Wednesday, 11 November 2015

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी!

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

बैठा इंद्र आज सभा में, बन सबका सरदार,
गौतम के घर जारी करने, पहुँच गया बदकार। ...
दाग छूटा नहीं कभी चाँद का, जाने सब संसार,
नारद ने रंडी के आगे, पल्ला दिया पसार।
वेद-व्यास ना है पैदा, माँ छोड़ बनी राणी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।


कुंती और माद्री के यहाँ बैठे पाँचों लाल,
पाण्डु से नहीं एक भी पैदा, मन में कर लिए ख्याल|
पार्वती के संग में आ गया, भस्मासुर का काल,
ब्रज में सताई गोपिका, तुम भी तो चांडाल।।
मेरी आँख फूटी हुई है यह, तेरी एक निशानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

विष्णु ने वृंदा के संग, जा के करी जारी,
विश्वामित्र को हूर मेनका, लगी थी बहुत प्यारी।
पाराशर ने अपनी बेटी, जा पकड़ी थी कुंवारी,
भरद्वाज ऋषि ने इज्जत, जा भाभी की थी उतारी।।
कम कौनसा बैठा है यहां, मुझे बतला दो कहानी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

राजा बल को छलने गया, जब बनके अत्याचारी,
टेंट के अंदर बैठा था, तूने सिंक आँख में मारी।
चंद्रपाल की आज सभा में, बैठे सब सत्तधारी,
गुरु बाबा समझाने लगे, तू सुन ले बात हमारी।
बेशक आँख मेरी काणी, पर आन जगत ने मानी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

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