तर्ज: चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है ……
उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|
तेरी एस्कोर्टिंग को वो मेरा एयरपोर्ट तक दौड़े आना याद है,
और मेरी चमची पे तेरा वो मेरी पीठ थपथपाना याद है|
कैमरों से छुप के हमने तुमको जो बना के पिलाई थी चाय,
कमबख्त कैमरे वालों को अब तक वो ठिकाना याद है||
उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|
ठरकी बुड्ढों की निशानी काले चश्मे लगा, स्टाइल में आना याद है,
चीन के बुतों से उन चश्मों के पीछे से, वो नयन-मट्का याद है|
वो तेरा न्योते पे नंगे-पाँव जाना, लिल्लाह मुहब्बत का तराना,
अहमदाबाद के बागों में जिंगपिंग को पिंघाना फक्त याद है||
उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|
अहले-कहल रसिया (रूस) में वो रास रचाना याद है,
पुतिन की बैठक में मेंडकी ज्यूँ नाल ठुकवाना याद है|
तेरा झल्ला के सर, सेल्फ़ी के आगे वो स्माइली लाना,
और आज जो तीनों ने सुनाया, वो दुखद गाना याद है||
उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|
कुछ अहले वतन की भों पड़ी हो तो सुनो पीएम साहेब,
जनता को आपके वो सुभानल्ला जुमले सुनाना याद है|
15 लखिया फ़साना, छ्प्पनी सीना वो 1 के बदले 10 सर लाना याद है,
राज चलाना नहीं चाय पिलाना, अब तो समझो बस यही फरियाद है||
उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|
विशेष: हरयाणा में काला चश्मा ठरकी बुड्ढों की निशानी है| कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना वाली आशिकमारों का अचूक हथियार, साला कोई झक मार के भी नहीं पकड़ सकता कि ताऊ देख किस ओर रहा होता है|
लेखक: फूल कुमार मलिक
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