मोदी साहब बिहार के समस्तीपुर में कहते हैं कि प्रणव दा यानि माननीय राष्ट्रपति जी ने जो कहा उसका अनुपालन करो!
अब देखिये राष्ट्रपति जी ने क्या कहा, "धर्म को सता की सीढ़ी ना बनाएं" - राष्टपति प्रणव मुखर्जी!
तो मोदी साहब राष्ट्रपति जी की इस बात का समर्थन सिर्फ जीभ चलाने मात्र को है या इसको क्रियान्वयन में भी लाओगे? आप, आपकी बीजेपी और खुद आरएसएस धर्म को संसद में बिठा दिए हो, कृपया कहलवाइये ना इन अपने वालों को भी कि अपनी धर्म की संसद को राजनैतिक संसद से अलग रखें। उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी प्राची आदि-आदि मेरे ख्याल से यह धर्म के प्रतीक हैं, समाज के तो नहीं?
मुझे नहीं याद आ रहा कि कभी कोई जत्थेदार, मौवली, पादरी आदि देश की किसी भी विधानसभा अथवा लोकसभा में कभी एमएलए/एमपी बनके आया हो, सिवाय इन हमारे साधु-संतों के|
बाकी भी विश्व में ऐसा कहीं नहीं है जहां कोई मौलवी, पादरी, जत्थेदार राजनैतिक भवनों में बैठते हों| वो अपनी धर्म की संसद अलग रखते हैं।
वैसे भी राजनैतिक गुरु चाणक्य तक कह के जा चुके कि धर्म और व्यापार को जो राजा राजनीति से दूर नहीं रखता, वो निरंकुश, उसकी नौकरशाही बेलगाम और शासन अराजक हो जाता है। चाणक्य जैसी हस्ती का आदर करना परन्तु उनकी बातों पे अमल ना करके उनका आदर करने का अपमान क्यों? उनका सही आदर तो तब होगा जब उनकी बात की भी पालना करोगे और करवाओगे।
इंतज़ार किसका जनाब और किस चीज की बाध्यता? एक्शन लीजिये ना?
इसे कहते हैं "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और!"
जय योद्धेय! - फूल मलिक
अब देखिये राष्ट्रपति जी ने क्या कहा, "धर्म को सता की सीढ़ी ना बनाएं" - राष्टपति प्रणव मुखर्जी!
तो मोदी साहब राष्ट्रपति जी की इस बात का समर्थन सिर्फ जीभ चलाने मात्र को है या इसको क्रियान्वयन में भी लाओगे? आप, आपकी बीजेपी और खुद आरएसएस धर्म को संसद में बिठा दिए हो, कृपया कहलवाइये ना इन अपने वालों को भी कि अपनी धर्म की संसद को राजनैतिक संसद से अलग रखें। उमा भारती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी प्राची आदि-आदि मेरे ख्याल से यह धर्म के प्रतीक हैं, समाज के तो नहीं?
मुझे नहीं याद आ रहा कि कभी कोई जत्थेदार, मौवली, पादरी आदि देश की किसी भी विधानसभा अथवा लोकसभा में कभी एमएलए/एमपी बनके आया हो, सिवाय इन हमारे साधु-संतों के|
बाकी भी विश्व में ऐसा कहीं नहीं है जहां कोई मौलवी, पादरी, जत्थेदार राजनैतिक भवनों में बैठते हों| वो अपनी धर्म की संसद अलग रखते हैं।
वैसे भी राजनैतिक गुरु चाणक्य तक कह के जा चुके कि धर्म और व्यापार को जो राजा राजनीति से दूर नहीं रखता, वो निरंकुश, उसकी नौकरशाही बेलगाम और शासन अराजक हो जाता है। चाणक्य जैसी हस्ती का आदर करना परन्तु उनकी बातों पे अमल ना करके उनका आदर करने का अपमान क्यों? उनका सही आदर तो तब होगा जब उनकी बात की भी पालना करोगे और करवाओगे।
इंतज़ार किसका जनाब और किस चीज की बाध्यता? एक्शन लीजिये ना?
इसे कहते हैं "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और!"
जय योद्धेय! - फूल मलिक
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