Monday 16 November 2015

9 अप्रैल 1944 को चौधरी छोटूराम ने जाट महासभा के लायलपुर अधिवेशन मे!

9 अप्रैल 1944 को चौधरी छोटूराम ने जाट महासभा के लायलपुर अधिवेशन मे इन धर्मों के ठेकेदारों इन शहरी लोगो के इस खेल पर जो आज भी ज्यों का त्यों चल रहा हैं बोलते हुए कहा था :

" हमारी जाट कौम गहरी नींद मे थी , उन्नति प्राप्त वर्ग खास तौर पर शहरी शिक्षित वर्ग और व्यापारी वर्ग हमारे अधिकारों को चट कर जाते थे | जब उन्होने देखा कि जाट संगठित हो रहे हैं और अपने अधिकारों पर दावा जताने लगे हैं तो ये शहरी बेचैन हो उठे ! उन ने सोचा धार्मिक मुद्दे सहायक हो सकते हैं | वे जाटों को मूर्ख और असभ्य मानते रहे थे ; वे जाटों कि सादगी और अज्ञानता का मज़ाक उड़ाते रहे थे ; जाटों कि साफ़गोई को उन में सभ्यता और संस्कृति का आभाव माना जाता था | ये शहरी लोग अब भोले-भाले गूंगे-बहरे अशिक्षित गरीब जाटों के जाग जाने के कारण दुखी हैं , चिन्तित हैं ; और उन लोगो ने इन्हे नींद मे बनाए रखने के लिए षड्यंत्र रचा हैं ; इन के साथ भेड़-बकरियों कि तरह बर्ताव करते रहने और इन कि जुंबानों और दिमागों को धर्म की नशीली खुराक दे कर बंद कर देने का षड्यंत्र रचा हैं , वे डरे हुए हैं कि जाट यदि जाग गए तो उन मे बदले कि भावना आ सकती हैं..... वे हमारी कष्ट कमाई पर डाका डालने कि योजनाए बना रहे हैं .... वे हम पर दोषारोपण कर के और अपने पापो और कुकृत्यों पर पर्दा डालने कि कोशिश करते हैं ; वे बहुत चालाक बनने की कोशिश करते हैं ; जैसे की वे हमारे भाग्य विधाता हों, हमारे जीवन-दाता हों और हमारे भविष्य के निर्माता हो ! वे हमारी उन्नति को पचा नहीं पा रहे हैं ... हमारी जागृति को वे अपनी मौत का संकेत मान रहे हैं ; भगवान का मुखौटा लगाए हुए ये शैतान बेचैन हैं ....... "

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