Thursday 13 August 2015

हरयाणा के दलित एक बार बाकी के भारत में घूम के आवें, अगर वापिस आकर हरयाणा की धरती को ना चूमें तो!

जाट बनाम नॉन-जाट राजनीति में पड़ जाटों को एकमुश्त बुरा समझ लेने वाले दलित भाई एक बार हरयाणा उर्फ़ खापलैंड उर्फ़ जाटलैंड के बाहर के दलितों की हालत देख के आवें, दावा करता हूँ आप वापिस आ के चूमोगे अपने हरयाणा की धरती को|

मैं दावे से कह सकता हूँ कि बाकी के भारत की अपेक्षा हरयाणा में आप सबसे बेहतर स्थिति में हैं, फिर चाहे वो आपकी आर्थिक स्थिति हो अथवा सामाजिक|

कुछ ऐसी बातें जो एक दलित को सिर्फ हरयाणा (खापलैंड) पर ही मिलेंगी बाकी के भारत में नहीं:

1) जाट ने आपको सीरी-साझी यानी पार्टनर की संस्कृति दी है, जबकि बाकी के भारत में नौकर-मालिक की संस्कृति है|

2) जाटलैंड पे दलितों के यहां जाटों की हवेलियों को टक्कर देती हवेलियां तक रही हैं, भले ही कम (इक्का-दुक्का) हों परन्तु बाकी के भारत में हवेली तो क्या, आपके मकानों जैसे तो बहुतेरे साहूकारों तक के मकान नहीं|

3) जाटलैंड पे आंध्रा-तेलंगाना-महाराष्ट्र-कर्नाटक की भांति किसी मंदिर में अगर दलित की बेटी देवदासी बनके नहीं बैठती तो इन मंदिरों वालों पर इन जाटों की मानवीय सभ्यता के प्रभाव की वजह से|

4) केरल-तमिलनाडु में आज भी ऐसे इलाके हैं जहां दलित की औरतों को वक्षस्थल तक ढंकने की आज़ादी नहीं, लेकिन हरयाणा में सदियों से रही है| और यह रही है इन्हीं जाटों और खापों के वर्चस्व की वजह से वर्ना धर्माधीस यहां भी दलित औरत द्वारा उसके वक्ष ढंकने पे बंदिश लगा दें|

5) जाटलैंड पर सिर्फ दलित है, बिहार-उड़ीसा-छत्तीसगढ़ की भांति महादलित नहीं है| और अगर ऐसा है तो सिर्फ आपके और इन धर्म वालों के बीच जाट-रुपी सामाजिक सुरक्षा कवच की वजह से|

6) बाकी के भारत में जहाँ दलितों को झोपड़ियां तक नसीब नहीं, वहीँ जाटलैंड पर दलित भी जमानों से पक्की ईंटों के मकानों में रहते आये हैं|

7) बाकी के भारत में जहां दलित आज भी बेगार करता है, वहीं जाटलैंड पे जमानों से बही-खातों वाले लिखित सीरी-साझी कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम करता आया है|

8) छत्तीस बिरादरी की बेटी (दलित की भी) को अगर बेटी मानने का विधान किसी ने दिया तो किन्हीं धर्म वालों नहीं अपितु इन्हीं जाटों और खापों ने दिया है|

9) नए रिश्ते होने पे अगर हरयाणा की धरती पे आज भी गाँव की छत्तीस बिरादरी की बेटी (दलित की भी) की मान करके आई जाती है तो इसी जाटलैंड पे, बाकी भारत पे कहीं नहीं|

10) गरीब-अमीर (दलित-स्वर्ण) के मध्य आर्थिक गैप (अंतर) अगर पूरे भारत में सबसे कम कहीं है तो वो इसी जाटलैंड पे और इन्हीं जाटों की सोशल इंजीनियरिंग की वजह से|

इसके साथ ही मैं यह भी मानता हूँ कि जाट-दलित के बहुत झगड़े रहते हैं, बहुत बार जाट खुद धर्मवालों की बनाई जाति-पाति व्यवस्था में पड़ आपसे छूट-अछूत तक का व्यवहार करते हैं| इसपे जाटों को इतना ही कहना चाहूंगा कि यह धर्मवालों के पाखंडों के आधार पर दलितों से व्यवहार करना छोड़ दो, वरना एक तरफ आप धर्मवालों के पाखंड भी शिरोधार्य करते हैं और दूसरी तरफ यही धर्मवाले बदले में आपको जाट बनाम नॉन-जाट की लड़ाई में उलझा के आपकी सभ्यता-संस्कृति और आपको खत्म करने को उतारू रहते हैं|

सच मानिए जिस दिन जाट धर्म की बनाई इस जाति व् वर्ण व्यवस्था के आधार पर व्यवहार करना छोड़ देगा उस दिन धर्मवालों की अक्ल अपने आप ठिकाने लग जाएगी| क्योंकि जब धर्म देखता है कि समाज की सबसे ताकतवर जाति तुम्हारी हर उल-जुलूल बकवास को समाज में लागु कर रही है तो इससे उनके हौंसले बढ़ते हैं और साथ ही उनका डर भी बढ़ता है कि कहीं यह ताकतवर जाति तुम्हारी चीजों को लागू करना ना छोड़ देवे इसलिए इसको ही समाज से उलझा दो, और यह जाट बनाम नॉन-जाट इसके सिवाय कुछ भी नहीं| अपने पुरखों की स्वछँदता को पहचानों और इनकी उल-जुलूल हरकतों को भाव देना बंद करो| यह भाव देना ही इनका मोल है, यह मोल खत्म कर दो, इनके उल-जुलूल फंड-पाखंड स्वत: अपनी मौत मर जायेंगे|

धर्मवाले नहीं चाहते हैं कि जाट, दलित और इनके बीच किसी भी प्रकार का कवच बनके खड़े हों, क्योंकि जब तक यह लोग किसी दलित की बेटी को देवदासी ना बना देवें, उसके वक्षस्थल को बिना वस्त्र का ना देखें, तब तक इनको अपनी सभ्यता का भान ही नहीं होता| और जाटों की बनाई सभ्यता इनकी आँखों में इसीलिए किसी सूल की तरह चुभती है क्योंकि जाट सभ्यता इनको मानवता के पाश में बांध के रखती है|

मानता हूँ अवैध संबंध और बलात्कार हरयाणा में भी होते हैं, परन्तु अगर इनकी देवदासी अथवा वक्षस्थल को खुला रखने जैसी सामाजिक व् धार्मिक मान्यताओं को यहां फैलने से रोकने वाला जाट अगर आपके मार्ग से आपने स्वत: ही इस जाट बनाम नॉन-जाट के जहर के पाश में चढ़, हटा दिया तो फिर क्या देवदासी और क्या महादलित, सब हरयाणा की धरती पर उतार दिए जायेंगे|

होंगे जाट लाख गुना बुरे, परन्तु उनसे तो लाख गुना अच्छे हैं जो धर्म और सभ्यता के नाम पर दलितों की बहु-बेटियों को देवदासी बनाने और बिना वस्त्र रखने की वकालत करते आये हैं| सीधी सी बात है जाट अगर छाज है तो यह लोग छलनी, यानी छाज तो बोलै छालनी भी क्या बोले जिसमें बाहत्तर छेद| फैसला आपके हाथों में है कि आपको हरयाणा की धरती पर छाज बुलवाना है या छलनी|

मानता हूँ कि जाट बिगड़ते हैं तो कई जगहों पर लड़ते भी हैं परन्तु दलित भाइयों इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि आप ऊपर बताये 10 बिन्दुओं के तहत साक्षात इस जाट रुपी सुरक्षा कवच को हटा के आपको आदिवासी श्रेणी में जा खड़ा करने वालों के मंसूबों को कामयाब होने दोगे? याद रखिये जाट तो अकेले भी अपनी सभ्यता को कायम रख सकता है और रखता आया है परन्तु अगर आप इस जाट-बनाम-नॉन-जाट के चक्रव्यूह में फंस जाट रुपी कवच को बीच से हटा दोगे तो समझो अपने हाथों हरयाणा में दलित से महादलित बनने के मार्ग प्रसस्त कर रहे हो|

अगर हमारे हरयाणा को हम जैसा था उससे भी बेहतर बनाना और देखना चाहते हैं तो जाट और दलित दोनों को यह बातें समझनी होंगी| आखिर हरयाणवी सभ्यता ना तो अकेले जाट की है, ना अकेले दलित की, ना अकेले ओबीसी की या किसी अन्य जाति की| और अगर देवदासी, बिना वस्त्र के वक्षस्थल वाली महिला, महादलित, नौकर-मालिक की संस्कृति हरयाणवी सभ्यता में नहीं हैं तो आपको भान रहे कि यह चीजें कायम रहें और इसको कायम रखने की जिम्मेदारी अकेले जाट की नहीं है, आपकी और हर हरयाणवी जाति की है| वरना वही बात जाट तो मर-पड़ के इस जाट बनाम नॉन-जाट के वक्त से खुद को उभार भी लेगा, परन्तु फिर आप और उनके बीच जाट सभ्यता जैसा मानवता को पालने और पलवाने वाला सुरक्षा कवच नहीं होगा|

इसलिए व्यक्तिगत अथवा छोटे-मोटे झगड़ों को इतना मत बनाओ कि पौराणिक व् काल्पनिक ग्रन्थ महाभारत का चीरहरण अध्याय सही में हो जाए, अर्थात एक दिन जाट बनाम नॉन-जाट का जहर फ़ैलाने वाले दुःशासन हमारी हरयाणवी सभ्यता रुपी द्रोपदी का बीच चौराहे चीरहरण कर रहे हों और फिर बेचारी को बचाने हेतु कोई कृष्ण भी नसीब ना हो, क्योंकि कृष्ण जाट बनाम नॉन-जाट और जाट बनाम दलित में जो उलझे होंगे।

Ref: How devadasis were oppressed in southern India over centuries, despite the tradition declared illegal across India in 1988. The National Commission of Women recently estimated that around 48,358 devadasis are being forced into prostitution, with temples distancing themselves conveniently from their plight.

Source: http://www.dailyo.in/politics/radhe-maa-godwoman-mini-skirt-yosored/story/1/5621.html

जय योद्धेय! - जय हरयाणा! - जय दादा खेड़ा! - फूल मलिक

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