Tuesday 11 August 2015

पंचायती (निर्णायक) होने के गुण भैंस के दूध से आते हैं गाय के से नहीं!

भैंस के दूध में गर्मी तो है परन्तु एकता भी तो है, जोहड़ों-तालाबों के अंदर अथवा वहीं बाहर गोरों पर बैठी भैंसों के झुण्ड में किसी पर अगर झुण्ड से बाहर की भैंस/भैंसा अथवा अन्य जानवर हमला कर दे तो झुण्ड की बाकी सारी भैंसे एकजुट हो जिसपे हमला हुआ उसके पीछे खड़ी हो जाती हैं।

जबकि गाय के झुण्ड पर ऐसा हो जाए तो वो कभी एकजुट नहीं होती, या तो खड़ी-खड़ी जुगाली करती रहेंगी अथवा छँट के दूर चली जाएँगी। गाय के झुण्ड में दो सांड अगर लड़ाई करने लग जाएँ तो बाकी सबको कोई फर्क नहीं पड़ता, बैठे-बैठे जुगाली करते रहेंगे या खड़े-खड़े देखते रहेंगे। वहीँ दो भैंसे लड़ रहे होंगे तो बाकी भैंसे भी ग्रुपिंग करके अपने-अपने पक्ष के पीछे लग जाते हैं।

गाय का दूध पीने वाले या इसको पीने की वकालत करने वाले यह बात अच्छे से जानते होते हैं, और इसीलिए वो चाहते हैं कि लोग गाय का दूध पीवें ताकि उनमें ऐसे गुण आवें कि उनके अगल-बगल कोई झगड़ा अथवा अन्याय हो रहा है तो वो चुप रहें। इसीलिए इनको भैंसों से सख्त नफरत है क्योंकि भैंस का दूध अपराध के खिलाफ खड़ा होना व् एकजुट होने के जीन्स मानव शरीर में पोषित करता है, जिससे यह लोग डरते हैं।

भैंस के दूध में गाय के दूध से चार गुना ज्यादा वसा होता है जिससे इंसान के शरीर में ज्यादा गर्मी बनती है। अगर इस गर्मी मात्र को सही दिशा में रखा जाए तो भैंस के दूध का कोई अन्य साइड इफ़ेक्ट नहीं। वहीँ गाय का दूध भीरु बनाता है, और इसीलिए जंगल में शेर का सर्वप्रिय भोजन अथवा शिकार गाय ही होती है भैंस नहीं।

हालाँकि सही है कि भैंस न्यूट्रल नहीं रह सकती, गाय रह सकती है। परन्तु नूट्रलिटी इंसानी सभ्यता के लिए सही होती है अथवा नहीं, इसका अवलोकन होना चाहिए| क्योंकि बगल में अपराध हो रहा हो और आप न्यूट्रल रहें यह भी तो कोई सही नहीं बताता। वो कहते हैं ना कि अपराधी सिर्फ वो नहीं जो अपराध करता है अपितु वो भी है जो अपराध देख मूक बना रहता है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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