Friday, 14 August 2015

मेरी आज़ादी के जश्न में अभी कुछ देर है!


1) बाकी के तमाम तरह के उत्पादनकर्ताओं की भांति जिस दिन किसान भी अपनी फसल का विक्रय मूल्य खुद तय करेगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

2) जिस दिन 'काम कोई छोटा नहीं होता!' की पंक्ति को व्यवहारिकता में लाते हुए एक थानेदार, एक जमादार, एक मजदूर, एक डॉक्टर, एक इंजीनियर, एक टीचर, एक पुजारी, एक सिक्योरिटी गार्ड, एक मैनेजर आदि सबकी सैलरी स्लॉट्स उनके अनुभव के स्तर के हिसाब से बराबर व् कार्य (ड्यूटी) करने के होवर्स बराबर और ओवर ड्यूटी पर ओवर चार्ज सबको मिलेंगे, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

3) जिस दिन देश से जातिय सेक्युलरवाद खत्म होगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

4) जिस दिन किसान के ज्ञान को भी ज्ञान कहा जायेगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

5) जिस दिन देश में जज न्याय करने की अपेक्षा सोशल ज्यूरी के जरिये "बिना तारीख-पे-तारीख" का न्याय करवाएंगे, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

6) जिस दिन देश में आईएएस, आईपीएस जैसे एक्साम्स एंट्री लेवल भर्ती के नहीं अपितु अफसर लेवल प्रमोशन के लिए होंगे और एंट्री सबकी एक फ्रेशर वाले न्यूनतम स्तर से होगी, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

7) जिस दिन देश से टोटेलिटेरियनिज्म (अधिनायकवाद) का पलायन होगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

बचपन से ले अभी बीते सालों तक आज़ादी का अनुभव होता था, अब तो सब ऐसा लगता है जैसे देश फिर से मानवता की पिशाचिनी ताकतों के चंगुल में आ चुका है। आज जो है यह एक किसान की आज़ादी नहीं है, मजदूर की नहीं है, दलित की नहीं है।

फिर भी गौरे अंग्रेजों के हाथों से काले अंग्रेजों के हाथों सत्ता आने की तारीख की आप सभी को, .......... क्या बोलूँ शुभकामना या बदकिस्मती?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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