Tuesday, 13 October 2015

कैप्टन अभिमन्यु ही असली सीएम हैं, खट्टर तो नाममात्र हैं - पत्रकार सतीश त्यागी

सतीश त्यागी जी हो सकता है कि आपकी ऑब्जरवेशन आपके अनुसार सही हो परन्तु यह भी हो सकता है कि आप जैसे पत्रकार के जरिये आरएसएस और बीजेपी के लिए श्रीमान खट्टर ने जो हर्याणवियों को कंधों से ऊपर कमजोर कहा उस ब्यान से श्रीमान खट्टर और उनके समाज के प्रति हरयाणवी समाज में बना "नेगेटिव वर्ड ऑफ़ माउथ" (negative word of mouth) का डैमेज कंट्रोल (damage control) करने का एक जरिया बन जाए|
माफ़ करना परन्तु आपका बयान आया ही ऐसे वक्त में जब आपकी बात के इसके अलावा इसकी टक्कर के और कोई मायने निकलते ही नहीं।

वैसे भी आपकी बात लॉजिक्स के आधार पर भी ख़ारिज है। क्योंकि अभियमन्यु असली सीएम होते तो जाट तो जाट जो अन्य जातियों के किसान भाई शायद किसी बहमवश जाट से दूर चले गए थे (शायद अभी भी पास आने में वक्त लगे, परन्तु मुझे भरोसा है अगर बीजेपी साल-दर-साल इसी तरह फसलों के भावों को तली-तोड़ गोते खिलवाती रही तो अहम में पास ना भी आवें परन्तु इतना जरूर समझ आ जायेगा कि फसल के भाव तो जाट सीएम ही दिया करें थे), उनकी धान मंडियों में कम से कम इतनी बुरी दुर्गति से तो नहीं पिट रही होती कि कहाँ तो विगत सरकार INR 4000-4200 प्रति किवंटल देती थी और कहाँ श्रीमान खटटर सरकार INR 1200-1400 में पीट रही है।

क्या यही इनाम होता है नॉन-जाट किसान को जाट से छींटक के बीजेपी और आरएसएस के लिए वोट करने का? चलो एक पल को जाट को ना दो तो ना दो, कम से कम इन हमारे नॉन-जाट किसान भाइयों को तो इनकी वफ़ादारी का भुगतान करते खट्टर साहब? मतलब सारे हिन्दू भी तो हैं, क्या यह हिन्दूपना भी एक किसान को उसकी फसल का जायज भाव दिलवाने में कारगर नहीं? चोखा, अगर नॉन-जाट किसान इस सच्चाई को समझ जावें कि तुम्हारी फसलों के दाम हिन्दू कहलवाने से नहीं बढ़ते, वो सिर्फ किसान कहलवाने से ही बढ़ते हैं।
और अगर आपकी बात सच होती और वास्तव में अभिमन्यु ही सरकार चला रहे होते तो वो भी कम से कम ना ही तो इतने कम भाव देते और शायद अन्य नॉन-जाट किसानों के साथ जाट किसान को भी उचित भाव मिल रहे होते।

सो कृपया ऐसे सगूफों पे आधारित सिलसिले मत छोड़िये मार्किट में, सरकार तो श्रीमान खट्टर ही चला रहे हैं। अब हर कोने पे पिट रही सरकार की असफलता का ठीकरा कम से कम एक जाट पर तो मत फोडिये।

खैर इस जाट (यानि मैंने) ने इतना तो सीख ही लिया है कि जाट चाहे जिस भी पार्टी के पाले का हो, उसपे अगर तोहमत की राजनीती होगी तो मैं जरूर बोलूंगा।

तो त्यागी साहब! वो नेवा मत करो कि, "मेरे जामे सारे भुंडे और थारे जामे काणे भी सुथरे।"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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