मेरे पास छ: फेसबुक एकाउंट्स हैं, जिनमें 4000 से ले के न्यूनतम 300 तक
फ्रेंड्स हैं| एक मुद्दे को जब छ: के छ: में डालता हूँ तो जो प्रतिक्रियाएं
देखने को मिलती हैं उनमें दिन-रात का फर्क होता है|
इन अकाउंट में सिर्फ दो अकाउंट मेरे नाम से हैं बाकी चार मेरी ओनरशिप यानी गवर्नेंस में| कोई भी अकाउंट नकली जानकारी दे के नहीं बनाया है, सब ऑथेंटिक हैं| पर इनके जरिये जो विभिन्न वर्गों की मुद्दों की चॉइस और सोशल सोच का एक स्क्रीन पे बैठे-बैठे अध्यन हो जाता है वो अपने-आप में एक रिसर्च थीसिस लिखने जैसा है| अगर इस रिसर्च के 6 चारित्रिक हाइपोथिसिस बनाऊं जो कुछ यूँ बनेंगे:
1) कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला यानि कॉर्पोरेट ग्रुप: इसमें वो लोग हैं जिनको समाज में क्रीमी लेयर कहा जाता है| इनको समाज की राजनीति-हिंसा-आगजनी के जरिये सिर्फ कमाई होती रहनी चाहिए, फिर चाहे कोई जिए या मरे| इनमें कुछ तो यूँ भी कह देते हैं कि तुम क्यों पड़ते हो इन पचड़ों में| बड़ा उदासीन ग्रुप है साहेब, कोई सहजता से रिस्पांस नहीं करता सिवाय इनमें बैठी अंधभक्त केटेगरी के|
2) सांस्कृतिक चेतना व् जागरूकता ग्रुप (हर तरह की सेंट्रल विंग वाले इसमें हैं): इसमें हरयाणवी संस्कृति को ले के जागरकता और प्रेरणा को कटिबद्ध लोग हैं| इस ग्रुप में आर्थिक आधार की कोई लाइन नहीं है| इसमें कॉर्पोरेट जैसे मनी-माइंडेड से ले नेता-सामाजिक कार्यकर्त्ता सब हैं| परन्तु एक लाइन जरूर है कि 99% सब हैं हरयाणवी| जब इस अकाउंट में पोस्ट डालता हूँ तो बहुत सकारात्मक रिस्पांस आते हैं| लाइक्स के तो कई बार मीटर टूट जाते हैं|
3) मानवाधिकार और सामाजिक अधिकारों की वकालत करने वाले (हर तरह के लेफ्ट विंग वाले): इनके यहां पे बुद्धिजीवियों वाली धुनें चलती हैं| समाज की हर इस-उस थ्योरी और मान्यता में नुक्स निकालने वाले| यहां मेरी लगभग हर ऐसी पोस्ट का खूब मान-मर्दन होता है पोस्टमॉर्टेम होता है जिसमें मैंने हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखा हो| इनके अनुसार हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखे जाने का मतलब सिर्फ और सिर्फ जाट और खाप है| इसलिए यह बेचारे जाटोफोबिया और खापोफोबिया से ऐसे ग्रसित हैं कि पोस्ट डाली नहीं बस टूट पड़े|
4) यह प्योर पोलिटिकल लोगों का अकाउंट है: यहां पता ही नहीं लगता की पोस्ट हिट हुई या पिट गई| लिखने वाला पोस्ट के पक्ष में है या विपक्ष में, कुछ मालूम नहीं पड़ता|
5) यह नॉन-हरयाणवी लोगों का ग्रुप है (मीडिया इनका गुरु है): जहां पोस्ट डाल कर हरयाणवी संस्कृति पर वो क्या सोचते हैं इस बारे जानने को मिलता है| इस ग्रुप में मीडिया की मेहरबानी ज्यादा काम कर रही है| मीडिया की रिफरेन्स से ही यहां हरयाणा की छवि बना के चलते हैं लोग| परन्तु समझाने पे बात को समझ भी लेते हैं| ऐसे ग्रुप्स ऐसे लोगों के समूह हैं जहां हर असली हरयाणवी को होना चाहिए, खासकर उनको तो जरूर जो हरयाणा और हरयाणवी का सही और सटीक प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं|
6) अंधभक्तों का ग्रुप (हर तरह की राइट-विंग वाले इसमें हैं): यहां मैं धर्म-जाति-सम्प्रदाय से संबंधित पोस्टें डालता हूँ और इनके मत की पोस्ट ना हो तो ऐसे झप्पटा मारते हैं जैसे बंदरों का समूह| इन्होनें जो माइंड-सेट बना लिया है उसमें किसी दूसरे विचार की जगह की कोई गुंजाइस नहीं| सबसे रुके हुए, थमे हुए और छके हुए लोग इस समूह में हैं| इनसे इसलिए जिरह और मश्वरा करना चाहिए ताकि आपको अहसास रहे कि आपको इनके जैसा नहीं बनना|
किसी-किसी अकाउंट में कोई अनफिट पोस्ट डालने पे मुझे भी अफ़सोस रहता है परन्तु मेरी नजर उस पोस्ट के जरिये मिलने वाले फीडबैक व् रिस्पांस पे रहती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
इन अकाउंट में सिर्फ दो अकाउंट मेरे नाम से हैं बाकी चार मेरी ओनरशिप यानी गवर्नेंस में| कोई भी अकाउंट नकली जानकारी दे के नहीं बनाया है, सब ऑथेंटिक हैं| पर इनके जरिये जो विभिन्न वर्गों की मुद्दों की चॉइस और सोशल सोच का एक स्क्रीन पे बैठे-बैठे अध्यन हो जाता है वो अपने-आप में एक रिसर्च थीसिस लिखने जैसा है| अगर इस रिसर्च के 6 चारित्रिक हाइपोथिसिस बनाऊं जो कुछ यूँ बनेंगे:
1) कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला यानि कॉर्पोरेट ग्रुप: इसमें वो लोग हैं जिनको समाज में क्रीमी लेयर कहा जाता है| इनको समाज की राजनीति-हिंसा-आगजनी के जरिये सिर्फ कमाई होती रहनी चाहिए, फिर चाहे कोई जिए या मरे| इनमें कुछ तो यूँ भी कह देते हैं कि तुम क्यों पड़ते हो इन पचड़ों में| बड़ा उदासीन ग्रुप है साहेब, कोई सहजता से रिस्पांस नहीं करता सिवाय इनमें बैठी अंधभक्त केटेगरी के|
2) सांस्कृतिक चेतना व् जागरूकता ग्रुप (हर तरह की सेंट्रल विंग वाले इसमें हैं): इसमें हरयाणवी संस्कृति को ले के जागरकता और प्रेरणा को कटिबद्ध लोग हैं| इस ग्रुप में आर्थिक आधार की कोई लाइन नहीं है| इसमें कॉर्पोरेट जैसे मनी-माइंडेड से ले नेता-सामाजिक कार्यकर्त्ता सब हैं| परन्तु एक लाइन जरूर है कि 99% सब हैं हरयाणवी| जब इस अकाउंट में पोस्ट डालता हूँ तो बहुत सकारात्मक रिस्पांस आते हैं| लाइक्स के तो कई बार मीटर टूट जाते हैं|
3) मानवाधिकार और सामाजिक अधिकारों की वकालत करने वाले (हर तरह के लेफ्ट विंग वाले): इनके यहां पे बुद्धिजीवियों वाली धुनें चलती हैं| समाज की हर इस-उस थ्योरी और मान्यता में नुक्स निकालने वाले| यहां मेरी लगभग हर ऐसी पोस्ट का खूब मान-मर्दन होता है पोस्टमॉर्टेम होता है जिसमें मैंने हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखा हो| इनके अनुसार हरयाणा-हरयाणवी पे कुछ लिखे जाने का मतलब सिर्फ और सिर्फ जाट और खाप है| इसलिए यह बेचारे जाटोफोबिया और खापोफोबिया से ऐसे ग्रसित हैं कि पोस्ट डाली नहीं बस टूट पड़े|
4) यह प्योर पोलिटिकल लोगों का अकाउंट है: यहां पता ही नहीं लगता की पोस्ट हिट हुई या पिट गई| लिखने वाला पोस्ट के पक्ष में है या विपक्ष में, कुछ मालूम नहीं पड़ता|
5) यह नॉन-हरयाणवी लोगों का ग्रुप है (मीडिया इनका गुरु है): जहां पोस्ट डाल कर हरयाणवी संस्कृति पर वो क्या सोचते हैं इस बारे जानने को मिलता है| इस ग्रुप में मीडिया की मेहरबानी ज्यादा काम कर रही है| मीडिया की रिफरेन्स से ही यहां हरयाणा की छवि बना के चलते हैं लोग| परन्तु समझाने पे बात को समझ भी लेते हैं| ऐसे ग्रुप्स ऐसे लोगों के समूह हैं जहां हर असली हरयाणवी को होना चाहिए, खासकर उनको तो जरूर जो हरयाणा और हरयाणवी का सही और सटीक प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं|
6) अंधभक्तों का ग्रुप (हर तरह की राइट-विंग वाले इसमें हैं): यहां मैं धर्म-जाति-सम्प्रदाय से संबंधित पोस्टें डालता हूँ और इनके मत की पोस्ट ना हो तो ऐसे झप्पटा मारते हैं जैसे बंदरों का समूह| इन्होनें जो माइंड-सेट बना लिया है उसमें किसी दूसरे विचार की जगह की कोई गुंजाइस नहीं| सबसे रुके हुए, थमे हुए और छके हुए लोग इस समूह में हैं| इनसे इसलिए जिरह और मश्वरा करना चाहिए ताकि आपको अहसास रहे कि आपको इनके जैसा नहीं बनना|
किसी-किसी अकाउंट में कोई अनफिट पोस्ट डालने पे मुझे भी अफ़सोस रहता है परन्तु मेरी नजर उस पोस्ट के जरिये मिलने वाले फीडबैक व् रिस्पांस पे रहती है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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