चल क्या रहा है राष्ट्रवादी महानुभावो? किसान को बिलकुल मिटाने की ठानी
हुई है क्या? मतलब इसी स्पीड से दाम घटते रहे तो 2019 आते-आते तो कहीं ऐसा
ना हो जाए कि किसान को धान बोने के ऐवज में कीमत मिलने की बजाये देनी और
पड़े?
माना जाट किसान ने कम वोट दिए होंगे, परन्तु सैनी, गुज्जर, यादव, राजपूत, ब्राह्मण यहां तक कि हिन्दू अरोड़े-खत्री किसानों ने तो झोली भर-भर वोट दिए थे, इनका ही ख्याल रखते हुए रेट्स पे कंट्रोल करवाओ कुछ?
कहाँ हैं राजकुमार सैनी, नयाब सिंह सैनी, कृष्णपाल गुज्जर, कंवर सिंह गुज्जर, राव इंद्रजीत सिंह सबके सब (बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो अब उम्मीद भी टूट चुकी है)? खुद सीएम भी तो अपने-आपको किसान का बेटा बोलते हैं ना? राजकुमार सैनी जी इस मुद्दे पर मोर्चा लो तो जानूं!
कहीं यह सोच के तो चुप नहीं हो कि नहीं दाम बढ़वा के दिए तो जाट किसान को भी देने होंगे? मतलब किसानी में भी जाति का झूठा अहम घुसाये बैठे हैं| बस जाट किसान को फायदा ना हो फिर चाहे इस चक्कर में सैनी-गुर्जर-राजपूत-ब्राह्मण-अहीर किसान के भी घर कंगाल क्यों ना हो जावें| वाह रे किसान के पूत और किसान के नेता होने का दम भरने वालो|
कुछ भी कह लो किसान नेता बनना इतना आसान खेल भी नहीं! चाहे वो सर छोटूराम हों, चाहे चौधरी चरण सिंह, चाहे बाबा टिकैत, चाहे ताऊ देवीलाल, चाहे ओ. पी. चौटाला और चाहे पिछली सरकार में 5000 रूपये प्रति किवंटल से जीरी का भाव देने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा (मझे माफ़ करना परन्तु अगर इनकी श्रेणी का कोई और उत्तर भारतीय किसान नेता छूट गया हो तो नाम अवश्य बतावें)| इन्होनें कभी किसानों के भाव बढ़ाते वक्त यह संकुचित सोच नहीं रखी होगी कि किसान में भी जाति होती हैं और जाति देख के चलूँ|
मारेंगे किसान और किसानी को बिन आई, यह संकुचित सोच के नए नेता!
जय योद्धेय! - फूल मलिक!
माना जाट किसान ने कम वोट दिए होंगे, परन्तु सैनी, गुज्जर, यादव, राजपूत, ब्राह्मण यहां तक कि हिन्दू अरोड़े-खत्री किसानों ने तो झोली भर-भर वोट दिए थे, इनका ही ख्याल रखते हुए रेट्स पे कंट्रोल करवाओ कुछ?
कहाँ हैं राजकुमार सैनी, नयाब सिंह सैनी, कृष्णपाल गुज्जर, कंवर सिंह गुज्जर, राव इंद्रजीत सिंह सबके सब (बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो अब उम्मीद भी टूट चुकी है)? खुद सीएम भी तो अपने-आपको किसान का बेटा बोलते हैं ना? राजकुमार सैनी जी इस मुद्दे पर मोर्चा लो तो जानूं!
कहीं यह सोच के तो चुप नहीं हो कि नहीं दाम बढ़वा के दिए तो जाट किसान को भी देने होंगे? मतलब किसानी में भी जाति का झूठा अहम घुसाये बैठे हैं| बस जाट किसान को फायदा ना हो फिर चाहे इस चक्कर में सैनी-गुर्जर-राजपूत-ब्राह्मण-अहीर किसान के भी घर कंगाल क्यों ना हो जावें| वाह रे किसान के पूत और किसान के नेता होने का दम भरने वालो|
कुछ भी कह लो किसान नेता बनना इतना आसान खेल भी नहीं! चाहे वो सर छोटूराम हों, चाहे चौधरी चरण सिंह, चाहे बाबा टिकैत, चाहे ताऊ देवीलाल, चाहे ओ. पी. चौटाला और चाहे पिछली सरकार में 5000 रूपये प्रति किवंटल से जीरी का भाव देने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा (मझे माफ़ करना परन्तु अगर इनकी श्रेणी का कोई और उत्तर भारतीय किसान नेता छूट गया हो तो नाम अवश्य बतावें)| इन्होनें कभी किसानों के भाव बढ़ाते वक्त यह संकुचित सोच नहीं रखी होगी कि किसान में भी जाति होती हैं और जाति देख के चलूँ|
मारेंगे किसान और किसानी को बिन आई, यह संकुचित सोच के नए नेता!
जय योद्धेय! - फूल मलिक!
No comments:
Post a Comment