Tuesday, 18 August 2015

'हनुमान जी' का 'बाला जी' नाम व् उनको 'जाट की संतान' कैसे और कब से कहा जाने लगा!

मशहूर कवि, लेखक, विचारक व् जाट इतिहास के ज्ञाता सरदार प्रताप सिंह फौजदार बताते हैं कि सं 1025 में सोमनाथ मंदिर के पुजारियों और महंतों के डरावों और उसकी सेना मंदिर में घुसी तो अंधी हो जाएगी जैसे झूठे भयों को धत्ता बता जब महमूद गजनवी सोमनाथ के मंदिर का खजाना करीब 1700 ऊंटों पर लूट के अरब की ओर लौट चला तो सिंध क्षेत्र के जाटों ने "चौधरी बाला जी जाट महाराज" की अगुवाई वाली खापसेना से उस पर चढ़ाई कर उसका लूटा हुआ अधिकतर खजाना लूट लिया और उसको लगभग खाली हाथों अरब की ओर भागना पड़ा। और इस प्रकार देश का खजाना देश से बाहर ना जाने दे, बाला जी जाट ने देश की शान को कायम रखा था।

इस लड़ाई के बाद "चौधरी बाला जी जाट महाराज" व् उनकी सेना की इतनी वाहवाही हुई थी कि वो एक महानायक के रूप में बनकर उभरे। और सबकी जुबान पर "बाला जी" नाम चढ़ता गया। जिसको देख पुरजिरयों-महंतों-संतों ने सोचा कि यही मौका है इस नाम को हाईजैक करके इसके साथ रामायण पुराण के चरित्र हनुमान को जोड़ दो। प्रथम शंकराचार्य के जमाने आठवीं सदी में रामायण और महाभारत लिखवाई गई तब से और "बाला जी जाट" के काल के बीच "बाला" शब्द का कहीं भी महिमामयी वर्णन नहीं मिलता| यहां तक कि हनुमान के चरित्र का उद्भव कही जाने वाली रामायण और महाभारत में भी इस शब्द का कहीं भी वर्णन नहीं है।

यहां ध्यान रहे कि मैं सैंकड़ों पंडितों-पुजारियों-साधुओं से पूछ चुका हूँ कि आंठवीं सदी से पुरानी रामायण या महाभारत की कॉपी कहाँ रखी गई या किसके पास मिलेगी तो किसी की तरफ से आजतक हाँ में जवाब नहीं आया कि फलाने महानुभाव के पास फलानि जगह मिलेगी।

आगे बढ़ता हूँ, जनता में बाला जी जाट महाराज की असीम भगवान समतुल्य प्रसिद्धि बढ़ती देख और अपने रोजगार का एक और सुअवसर इसमें पा व् अपनी मानव-रचित रामायण के किरदार को वास्तविक रूप में सिद्ध करने हेतु धर्म के लोगों ने हनुमान के किरदार को दूसरा नाम दिया "बाला जी"। आखिर काम भी तो बाला जी जाट ने संकटमोचन वाला ही किया था। जब महमूद गजनवी को कोई नहीं रोक पाया तो तब अवतारे थे धरती के वास्तविक बाला जी।

परन्तु दुःख तब होता है जब हनुमान के नाम तले बाला जी जाट की कोई गाथा नहीं सुनाई जाती। और हनुमान जाट थे यह तब से ही प्रचारित करवाया गया ताकि लोग असली बाला जी जाट के नाम पर उनके फ़ॉनेटिक चरित्र हनुमान को स्थान दे देवें। जबकि वास्तविकता यह है कि हनुमान के चरित्र को वास्तविक बाला जी जाट से जोड़ा गया था, इस उम्मीद के साथ कि दो-चार सदी बाद के जाटों को यह लगता रहे कि हनुमान ही बाला जी जाट हैं।

और वही हुआ। परन्तु धर्म के लोग इनकी ही बुनी चाल में फंस गए और इससे कभी नहीं छूट पाये। और वो था बालाजी जाट का जाटपुत्र होना हनुमान जी के साथ जोड़ा था, वो सदियाँ बीत जाने पर भी लोक-किदवंतियों में आजतक भी ज्यों-का-त्यों कायम रहा और है। इससे भी मुझे यह बात कहने का बल मिला कि बालाजी जाट वास्तव में हुए थे और ग्यारहवीं सदी में महमूद गजनवी को सबक सिखाने को जाट-देह धार अवतारे थे।
परन्तु मंदिरों में आज तक भी यह छुपाया जाता है कि बाला जी वास्तव में हुए थे और यह वास्तविक बाला जी जाट का नाम है, हनुमान का नहीं।

परन्तु इससे एक ख़ुशी जरूर है कि हनुमान के बहाने ही सही परन्तु उन बाला जी जाट को खापलैंड के हर अखाड़े, पूरे भारत और यहां तक कि विश्व तक के कौनों-कौनों में पूजा जाता है, फिर भले ही उनके रूप को बंदर का रूप दिया हो वो भी बावजूद ग्यारहवीं सदी का मानवदेह का किरदार होने के।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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