Saturday, 15 August 2015

हरयाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर ने जाट-आरक्षण मामले पर कहा, "कोर्ट का फैंसला मानेंगे!"

तो जनाब फिर सरकार भी कोर्ट ही चला लेंगें, आपकी क्या जरूरत है?

याद रखिये सीएम साहब कोर्ट और सरकार दोनों जनता के निर्देश पे चलते हैं, दुनियां में कहीं नहीं ऐसा जहां समाज कोर्ट और सरकार के निर्देश से चलता हो। कृपया बाज आएं अपनी इस 'टोटेलिटेरियनिज़्म' की राजनीति से।

कोर्टों से फैसले लागू और समाज के हक-हलूल पे कानून बनवाने के लिए ही सरकारें चुनी जाती हैं। जैसे UPA-2 ने कोर्ट में अडिग पैरवी करी तो जाट आरक्षण कोर्ट को भी मानना पड़ा, आपकी सरकार NDA-2 ने नहीं की तो रद्द हुआ।

अपनी इच्छाशक्ति की रिक्तता को कोर्ट के लबादे से मत ढाँपिये, इससे अच्छा भले ही दो टूक शब्दों में ना कर दीजिये।

हम जानते हैं कि आप इसमें रोड़ा अटका के उस दिन की तारीख को आगे खिसका रहे हैं, जिस दिन यह नारा उठेगा कि: "जाटों ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ!"

आज सिर्फ इतना फर्क है कि जाट-आरक्षण रद्द नहीं होता तो जाट तमाम ओबीसी समाज को एक कर सरकारी, गैर-सरकारी तमाम तरह की नौकरियों में अपनी संख्या के अनुपात के अनुसार आरक्षण के आंदोलन को जाट आगे बढ़ा रहा होता। खैर जनाब यह होनी तो एक दिन हो के रहे|

वैसे खट्टर साहब, सुप्रीम कोर्ट ने तो एसवाईएल का पानी लाने का हुक्म दे रखा है हरयाणा के पक्ष में, तो फिर कब ला रहे हैं?

जय यौद्धेय! - फूल कुमार

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