Tuesday, 25 August 2015

जाटो 'मनुवाद' का वायरस निकाल बाहर करो, समाज में रिसीविंग एंड पे रहने से छुटकारा पाओ!

जाटों से एक निवेदन है कि मनुवादी विचारधारा को पालना छोड़ दो, वो क्या है कि जो इसको आपसे पलवाते हैं वो ना ही तो इससे निकलने का मार्ग बताते और ना ही इससे उत्तपन नकारात्मकता से पीछा छुड़वाने का तरीका बताते| जबकि वो यह मार्ग और तरीका दोनों जानते होते हैं इसलिए इस मनुवाद के जन्मदाता, पथपालक और प्रचारक होने के बावजूद भी वो कभी इसकी मार में नहीं आते|

जबकि 'मनुवाद' को मान आप लोगों के साथ "घणी स्याणी दो बै पोवै" वाली बन जाती है| क्योंकि जेनेटिकली और बायोलॉजिकली आप हो गणतांत्रिक व् लोकतान्त्रिक परम्परा को व्यवहारिक तौर पर मानने, जानने व् अपनाने वाले लोग| इसलिए आपको जेनेटिकली और बायोलॉजिकली जो आपके अंदर है उसी का प्रैक्टिकल करते रहना चाहिए, 'मनुवाद' का नहीं|

यह 'मनुवाद' पे चलने का ही परिणाम है कि जाट बनाम नॉन-जाट, दलित बनाम जाट और तमाम तरह का भारतीय तालिबान का ठीकरा आपके सर फूटता है यानी सबसे लोकतान्त्रिक होने पर भी इनका सॉफ्ट-टारगेट बने रहते हो| यह भी ताज्जुब की बात है कि जिनका बनाया मनुवाद आप चलाने की कोशिश करते हो (कोशिश इसलिए क्योंकि चलाना नहीं आता, आता तो मनुवादियों की तरह बच निकलते) वो ही आपको समाज के रिस्विंग एंड यानि सॉफ्ट टारगेट पे लेते हैं|

सॉफ्ट-टारगेट पे कैसे? इसके लिए समझें इस साइकोलॉजिकल थ्योरी को| क्योंकि आप जेनेटिकली लोकतान्त्रिक हैं और लोकतान्त्रिक जींस का स्वाभाव होता है कि जब वो किसी के साथ 'मनुवादी' तरीके का भेदभाव करता है तो फिर वो आत्मग्लानि से भर जाता है| जबकि जेनेटिकली जो 'मनुवादी' होता है वो इसको प्रैक्टिकली करते वक्त भी 'आत्मग्लानि' भाव से नहीं भरता| खैर, लॉजिक की बात यह है कि जो आत्मग्लानि से भर गया फिर वो उस बात को ले के अपना डिफेंस नहीं करता| और बस इसी आत्मग्लानि से पनपी साइकोलॉजी का मनुवादी फिर आपके ही ऊपर हमला करने के लिए प्रयोग करते हैं और आपको समाज के रिसीविंग एंड पे रख देते हैं क्योंकि उनको पता है आप आत्मग्लानि से भरे हो आपको या आपके विरुद्ध जितना बोलेंगे उसपे आप प्रतिक्रिया नहीं दोगे, चुपचाप सुनते जाओगे| बस यही रहस्य है कि क्यों जाट कौम सॉफ्ट-टारगेट बनती है| यानी ढेढ़ स्याणे बनके पहले तो 'मनुवाद' को ओढ़ लेते हो और फिर जब इससे निकलने, पीछा छुड़ाने या पल्ला झाड़ने की बारी आती है तो आत्मग्लानि में भर के घुटे बैठे रहते हो; और यही घुटे बैठे रहने के मौके का आपको सॉफ्ट टारगेट बनाने वाले लोग आपके विरुद्ध सिद्द्त से प्रयोग करते हैं|

इसलिए इससे छुटकारा पाने का एक ही तरीका है इनको छोडो और भगवान ने आपके अंदर जिस लोकतांत्रिकता व् गणतन्त्रिकता का सॉफ्टवेयर बाई-डिफ़ॉल्ट इनस्टॉल किया हुआ है उसी का प्रैक्टिकल करो| अब यार बाई-डिफ़ॉल्ट एंटीवायरस के ऊपर नकली एंटी-वायरस या अनजान एंटी-वायरस चढ़ाओगे तो सिस्टम का भट्ठा बैठेगा कि नहीं?

बस यही निचोड़ है, भारत में अपनी वंशानुगत व् बायोलॉजिकल एंटिटी कायम रखनी है तो इस 'मनुवाद' के वायरस को निकाल बाहर करो| मनुवाद में बहक दलितों से ऊँच-नीच, छूत-अछूत का व्यवहार छोड़ो|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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