Friday, 2 June 2023

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे!

 हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


सारी बात सहन कर ल्यूं, तेरे आसूँ हों बरदास नहीं,

जब तक बदला ना ले ल्यूं, मनैं सुख के आवैं सांस नहीं!

हे धर ली ज्यान हथेळी पै अब, जीणा होता रास नहीं,

मरते तक ज्यान चली ज्या, पर देखूं तुझै उदास नहीं!!

अभी जिन्दा हूँ मैं लाश नहीं, हम बण कैं हाथी आगे!

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


बापू आळे भाहण तेरे मैं, करकै लाड दिखा द्यूंगा,

दुनियां देख दंग हो ज्या ऐसी, करकें राड़ दिखा द्यूंगा!

बृजभूषण की त्यरे चरणों म्ह, झुकती नाड दिखा द्यूंगा,

गर ऐसा ना हुआ तो, उसके बिखरे हाड़ दिखा द्यूंगा!!

इन्नें करकै रॉड दिखा द्यूंगा, होये मन की काढ़ दिखा द्यूंगा; हम सच्चे साथी आगे!  

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


रागनी रचयिता व् गायक: चौधरी महेंद्र सिंह, मोहिददीनपुर उत्तर प्रदेश 




Wednesday, 31 May 2023

त्रिमूर्ति की फिलोसॉफी से "पहलवान मसले" को समझा जाना चाहिए!

ब्रह्मा-विष्णु-महेश: तीनों का बौद्धिकता व् बुद्धि में 33.33% हिस्सा है| जब-जब यह हिस्सा इन तीनों में से एक ने भी अपनी तरफ ज्यादा खींचा या एक ने भी अपने हिस्से का योगदान छोड़ा तो समाज में अव्यवस्था बढ़ी व् आज भारत उसी दौर से गुजर रहा है कि बेटियां यौन उत्पीड़न के केसों में भी न्याय नहीं ले पा रही हैं| 


अब समाज का कौनसा तबका ब्रह्मा को रिप्रेजेंट करता है या उसके खाते का माना जाता है व् कौनसा विष्णु व् महेश का; यह समाज खुद जानता भी है व् तय भी कर सकता है| फ़िलहाल तो ऐसा लगता है कि समाज को चलाने की बुद्धि-विवेक का सारा ठेका एक या दो हिस्सों ने अपनी तरफ सरका लिया है व् तीसरे को नकार दिया है या तीसरा हिस्सा खुद ही इन्हीं को अपने हिस्से के भी बुद्धि के फैसले देने का जिम्मा छोड़ बैठा है| जब तक यह अव्यवस्था कायम रहेगी; यह कशमकस बनी रहेगी| जिस दिन तीसरे ने अपना हिस्सा व् जिम्मा ले के चीजें ठीक करनी शुरू की, चाहे वह तांडव करके करे या ताड़ना से; उसी दिन पहलवान मसला हल हो जाएगा| 


शिवजी वाले खाते में जो जाने गए, उनकी समस्या एक और हो रखी है कि वो शिवजी वाली बुद्धि से दूर हटे दीखते हैं व् चीरहरण पर भी खामोश रहने वाले हिस्से में जा बैठे हैं; 28 मई को बेटियों के साथ जंतर-मंतर पर जो हुआ वह चीरहरण ही तो था| अब अगर यह चीरहरण की कथाएं आपको एक्शन लेने की बजाए; चुपचाप रहने की भीरुता आप में भरती हैं तो बेहतर है कि इन चीरहरण की कथाओं को सुनना व् आदर्श ज्ञान व् शिक्षा मानना भी बंद ही कर दो|  


विशेष: मैं त्रिमूर्ति की थ्योरी को एक फिलॉसोफी की तरह यहाँ पेश कर रहा हूँ, इन चरित्रों से इस बात को रखना इसलिए लाजिमी है कि जो इन्हीं उदाहरणों से समझते व् चलते हैं; उनको बात समझ आये| उनको बता रखा होगा त्रिमूर्ति में से दो ने कि तुम ज्यादा उग्र हुए तो धर्म की हानि हो जाएगी, यह हो जायेगा वह हो जायेगा। तो धर्म की हानि इससे ज्यादा क्या होगी कि बेटियों के चीरहरण हो रहे हैं? धर्मयुद्ध तुम तभी तो कहते हो लड़ने की जब पाप बढ़े? तो यह पाप नहीं बढ़ा हुआ है तो और क्या है? इसके तो शिवजी को त्रिमूर्ति वाला उसका किरदार निभाने को उठ खड़ा होना चाहिए व् पंचायतों के जरिए एकजुट हो, सरकार को सख्त संदेश देना चाहिए| अन्यथा फिर क्यों अपने आपको शिवजी की औलाद तो कभी उसकी जटाओं से निकले कहते-कहलवाते हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 30 May 2023

मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर आज 30 मई 2023 को निम्नलिखित 7 आजीवन व्रत धारण करता हूँ!

भूमिका: मैंने मेरे अगले इंडिया दौरे पर मेरे गाम के "दादा नगर खेड़े बड़े बीर" पर उसको साक्षी करके जो खुद को "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप (असल-नश्ल-फसल)" के नाम दान करने का कार्यक्रम बना रखा था; आज 30 मई 2023 को ही उसकी अनौपचारिक घोषणा करता हूँ; औपचारिक घोषणा जब भी इंडिया का अगला दौरा होगा तब करूंगा|
घोषणा की वजह: "खाप-खेड़ा-खेत" के दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान व् कल्चर में "बेटी का सम्मान" ऐसा सम्मान है जिस पर सिवाए न्याय के दूसरी कोई चीज कभी खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के इतिहास, दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान में देखने को नहीं मिलती| इस कल्चर-किनशिप में पलते-बड़े होते हुए तो यह चीज देखी ही, साथ ही इस किनशिप का इतिहास भी इन्हीं तथ्यों की गवाही देता है| न्याय की जब बात आती है तो बेटियों का मुद्दा ऐसा रहा है कि अगर खापों को इसके लिए रियासतों की रियासतें, राजाओं के राज भी धूलधरसित करने पड़े तो किए गए| चोरी, डकैती, पैसे के लेनदेन, जमीन-जायदाद जैसे तमाम झगड़े-मसले एक तरफ व् बहु-बेटी के सम्मान की नाजुकता व् गंभीरता एक तरफ| चोरी-डकैती-जमीन-जायदाद में खापों ने बेशक 2-4 ऊपर नीचे करके फैसले करवा दिए हों परन्तु "बेटियों के सम्मान" पर सिवाए न्याय के कभी कोई फैसला करके नहीं उठी| और आज 30 मई 2023 को इसी कल्चर-किनशिप से आने वाली पहलवान बेटियां, किस तरह से अमेरिका के महान बॉक्सर मोहम्मद अली (कैसियस क्ले) की भांति मेडल्स नदी में बहाने तक की नौबत तक आ पहुंची; यही वह नाजुक वक्त है जब हमने अगर हमारी पुरख किनशिप की वर्तमान अवस्था में आई खामियों पर विचार कर इनको दुरुस्त करने हेतु कोई कदम नहीं उठाए तो यह चीजें उस भयावह रूप तक जा सकती हैं कि जिसका रास्ता आगे खापलैंड पर देवदासी प्रथा, सति प्रथा, प्रथमव्या व्रजसला नाबालिगा का शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप और विधवा आश्रमों की झड़ी लगने के दौर में प्रवेश कर जाएगा| और इन चीजों का खापलैंड पर ऐतिहासिक तौर पर नहीं होना हमारी किनशिप का सबसे बड़ा मानवीय-सभ्य हासिल रहा है| यह हासिल अगली पीढ़ियों तक ज्यों-का-त्यों पहुंचे उसके लिए अब "हद होने तक" वाला वक्त आ पहुंचा है, व् इसमें मैं आज घोषित तौर पर खुद को अर्पित करता हूँ|
घोषणा: मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों (जो गाम गेल गाम के प्रथम पुरखों द्वारा गाम की स्थापना के वक्त गाम की फिरनी में किसी मूर्ती रहित, प्रतिनिधि रहित, 100% औरत की धोक-ज्योत की अगुवाई में स्थापित किया होता है) व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर मेरी पुरख किनशिप "खाप-खेड़ा-खेत" के संवर्धन हेतु निम्नलिखित आजीवन व्रत धारता हूँ:
1) मैं, खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के शुद्धतम रूप को अनवरत-आजीवन सिंचित-स्थापित-प्रोत्साहित-प्रचारित रखूंगा|
2) मैं, कभी भी मेरी किनशिप से बाहर-भीतर ऐसे व्यक्ति/समूह को कोई दान-दप्पा नहीं दूंगा जो उस दान से मेरी ही जड़ें खोदने के कार्यों के लिए जाना गया है या ऐसा होने का मुझे लेशमात्र भी अंदेशा है या उस दान से उसको मुझपर ही 35 बनाम 1 तरह के षड्यंत्र रचने का संबल अर्जित होता हो या मुझसे दान लेने हेतु मुझे कोई भय-लालच-द्वेष-क्लेश-कर्तव्य आदि दिखाता-करता है| मैं, मेरे निहित अथवा अर्जित दान-दप्पे लायक पैसे को मेरी किनशिप के कार्यों में मेरी देखरेख में लगाने-लगवाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी वहन करता हूँ|
3) मैं, चार प्रकार की राजनीतियों यानि धर्म-राजनीति, सत्ता राजनीति, सामाजिक राजनीति व् आर्थिक राजनीति में इनके भीतरी-बाहरी सब पहलुओं पर मेरी किनशिप की सम्मानजनक भागीदारी व् उपस्तिथि जहाँ नहीं होगी, वहां सहमति-सहयोग नहीं दूंगा|
4) जिस प्रकार अच्छी फसल हेतु आवारा जानवरों से उसकी बाड़ जरूरी होती है, ठीक उसी प्रकार अपने असल (पुरख दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान) व् नश्ल की भी दो पैरों रुपी आवारा जानवर यानि किसी भी जनसमूह में पाए जाने वाले फंडी-फलहरी से बाड़ करनी होती है| बिना किसी से राग-द्वेष-क्लेश पाले दूसरों से इसका आदर-सम्मान अथवा स्पष्टता स्थापित करते/करवाते हुए मैं इसकी सुनिश्चितता हेतु अनवरत कार्य करूँगा, व् इसको आगे बढ़ाऊंगा|
5) मैं किसी भी प्रकार के जातिवाद, वर्णवाद, धर्मवाद, नश्लवाद की अंधता से खुद को दूर रखूंगा व् इन सबसे ऊपर जरूरी मानवता को रखूँगा; परन्तु साथ ही मानवता के नाम पर अपनी किनशिप का गला घोंटने-घुंटवाने की अवस्था आने से पहले ही उसको नहीं आने देने के सर्व इंतजाम एक दूरदर्शी की भांति करके रखूँगा| मैं, नश्लीय गौरव व् आध्यात्मिक गौरव को व्यक्तिगत रखते हुए कभी भी इनको नफरत-हेय-तुलना आदि की वजह नहीं बनने दूंगा|
6) मैं मेरी किनशिप से एंटी अथवा अनजान व्यक्ति/समूह से प्रोफेशनल रिश्ते तक सिमित रहूँगा; दूसरों के कल्चर-किनशिप का हर वैधानिक मान-सम्मान करते हुए, मेरी किनशिप-कल्चर को अपने चित में हमेशा सर्वोपरि रखूंगा| अनजान या एंटी लोगों के बीच चित में सर्वोपरि व् अपनी किनशिप के लोगों के बीच अपनी किनशिप का अनवरत प्रचारक रहूँगा|
7) मैं मेरी किनशिप के बुद्धिवान-विवेकवान व् बुद्धिविहीन-विवेकहीन दोनों का बराबरी से सम्मान करूँगा व् दोनों को मानवीय पहलुओं समेत मेरी किनशिप में परिभाषित हर अपनापन बराबरी से दूंगा| व् मैं इस बात की क्रियान्विनयता मेरी किनशिप के ग्रामीण-शहरी-NRI हर स्तर पर बराबरी से करूंगा, उनकी अमीरी-गरीबी-हैसियत आदि पर समरूप रहते हुए करूँगा| व् यह सिद्धांत, इसी बराबरी से हर उस व्यक्ति/समूह के प्रति रखूंगा जो मेरी किनशिप से बाहर का भी होगा परन्तु मेरी किनशिप का आदर करने वाला व् उसको बराबर की अहमियत देने वाला होगा|
मुझे ऊपरलिखित बिंदुओं पर अपनी किनशिप की बाड़ करने/रखने तक सिमित रहना है व् इसके क्रियान्वयन हेतु मैं किसी भी प्रकार के राग-द्वेष-क्लेश-हेय आदि से दूर रहूँगा|
फ़िलहाल यही अनौपचारिक घोषणाएं करके, इन व्रतों को खुद पर धारण कर रहा हूँ| हो सकता है जिस दिन इनकी औपचारिक घोषणा करूँगा उस दिन इनमें और भी बिंदु शामिल हों|
उद्घोषणा: इस ऊपर लिखित व्रत-धारण पर नकारात्मक-सकारात्मक दोनों तरह की बातें सुनने को मिल सकती हैं| पॉजिटिव क्रिटिसिज्म का स्वागत रहेगा; नेगेटिव क्रिटिसिज्म करने वाले डेड-स्याणे यह सोच के तो क्रिटिसिज्म करें नहीं कि वह किसी के भी दिमाग की दही कर सकते हैं| ऐसे "दिमाग की दही करने वालों के दिमाग का यहाँ तसल्लीबख्श गोबर किया जाता है"| दही तो कोई खा ले, उसकी लस्सी बना ले, घी बना ले परन्तु गोबर का क्या करोगे जो ना खाने का ना बगाने का| और जिसको हो शौक अपने दिमाग का गोबर करवाने का, वह कर ले इस पोस्ट का नेगेटिव क्रिटिसिज्म; जो ना ऐसा महसूस हो तो कि कित भींत म्ह टक्कर मारुं सूं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 14 May 2023

कर्नाटक में जैसे लंगायत समुदाय है वैसे ही हरयाणा में आर्यसमाज समुदाय है!

 कर्नाटक में लिंगायत ठीक वैसे ही मठ-स्कूल चलाते हैं जैसे हरयाणा में आर्य समाजियों द्वारा मठ, गुरुकुल, डीएवी सीरीज चलित हैं| 


कर्नाटक का लिंगायत समुदाय 1990 के बाद वापिस कांग्रेस को लौटा है; वजह जानते हैं? 


वजह है वहां पिछले 5 साल में, बीजेपी ने सभी लिंगायत मठ-स्कूल-संस्थाओं में एक तो बीजेपी-आरएसएस के कारिंदे घुसा दिए थे व् दूसरा इन संस्थाओं को कोई भी सरकारी फंड देने से पहले उस फंड से 30% राशि की कटौती की जाती थी| इससे लिंगायत ख़ासा नाराज हुए बीजेपी से व् नतीजा आपके सामने है| 


अब हरयाणा में भी यही हुआ है, पिछले ही महीनों में यहाँ भी आर्य-समाज के पुराने कटटर वोटर्स के वोट काट के संघी समर्थित लोग आर्य समाज की तमाम संस्थाओं में घुसा दिए हैं| पिछले कई सालों से इन संस्थाओं के चुनाव नहीं होने दिए हैं व् एडमिनिस्ट्रेशन के जरिये इनके तमाम संसाधनों की लूट मचा रखी है| बाकी तो जो वजहें हैं सो हैं ही जैसे कि किसान-मजदूरों-व्यापारियों की; परन्तु आशा है कि स्थानीय लोगों के दान-जमीन से बने यह मठ-शिक्षण संस्थानों पर कब्जा व् इनसे धन उगाही की संघियों की इस गुंडई पर अब हरयाणा भी लगाम लगाएगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक  

Saturday, 13 May 2023

खाप-खेड़ा-खेत एक जातिविहीन व् वर्णविहीन ही नहीं धर्मविहीन सिस्टम है!

मैं यह बात अक्सर कहता आया हूँ; आज इसका लाइव-प्रमाण भी देख लीजिये| कल बवाना में जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों के लिए खाप पंचायत हुई थी जिसमें कि चौधरी मोहम्मद आरिफ, गाम हौजराणी दिल्ली प्रधान लाडो-सराय खाप तपा ने भाग लिया; देखें सलंगित वीडियो में उनका इंटरव्यू| ऐसे ही गुड़गाम्मा-मेवात में भी कई मुस्लिम खाप व् तपें हैं| 


और यही कांसेप्ट दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का है; जिनको सिर्फ एक जाति ही नहीं अपितु तमाम वर्णों समेत गाम में बसने वाले तमाम धर्म के लोग एकमुश्त एकराय से धोकते आए हैं| 


विशेष: फंडी, इस जाति-वर्ण-धर्म रहित सिस्टम पर अपना कब्जा जमाने को इसको विभिन्न पोथियों से जोड़ते पाए जाते हैं| इनका काम ही यह है| अब ताजा उदाहरण देख लो, आर्य-समाज संस्थाओं पर कब्जा करने का| कुछ हफ्ते पहले ही आर्य-समाज की पुराने वोटर्स को लिस्ट से हटा के; फंडियों ने अपने भर दिए हैं व् कब्ज़ा करके बैठ गए हैं| उम्मीद है कि जल्द ही यह सरकार बदलेगी व् पुराने व् कटटर आर्यसमाजी इन फंडियों को आर्य समाज के गुरुकुलों-मठों-गौशालाओं से निकाल बाहर करेंगे| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 


वीडियो सोर्स: https://www.youtube.com/watch?v=_mqkcg8b5hY

हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है:

 दो तीन दिन पहले मैं गांव गया तो, ताऊ जी ने, हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा सुनाया, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है।

हुआ यूं की, हरफूल जाट एक अहीरों के गांव से हो कर गुजर रहे थे की, उन्होंने देखा की गांव के बहुत सारे लड़कों के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी।
हरफूल ने घोड़ी रोक कर, गली में जा रही एक बुजुर्ग महिला से पूछा की, क्या मामला है। बुजुर्ग महिला ने बताया की, गांव के खेतों में एक डेरा रुका हुआ है, जिसमें बहुत सारी महिला और पुरुषों के साथ-साथ पशु भी है।
ये लोग कई दिन से खेत उजाड़ रहे हैं। मानते नहीं है, इसलिए लड़ाई हो गई।
गांव के सभी लोग इकट्ठे हो कर गए, तो उन पर कुत्ते छोड़ दिए और लाठियां बरसाई। ऐसा वो कई बार चुके है, और कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
हरफूल बोले: मेरे कहने से एक बार फिर कोशिश करो, अबकी बार मैं तुम्हारा साथ दूंगा।
पंचायत बुला कर, पूरी ताकत के साथ दोबारा जाने का फैंसला किया। हरफूल अपनी बंदूक को लेकर साथ- साथ हो लिए।
जैसे ही डेरा वालों ने उन यादव लोगों पर हमला किया, तो हरफूल ने एक दम से आगे बढ़ कर, उनके कुत्तों को मार दिया, और डेरा प्रमुख की भी हत्या कर दी।
महिला ने हरफूल को धर्म का बेटा बना लिया।
कहते हैं की, हरफूल पर जब पहला केस दर्ज हुआ तो, उसकी सगाई हो चुकी थी। उसके बाद हरफूल अपनी होने वाली पत्नी को उस अहीर महिला के घर लाया। वहां उससे गुपचुप शादी की, और हरफूल, अपनी पत्नी के साथ उस महिला के पास ही रहने लगे। अहीर बाहुल्य गांव वालों ने इस बात को हमेशा के लिए राज ही रखा।
Dr Mahipal Gill
Jat कॉलेज रोहतक

Thursday, 11 May 2023

पहलवान सुशील कुमार व् पहलवान नर सिंह यादव मसले पर एक खाप-पंचायत बुलाई जानी चाहिए!

क्योंकि कोर्ट तो इस देश में सिर्फ फैसले सुनाते हैं, वह न्याय नहीं करते व् ना न्याय के बाद दोनों पक्षों के आपस में दिल-साफ़ करके उनको गले लगवाते| जबकि खाप-पंचायत की परम्परा ही यह है कि वह न्याय करके, दोनों पक्षों को गले भी लगवाती है| 


होनी चाहिए, एक पंचायत इस मसले पर ताकि घिनौनी राजनीती द्वारा इस मसले के चलते जाट व् यादव समुदायों में डाली खाई पाटी जा सके| 


दोनों तरफ के 'रियो ओलिंपिक घटना' के पूरे सबूत दोनों साइड्स ले के आवें व् पंचायत बैठ के दोनों को देखे| मेरा मानना है कि दोनों एक-दूसरे के प्रति साफ़ निकलेंगे व् दोषी मिलेगा बृजभूषण जैसा कोई षड्यंत्रकारी| क्योंकि वाडा की ड्रग्स वाली रिपोर्ट में यह साफ़ निकल के आया हुआ है कि नर सिंह "डोपिंग टेस्ट" में "खाने में मिला के दी गई" दवाई के चलते फ़ैल नहीं हुआ अपितु इंजेक्शंस से लम्बे वक्त तक ली जाने वाली ड्रग के चलते फ़ैल हुआ| 


यह करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि दोनों कम्युनिटी एक ही कल्चर-किनशिप से निकलती हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Thursday, 4 May 2023

बेबे गीता-बबीता के नाम संदेश!

आएं बेबे गीता, बागेश्वर धाम सरकार की पोस्ट में बस इतना-ए-जादू था ए, अक तू म्हारी लाडो अपने फील्ड यानि कुश्ती स्पोर्ट्स की शंकराचार्य अर तू आज जंतरमंतर पर भी ना जाण दी; बावजूद तू खुद एक पुलिस अधिकारी होने के, ए?


आएं बेबे बबीता, आएं तेरै वैं तब्लीगी-जमात आळयां नैं कोसदी होई की पोस्ट भी कीमें काम ना कर री ए आपणी पहलवान बाहण-भाई-बैणोंईयां ताहिं न्याय दुवाण म्ह ए बेबे? जिंदगी का सिद्धांत तो थम (हरयाणवी में 'थम' सिंगल 'तू' व् सिंगल के लिए आदर स्वरूप 'आप' दोनों के लिए प्रयोग होता है; आड़े 'आप' आळा थम सै बेबे) उसे दिन भटक गई थी बेबे, जय्ब "दंगल" बरगी मूवी बणा थमनें वर्ल्ड-फेमस करणीए की जमात बाबत उल्ट-सुलट लिखी| 


पर गलती आपणे समाज की भी सै उरै; जो हर पहलवान को अपनी "खाप-खेड़े-खेत की किनशिप" ट्रांसफर करने का कोई रिवाज ना बना राख्या; नहीं तो थम भी कित इन सर छोटूराम की टर्म आळे फंडियां के हाथां न्यू खिलौना बनती ए!


याहे कहाणी आदरणीय गवर्नर सत्यपाल मलिक जी गेल बनी; बावजूद इन फंडियों को अपनी जिंदगी के 25 साल देने के| पर मलिक साहब तो इब उस राह पै आ लिए सें अक सुणां सां के इहसा काम बांधण लाग रे सें अक फंडी रोवेंगे उनका अपमान करण के पल नैं| अर खाप-खेड़े-खेत का सर्वसमाज उनकी गेल सै; अर गेल तो थारै भी सां बेबे| 


हालाँकि ये हैके टळ सकें थे या थम इन्नें ज्वाइन ना करदी तो होंदे ए ना; पर फेर भी थारे पै इस ऊपर लिखे मलाल की गेल गर्व घणा से बेबे| गर्व न्यू सै अक थम बख्त रहते इन्नें समझ गई सो; अर जंतर-मंतर पर धरणा देणे आळे आपणे पहलवानां गेल गीता बेबे थम तो घाट-तैं-घाट लीक्ड कैं चाली| बबीता भी देखो वारी-सवेरी लिकड़ आवै तो इनमें तैं| 


बाकी बेबे, म्हारे बरगयां कै दर्द तो भोत सै, पर हम भी लाग रे सां काम पै; इन सारी समस्याओं की जड़ म्हारी किनशिप नैं खड्या करने पै| 


जुग-जुग जियो म्हारी भाण!


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 2 May 2023

जंतर-मंतर पर पहलवान बनाम बृजभूषण जो धरना है; इसका आइडियोलॉजीकल, फिलोसॉफीकल अंतर क्या है?

 1 - यह सामंती वर्णवाद बनाम उदारवादी खापवाद की लड़ाई है| 

2 - यह स्वर्ण-शूद्र बनाम सीरी-साझी कल्चर की लड़ाई है| 

3 - यह अधिनायकवाद बनाम लोकतान्त्रिक-गणतांत्रिक खेड़ावाद है|

4 - यह अनैतिक पूंजीवाद बनाम नैतिक पूंजीवाद है| 

5 - यह orthodox बनाम protestant मसला है|

6 - यह मूर्तिपूजक बनाम निराकार पुरखपूजक लड़ाई है| 

7 - यह बहमवाद बनाम यथार्थवाद लड़ाई है| 


निचोड़ यह है कि यह जितने भी "खाप-खेड़ा-खेत" थ्योरी से आने वाले लोग, इन सामंतियों वर्णवादियों के कल्चरल-स्पिरिचुअल स्तर पर भी गलबहियां हुए पड़े हैं; यह अपना इंटेल्लेक्ट ही नहीं पहचानते| प्रोफेशनल-पावर पोलिटिकल फ्रंट पे इनसे मिलके काम करना, अलायन्स करना समझ आता है; परन्तु जब तक अपने कल्चरल-स्पिरिचुअल फ्रंट को समझ के इसपे अपना स्वछंद स्टैंड नहीं रखेंगे; यूँ ही इनके जवान-किसान-पहलवान-मजदूर-कर्मचारी-व्यापारी सब परेशान रहेगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Friday, 28 April 2023

विनेश फोगाट और साक्षी मलिक; सत्रहवीं सदी की खाप यौधेया दादीराणी समाकौर मलिक का प्रतिरूप बन गई हैं!

आज से 403 साल पहले; सन 1620, डबरपुर गाम, सोनीपत (उस वक्त गठवाळा खाप की चौधर इसी गाम में थी) की बेटी दादीराणी समाकौर के आह्वान पर मलिक खाप ने सर्वखाप बुलाई व् फैसला हुआ कि सर्वखाप कलानौर रियासत तोड़ेगी| गढ़ी-टेकणा-मुरादपुर में सर्वखाप ने गढ़ी यानि अंडरग्राउंड-फौजी-बैरक बनाई (खापलैंड में जितने भी गामों के नाम में गढ़ी लगा हुआ है; यह सब सर्वखाप की किसी न किसी लड़ाई के कैंप होने की वजह से गढ़ी कहलाये हैं) वहां से कलानौर का घेरा डाला व् अपनी बेटी के सम्मान व् आवाज पर कलानौर रियासत तोड़ दी गई| 


साक्षी और विनेश की भांति ही दादीराणी समाकौर भी उस रियासत के जुल्मों की पीड़ित नहीं थी बल्कि अन्य समाजों पर वहां हो रहे जुल्मों को देख व् उसकी आंच जब उस तक पहुँचने का उसको पता चला तो उसने ऐसी आवाज उठाई कि तमाम खापें ऊठ खड़ी हुई और कर दिया कलानौर का ऊट-मटीला| 


विनेश व् साक्षी आज उसी रूप में नजर आती हैं व् सर्वखाप के चौधरी भी अपनी बेटियों के साथ अड़-खड़े हुए हैं| यह मामला अब एक नाजीर बनेगा जो ना सिर्फ कुश्ती संघ में अपितु तमाम स्पोर्ट्स से ले कॉर्पोरेट जगत तक में होने वाले यौन-शोषणों के लिए बेटियों-बहनों को लम्बे वक्तों तक प्रेरणा व् हौंसला देने वाला किस्सा बनेगा| 


और यहाँ कुछ गधे के बच्चे, बृजभूषण शरण द्वारा बेटियों के शोषण का "सामंती क्षत्रियों वाले ऐटिटूड वाला गंवार-गान" करने में लगे हैं| बेहूदा पोस्ट्स निकाल रहे हैं कि देखो एक क्षत्री ने 1000 फलाणियों का ये किया वो किया: मतलब क्या जंगलीपन है कि इस बात की बड़ाई गा रहे हैं; दिमाग में वासना भरे यह लोग और इन्हीं को क्षत्रिय कहा गया है| देखना कल को इसी पे इन क्षत्रियों को बार-बार धरती खाली करने के दावे करने वाला स्वघोषित ग्रुप इनको इसपे अध्याय भी लिख के देगा कि देखो तुमने फलानों की बहु-बेटियों का शोषण किया; इसलिए तुम वीर क्षत्रिय हुए कि नहीं? इसीलिए मैं इन जाटों समेत तमाम खाप-खेड़े-खेतों के पिछोके वालों को बार-बार बोलता हूँ कि नहीं हो तुम क्षत्रिय; ना सोच से, ना कर्म से ना जीन्स से| तुम प्रोटोस्टेंट स्वभाव के लोकतान्त्रिक लोग हो, उसको समझो व् जैसे थारे पुरखे अवर्ण रहे; वैसे अवर्ण रहो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 27 April 2023

अपने intellect heritage के ही विरुद्ध, भावनावश या अल्पज्ञानवश ही सही जा कर व् उनके व् अपने बीच कोई बाड़ निर्धारित ना करके:

अपने intellect heritage के ही विरुद्ध, भावनावश या अल्पज्ञानवश ही सही जा कर व् उनके व् अपने बीच कोई बाड़ निर्धारित ना करके; जब किसी सामंती स्वर्ण-शूद्र वर्णी व्यवस्था को पोषित करोगे या उसमें फिट होने की कोशिश करोगे तो कहीं-ना-कहीं जा के तो टकराव होगा ही, 'पहलवानों का धरना इसका ताजा उदाहरण है":


विशेष: यह पोस्ट उसी को समझ आएगी जो "genetical ideological and psychological intellectaul heritage" जैसे कॉन्सेप्ट्स समझता/ती होगी| ऊपरी तौर पर इसका मंतव्य है कि कोई भी समाज अनुवांशिक तौर पर किस मनौविज्ञान व् विचारधारा के आधार पर खड़ा है| यह क्या, कितनी प्रकार की होती हैं का अध्याय खोलने की बजाए, ऐसे एक-दो और उदाहरण देते हुए सीधा विषय पर आता हूँ| एक-दो और उदाहरण हैं सत्यपाल मलिक जी ने जो पुलवामा व्  भ्र्ष्टाचार खोला ((खोला पहले भी था, परन्तु रिटायरमेंट के बाद सिक्योरिटी छीनने से आंतरिक तौर पर जब अपमान मिला तो intellect heritage ज्यादा जागृत हुआ व् अति-मुखर हो गए), 13 महीने जो किसान आंदोलन हुआ| इन सब में एक बात कॉमन है; तीनों में ही खाप भी थी और हैं व् जो भूमि इनका उद्गमबिंदु रही वह है मिसललैंड (पहले खापें ही थी, सिख धर्म बनने के बाद मिसल कहलाई) व् खापलैंड| और कई तो जलते-बलते-चिढ़ते यह भी कह देते हैं कि इनमें भी बस एक जाति-विशेष वालों को ही चूल रहती है| 


आगे बढ़ने से पहले सलंगित चार्ट को पढ़ें, तो आगे की पोस्ट ज्यादा सलरता से समझ आएगी|


दरअसल, जैसे "ट्रेडिशनल-व्यापारियों" व् "मोहन-भागवत जी की परिभाषा वाले पंडितों" का एक मूक समझौता रहता है जिसके तहत व्यापारी धर्म के नाम पर पंडित के लिए धर्मस्थल इत्यादि बनाता है; पंडित इसको जैसे प्रचारित-प्रसारित करे; व्यापारी करने देता है| व् बदले में व्यापारी को पंडित से मिलता है धर्मस्थलों के जरिए व्यापार, मनोवैज्ञानिक रूप से व्यापारी की दुकानों की तरफ मोड़ दिया गया क्षत्रिय व् शूद्र वर्ण का ग्राहक व् इन दोनों से भी सबसे जरूरी चीज जो अगर पंडित ना करे तो ट्रेडिशनल-व्यापारी व् पंडित का समझौता एक दिन में टूट जाए| और वह है व्यापारी की सोशल आइडेंटिटी, रेपुटेशन व् सिक्योरिटी की गारंटी| और यही वजह है कि आपने ट्रेडिशनल-व्यापारी समाज के "सामाजिक पहलुओं व् जीवन-शैली की खामियों" पर कभी भी प्रिंट से ले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कभी ऐसी "मीडिया-ट्रायल्स" होती नहीं देखी होंगी जैसी 2000 व् 2010 के दशकों में "खाप", "जाट" व् "हरयाणवी" शब्दों की हुई| व्यापारी व् पंडित आपस में इस तालमेल से चलते हैं जो कि बहुत अच्छी बात है और कोई दो समाज आपस में इतना तालमेल से चलते हैं तो यह अनुसरणीय भी है| परन्तु इस दर्शनशास्त्र का अंत रिजल्ट निकलता है "सामंतवाद", जो कि बाकी दो वर्णों क्षत्रिय व् शूद्र को दबा के रखता है| आप कहोगे कि शूद्र की तो समझ है कैसे दबाता है परन्तु क्षत्रिय को भी? जी, क्षत्रिय को भी, क्योंकि पंडित की मर्जी व् निर्देश के बिना क्षत्रिय एक शब्द नहीं बोल सकता पब्लिक में व् ना ही वह कोई विरोध कर सकता; भले; क्षत्रिय के घरों के आगे से क्षत्रियों को बार-बार मारने वाले क्षत्रियों के पुरखों के कातिल की झांकियां ही क्यों ना निकाले| हालाँकि क्षत्रिय को, अपना यह फ़्रस्टेशन शूद्रों पर निकालने का अधिकार पूरा है| तो यह तो है इनकी सामंती व्यवस्था| 


अब बात करते हैं इसके विपरीत एक "उदारवादी" व्यवस्था की, जो दबंग पर दबंग है परन्तु मानवता को सर्वोपरि रखती है| "दबंग पर दबंग" जैसे कि तीन काले कृषि कानून लाने वाले "दबंगों पर दबंग", सत्यपाल मलिक जी ने जो दबंगों का पुलवामा खोला वह "दबंगों पर दबंग" या अभी जो पहलवान धरना दे रहे हैं "दबंगों पर दबंग"| और इनमें से जो ऊपरी पहरे में बताई "सामंती व्यवस्था" में पड़ गया वह "क्षत्रिय की शूद्र" पर होने वाली अमानवीय दबंगई करता इनमें भी पाया जाता है| 


सलंगित चार्ट पढ़ा होगा तो पाया होगा कि "ट्रेडिशनल व्यापारी + पंडित" जैसा समझौता "खाप-खेड़ा-खेत" वालों का भी हुआ था व् वह कब तक चला, कैसे टूटना शुरू किया गया व् कब-कैसे टूटा आपने चार्ट में पढ़ ही लिया होगा| 


तो बस यह जो आजकल एक क्षेत्र विशेष, एक थ्योरी विशेष की तरफ से जो यह इतने धरना-प्रदर्शन-पटाक्षेप-आवाजें उठ रही हैं इन सबकी की मूल में यही "उदारवादी पुरख इंटेल्लेक्ट" है; जिसको समझ के जब तक साफ़-साफ़ दायरा नहीं समझा जाएगा; यह जद्दोजहद चलेगी ही चलेगी| और इसका सबसे बड़ा दोषी खुद "उदारवादी खाप-खेड़े-खेतों का समाज" है; वह या तो इनसे बैठकर अपने "पुरख इंटेल्लेक्ट" की "सामाजिक सुरक्षा, सम्मान व् पहचान" को फिर से सुनिश्चित व् दृढ़ करे; अन्यथा हल नहीं मिलेंगे; बल्कि ऐसे ही समाज का कोई न कोई तबका रोड़ों पर निकलता ही रहेगा| क्योंकि दबेंगे ये नहीं व् दबाने वाले दबाने से बाज आएंगे नहीं| 


और आज जिस हालत में समाज का "पहलवान वर्ग" आ चुका है, यह इसीलिए हुआ है कि सामंती चीजों को बेइंतहा छूट देते गए व् अब जा के घुटन महसूस होने लगी है; (घुटन तो उनको भी है जो सामंती हैं, परन्तु वो तो इस मॉडल में फिट हैं, बोलेंगे ही नहीं या "विशेष-जाति" की मूढ़मति वाली पट्टी पकड़ के "बिल्ली की तरह, आँख मूँद लेंगे)| यहाँ पहलवान वर्ग को भी अपना यह intellect-heritage पढ़ाये जाने की जरूरत है व् समाज को भी इसको रिवाइज करने की जरूरत है| 


जय यौधेय! - फूल मलिक




Tuesday, 25 April 2023

कराला 17 का इतिहास – दिल्ली का प्रजातांत्रिक अध्याय- जिसका कही जिक्र नहीं।

मेरे गाँव मुंडका पश्चिमी दिल्ली मे है। दिल्ली के भूतपूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ( लाकड़ा ) इसी गाँव से है। हमारी लोक बातों मे प्रजातन्त्र का जिक्र है पर राजाओ का कही  नहीं है। न अकबर का, न जहांगीर या शाहजहां का, न उनसे पहले कभी किसी हिन्दू राजा का ।  बस औरंगजेब का जिक्र ज़रूर आता है कि हमने उनके खिलाफ कई विद्रोह किए और बहुत खूनी युद्ध लड़े थे। बचपन मे एनसीईआरटी की किताब मे भी पढ़ा था कि दिल्ली की जाटो  ने  औरंजेब के खिलाफ कई विद्रोह किए थे। (मेरे ख्याल से सभी जातिया होती थी शामिल क्योंकि खाप व्यवस्था किसी एक जाति की हो ही नहीं सकती , जैसे गुज्जर तो हमेशा साथ रहे हैं,  पर इतिहासकार सिर्फ एक ही जाति लिख देते हैं।)

हमारी खाप का नाम है पालम 360 जिसमे आज के दिल्ली के 350 और हरयाणा के कुछ तपे जैसे दलाल (84) और कुछ और आते है। उस समय जब औरंजेब से युद्ध होता था तो खाप सेना जो कि वॉलंटियर से बनती थी उसके द्वारा लड़े युद्धो के बारे मे  अक्सर बड़ो से सुनते थे कि  फरसे खून मे संधे आते थे। पालम 360 मे अनेकों तपे आते है – जैसे तिहाड 28, बवाना -52, महरौली 96, शाहदरा घोंडा -24, मान 8, राणा 8 , महिपालपुर 12, सुरहेडा 18,  अलीपुर 17, कादीपुर 12 एवं अन्य । 

हमसे लगान ज़रूर लेते थे, पर हमारे गांवो के अंदरूनी मामले मे किसी बादशाह की हिम्मत नहीं थी कि हस्तक्षेप करे। औरन्गजेब ने कि और वह असफल रहा – दिल्ली के सभी गाँव हिन्दू रहे। पहाड़ी धीरज गाँव जिसकी जमीन पर लाल किला बना हुआ है, वह भी हिन्दू है। हिन्दू से मेरा मतलब हिन्दुत्व वाले नहीं- प्रजातांत्रिक हिन्दू एक अलग कैटेगरी है जो कि आरएसएस वाले हिन्दुओ से अलग है। 

अब आते है कराला 17 के इतिहास पर :

पश्चिमी दिल्ली मे यह एक 17 गांवो की confederation है। कराला गाँव को इसका headship यानि चौधर है।  किसी वक्त पर इन 17 गांवो की headship सैयद नांगलोई गाँव को सौप रखी थी। यह गाँव अफगानों का था। अफगानों का मुगलो से 36 का आंकड़ा रहा था। अफगान हथियार बनाने और रखने का काम करते थे। जब भी कोई मुगलो से लड़ाई की चुनौती  आती तो यह गाँव हथियार सप्लाइ करता तपे या खाप की सेना को। इसलिए सम्मान के रूप मे इस गाँव को चौधर सौप राखी थी। सैयद नांगलोई गाँव भी बड़ी बेहतरीन तरीके से संचालन का काम कर्ता। पंचायत मे हुक्के पानी और खाने का पूरा इंतजाम करता। 17 गांवो मे चिट्ठी बांटना दुरुस्त करता। पर समय के साथ सैयद गाँव थक गया और आए पंचायत करके मुंडका को headship यानि चौधर सौप दी गयी। काफी समय , शायद  एक दो शताब्दी तक यह चौधर मुंडका गाँव के पास रही।

पर एक समय एक दिक्कत आई। डबास गोत्र के दिल्ली मे काफी गाँव है जो पुराने समय मे दहिया खाप के अंतर्गत आते थी। मुंडका के पास डबासो के कई गाँव है। डबास मुंडका के जंगलो मे अतिक्रमण करने लगे । उस समय जंगल गौचर  और फॉरेस्ट प्रोड्यूस और अन्य कामो मे बहुत आवश्यक था। ऐसे मे मुंडका गाँव के समर्थन मे कराला गाँव तुरंत मदद करने पहुंचा और इस तरह मुंडका गाँव के जंगल अतिक्रमण से बच पाये। 

समय पर मदद करने  का एहसान चुकाने के लिए मुंडका गाँव ने मुंडका-17 की चौधराहट कराला गाँव को एक पंचायत करके सौंप दी। कराला गाँव ने यह ज़िम्मेदारी सह सम्मान ली। इस तरह मुंडका -17 से कराला -17 नामकरण हुआ। 

इन 17 गांवो कि लिस्ट मे कुछ गाँव इस प्रकार है – मुंडका, नांगलोई, निलोठी, रनहोला, पीरा गढ़ी, मंगोल पुर, सुल्तानपुर, पुंठ कलाँ, किराडी, इत्यादि । By: Diwan Singh Mundka

Friday, 21 April 2023

अगस्त 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजों की विदाई और सितम्बर से लगभग 1.5 करोड़ लोगों की बर्बादी की शुरूआत!

हर साल की तरह इस बार भी 14 व 15 अगस्त को भारत व पाकिस्तान में अंग्रेजों से मुक्ति का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया गया | इस खुशी के साथ ही उस समय के लगभग 1.5 करोड़ लोगों ( जिनके बारे में आंकड़ों और कारणों का मैं इस लेख में विस्तार से वर्णन कर रहा हूं ) की बर्बादी की दास्तान जुड़ी हुई है | अगर वर्तमान की जनसंख्या के हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग 6 करोड लोगों के परिवारों से ये बर्बादी की यादें जुड़ी हुई हैं | इस बारे में उसी समय एक लेख लिखने का विचार आया था लेकिन फिर मन में आया कि इस खुशी के मौके पर निराशाजनक यादों को याद दिलाना ठीक नहीं है| इसलिए तय किया कि या तो सितम्बर के प्रथम सप्ताह या फिर सितंबर के दूसरे सप्ताह में इस पर लेख लिखूंगा | इसलिए आज 12 सितंबर को मैं प्रवीन कुमार, तहसील बादली,जिला झज्जर ये लेख लिख रहा हूं जो संभवत: कल तक पूरा कर लूंगा |

अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़ने की घोषणा की तो यहां के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा | लेकिन इसके साथ ही अंग्रेजों ने घोषणा की कि भारतीय उपमहाद्वीप को दो टुकड़ों इंडिया और पाकिस्तान के रूप में बांटा जाएगा | विभाजन की इस नीति से कुछ लोगों को बहुत दुख हुआ और उन्होंने विरोध किया | लेकिन बहुसंख्यक जनता की खुशी में उनकी बातें दब गई क्योंकि जनता को निकट भविष्य में आने वाली भयानक त्रासदी का पता नहीं था | 14-15 अगस्त को ब्रिटिशर्स और पाकिस्तान की तरफ से मुस्लिम लीग और भारत की तरफ से कांग्रेस ने 'ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर एग्रीमेंट ' पर साइन किए थे | 17 अगस्त तक लोग इस बात से अनभिज्ञ थे कि कौन सा क्षेत्र पाकिस्तान में जाएगा और कौन सा क्षेत्र भारत में रहेगा | लेकिन वह अपनी अपनी समझ के हिसाब से अनुमान लगाकर खुशी मना रहे थे | भारत के कुछ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों जैसे मालदा, मुर्शिदाबाद आदि में लोगों द्वारा पाकिस्तान के झंडे फहराए जा रहे थे | जबकि थारपरकर , खुलना आदि गैर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भारत के झंडे फहराए जा रहे थे | भारत छोड़ने की घोषणा के बाद अंग्रेजों को भारत पाकिस्तान के बंटवारे के लिए दोनों की सीमा निर्धारण के बेहद जटिल कार्य को अंजाम देना था | पंजाब और बंगाल का विभाजन होना था | लेकिन इसके विभिन्न क्षेत्रों को लेकर मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस ने अपने-अपने दावे रखे | असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराने की बात पर सहमति हुई | सिंध,बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत का पाकिस्तान के साथ जाना तय था | अंत में अंग्रेजों ने किसी भी एक पक्ष के दावों को एक तरफा न मानते हुए अपने अनुसार सीमा निर्धारित कर दी | 17 अगस्त को अंग्रेजों ने भारत पाकिस्तान की सीमा रेखा की घोषणा करके स्थिति को स्पष्ट कर दिया |
भारत विभाजन क्यों हुआ ? इसके लिए कौन जिम्मेदार था ? इस संबंध में विभिन्न पक्षों की अलग-अलग धारणाएं और तर्क हैं | किसी का तर्क है कि सबसे पहले हिंदू महासभा और संघ द्वारा दिया गया द्विराष्ट्र सिद्धांत भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार है | जबकि दूसरा पक्ष कहता है कि मुस्लिम लीग और कट्टर इस्लाम इसके लिए जिम्मेदार था | एक पक्ष यह भी कहता है कि कांग्रेसी नेताओं और नेहरू ने सत्ता प्राप्ति के लालच में भारत विभाजन के प्रस्ताव को जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया | लेकिन अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि ये सभी संगठन कहीं ना कहीं अंग्रेजों द्वारा निर्मित अथवा पोषित संगठन रहे हैं | इन्होंने कभी न कभी अंग्रेजों के हितों की ही पूर्ति की है और हमेशा शोषक वर्ग के हितों के लिए खड़े रहे | आज के समय में इन्हीं संगठनों की वैचारिक संताने एक दूसरे को विभाजन के लिए जिम्मेदार बताते हैं | जिससे विभाजन के वास्तविक कारणों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता | जबकि उस समय यह सारे संगठन एक दूसरे से जुड़े हुए थे | इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि ब्रिटिश समय में कई बड़े नेता हिंदू महासभा और कांग्रेस दोनों के सदस्य थे | इसके अलावा सिंध और बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चलाना भी इस बात की पुष्टि करता है | इस तरह हम विभाजन के वास्तविक कारणों तक नहीं पहुंच पाते और आपस में सतही बहस में लगे रहते हैं |
विभाजन अकेले भारत का नहीं हुआ| अगर आप अंतर्राष्ट्रीय इतिहास उठा कर देखेंगे तो आप पाएंगे कि यूरोपियन शक्तियों का दुनिया के बहुत बड़े क्षेत्रों पर आधिपत्य था | दूसरे विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादी शक्तियां बेहद कमजोर हो गई थी | इसलिए उन्होंने उपनिवेशों को छोड़ने का निर्णय लिया | जब वे उपनिवेशों को छोड़कर गए तो उन्होंने उन क्षेत्रों को विभिन्न छोटे-छोटे देशों में बांट दिया चाहे भले ही उसके लिए कोई आंदोलन हो रहा था या नहीं | जाते जाते अपनी लूट को जारी रखने के लिए वे अपने समर्थकों को सत्ता सौंप कर चले गए | लेकिन भविष्य में उन्हे भय था कि किसी भी सांस्कृतिक क्षेत्र की कोई ट्राईब् संगठित होकर नए लोकतांत्रिक ढांचे में उनके लिए समस्या पैदा कर सकती है | ब्रिटिश समय में हुए चुनाव में पंजाब और बंगाल में चुनकर आई हुई किसान व गरीब समर्थक सरकारों द्वारा उन वर्गों के लिए किए गए कार्य और प्रयासों ने उनकी शंका को भारत के संबंध में भी यकीन में बदल दिया था | इसलिए उन्होंने उपनिवेशों को विभिन्न देशों में बांटने का निर्णय लिया चाहे इसके लिए कोई भी तर्क देना पड़े | अरब प्रायद्वीप, अफ़्रीका और हिंद चीन के देश इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं | अरब प्रायद्वीप ,हिंद चीन के देश और अफ्रीका के विभिन्न उपनिवेश भारत की अपेक्षा कम सांस्कृतिक ,भाषाई ,धार्मिक और भौगोलिक विभिन्नता के होने के बावजूद विभिन्न देशों के रूप में बांट दिए गए |
विभाजन का सबसे दुखदाई पहलू लोगों का विस्थापन था | शुरुआत में आम लोग इस बात से अनजान थे कि 'ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर एग्रीमेंट' में विभाजन के साथ-साथ पंजाब में लोगों की अदला-बदली की शर्तें भी हैं | यहां यह बात गौर करने लायक है कि जनसंख्या की अदला-बदली केवल और केवल पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के मध्य ही होनी थी | बाकी प्रांतों के लिए इस तरह का कोई समझौता नहीं था | अगस्त समाप्त होते-होते लोगों को विस्थापन का भय डराने लगा | 99% लोग अपनी मातृभूमि को छोड़कर जाना ही नहीं चाहते थे | चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखते हैं | सितंबर महीने की शुरुआत से ही पूर्वी तथा पश्चिमी पंजाब में सेना तथा कट्टर धार्मिक संगठनों द्वारा लोगों को जबरदस्ती उनके घरों से बेदखल किया जाने लगा | पश्चिमी और पूर्वी पंजाब में बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों ने सामूहिक रूप से जिला अधिकारियों से कहा कि वे अपना धर्म परिवर्तन कर लेंगे | लेकिन अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ेंगे | अधिकारियों ने ऊपरी आदेश बताकर उनकी इस बात से असहमति जताकर इंकार कर दिया | यह बात इस तथ्य पर मोहर लगाती है कि विभाजन का असली कारण धर्म नहीं था | जैसा कि ऊपरी तौर पर बताया जाता है | एक दूसरा तथ्य भी है जो इस बात की पुष्टि करता है कि अगर धर्म की वजह से विभाजन हुआ था तो जनसंख्या अदला-बदली का समझौता केवल पंजाब के लिए नहीं होता | बल्कि सभी प्रांतों के लिए होता | दरअसल विभाजन के बाद पंजाब में जनसंख्या अदला-बदली का मुख्य कारण डेमोग्राफी का बदलाव करना था | ताकि भविष्य के लोकतांत्रिक ढांचे में पूंजीपति शक्तियों को चुनौती देने वाली फिर से कोई यूनियनिस्ट पार्टी न खड़ी हो जाए | लोग अपनी मातृभूमि को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे| इसलिए हिंसा का दौर शुरू हुआ | लाखों लोगों की हत्याएं हुई और हजारों औरतों की इज्जत को तार-तार किया गया | जिसके कारण हिंसा की आग अकेले पंजाब तक सीमित नहीं रही | बल्कि पूरे भारत में फैल गई | इस हिंसा के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 1.45 करोड़ लोग विस्थापित हुए | लाखों लोगों की हत्याओं के आंकड़ों के संबंध में अनुमान अलग-अलग हैं यह अनुमान 2 लाख से लेकर 10 लाख से भी ज्यादा तक के हैं | हत्याएँ दोनों पक्षों की हुई थी | इन्हीं की वजह से लोगों को मजबूरीवश स्थानांतरण करना पड़ा | जनसंख्या स्थानांतरण में कितने लोग इधर से उधर गए या उधर से इधर आए उसके वर्णन निम्नलिखित है :-
विभाजन के बाद के विस्थापन में लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने सीमा को पार किया था | दोनों तरफ से संख्या लगभग बराबर थी |
1951 की जनगणना अनुसार भारत से पाकिस्तान पहुंचे विस्थापितों की कुल संख्या -72,26,600 ( लगभग सभी मुस्लिम)
1951 की जनगणना अनुसार पाकिस्तान से भारत पहुंचे विस्थापितों की कुल संख्या - 72,95,870 ( हिन्दू,सिक्ख,ईसाई,बौद्ध आदि )
1.12 करोड़ (77.4℅) विस्थापित पश्चिमी भागों में थे| 65 लाख मुस्लिम भारत से पश्चिमी पाकिस्तान गए थे और 47 लाख हिंदू ,सिख ,ईसाई आदि पश्चिमी पाकिस्तान से भारत आए थे | इसलिए पश्चिमी पाकिस्तान में भारत से शुद्ध विस्थापन 18 लाख था|
33 लाख (22.6℅) विस्थापित पूर्व में थे | 26 लाख हिंदू , बौद्ध , ईसाई आदि पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए तथा लगभग 7 लाख मुस्लिम भारत से पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बांग्लादेश में गए | इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान से भारत में शुद्ध विस्थापन लगभग 19 लाख था | इस प्रकार क्षेत्रवार असमानता के बावजूद दोनों देशों से लगभग बराबर की संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ था |
अब भारतीय राज्यों के आधार पर आंकड़ों पर थोड़ा प्रकाश डालता हूं ताकि इस बात का पता चल सके कि किस क्षेत्र के लोगों को सबसे अधिक त्रासदी झेलनी पड़ी थी |
भाग-क :- भारत से पाकिस्तान गए लोगों की संख्या क्षेत्रवार या राज्यवार
1. जम्मू+पंजाब+हिमाचल प्रदेश+हरियाणा+दिल्ली+राजस्थान व अजमेर से पाकिस्तान गए लोगों की कुल संख्या 57,85,100 थी |
इनमें जम्मू से लगभग 2.5 लाख,राजस्थान व अजमेर से लगभग 4.5 से 5 लाख,दिल्ली से लगभग 91 हजार,हिमाचल प्रदेश से संख्या एक लाख से कम ही थी | इन राज्यों से गयी आबादी को 57,85,100 में से घटाकर शेष सारी आबादी पंजाब व हरियाणा से गई थी |
2. बिहार , झारखंड ,उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल व आसाम आदि से पूर्वी पाकिस्तान में जाने वाले मुस्लिमों की संख्या लगभग 701300 थी जिसमें ज्यादा हिस्सा पं बंगाल से जाने वाले लोगों का था|
3. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से 464200 मुस्लिम पाकिस्तान गये थे |
4. पुराने बम्बई प्रांत से अर्थात गुजरात ,महाराष्ट्र के पश्चिम के 13 जिले व उत्तरी कर्नाटक के 4 जिलों से 160400 मुस्लिम पाकिस्तान गए थे|
5. मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,तेलंगाना ,पुरानी हैदराबाद रियासत में आने वाले कर्नाटक व महाराष्ट्र के क्रमशः 3 और 5 जिले तथा महाराष्ट्र के विदर्भ और बरार के क्षेत्र से लगभग 91200 मुस्लिम पाकिस्तान गए जिनमें से ज्यादातर भाग भोपाल और हैदराबाद शहर से था |
6. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और मैसूर रियासत जिसमें मध्य तथा दक्षिण कर्नाटक आता है से लगभग 18 से 20,000 मुस्लिम पाकिस्तान गए थे |
भाग-ख :- पाकिस्तान से भारत आने वाले लोगों की कुल संख्या भारतीय राज्यों या क्षेत्रों के अनुसार
1.जम्मू में पाकिस्तान से लगभग 113000 लोग आए |
2.पंजाब +हरियाणा + चंडीगढ़ + हिमाचल में पाकिस्तान से लगभग 2739590 लोग पहुंचे |
3.दिल्ली में पाकिस्तान से पहुंचे विस्थापितों की संख्या 495391थी| 4.अजमेर व राजस्थान में विस्थापितों की संख्या का आंकड़ा 368367 था |
5.पुराना मुंबई प्रांत जिसमें गुजरात पश्चिमी महाराष्ट्र के 13 जिले और उत्तरी कर्नाटक के 4 जिले शामिल में पाकिस्तान से 409882 लोग आए थे|
6.पश्चिमी बंगाल में लगभग 21लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित होकर पहुंचे थे|
7.त्रिपुरा असम व अन्य पूर्वी राज्यों में यह विस्थापितों का आंकड़ा लगभग 4 लाख था |
8. पाकिस्तान से आये शेष लोग दूसरे क्षेत्रों में बसाए गये थे |
यह सारे आंकड़े 1951 की भारत और पाकिस्तान की जनगणना से लिए गए हैं |अपनी तरफ से मैंने काफी प्रयास किया है कि इनमें कोई त्रुटि ना हो | कुछ राज्यों का अनुमान भी लगाया है जो आंकड़े अलग-अलग नहीं थे | अगर किसी साथी को तथ्यात्मक रूप से आंकड़ों में कुछ गलती दिखाई दे | तो मैसेंजर पर मेरे को सूचित करें ताकि मैं उनको ठीक कर सकूँ |
अंत में निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि भारत से अंग्रेजों का छोड़कर जाना जितना खुशी का विषय था उतना ही दुखदाई भी था | इसके साथ ही करोड़ों लोगों ने भयंकर त्रासदी को झेला | इसके साथ ही एक लंबे समय तक के लिए समाज में नफरत की खाई खोद दी | विभाजन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान तुलनात्मक रूप से पंजाब और पंजाबियत को हुआ था जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती | लेकिन विभाजन के कारणों और वास्तविकता का पता लगने से हम समाज में नफरत की गहरी हुई खाई को पाटने की तरफ एक प्रयास जरूर कर सकते | ताकि आने वाली पीढ़ियां नफरत की आग में जलने की बजाय अपने जीवन में सुधार और प्रगति की तरफ अग्रसर हो सके और एक सुखमय जीवन जी सकें | धन्यवाद !
लेखक :-प्रवीन, तहसील बादली, जिला झज्जर