जाट से तो धर्म वाले भी इतनी नफरत करते हैं कि इनके लिए जाट अगर मंदिर भी बना के दे तो उसके आगे एक सूचनापट्ट पर यह भी लिख के नहीं लगा सकते कि यह फलां-फलां का बनाया हुआ है| उदाहरण भी कोई छोटा-मोटा नहीं, पूरे देश में तालाब के अंदर अमृतसर गोल्डन टेम्पल के बाद दूसरा इकलौता मंदिर जिला जींद, हरियाणा का रानी तालाब का भूतेश्वर मंदिर है| इस टेम्पल को जाट-रियासत जींद नरेश महाराजा रघुबीर सिंह संधु जी ने बनवाया था|
परन्तु ना ही तो मंदिर के पुजारियों व् ट्रस्टियों में इतनी दरियादिली कि मंदिर और रानी-तालाब के द्वारों पर महाराजा को श्रद्धा व् श्रद्धांजलिवश सूचनापट्ट ही लगवा दिए जावें, और ना ही भारत का आर्कियोलॉजिकल विभाग जो कि अमूमन ऐसी-ऐसी हर ऐतिहासिक धरोहरों पर मूल जानकारी बारे आधिकारिक सूचना पट्ट लगाते हैं, उन्होंने इसपे कुछ लगाया हुआ| जबकि इसी मंदिर के गेट पर एक सेठ परिवार ने विशाल गोलाकार (जो जींद के हैं वो जानते हैं) एंट्री गेट बनवाया तो उन जनाब का उस गोलाकार गेट बनवाने बारे बाकायदा सूचनापट्ट तक लगा हुआ है|
और ऐसी ही कहानी पुष्कर,राजस्थान में स्थित भरतपुर महल की है, जिसको कि बाद में पुजारियों को दान में दे दिया गया और आज उस महल पर स्वागतकर्ता परिवारों के तो नाम मिल जायेंगे परन्तु जिसकी यह ईमारत है उनका कोई निशाँ इसपे ढूंढने से भी बमुश्किल मिलता है| सिर्फ पूछने पर ही पता चलता है कि यह भरतपुर महल है|
इसीलिए कहता हूँ कि ओ जाटो अपनों को (दादा खेड़ों को) तो बिसरहाये फिरते हो और जिनके लिए बनवाते हो वो तुम्हें इतना भी आदरमान नहीं देते कि महाराजा के सम्मानवश एक सूचनापट्ट ही लगा देवें, फिर महाराजा के मान-सम्मान में समारोह करने-करवाने तो रही सपनों की बात|
मुझे माफ़ करना परन्तु दिल खोल के जो इतना साथ देते हों, उनके सम्मान में ऐसा सौतेलापन दिखाने वाले मेरे नहीं हो सकते| पर इनको यह याद दिलाना और मनवाना तो जरूरी है कि हमने और हमारे पुरखों ने इनके लिए क्या-क्या किया है| और यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसे सैंकड़ों उदाहरण पूरी खापलैंड/जाटलैंड पे बिखरे पड़े हैं|
जय श्री दादा नगर खेड़ा! - फूल मलिक
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