ये हैं वो दो
हिन्दू दलित बच्चे (नीचे सलंगित चित्र में देखें) जो "हिन्दू एकता और
बराबरी" के ढोल पीटने वाली हिंदूवादी सरकार की छत्रछाया तले हिन्दू सवर्णों
ने आज तड़के फरीदाबाद के सनपेड़ गाँव में आग के हवाले कर दिए|
राजनीति तो सुनी थी गंदी होती है परन्तु जब उसके साथ धर्म भी मिलके उसमें एकता और बराबरी का नारा उठाये तो उस नारे को फलीभूत करवाने की जिम्मेदारी भी तो ले? धर्म वादा करके या नारा उठा के भूलने की चीज नहीं होती, आगे बढ़के उसके पालन और पालन की सुनिश्चितता करने का नाम होता है| जहां दावे से उठाई हुई बातें-वादे भुला दिए जाएँ वो राजनीति होती है धर्म नहीं|
जैसा कि इसका एक पहलु मीडिया और सरकार बता रही है कि यह सब आपसी रंजिश के चलते हुआ है| तो ऐसा भी क्या तरीका रंजिश निकालने का कि राजपूतों ने ना रात देखी, ना दिन, ना 10 महीने और अढ़ाई साल के बच्चे देखे| निसंदेह एक सच्चा राजपूत तो ऐसा कदापि नहीं कर सकता। यहां तो यह भी नहीं कह सकते कि दिन के वक्त किया इसलिए पता नहीं रहा होगा कि घर के अंदर कौन था और कौन नहीं| रात का वक्त था साफ़ पता था कि मियां-बीवी अपने बच्चों के साथ सो रहे होंगे|
इसपे भी अचरज की बात यह है कि सनपेड़ कांड पर क्यों नहीं एक भी हिन्दू-हिन्दू और इसमें एकता और बराबरी चिल्लाने वाले साक्षी महाराज से ले साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ से ले मोहन भागवत एक शब्द भी नहीं बोले| ना कोई शंकराचार्य बोला, ना कोई महामंडलेश्वर, ना कोई पुजारी चुस्का और ना ही कोई संत| जिनकी जुबान गौ-गाय-मूत्र-गोबर पर जान लेने और देने के लिए बोलते-बोलते नहीं थकती, उन हिन्दू धर्म वालों के यहां और उन्हीं की सरकार के राज में एक हिन्दू दलित के छोटे-छोटे मासूम बच्चों की बस इतनी सी कीमत कि इन महानुभावों के मुख से अभी तक एक शब्द नहीं आया।
सभ्य-सुशील इंसान कोई भी कमेंट करे इस पोस्ट पर परन्तु, अपने यहां के गोबर से दूसरे के वहाँ के गोबर को ज्यादा गन्दा बताने वाले, इस पर तभी कमेंट करें, जब अपने गोबर को साफ़ करने का माद्दा रखते हों| ओह हाँ मैंने गोबर शब्द का जिक्र किया है तो भगतलोग अब इसको गाय वाले गोबर से जोड़ के मेरे कान मत खाने लग जाना, कि कहीं कहते चढ़े आओ मेरे सर पे कि तुमने गौमाता के गोबर को गन्दा कैसे कह दिया| मेरी ओर से तुम जिस चाहे उस जानवर के गोबर को खाओ या शरीर पे लबेड़े घूमो|
फूल मलिक
राजनीति तो सुनी थी गंदी होती है परन्तु जब उसके साथ धर्म भी मिलके उसमें एकता और बराबरी का नारा उठाये तो उस नारे को फलीभूत करवाने की जिम्मेदारी भी तो ले? धर्म वादा करके या नारा उठा के भूलने की चीज नहीं होती, आगे बढ़के उसके पालन और पालन की सुनिश्चितता करने का नाम होता है| जहां दावे से उठाई हुई बातें-वादे भुला दिए जाएँ वो राजनीति होती है धर्म नहीं|
जैसा कि इसका एक पहलु मीडिया और सरकार बता रही है कि यह सब आपसी रंजिश के चलते हुआ है| तो ऐसा भी क्या तरीका रंजिश निकालने का कि राजपूतों ने ना रात देखी, ना दिन, ना 10 महीने और अढ़ाई साल के बच्चे देखे| निसंदेह एक सच्चा राजपूत तो ऐसा कदापि नहीं कर सकता। यहां तो यह भी नहीं कह सकते कि दिन के वक्त किया इसलिए पता नहीं रहा होगा कि घर के अंदर कौन था और कौन नहीं| रात का वक्त था साफ़ पता था कि मियां-बीवी अपने बच्चों के साथ सो रहे होंगे|
इसपे भी अचरज की बात यह है कि सनपेड़ कांड पर क्यों नहीं एक भी हिन्दू-हिन्दू और इसमें एकता और बराबरी चिल्लाने वाले साक्षी महाराज से ले साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ से ले मोहन भागवत एक शब्द भी नहीं बोले| ना कोई शंकराचार्य बोला, ना कोई महामंडलेश्वर, ना कोई पुजारी चुस्का और ना ही कोई संत| जिनकी जुबान गौ-गाय-मूत्र-गोबर पर जान लेने और देने के लिए बोलते-बोलते नहीं थकती, उन हिन्दू धर्म वालों के यहां और उन्हीं की सरकार के राज में एक हिन्दू दलित के छोटे-छोटे मासूम बच्चों की बस इतनी सी कीमत कि इन महानुभावों के मुख से अभी तक एक शब्द नहीं आया।
सभ्य-सुशील इंसान कोई भी कमेंट करे इस पोस्ट पर परन्तु, अपने यहां के गोबर से दूसरे के वहाँ के गोबर को ज्यादा गन्दा बताने वाले, इस पर तभी कमेंट करें, जब अपने गोबर को साफ़ करने का माद्दा रखते हों| ओह हाँ मैंने गोबर शब्द का जिक्र किया है तो भगतलोग अब इसको गाय वाले गोबर से जोड़ के मेरे कान मत खाने लग जाना, कि कहीं कहते चढ़े आओ मेरे सर पे कि तुमने गौमाता के गोबर को गन्दा कैसे कह दिया| मेरी ओर से तुम जिस चाहे उस जानवर के गोबर को खाओ या शरीर पे लबेड़े घूमो|
फूल मलिक
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