Tuesday, 2 June 2015

बोळी-खय्ल्लो!

एक ठेठ बेबाक हरयाणवी ताऊ से आजकल चल रहे राष्ट्रवादी अजेंडों जैसी कि हिन्दू-मुस्लिम दंगे, हिन्दू एकता और बराबरी जैसे अब तक जुमले साबित हो चुके नारों बारे पूछा तो ताऊ का दो टूक जवाब था, "बोळी-खय्ल्लो हो रे"।

मैं बोला ताऊ इसका मतलब?

ताऊ बोल्या, "जब 1000 साल तक मुग़ल इनके सर नाचते रहे तो कुछ करा नहीं; 300 साल अंग्रेज लूटते रहे तो कुछ करा नहीं, और इब जो भी हाथ-पैर ये मारे रहे, यह तो वो वाला नेवा हो रा, कि नई-नई मुसलमान्नी अल्लाह-ही-अलाह पुकारे|"

मखा ताऊ थाम इनकी राष्ट्रभक्ति पे शक कर रे?

ताऊ बोल्या, "बेटा जिस हद पे जा के इनकी राष्ट्रभक्ति की सोच खत्म होवै ना, उड़े जा के तो ताऊ की शुरू होवै|"

मखा ताऊ थारे मजन को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है|

ताऊ बोल्या, "बेटे, सोमनाथ की लूट को लूट के किसने देश में रखा? पृथ्वीराज के कातिल गौरी को किसने मारा? औरंगजेब की मरोड़ किसने तोड़ी? अकबर की कब्र से हड्डी निकाल चिता बना किसने जलाई? चित्तौड़गढ़ का किला-द्वार दिल्ली लालकिला से तोड़ कौन वापिस लाया? जिन मुग़लों ने कभी किसी मंदिर और हिन्दू-राजदरबार में शीश नहीं नवाएँ, उन्हीं के तीन-तीन बादशाहों ने किसके खाप-चबूतरे पर शीश नवाँ सजदाई धन्यवाद किये? जिन अंग्रेजों के विजय-रथ को अजेय बताया करते, वो रथ किसने रोके? मुग़ल बादशाहों ने अपनी राजकुमारियां ख़ुशी-ख़ुशी किस से ब्याही?

मेरे मुंह से सिर्फ एक शब्द निकला, 'जाट'।

ताऊ बोल्या, "तो बस समझ जा, यें तथाकथित राष्ट्रवादी वो कबीलाई झुनझुने हैं जो शेर की मौत के बाद उसकी लाश पे कूद के 'कुल्हड़ी में दाने, कूद-कूद के खाने' वाली कबीलाई सोच के तहत सांप के निकलने पे उसकी लकीर पीटने के फकीर होते हैं| या उससे पहले शेर के आने का माहौल बनाते हैं| परन्तु जब शेर अपना तांडव दिखाता है तो उसके शांत ना होने तक बिल-घोंसलों-कंदराओं में जा छुपते हैं| बता मुग़ल-अंग्रेज आये-गए हो लिए और यें 'बोळी-खय्ल्लो' इब जाग के दिखावैं हैं|

पर ताऊ समाज का सौहार्द तो बिगड़ रहा इससे?

ताऊ बोल्या, "जब 1300 साल पहले देश गुलाम होया था तब कुणसा सौहार्द था? देश में सौहार्द होता उस वक्त, तो हम गुलाम बनते क्या?"

मेरी आँखें अचम्बे से खुली की खुली| मतलब वो ही ढाक के तीन पात, चौथा होने को ना जाने को| 1300 साल की गुलामी से कुछ नहीं सीखा| और कर दिया शुरू समाज में वापिस वही जात-पात का जहर घोलना| धर्म-सम्प्रदाय-नश्ल के नाम पे समाज को बिखेरना| Means back to square one|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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