Tuesday, 20 October 2015

यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है कि मामले को आपसी रंजिश का नाम दिया जावे या कांड का!

हरयाणा के डीजीपी साहब सीखा रहे हैं कि जब झगड़ा जाट और दलित का हो तो उसको कैसे उत्पीड़न का बना के दिखाया जाए, और जब झगड़ा आज वाले सनपेड़ गाँव में स्वर्ण जाट के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ण का हो तो कैसे सिर्फ रंजिश बना के दिखाया जाए| मीडिया भी खूब साथ दे रहा है उनका, बिलकुल मुंह-में-मुंह डाल के रिपोर्टिंग हो रही है| क्या बात है क्या तालमेल है मीडिया और सरकार का|

डीजीपी साहब और मीडिया, यूँ तो गोहाना-कांड हो, मिर्चपुर-कांड हो, या आज फरीदाबाद में हुआ सनपेड़-कांड, मामले तो सारे ही आपसी रंजिश के थे, पर किसी एक के भी द्वारा यह "आपसी रंजिश" शब्द तब तो प्रयोग नहीं किया गया जब गोहाना कांड हुआ था या मिर्चपुर कांड हुआ था, वाकया तो एक ही प्रकार का था ना? दलितों के घर उस वक्त भी जलाये गए थे और आज भी? फर्क सिर्फ इतना ही तो था ना कि उस वक्त मसला जाट बनाम दलित था और आज राजपूत बनाम दलित?

ओह समझ गया, यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है ना कि मामले को दो-चार परिवारों की आपसी रंजिश कह के हल्का बताना है या पूरी जाट कौम बनाम दलित कौम का बता के जाटों का दलितों पर आतंक और अत्याचार कह के बड़ा बताना है|

हुड्डा साहब, चौटाला साहब और तमाम तरह के अन्य जाट नेता, सीखें खट्टर साहब और उनके डीजीपी से कि कैसे दलितों के घर तक जलाने पर भी, उनके बच्चे जिन्दा फूंकने के बावजूद भी उस कांड को मात्र आपसी रंजिश का बना के दिखाया जा सकता है| शायद भविष्य में काम आएगा आप लोगों के|

वैसे यह वही खट्टर साहब हैं जिन्होनें रोहतक सिस्टर्स बस छेड़छाड़ मामले में मात्र एक जाटों के बालक होने की वजह भर से बिना जाँच रिपोर्ट का इंतज़ार किये तुरंत-फुरन्त आनन-फानन में इनाम भी घोषित कर दिए थे और आज वाले मामले को कैसे इनके कर्मचारियों और मीडिया द्वारा सिर्फ आपसी रंजिस मात्र का मामला बताया जा रहा है|

चलो हुड्डा हो या चौटाला, उनमें इतनी संवेदना तो थी कि वो दलितों पर हुए अत्याचार को अत्याचार की तरह ही लेते थे, उसको एक रंजिश मात्र कह के रफा-दफा नहीं करते थे| यहां तक कि खट्टर साहब के 10 लाख के मुवावजे की तुलना में 25 लाख मुवावजा देते थे| दलित मकानों को दोबारा से बनवाते थे| उनके बीच जा के उनकी सुनते थे, सुना है खट्टर साहब तो अभी तक चंडीगढ़ से ही नहीं निकले हैं| डीजीपी भी यही कह रहे हैं कि जरूरत हुई तो मिलने भी जाऊंगा|

और ना ही अभी तक उस बेचारे दलित के फूंके हुए घर को दोबारा से बनाने के बारे सरकार ने कोई घोषणा की, क्या सिर्फ 10 लाख में पल्ला झाड़ लिया जायेगा?

और हाँ, वो मिर्चपुर कांड के पीड़ित दलित भाईयों को आश्रय देने वाले तंवर साहब किधर हैं, कोई भेजे उनके पास संदेशा की जनाब आओ इधर सनपेड़ गाँव में भी कुछ आपकी ही जाति के राजपूत भाईयों ने दलितों के घर फूंके हैं, उन पीड़ित दलित भाईयों को भी आपके फार्महाउस में आश्रय दीजिये|

भाई कोई गोल बिंदी वाली रुदालियों को भी संदेशा भेजो, कि सनपेड़ में रूदन मचाने जाना है, या फिर वहाँ घर फूंकने वाले जाट नहीं कोई और थे इसलिए जाना कैंसिल?

फूल मलिक

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