Sunday 29 November 2015

कर्नाटक में देवदासी प्रथा रोकने बारे जवाब न देने पर केंद्र पर 25 हजार का जुर्माना!

न्यायालाय ने NGO एसएल फाउंडेशन की जनहित याचिका पर पिछले साल केंद्र सरकार से जवाब-तलब किया था। इस याचिका में केंद्र और कर्नाटक सरकार को राज्य के देवनगर जिले के उत्तांगी माला दुर्गा मंदिर में 13 फरवरी, 2014 की आधी रात को देवदासी समर्पण को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय को सूचित किया गया था कि यह गतिविधि कर्नाटक देवदासी समर्पण निषेध कानून, 1982 के खिलाफ है और इससे किशोर के अधिकारों का हनन होता है।

उस समय न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में होने वाले इस कार्यक्रम में, जहां दलित किशोरियों को देवदासी के रूप में समर्पित किया जाना था, के संबंध में सभी एहतियाती उपाय करने का निर्देश दिया था। पीठ ने इस जनहित याचिका पर कर्नाटक सरकार से भी जवाब मांगा था। इस याचिका में देवदासी प्रथा रोकने के लिये दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि यह राष्ट्रीय शर्म की बात है। NGO ने आरोप लगाया था कि देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में यह कुप्रथा जारी है। इस संगठन ने न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था।

आपको बता दें कि देवदासी "धार्मिक वेश्या" को कहते हैं, जिसके तहत पुजारी-महंत लोग दलितों की सुन्दर बेटियों को उनकी व् उनके विशिष्ट लोगों की वासना पूर्ती हेतु मंदिर में रखते हैं| सुदूर दक्षिण भारत से ले महाराष्ट्र-एमपी और पूर्व में बंगाल तक के विभिन्न मंदिरों में यह व्यवस्था आज भी चल रही है|

थैंक्स टू जाट्स एंड खापस्, जिन्होनें इस कुक्तृत्य को कभी उत्तरी भारत में पैर नहीं पसारने दिए| अब प्लीज कोई इस थैंक्स गिविंग में भी जातिपाती मत ढूंढने लग जाना| मैं किसी दूसरी जाति में भी पैदा हुआ होता तो इस मामले में यह थैंक्स इनको फिर भी बोलता|

भगतो जरा बताना यह कौनसे वाली सहिषुणता की श्रेणी में आता है आपके लिए कि इसके पक्का सबूत होते हुए भी आप लोगों का खून उबाल नहीं मारता?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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