Wednesday, 3 June 2015

जितनी संस्कृति थम टूरिज्म में देखो, इतनी तो हम मामा के हांड आने में छान-आवां!


एक भाई बोला मलिक साहब, ये जाटों का टूरिज्म में इंटरेस्ट ना होता क्या?

मैं बोल्या मखा बावले, टूरिज्म की जरूरत उनको पड़ा करै जो गाम की गाम या घर की घर में रिश्ते करते हों| पडोसी को पडोसी और भाई को भाई ना जानता हो| मखा आड़े तो रिश्ता ही एवरेज 60-100 किलोमीटर तैं घाट नजदीक ना करते| तो टूरिज्म की हमने के जरूत, आड़े तो मामा के जा के आना भी टूरिज्म होवै|

ना मलिक साहब, फेर भी इतिहास और संस्कृति का ज्ञान तो घूमने से ही होवै|

मखा सुन, मेरे बाबू का ब्याह ठेठ बागड़ में हो रखा, और हम खुद बाजैं खादर के| मेरे गाम और मेरे ननिहाल के बीच तीन शहर और 27 गाम पड़ें; चार रूट बनें जाने के; जोणसे से मर्जी आओ-जाओ| बता तेरे गाम की गाम या घर की घर में रिश्ता करने वालों को होती है क्या इतने शहरों और गाँवों की जानकारी, वो भी सिर्फ एक रिश्ते के माध्यम से?

मखा ऐसा है, इतना तो व्यापारी व्यापार के चक्कर में ना हांडता और साधू साध्पने में, जितना हम रिश्ते-सगार के कारण हांड लेवें सैं| तो और इसतैं फ़ालतू टूरिज्म के इब तू हमनें घुमन्तु कबीले और खानाबदोश बना के छोड़ेगा?

और मखा बात सुन, थाईलैंड-मलेशिया की जानकारी से पहले जरूरी होवै अपने शहर-गाम-प्रदेश की जानकारी; और म्हारे बुजुर्गों ने इस एंगल को म्हारे रिश्ता-सिस्टम में इसी वास्ते इंड्यूस कर रखा, वो भी सदियों से|

और मखा जा के देख हरयाणा में, सिर्फ जाट ही नहीं, किसी भी जाति का नेटिव, अनपढ़ से अनपढ़ हरयाणवी भी, राजनीति से ले आधी से ज्यादा स्टेट की जानकारी तो म्हारे इस रिश्ता सिस्टम के आउटपुट के तहत ही पा लेता है| इसलिए म्हारे आले अखबार से ज्यादा खुद चलते-फिरते अखबार होवें| गाम की बुग्गी-बुर्जी पे बैठा अनपढ़ भी तेरे से ज्यादा देश-प्रदेश की राजनीति और संस्कृति का ज्ञान सुना देगा तुझे|

और हरयाणा वालों की हाजिर-जवाबी का राज सुनना चाहता हो तो सुन, उसका राज भी यह ऐसे ही रीती-रिवाज हैं हमारे| क्योंकि ज्ञान के लिए घूमना एक अभिन्न आवश्यकता है और वो म्हारे पुरखों ने हमारे रिश्ता सिस्टम में इंट्रोड्यूस करके मेट दी थी, सदियों पहले ही|

इब बाकी वही बात तेरे थाईलैंड तो फेर तू जाने ही है लोग वहाँ संस्कृति देखने कम और संस्कृति फैलाने ज्यादा जावें| बाकी शिक्षा-रोजगार के लिए तो जो जिधर जा रहा वो धरा के उस कोने में जा ही रहा| बेमतलब हमनें टाकणे तुड़ाने सीखे ना और ना म्हारी संस्कृति ने सिखाये|

हम ना बोलें तो ये सच्ची में ही अपने को छद्म ज्ञानी समझ लेवें हैं|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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