हरयाणा के पंचायती राज चुनावों में विभिन्न वर्गों के उम्मीदवारों के लिए
दसवीं व् आठवीं पास होने की शर्त ना सिर्फ पूर्णत: गैर-सवैंधानिक थी (आज
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है) वरन यह जिस हरयाणवी गट यानी ठेठ
हरयाणत और बेबाकपने के लिए हरयाणा जाना जाता है उसको तोड़ने और कमजोर करने
हेतु बीजेपी और आरएसएस की सोची-समझी कुटिल षड्यंत्री साजिश का भाग थी|
मैं पहले भी इस विषय पर एक आर्टिकल में यह इंगित कर चुका हूँ कि जो सरकारी व्यवस्था जब तक उसके नागरिकों की शिक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती वो किसी को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर चुनाव लड़ने से ख़ारिज कैसे कर सकती है? आम जनता से वोटिंग के जरिये राय ले के निर्णय लेने जैसे मुद्दे पर सरकार अकेले निर्णय कैसे ले सकती है?
परन्तु अब इससे भी बड़े जो पत्ते इसके खुल के सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि यह सिर्फ इतना मात्र नहीं था अपितु आरएसएस और बीजेपी की सोची-समझी घिनौनी चाल के तहत ठेठ हरयाणत (जिसको कि बचाने और कायम रखने हेतु सरकार चुनी गई है) का गला घोंटने का कुचक्र था, था क्या अभी भी कुचक्र मंडरा रहा है, सिर्फ कोर्ट का स्टे लगा है| कुचक्र कैसे, वो ऐसे....
सन 2002 में मेरे गाँव में मेरे सगे चचेरे दादा मेरी नगरी (हिंदी में गाँव) के सरपंच थे| कभी गुजरे जमानों में हमारे ही गाँव का एक डिफाल्टर करीब डेड दशक बाद भगमा बाणा धारे, हाथ में कमंडल और चिमटा लिए मेरे गाँव में मंदिर खोलने की मंशा से आया| और सरपंच दादा के आगे गाँव में इस कार्य हेतु मदद का आह्वान किया| तो दादा ने उसको धमकाते हुए कहा कि अपनी खैर चाहते हो तो उल्टे पाँव लौट जाओ| इसी गाँव की पैदाइश होकर अपने गाँव का इतिहास नहीं जानते, परम्परा नहीं जानते? यहां तो अस्थल बोहर के मठाधीश को तीन दिन तक एक पैर पे खड़ा रहने के बाद भी बिना भिक्षा के नगरी को 'छूटा हुआ सांड' कहके लौटना पड़ा था और तुम यहां इनके प्रदूषण को फैलाने आये हो? क्या यह भी भूल गए कि यह आर्य-समाजियों का धाम है और यहां फंड-पाखंड की सार्वजनिक स्वीकार्यता अस्वीकार्य है? यहां किसी मोड्डे-बाबे को रोटी-पानी तो मिल सकता है परन्तु उसकी अय्याशियों का अड्डा नहीं खुल सकता, कोई और ठोर-ठिकाना ढूंढों और सुबह होने से पहले गाँव छोड़ दो, वरना इस गाँव की रीत तुम जानते ही हो| और वो रीत थी कि नगरी में जो लंग्वाड़ा मोड्डा-बाबा-साधु रातभर रुका तो वो सुबह होते-होते अच्छी तस्सली से अपनी चमड़ी उधड़वा के गया|
और यही या इसी तरह की कहानियां और भी बहुतेरे हरयाणवी गाँवों-नगरियों की है|
और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का मिशन ही यही है कि अब उसको हरयाणा के हर ठोर-ठिकाने पे यह ढोंग-पाखंड-आडंबर के अड्डे खड़े करने हैं और इनके इस मिशन में सबसे बड़ा रोड़ा है हरयाणा के उन्मुक्त व् लोकतान्त्रिक सोच के बुजुर्ग, जिनमें कि काले अक्षरी ज्ञान में अधिकतर या तो अनपढ़ हैं या फिर मुश्किल से मिडल पास, लेकिन मंडी-फंडी की चालों को समझने और उनकी काट रखने के सारे के सारे माहिर| और ऐसे में अगर यह लोग गाँवों-नगरियों के पंच-सरपंच रहेंगे तो मोड्डे अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे| इसलिए इनको एक मुश्त बिना शोर-गुल रास्ते से हटाने का शस्त्र था (या कहो कि अभी बना हुआ है) यह शैक्षणिक योग्यता का क्लॉज़|
इससे दूसरा फायदा यह होता कि हरयाणवी बुजुर्ग व् मैच्योर पीढ़ी की बजाये नवजवान पीढ़ी को इनके लिए बरगलाना काफी आसान रहता है और अपनी मंशाएं पूरी करने में सहूलियत होती| देख लो हरयाणा के युवाओ आपके जरिये कैसे-कैसे षड्यंत्र यह षड्यंत्री लोग साधे बैठे हैं| मतलब आपको पता भी नहीं चलने देते और हरयाणवी-हरयाणा-हरयाणत का मलियामेट करने का घिनौना खेल आपके ही जरिये होता|
और बात सिर्फ पाखंडों को फ़ैलाने के मंसूबों तक नहीं है अपितु मंडी यानी व्यापार के लिए भी अपनी मनमानी चालों को अमली-जामा देने में सर छोटूरामी विचारधारा को खत्म करने के इनके कयासों को आस बंधवाना भी इस क्लॉस का मकसद था| क्योंकि अनपढ़ वो नहीं जो काले अक्षर नहीं जानता अपितु वो है जो इनके मंसूबों को नहीं जानता, इनके समाज पे नकारात्मक प्रभावों को नहीं जानता|
शुक्र है कि इस पर रोक लगी|
कहीं पर जाट बनाम नॉन-जाट तो कहीं फन्डियों द्वारा फैलाई जा रही धार्मिक कटटरता और अंधता में फंसे हरयाणवियों को जरा दो पल के लिए इन चीजों से बाहर निकल कर अपनी उस पहचान के लिए सोचना चाहिए, जिसको हम हरयाणवी कहते हैं| आखिर क्यों इनके कुचक्र में फंस हर हरयाणवी इस तथ्य से भटका हुआ सा नजर आता है और यह लोग अपनी चाल चलते ही जा रहे हैं| ध्यान रहे यह शिक्षा का पैमाना खड़ा करने वाले उसी लाला जगत नारायण के वंशज हैं जिन्होनें कभी 1981 की जनगणना में पंजाब में अपनी माँ-बोली हिंदी लिखवाई थी तो हरयाणा में पंजाबी लिखवाई थी| दिखती सी बात है जिनके लिए माँ बोलियाँ और कल्चर पे पलटवार भी सरकारी योजनाओं से लाभ उठाने का एक हथियार मात्र हो, वो क्या तो हरयाणवी की सोचेंगे और क्या इसकी पहचान को कायम रखने की|
परन्तु हम नेटिव हरयाणवी तो सोच सकते हैं?
जय योद्धेय! - फूल मलिक #JaiYoddhey
Source: पंचायत चुनाव के नए संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, 4 हफ्ते में मांगा जवाब http://www.bhaskar.com/news/c-85-1126368-pa0345-NOR.html
मैं पहले भी इस विषय पर एक आर्टिकल में यह इंगित कर चुका हूँ कि जो सरकारी व्यवस्था जब तक उसके नागरिकों की शिक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती वो किसी को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर चुनाव लड़ने से ख़ारिज कैसे कर सकती है? आम जनता से वोटिंग के जरिये राय ले के निर्णय लेने जैसे मुद्दे पर सरकार अकेले निर्णय कैसे ले सकती है?
परन्तु अब इससे भी बड़े जो पत्ते इसके खुल के सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि यह सिर्फ इतना मात्र नहीं था अपितु आरएसएस और बीजेपी की सोची-समझी घिनौनी चाल के तहत ठेठ हरयाणत (जिसको कि बचाने और कायम रखने हेतु सरकार चुनी गई है) का गला घोंटने का कुचक्र था, था क्या अभी भी कुचक्र मंडरा रहा है, सिर्फ कोर्ट का स्टे लगा है| कुचक्र कैसे, वो ऐसे....
सन 2002 में मेरे गाँव में मेरे सगे चचेरे दादा मेरी नगरी (हिंदी में गाँव) के सरपंच थे| कभी गुजरे जमानों में हमारे ही गाँव का एक डिफाल्टर करीब डेड दशक बाद भगमा बाणा धारे, हाथ में कमंडल और चिमटा लिए मेरे गाँव में मंदिर खोलने की मंशा से आया| और सरपंच दादा के आगे गाँव में इस कार्य हेतु मदद का आह्वान किया| तो दादा ने उसको धमकाते हुए कहा कि अपनी खैर चाहते हो तो उल्टे पाँव लौट जाओ| इसी गाँव की पैदाइश होकर अपने गाँव का इतिहास नहीं जानते, परम्परा नहीं जानते? यहां तो अस्थल बोहर के मठाधीश को तीन दिन तक एक पैर पे खड़ा रहने के बाद भी बिना भिक्षा के नगरी को 'छूटा हुआ सांड' कहके लौटना पड़ा था और तुम यहां इनके प्रदूषण को फैलाने आये हो? क्या यह भी भूल गए कि यह आर्य-समाजियों का धाम है और यहां फंड-पाखंड की सार्वजनिक स्वीकार्यता अस्वीकार्य है? यहां किसी मोड्डे-बाबे को रोटी-पानी तो मिल सकता है परन्तु उसकी अय्याशियों का अड्डा नहीं खुल सकता, कोई और ठोर-ठिकाना ढूंढों और सुबह होने से पहले गाँव छोड़ दो, वरना इस गाँव की रीत तुम जानते ही हो| और वो रीत थी कि नगरी में जो लंग्वाड़ा मोड्डा-बाबा-साधु रातभर रुका तो वो सुबह होते-होते अच्छी तस्सली से अपनी चमड़ी उधड़वा के गया|
और यही या इसी तरह की कहानियां और भी बहुतेरे हरयाणवी गाँवों-नगरियों की है|
और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का मिशन ही यही है कि अब उसको हरयाणा के हर ठोर-ठिकाने पे यह ढोंग-पाखंड-आडंबर के अड्डे खड़े करने हैं और इनके इस मिशन में सबसे बड़ा रोड़ा है हरयाणा के उन्मुक्त व् लोकतान्त्रिक सोच के बुजुर्ग, जिनमें कि काले अक्षरी ज्ञान में अधिकतर या तो अनपढ़ हैं या फिर मुश्किल से मिडल पास, लेकिन मंडी-फंडी की चालों को समझने और उनकी काट रखने के सारे के सारे माहिर| और ऐसे में अगर यह लोग गाँवों-नगरियों के पंच-सरपंच रहेंगे तो मोड्डे अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगे| इसलिए इनको एक मुश्त बिना शोर-गुल रास्ते से हटाने का शस्त्र था (या कहो कि अभी बना हुआ है) यह शैक्षणिक योग्यता का क्लॉज़|
इससे दूसरा फायदा यह होता कि हरयाणवी बुजुर्ग व् मैच्योर पीढ़ी की बजाये नवजवान पीढ़ी को इनके लिए बरगलाना काफी आसान रहता है और अपनी मंशाएं पूरी करने में सहूलियत होती| देख लो हरयाणा के युवाओ आपके जरिये कैसे-कैसे षड्यंत्र यह षड्यंत्री लोग साधे बैठे हैं| मतलब आपको पता भी नहीं चलने देते और हरयाणवी-हरयाणा-हरयाणत का मलियामेट करने का घिनौना खेल आपके ही जरिये होता|
और बात सिर्फ पाखंडों को फ़ैलाने के मंसूबों तक नहीं है अपितु मंडी यानी व्यापार के लिए भी अपनी मनमानी चालों को अमली-जामा देने में सर छोटूरामी विचारधारा को खत्म करने के इनके कयासों को आस बंधवाना भी इस क्लॉस का मकसद था| क्योंकि अनपढ़ वो नहीं जो काले अक्षर नहीं जानता अपितु वो है जो इनके मंसूबों को नहीं जानता, इनके समाज पे नकारात्मक प्रभावों को नहीं जानता|
शुक्र है कि इस पर रोक लगी|
कहीं पर जाट बनाम नॉन-जाट तो कहीं फन्डियों द्वारा फैलाई जा रही धार्मिक कटटरता और अंधता में फंसे हरयाणवियों को जरा दो पल के लिए इन चीजों से बाहर निकल कर अपनी उस पहचान के लिए सोचना चाहिए, जिसको हम हरयाणवी कहते हैं| आखिर क्यों इनके कुचक्र में फंस हर हरयाणवी इस तथ्य से भटका हुआ सा नजर आता है और यह लोग अपनी चाल चलते ही जा रहे हैं| ध्यान रहे यह शिक्षा का पैमाना खड़ा करने वाले उसी लाला जगत नारायण के वंशज हैं जिन्होनें कभी 1981 की जनगणना में पंजाब में अपनी माँ-बोली हिंदी लिखवाई थी तो हरयाणा में पंजाबी लिखवाई थी| दिखती सी बात है जिनके लिए माँ बोलियाँ और कल्चर पे पलटवार भी सरकारी योजनाओं से लाभ उठाने का एक हथियार मात्र हो, वो क्या तो हरयाणवी की सोचेंगे और क्या इसकी पहचान को कायम रखने की|
परन्तु हम नेटिव हरयाणवी तो सोच सकते हैं?
जय योद्धेय! - फूल मलिक #JaiYoddhey
Source: पंचायत चुनाव के नए संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, 4 हफ्ते में मांगा जवाब http://www.bhaskar.com/news/c-85-1126368-pa0345-NOR.html
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