐसे ही इनका खतने का सिद्धांत है, इस पर फिर कभी लिखूंगा| और खतना भी सिर्फ मर्द का नहीं, औरत का भी| इसका भी खूब मजाक उड़ाते हैं लोग, परन्तु यह प्रैक्टिस कितने मानसिक-शारीरक-मनोवैज्ञानिक बल बढ़ाने के फायदे देती है; जानोगे तो हैरान रह जाओगे| 


फ़िलहाल बात यह है कि कोई किसी का मजाक तभी उड़ाता है जब उसको सामने वाले से इन्फेरियरिटी काम्प्लेक्स हो; अब फंडी जब खुद योगा में यही करते हैं जो मुस्लिम नमाज में करते हैं तो फंडी ही क्यों नमाज की पोजीशन का मजाक करते पाए जाते हैं? मुस्लिम तो नहीं देखे कभी नमन योगा व् शशांक योगा पर उपहास करते। बस यही गंभीरता इनको विश्व में एज देती है| 


बाकी कोई रोता-पीटता इस पोस्ट तक पे भी कुछ भी बकता रहे!

  

जय यौधेय! - फूल मलिक  

Wednesday, 22 March 2023

कैसे तोड़ा तथाकथित 35 बनाम 1 करके सरपंची का चुनाव जीतने की चाह रखने वाले फंडियों का सपना!

फरवरी 2016 में नया ईजाद हुआ 35 बनाम 1 का प्रपंच, कईयों में आखिरी तीर व् आश की तरह आज भी बचा हुआ पाया गया है| ऐसे में हमने भी 2-4 गांव में इन प्रपंचियों के सपनों को कुछ निम्नलिखित तरीके से पानी पिलाया| 35 बनाम 1 बार-बार लिखूंगा तो लम्बा शब्द हो जाएगा, इसलिए इससे आगे इसको "फंडी" पढ़ें!

हमारी टीमों ने उनके गांव में पाया कि उनके गामों में जनरल की सरपंची आई हुई है व् जो भी फंडी सरपंच की रेस में खड़ा है; उसका अलग-अलग बिरादरी के आगे वोट मांगने का क्या तरीका है यानि क्या मोडस-ऑपरेंडी है? हमारी टीमों ने कुछ यह पैटर्न पाया:
1) फंडी जब दलित/ओबीसी के यहाँ वोट मांगने जाता है तो कैसे मांगता है: "जाटों के जुल्मों तले कब तक दबे रहोगे?", "जाटों की दबंगई खत्म करनी है तो हमें वोट दो"|
2) फंडी जब जाट के यहाँ जाता है तो कैसे मांगता है: "जाट तो गाम का मोड़ हों सें; जाट बिना कौन गाम चला ले"; "जाट, तो म्हारे जजमान हो सें; थारे बिना म्हारा कौन काम चला दे"|
हमारी टीमों से मिले इस फीडबैक पर, हमने टीमों से कहा कि दलित/ओबीसी भाइयों व् जाट भाइयों में जो भी इनकी नस्लीय वर्णवादी व् स्वर्ण-शूद्र वाली अलगाववादी मति से वाकिफ है व् जो अभी भी सीरी-साझी कल्चर की अच्छाई से वाकिफ है उनसे सम्पर्क करो| व् दोनों ही तरफ कहो कि अबकी बार जब यह फंडी वोट मांगने आवे तो फ़ोन पे ऑडियो रिकॉर्ड कर लो| और ऊपर पाई गई बातें खासतौर से रिकॉर्ड करवानी हैं| कहीं एक ट्राई में काम चल गया; कहीं 3-4 ट्राई में बात बनी परन्तु जिन-जिन गांव में हमारी टीमों ने यह एक्सपेरिमेंट किया; वहीँ हमें ऑडियो रिकॉर्ड करने में सफलता मिली|
फिर हमने निर्धारित किया कि अपने-अपने गाम के व्हाट्स-ऐप ग्रुप्स में व् लोगों को व्यक्तिगत तौर पर यह ऑडियो इंटरक्रॉस पास कर दो; यानि दलित-ओबीसी भाइयों के यहाँ यह जो बोलते हैं; वह जाटों के नंबरों पे भेज दो व् जो जाटों के यहाँ बोलते हैं, वह दलितों के नंबरों पे भेज दो| जो जाट-दलित-ओबीसी सभी के कॉमन ग्रुप्स हैं, वहां सभी की भेज दो| दूसरा काम यह किया कि जो लोग "सीरी-साझी कल्चर" को आज भी पसंद करते हैं, उनको बैठकों में मुखर करवा दिया; परन्तु यह ध्यान रखते हुए कि वहां फंडी का कोई साथी न बैठा हो| यह काम हुआ और गाम में फंडी सरपंच कैंडिडेट्स की ऐसी सिट्टी-पिट्टी गुम हुई कि जिन भी गामों में यह एक्सपेरिमेंट किये; फंडियों की तगड़ी हार हुई|
इससे बड़ा कोई और तिलिस्म नहीं है इनके पास| यह खुद को जिस मैनीपुलेशन व् पोलराइज़ेशन के एक्सपर्ट बोलते हैं; वह यह इतना सा ही बुलबुला है| बस जरूरत है आप-हम जैसे समाज के लोकतान्त्रिक लोगों द्वारा इस ऊपर बताये तरीके से एक्टिव होने की| इन तरीकों से लड़ना होगा आज के दिन इनसे पार पाना है तो, ट्रैन कर लो खुद को इनपे वक्त रहते|
अभी हरयाणे में विधानसभा चुनाव भी आएंगे; व् यही फंडी केटेगरी अभी से एक्टिव भी चुकी है; सबसे ज्यादा करनाल लोकसभा में एक्सपेरिमेंट चल रहा है| वहां पर टारगेट है कि जाट व् रोड को एक नहीं होने देना है| इसके लिए रोड़ों को मराठा बता के उनको "मराठा प्राइड" की लाइन पे ले जा के जाट से तोडा जा रहा है| परन्तु मैं इस बिंदु पर रोड बंधुओं को संदेश दूंगा कि "मराठा प्राइड तो पेशवाओं के घमंड ने पानीपत में तोडा था; जब यह जाटों को दुत्कारते हुए खुद समेत आपकी बलि चढ़ा गए; ज़रा याद करें, उसके बाद आपकी, आपके महिला-बच्चों की क्या दुर्गति हुई थी? अगर यही जाट न होते तो पानीपत से ले भरतपुर तक कौन मदद करता; किसने फर्स्ट ऐड करी थी आपकी? किसने आपको अपनों की तरह अपना के अपने यहाँ अब्दाली से भय ना खाते हुए भी मदद की थी"? इसलिए उस वक्त भी आपने पेशवाओं ने प्रपंच में फंसा के मरवाया व् अभी भी आपके साथ यही छल हो रहा है; बचें इससे| व् जिस जाट के साथ कल्चर-खेती समेत हर आचार-व्यवहार है, उससे ऐसे छिंटकेंगे तो आपको छिंटकवाने वाले भी क्या ही कद्र करेंगे आपकी|
व् ऐसे ही बेहूदे तर्कों से बाकियों से तोड़ने की कवायदें फंडियों की लगातार जारी हैं|
इन बिरादरी सम्मेलनों से कुछ नहीं होना जाना; कुछ करना है तो इस लेख जैसे उदाहरण वाला करें, अपने-अपने एरिया में|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 15 March 2023

15 मार्च 1206 यानि आज का दिन!

15 मार्च 1206 यानि आज का दिन - वह ऐतिहासिक दिन जब खोखर खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर जी व् उनकी खाप-आर्मी ने 1192 में मारे किंग पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद ग़ोरी को मारा था!


त्यौहार-उत्सव मनाने हैं तो इन तारीखों के मनाया करो; इन वास्तव में हो के गए पुरख-यौधेय सकल भगवानों के मनाया करो; उस खाप-मिल्ट्री कल्चर के मनाया करो, जिससे यह बनते आये| बाकी भी मना लो, जो मनाना हो परन्तु इनको मनाने व् भगवान मानने से कौन रोकता है या रोक सकता है?

बताओ जिन कामों के लिए तथाकथित बड़े-बड़ों के हांगे लाग लिया करते; इहसे-इहसे काम म्हारे चौधरी चालते-फिरते कर दिया करते| बाकी चौधरियों ने जब-जब राजे-रजवाड़े भी बनाये तो ऐसे ही बेमिसाल बनाये, चाहे वो पंजाब की मिसलों के बनाये हों या थानेसर-भरतपुर-बल्लबगढ़-मुरसन आदि वाले खाप-चौधरियों के हों!

जय यौधेय! - फूल मलिक 

Saturday, 11 March 2023

Jat People Chronology

  1. राजा पोरस (सिकन्दर को हराया)
  2. राजा यशोधर्मन विर्क (हूणों को हराया)
  3. राजा स्कंद्रगुप्त (यूरोप में जाकर राज किया)
  4. राजा कनिष्क (पहली सर्वखाप मीटिंग सौंख)
  5. राजा विक्रम पंवार (21 देशों को जीता)
  6. राजा समुद्रगुप्त (जाट राज विस्तार)
  7. रानी तोमिरिस (साइरस को मारा)
  8. हर्षवर्धन (जाट सर्वखाप पुनर्गठन)
  9. अनंगपाल सिंह 1st (इंद्रप्रस्थ बनाया)
  10. सलक्षपाल (चौधराहट प्रणाली लागू की)
  11. अनंगपाल 2nd (8 खेरे और दिल्ली बसाई)
  12. जाटवान मलिक (ऐबक हराया)
  13. रायसाल खोखर (गौरी मारा)
  14. नाहरपाल (खिलजी हराया)
  15. बच्छराज(मेरा खेरा बाबा)
  16. सुरत सिंह (राणा कुब्बा हराया)
  17. गोकुल जाट (औरंगजेब हराया)
  18. सुखपाल सिंह (औरंगजेब हराया)
  19. राजाराम(सिकंदरा खोदा)
  20. रामकी चाहर (औरंगजेब हराया)
  21. हठी सिंह (जयपुर मेवात हाड़ौती बलूच मुगल हराए)
  22. चूरामन (फर्रुख्धियर हराया)
  23. सूरजमल जाट (जो भिड़ा वही हराया)
  24. जवाहर सिंह (जो भिड़ा वही हराया)
  25. फौंदा सिंह (अब्दाली भगाया, राजपूत हराए)
  26. बनारसी सिंह (दौसा, करौली, अलवर जीते)
  27. अनूप सिंह (मुगल राजपूत पठान हराए)
  28. तोफा सिंह (70 हज़ार पठान हराए)
  29. शीशराम (सआदत खां हराया)
  30. बच्चू सिंह (फिरंगी भगाए)
  31. रणजीत सिंह (जो भिड़ा वही कूटा)
  32. नलवा (जो भिड़ा वही कूटा)

Thursday, 9 March 2023

प्रोटैस्टेंट (Protestants) ईसाईयों व् खाप यौधेयों में समानताएं!

1 - दोनों में मर्द-पुजारी रहित धोक-ज्योत की परम्परा है| जैसे खापलैंड के दादा नगर खेड़ों-भैयों-भूमियों के मूल-सिद्धांत में मर्द-पुजारी कांसेप्ट नहीं है, ऐसे ही प्रोटेस्टेंट्स की चर्च में पादरी नहीं होते| 

2 - दोनों के मूल सिद्धांतों में माइथोलॉजी नहीं मानी जाती| 

3 - दोनों साइंटिफिक व् तार्किक रहे हैं| 

4 - दोनों मूर्ती-पूजा को मिथ्या कहते हैं| 

5 - दोनों जहाँ-जहाँ बसते हैं अथवा बसते आये हैं; वो उस देश-जगह के सबसे खुशहाल, वर्णवाद टाइप की बीमारी से न्यूतम ग्रस्त व् साधन-सम्पन्न इलाके हैं; जैसे इंडिया में खापलैंड व् मिसललैंड और यूरोप में नार्डिक देश (डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, फिनलैंड), आयरलैंड, स्वीडन, इंग्लैंड, नीदरलैंड| वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की लिस्ट में यही देश टॉप लिस्ट में हैं| 


विशेष: इस पोस्ट से कोई यह बेसिरपैर मत मारना कि अब तुम हमें ईसाई बनाओगे क्या? मैंने सिर्फ एक रिसर्चर के तौर पर एक सकारात्मक पहलुओं की तुलनात्मक बात रखी है| इंडिया से इस पहलु पर कुछ वर्ल्ड स्टैण्डर्ड का है तो इन पैमानों से जीने वाले समाजों की यह थ्योरी उनमें से एक है|  


सावधान: खापलैंड जो इन पहलुओं पर सदियों से जागरूक रही है व् इनसे मुक्त रही है; उसको अब फंडी पुरजोर लगा के इसी गर्त में खींच रहे हैं| प्रोटेस्टेंट्स ने इस गर्त से 1500वीं सदी में लगभग दो सदी के खून-खराबे के बाद छुटकारा पाया था; जबकि खापलैंड वालो आप कभी से इनसे मुक्त रहे हो| परन्तु अब इन्हीं में घेरे जा रहे हो; इसलिए सचेत-सतर्क-सावधान हो जाओ| वरना कोई फायदा नहीं, कि इन फंड-पाखंडों से मुक्त समाज-धरती को पहले ऐसी गर्त में डलवाने का व् बाद में अगली पीढ़ियां इसी से मुक्ति पाने को संघर्ष करने में अपनी जिंदगी खोवें; ऐसी स्थितियां उनको दे के मत जाओ|  


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Sunday, 5 March 2023

चुगली करने बारे औरतों को तो खामखा बदनाम किया, "ढोल-गंवार-शूद्र-पशु-नारी, सब ताड़ना के अधिकारी" लिखने की मानसिकता वालों ने; असली व् सबसे बड़े चुगलबाज तो यह खुद हैं!

यकीं ना हो तो देख लो आजकल हरयाणे म्ह|

2024 के लोकसभा व् विधानसभा चुनाव जीतने हेतु नीचे-नीचे फिर से वही जाट बनाम नॉन-जाट फैलाया जा रहा है और तरीका क्या है?
दलित-ओबीसी भाई के सामने: "जाटा कै के जड़ राखी सै चौधर, जाट फेर तें सत्ता में आ गए तो थमनें खा ज्यांगे (हाँ, जाणू आज तैं पहल्यां तो दलित-ओबीसी भाई इनके बसाए ही बसे जाटों के बीच सदियों से), थारा के जातीय प्राइड सै कोनी (हाँ, जाटां नैं तो पुणे के पेशवों की भांति गळे में थूक की हांडी व् कमर पे झाड़ू बाँध राखी थी, थारे बताने से पहले तक)|
और यही लोग जाट के आगे क्या बोलते हैं: भाई थम तो चौधरी सो समाज के, जजमान सो म्हारे; थारे बिना के सै म्हारे धोरै; जाट ना हो तो हम तो भूखे ही मर जावां आदि-आदि!
बस यही है इनका 35 बनाम 1 करने का तरीका; व् इसी तरीके में इसकी काट छुपी है; जो मैं व् म्हारी टीम प्रैक्टिकल करके के इसको फ़ैल करते रहते हैं व् जहाँ-जहाँ ट्राई किया जबरदस्त सफलता हाथ लगी|
तरीका क्या है?: जब यह दलित-ओबीसी-जाट किसी के भी आगे जाट बारे जो-जो कहने आवें, उसको चुपके से रिकॉर्ड कर लो व् व्हाट्स ऐप ग्रुप्स में वायरल कर दो| ताकि लोगों को खड़े-पां इनकी "कंधे से ऊपर की स्वघोषित मजबूती" के तुरता-तुरति दर्शन हो ज्यां| बस यही है इनकी तथाकथित कंधे से ऊपर की मजबूती| इनका सांग सिर्फ इतना सा है कि "अगला शर्मांदा भीतर बढ़ गया, और बेशर्म जाने मेरे से डर गया"| They survive nothing but your absence on this front to counter it और हद से ज्यादा थारी उदारवादिता; सुहान्दे-सुहान्दे उदारवादी रहो, for granted स्तर तक मत उदारवाद धारो|
व् आपकी इतनी सी सक्रियता इनको नाकों-चने चबवा सकती है|
इसलिए जो भी हरयाणा के मूल कल्चर-सिस्टम-भाषा से प्यार करने वाला हो, यह करे| यह तो ऐसे जाएंगे जहां से जैसे भेड़ों के सर से सींग|
दलित-ओबीसी भाइयों से अपील: कोरेगांव की घटना में पेशवाओं को तभी पराजित कर सके थे आप लोग, जब मराठे आपके साथ थे| हरयाणे में जाट वही हैं आपके लिए| इनसे इस चक्र में मत छिंटको कि म्हारी बेशक दोनों फूटें, परन्तु जाटां की एक फूट रही है, वह बहुत म्हारे लिए| यह सोच बहुत आत्मघाती है| जाट तो फिर भी इनके हमलों से बच निकलेंगे अंत दिन, पर जो अगर थम यूँ ही छिंटके रहे तो इनके द्वारा आपके लिए फिर वही महाराष्ट्र वाली गले में थूक की हांडी व् कमर पे झाड़ू तैयार मिलेंगी; जिनसे छूटने को फिर से जाट चाहिए होंगे| इसीलिए जाटों से अगर कोई चूक हो भी रखी है तो वक्त रहते बैठ-बतला के सुलटा लो; वरना 2024 में ये आये और सविंधान बदला| और उसके बदलते ही क्या लागू होगा, कहने की लोड कोनी|
और जाट समाज के भी जितने चिंतक हैं, कृपया इस पहलू पे ऊपर बताये तरीके से सक्रिय हो जाओ; वरना वक्त आप-हम पे भी बहुत भारी है अभी आगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक