Thursday, 17 September 2015

मक्का क्रेन हादसा बताता है कि एक जिम्मेदार धर्म क्या होता है!

एक तरफ उत्तराखंड हादसा, मुज़फ्फरनगर दंगे, अभी हाल ही में हुआ झाबुआ ब्लास्ट और दूसरी तरफ मक्का मस्जिद का क्रेन हादसा, एक धर्म की अपने अनुयायिओं के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम को सही से देखने और समझने का आईना हैं| यह समझने के लिए काफी हैं कि जहां हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं अपितु सिर्फ बिज़नेस है वहीँ मुस्लिम धर्म बताता है कि धर्म क्या होता है, धर्म वालों की जिम्मेदारी क्या होती है|

दो साल पहले जब उत्तराखंड में बेपनाह प्राकृतिक तबाही आई थी और हजारों श्रद्धालु हिन्दू भगवानों के दर से जाते-लौटते नदियों-नालों में बह गए थे तो बड़ी मुश्किल से किसी हिन्दू मंदिर, संस्था, मठ या सभा यहां तक कि किसी भी प्रकार की हिन्दू सेना और दल की जेब से फर्स्ट-ऐड तक के लिए कोई फूटी कौड़ी भी उनके लिए निकली हो, याद करने से भी कोई स्मरण नहीं में नहीं आता, फिर उनके पुनर्वास और नुकसान की क्षतिपूर्ति इनमें से किसी ने की हो वो तो सपनों की बात है|

दो साल पहले ही हुए मुज़फरनगर दंगों में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू परिवार मिलेगा जिसको इन ऊपरलिखित संस्थाओं और इनके लोगों से कोई मदद पहुंची हो, यहां तक कि सैंकड़ों युवक अभी तक हिन्दू धर्म के नाम पर जेलों में सड़ रहे हैं परन्तु अभी तक किसी को ना तो कोई कानूनी मदद ना रियायत और ना ही कोई आर्थिक मदद|

और अभी पिछले दिनों ही झाबुआ में हुए बारूद ब्लास्ट में मरे पच्चासी के करीब लोगों को संभालने जो इनमें से कोई पहुंचा हो| साफ़ संकेत है कि इन लोगों के लिए धर्म और इंसानियत नाम की कोई चीज है ही नहीं, फिर उसकी जिम्मेदारी लेना, उठाना और वहन करना तो भूल ही जाओ| बस दान के नाम पे जनता को लूटा, अपना घर बना और तू कौन और मैं कौन|

वहीँ झाबुआ वाले ब्लास्ट के अड़गड़े ही मक्का मस्जिद में क्रेन हादसे में सौ के करीब लोग मरे तो वहाँ के सऊदी किंग ने मृतक व् अपंग हुए के परिवार को 1 मिलियन रियाल यानी करीब पौने दो करोड़ रुपया, घायल को आधा मिलियन रियाल यानी करीब नब्बे लाख रुपया और हर एक के परिवार से दो लोगों को हज की मुफ्त यात्रा|
इसको कहते हैं धर्म और धर्म के बन्दों की हिफाजत करना, और उनकी जिम्मेदारी समझना व् उठाना|

विशेष: कृपया आतंकवाद का रोना रोने वाले और आईएसआईएस का नाम ले के अपने फफोलों को सेंकने वाले इस पोस्ट से दूर रहें, क्योंकि आजकल हवाओं में बंदूकें लहराने, बारूद के गोदाम भरने और मासूम वयोवृद्ध लेखकों द्वारा तुम्हें प्रतिकूल बोलने पर तालिबानी स्टाइल में उनकी हत्या करने में तुम्हारे वाले भी किसी से पीछे नहीं हैं|

जय योद्धेय! - फूल कुमार!

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