ये तथाकथित स्वर्ण जातियां आरक्षण को ले के इतना हो-हल्ला क्यों कर रही हैं जबकि C और D grade की नौकरियों में इनकी representation नदारद है| इनमें से जिसे नौकरी नहीं मिलने की शिकायत है वह लोग अपने हिस्से का C और D grade slot तो भर लेवें पहले, फिर बाकी की बात करें| A और B grade में तो आप लोग अपनी जनसंख्या के अनुपात में वैसे ही मल्टीप्ल टाइम्स ओवरफ्लो में हैं, जरा अपने हिस्से का C और D ग्रेड का स्लॉट भी तो भरें|
आखिर उन नौकरियों में भी तो टैलेंट चाहिए होता है कि नहीं? अचम्भा है कि टैलेंट का दम्भ भरने वाले ही अपने हिस्से का C और D grade slot भरने को कभी इतने उतावले नहीं दीखते जितना कि टैलेंट-टैलेंट की वायलेंट छाती पीटते हैं|
वैसे भी भारतीय सविंधान की फंडामेंटल धाराओं के अनुसार आरक्षण किसी को आर्थिक तौर पर ऊपर उठाने हेतु नहीं है, वरन एक जाति-सम्प्रदाय की रिप्रजेंटेशन सुनिश्चित करने हेतु है| तो करिये ना अपनी रिप्रजेंटेशन को C और D केटेगरी में पूरा, किसने रोका है आपको टैलेंट दिखाने से?
या फिर टैलेंट के ऊपर मनुवाद का सुरक्षा कवच ढाँपे हुए हो, कि बस जो मनु ने हमारे लिए कह दिया वो ही हमारा टैलेंट, बाकियों का और बाकी का टैलेंट इर्रेलेवांट (irrelevant)|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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