जाट और खाप विचारधारा को इन 'मैं' रुपी सात कारकों को दूर रख के चलना होगा:
1.पहला मैं है "क्षेत्रवाद": अर्थात मैं हरयाणवी जाट, मैं राजस्थानी जाट, मैं आर का जाट, मैं पार जाट का, मैं दिल्ली का जाट, मैं पंजाब का जाट, मैं बागड़ी जाट, मैं देशवाली जाट, मैं बाँगरू जाट या मैं खादर का जाट|
2.दूसरा मैं है "भाषवाद": मैं पंजाबी बोलने वाला जाट, मैं अंग्रेजी, हिंदी, हरयाणवी, राजस्थानी, ब्रज या खड़ी आदि बोली बोलने वाला जाट|
3.तीसरा मैं है "पार्टीवाद": मैं कांग्रेसी जाट, मैं भाजपाई जाट, मैं इनेलो का जाट, मैं रालोद का जाट, या मैं फलानि पार्टी का जाट| ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी पार्टी से जुड़े हों, सबसे पहले और सर्वोपरि हमारे लिए जाट और खाप शब्द हो|
4.चौथा मैं है "स्टैंडर्डवाद": मैं अमीर जाट, मैं गरीब जाट, मैं अनपढ़ जाट, मैं पढ़ालिखा जाट, मैं रोजगार जाट, मैं बेरोजगार जाट, मैं शहरी जाट, मैं ग्रामीण जाट, मैं बिजनेसमैन जाट तू खेती करणीया जाट, या तू अनपढ़ जाट मैं पढ़ा लिखा जाट, तू गाम का जाट मैं शहरी जाट, तू बेरोजगार जाट मैं रोजगारी जाट आदि-आदि प्रकार के तमाम "स्टैंडर्डवादों" जाट और खाप शब्द के आगे भूलना होगा|
5.पांचवा मैं है "धर्मवाद": मैं हिन्दू जाट, मैं मुस्लिम जाट, मैं सिख जाट, मैं ईसाई जाट, मैं सच्चे-सौदे वाले का जाट, मैं आर्यसमाजी जाट आदि-आदि प्रकार के तमाम "धर्मवाद" के रोगों को काट, जाट और खाप पर जुड़ना होगा|
6.छटा कारक है "के बिगड़ै सै, देखी जागी": जाट समाज की सबसे बड़ी आत्मघाती परिकल्पना जो "जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही मारे", और "जाट-जाट का दुश्मन और जाट की छत्तीस कौम दुश्मन" जैसी मानसिक प्रवृतियों का मूल है| जीवन में खुशियां कायम रखने के लिए जीवन के प्रति हल्का रवैय्या जरूरी होता है, परन्तु इतना भी हल्का नहीं होना चाहिए कि वो बेखबरी/अनभिज्ञता का सबब बन जाए| क्योंकि बेखबरी अनियमतताओं का ऐसा द्वार है जिसके हमें कमजोर कर देगा, तोड़ देगा|
7.जाट थोड़ी सी प्रसंसा पर ही पूरी भेलि लुटा देता है: कहा जाट जाता है कि जाट प्रसंसा का भूखा होता है| तो ऐसे में आंदोलन जब अपनी पीक यानी ऊंचाई पर होगा तो हमारी प्रशंसाओं के पल बांधे जायेंगे, हमारे साथ झूठी भीड़ जोड़ी जाएँगी और ऐसे ही तमाम तरह के हथकंडे| परन्तु हमें प्रतिबद्ध रहना होगा हमारे गोल पर, उससे कम हमें कुछ हासिल नहीं|
और आज के दिन कोई भी जाट आरक्षण नेता इन 7 कारकों को एड्रेस नहीं करता, यह है असली समस्या की रुट, अन्यथा जनता की दिशा नेता ही डिसाईड करता है, जनता नहीं!
जय योद्धेय! - फूल मलिक
1.पहला मैं है "क्षेत्रवाद": अर्थात मैं हरयाणवी जाट, मैं राजस्थानी जाट, मैं आर का जाट, मैं पार जाट का, मैं दिल्ली का जाट, मैं पंजाब का जाट, मैं बागड़ी जाट, मैं देशवाली जाट, मैं बाँगरू जाट या मैं खादर का जाट|
2.दूसरा मैं है "भाषवाद": मैं पंजाबी बोलने वाला जाट, मैं अंग्रेजी, हिंदी, हरयाणवी, राजस्थानी, ब्रज या खड़ी आदि बोली बोलने वाला जाट|
3.तीसरा मैं है "पार्टीवाद": मैं कांग्रेसी जाट, मैं भाजपाई जाट, मैं इनेलो का जाट, मैं रालोद का जाट, या मैं फलानि पार्टी का जाट| ध्यान रखना होगा कि हम किसी भी पार्टी से जुड़े हों, सबसे पहले और सर्वोपरि हमारे लिए जाट और खाप शब्द हो|
4.चौथा मैं है "स्टैंडर्डवाद": मैं अमीर जाट, मैं गरीब जाट, मैं अनपढ़ जाट, मैं पढ़ालिखा जाट, मैं रोजगार जाट, मैं बेरोजगार जाट, मैं शहरी जाट, मैं ग्रामीण जाट, मैं बिजनेसमैन जाट तू खेती करणीया जाट, या तू अनपढ़ जाट मैं पढ़ा लिखा जाट, तू गाम का जाट मैं शहरी जाट, तू बेरोजगार जाट मैं रोजगारी जाट आदि-आदि प्रकार के तमाम "स्टैंडर्डवादों" जाट और खाप शब्द के आगे भूलना होगा|
5.पांचवा मैं है "धर्मवाद": मैं हिन्दू जाट, मैं मुस्लिम जाट, मैं सिख जाट, मैं ईसाई जाट, मैं सच्चे-सौदे वाले का जाट, मैं आर्यसमाजी जाट आदि-आदि प्रकार के तमाम "धर्मवाद" के रोगों को काट, जाट और खाप पर जुड़ना होगा|
6.छटा कारक है "के बिगड़ै सै, देखी जागी": जाट समाज की सबसे बड़ी आत्मघाती परिकल्पना जो "जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही मारे", और "जाट-जाट का दुश्मन और जाट की छत्तीस कौम दुश्मन" जैसी मानसिक प्रवृतियों का मूल है| जीवन में खुशियां कायम रखने के लिए जीवन के प्रति हल्का रवैय्या जरूरी होता है, परन्तु इतना भी हल्का नहीं होना चाहिए कि वो बेखबरी/अनभिज्ञता का सबब बन जाए| क्योंकि बेखबरी अनियमतताओं का ऐसा द्वार है जिसके हमें कमजोर कर देगा, तोड़ देगा|
7.जाट थोड़ी सी प्रसंसा पर ही पूरी भेलि लुटा देता है: कहा जाट जाता है कि जाट प्रसंसा का भूखा होता है| तो ऐसे में आंदोलन जब अपनी पीक यानी ऊंचाई पर होगा तो हमारी प्रशंसाओं के पल बांधे जायेंगे, हमारे साथ झूठी भीड़ जोड़ी जाएँगी और ऐसे ही तमाम तरह के हथकंडे| परन्तु हमें प्रतिबद्ध रहना होगा हमारे गोल पर, उससे कम हमें कुछ हासिल नहीं|
और आज के दिन कोई भी जाट आरक्षण नेता इन 7 कारकों को एड्रेस नहीं करता, यह है असली समस्या की रुट, अन्यथा जनता की दिशा नेता ही डिसाईड करता है, जनता नहीं!
जय योद्धेय! - फूल मलिक
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