दिल्ली में राजकुमार सैनी की कल की रैली में मुझे जो अचम्भित करने वाली
बात लगी वो थी कि उस रैली पर ना ही तो बीजेपी-आरएसएस का कोई झंडा दिखा और
ना ही राजकुमार सैनी को छोड़ के कोई बड़ा नुमाईन्दा दिखा|
महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उनको श्रद्धांजलि और श्रद्धासुमन अप्रित करने लोग पहुंचे| और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का कोई स्लोगन/झंडा प्रयोग नहीं किया गया तो गैर बीजेपी पार्टियों का पिछड़ा भी समारोह में जरूर पहुंचा होगा| परन्तु अब इससे बीजेपी-आरएसएस के जो मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे वो कुछ इस प्रकार होंगे:
1) आरएसएस/बीजेपी की अंदरखाते मन में दबी आरक्षण को खत्म करवाने की मंशा अब कभी पूरी नहीं होगी| हालाँकि लालू यादव जैसा पहाड़ पहले से ही उनकी राह में था परन्तु अब सैनी को और खड़ा करके आरएसएस/बीजेपी ने अपनी ही राह में कांटे बोये हैं| क्योंकि अब जहां एक तरफ इनको रह-रह के आरक्षण खत्म करने का इनका इरादा भीतर से परेशान करके रखेगा, वहीँ दूसरी तरफ जाट के प्रति नफरत फैलाने के चक्कर में पिछड़े को आरक्षण की आवश्यकता पर खुद ही और ज्यादा जागरूक कर दिया है। शायद इसी को कहते हैं कि बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होए| भाई नफरत बोवोगे तो बदले में या तो नफरत मिलेगी या कुंठा| अब आरएसएस/बीजेपी इस कुंठा में जियेगी कि तुम्हारे आरक्षण को खत्म करने के मिशन का क्या होगा|
2) और इधर जिस आरक्षण को ज्यादा बढ़ाने (27 to 54 or 60%) की आस सैनी ने पिछड़ों में जगा दी है उसको बीजेपी/आरएसएस कभी पूरा नहीं करेगी| तो ऐसे में पिछड़े का बीजेपी और यहां तक राजकुमार सैनी भी से जल्द ही मोह भंग हो जाये, इसके पूरे आसार रहेंगे| हरयाणा में साल-छ महीने में इलेक्शन होने होते तो शायद इस बिंदु को भुना के फिर से बीजेपी को वोट मिल जाता| परन्तु 2019 तक भी यही स्थिति रहेगी, इसका मुझे संदेह है|
3) यह आस पूरी नहीं हुई तो पिछड़ा वर्ग आरएसएस से उल्टा हट सकता है या ऊब सकता है| और ऐसे में जब जाट को यह पहले से ही ताक पे रख के चल रहे हैं तो पिछड़ा भी इनसे उल्टा हटा तो फिर यह वापिस सिमित समूह बनने तक सिकुड़ जाएगी|
अब देखने वाली बात यह होगी कि खाली जाटों से नफरत के षड्यंत्र पर, सैनी कब तक पिछड़े को आरएसएस/बीजेपी से बांधे रख पाएंगे? क्योंकि आज का पिछड़ा इतना तो जागरूक हो ही रखा है कि उसको खाली किसी के खिलाफ उसकी भावनाओं का दोहन करके लम्बे समय तक बांधें नहीं रखा जा सकता| बीजेपी/आरएसएस ने जाट के प्रति नफरत सुलगाने के चक्कर में सैनी के जरिये उनमें जो अप्रत्याशित सी आस जगा दी है वो पूरी नहीं हुई तो या तो राजकुमार सैनी खुद ही पिछड़े को ले के अलग पार्टी बना लेंगे या फिर किसी अन्य दल में शामिल होने की जुगत ढूंढेंगे अन्यथा बिना यह जगी हुए आसें पूरी करवाये भी यहीं के यही रहे तो पिछड़ा इनको छोड़ दे, ऐसा भी होने का भय रहेगा|
इन सबके बीच जो अच्छी बात हुई वह यह कि कल की सभा में यह फैलसा लिया गया कि अगले वर्ष भी महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती ऐसे ही बड़ी सभा करके मनाई जाएगी|
मैं तो चाहता हूँ कि जाट भी अब अपनी राजनैतिक व् राजशाही हस्तियों के अलावा सामाजिक, और खाप हिस्ट्री में हुए हुतात्माओं की भी जयंती पर एक विशाल सामूहिक "सर्वजाट खाप" के स्तर का कोई वार्षिक उत्सव मनाना शुरू कर देवें| जिसमें "दादा बाला जी महाराज (जिनके ऊपर हनुमान का किरदार ढांप दिया गया है)", "दादा रामलाल खोखर जी", "दादा जाटवान जी गठवाला महाराज", "दादा हरवीर सिंह गुलिया जी", "दादिरानी भागीरथी देवी जी", "दादिरानी समाकौर गठवाला जी", "गॉड गोकुला जी", "बाबा शाहमल तोमर जी" आदि-आदि बहुत से और भी खाप इतिहास से और "भगत धन्ना जाट जी", "गरीबदास" जी जैसे भक्ति आंदोलन के जाट हुतात्माओं पर कम से कम एक हफ्ते भर लम्बा उत्सव जरूर मनाना शुरू कर देना चाहिए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उनको श्रद्धांजलि और श्रद्धासुमन अप्रित करने लोग पहुंचे| और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का कोई स्लोगन/झंडा प्रयोग नहीं किया गया तो गैर बीजेपी पार्टियों का पिछड़ा भी समारोह में जरूर पहुंचा होगा| परन्तु अब इससे बीजेपी-आरएसएस के जो मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे वो कुछ इस प्रकार होंगे:
1) आरएसएस/बीजेपी की अंदरखाते मन में दबी आरक्षण को खत्म करवाने की मंशा अब कभी पूरी नहीं होगी| हालाँकि लालू यादव जैसा पहाड़ पहले से ही उनकी राह में था परन्तु अब सैनी को और खड़ा करके आरएसएस/बीजेपी ने अपनी ही राह में कांटे बोये हैं| क्योंकि अब जहां एक तरफ इनको रह-रह के आरक्षण खत्म करने का इनका इरादा भीतर से परेशान करके रखेगा, वहीँ दूसरी तरफ जाट के प्रति नफरत फैलाने के चक्कर में पिछड़े को आरक्षण की आवश्यकता पर खुद ही और ज्यादा जागरूक कर दिया है। शायद इसी को कहते हैं कि बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होए| भाई नफरत बोवोगे तो बदले में या तो नफरत मिलेगी या कुंठा| अब आरएसएस/बीजेपी इस कुंठा में जियेगी कि तुम्हारे आरक्षण को खत्म करने के मिशन का क्या होगा|
2) और इधर जिस आरक्षण को ज्यादा बढ़ाने (27 to 54 or 60%) की आस सैनी ने पिछड़ों में जगा दी है उसको बीजेपी/आरएसएस कभी पूरा नहीं करेगी| तो ऐसे में पिछड़े का बीजेपी और यहां तक राजकुमार सैनी भी से जल्द ही मोह भंग हो जाये, इसके पूरे आसार रहेंगे| हरयाणा में साल-छ महीने में इलेक्शन होने होते तो शायद इस बिंदु को भुना के फिर से बीजेपी को वोट मिल जाता| परन्तु 2019 तक भी यही स्थिति रहेगी, इसका मुझे संदेह है|
3) यह आस पूरी नहीं हुई तो पिछड़ा वर्ग आरएसएस से उल्टा हट सकता है या ऊब सकता है| और ऐसे में जब जाट को यह पहले से ही ताक पे रख के चल रहे हैं तो पिछड़ा भी इनसे उल्टा हटा तो फिर यह वापिस सिमित समूह बनने तक सिकुड़ जाएगी|
अब देखने वाली बात यह होगी कि खाली जाटों से नफरत के षड्यंत्र पर, सैनी कब तक पिछड़े को आरएसएस/बीजेपी से बांधे रख पाएंगे? क्योंकि आज का पिछड़ा इतना तो जागरूक हो ही रखा है कि उसको खाली किसी के खिलाफ उसकी भावनाओं का दोहन करके लम्बे समय तक बांधें नहीं रखा जा सकता| बीजेपी/आरएसएस ने जाट के प्रति नफरत सुलगाने के चक्कर में सैनी के जरिये उनमें जो अप्रत्याशित सी आस जगा दी है वो पूरी नहीं हुई तो या तो राजकुमार सैनी खुद ही पिछड़े को ले के अलग पार्टी बना लेंगे या फिर किसी अन्य दल में शामिल होने की जुगत ढूंढेंगे अन्यथा बिना यह जगी हुए आसें पूरी करवाये भी यहीं के यही रहे तो पिछड़ा इनको छोड़ दे, ऐसा भी होने का भय रहेगा|
इन सबके बीच जो अच्छी बात हुई वह यह कि कल की सभा में यह फैलसा लिया गया कि अगले वर्ष भी महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती ऐसे ही बड़ी सभा करके मनाई जाएगी|
मैं तो चाहता हूँ कि जाट भी अब अपनी राजनैतिक व् राजशाही हस्तियों के अलावा सामाजिक, और खाप हिस्ट्री में हुए हुतात्माओं की भी जयंती पर एक विशाल सामूहिक "सर्वजाट खाप" के स्तर का कोई वार्षिक उत्सव मनाना शुरू कर देवें| जिसमें "दादा बाला जी महाराज (जिनके ऊपर हनुमान का किरदार ढांप दिया गया है)", "दादा रामलाल खोखर जी", "दादा जाटवान जी गठवाला महाराज", "दादा हरवीर सिंह गुलिया जी", "दादिरानी भागीरथी देवी जी", "दादिरानी समाकौर गठवाला जी", "गॉड गोकुला जी", "बाबा शाहमल तोमर जी" आदि-आदि बहुत से और भी खाप इतिहास से और "भगत धन्ना जाट जी", "गरीबदास" जी जैसे भक्ति आंदोलन के जाट हुतात्माओं पर कम से कम एक हफ्ते भर लम्बा उत्सव जरूर मनाना शुरू कर देना चाहिए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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