Tuesday 21 July 2015

अंतर्जातीय ब्याह को बढ़ावा देने की बात पर कुछ जाट!


अंतर्जातीय ब्याह को बढ़ावा देने की बात पर कुछ जाट इतने भोलेपन में कहेंगे कि ठीक है हरयाणा में खुल जाए तो हमको उड़ीसा-बंगाल-बिहार की तरफ नहीं देखना पड़ेगा।

अरे भाई दूसरी जातियों में क्या छोरियाँ डबल संख्या में हैं, जो उड़ीसा-बंगाल-बिहार की तरफ नहीं देखना पड़ेगा? देखना तो फिर भी पड़ेगा ना? आखिर हरयाणा में हैं तो 877 छोरी ही हैं ना 1000 छोरों पर?

बल्कि इस एंगल से तो जाटों को नुक्सान और उठाना पड़ सकता है, क्योंकि हरयाणा में खत्री-अरोड़ा, बनिया जैसी ऐसी शहरी जातियां हैं जिनमें जाटों से भी कम छोरियां हैं। ना यकीन हो तो हरयाणा जनसांख्यिकी के शहरी बनाम ग्रामीण आंकड़े उठा के देख लो। हरयाणे के हर जिले में शहरी लिंगानुपात तो ग्रामीण से भी ढुलमुल है।

तो यें के इहसा छोरियाँ का गोदाम ले रे सैं कि जो अगर अंतर्जातीय ब्याह होने लग जावें तो इनकी भी सध जाएगी और जाटों की भी साध देंगे? बल्कि उल्टा इस अंतर्जातीय ब्याह के ओढ़े में थारी इंटेलीजेंट और अच्छी पढ़ी-लिखी व् समझदार लड़कियों को और ब्याह ले जायेंगे और फिर थम हाँडियो उलटे वहीँ बिहार-बंगाल-उड़ीसा के ही चक्कर काटते। मेरे बट्टे भोलेपन में उलटे-सीधे ताकू चलायें जां सैं।

वैसे भी जाटों के यहां तो खापों से ले खुद जाटों ने सदियों-सदियों से अंतर्जातीय ही नहीं अपितु अंतरधार्मिक ब्याह भी करे, तभी तो कहावत हुई कि 'जाट के आई और जाटनी कुहाई!'

तो भाई हमारे लिए अंतर्जातीय विवाह के पहलु में नया पहलु क्या? खाम्खा के विद्वता के झंडे कौम-राज्य की हंसी का सबब बनते हैं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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