Sunday 22 November 2015

मंडी-फंडी पर किसानी एकता का चाबुक रहना बहुत जरूरी है!

वर्ना यह बेलगाम बेदिशा बेदर्दी से लूटते हैं। किसानों को राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य जैसे कठपुतली नेताओं को यह बात समझानी होगी, वरना ऐसे नेता जाट को कोसने के नाम पर किसान बिरादरी की इतनी अपूर्णीय क्षति कर देंगे कि सर छोटूराम - चौधरी चरण सिंह - ताऊ देवीलाल और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत एक साथ पैदा हों तब ही जा के पूरी हो पाये।

अब क्योंकि चारों किसान नेता जाट जाति से हैं तो इसमें भी जातिवाद के कीड़े के काटे हुए लोग जाति मत देखने लग जाना, क्योंकि हकीकत यही है कि किसान और कमेरी जातियों के लिए जो-जो लड़ाईयां यह लोग लड़ गए और जो-जो कानून यह लोग बना गए, आज तक कोई और किसान नेता नहीं बनवा पाया, फिर चाहे वो किसी जाति से क्यों ना आता हो। और अगर उत्तर भारत में इनसे बड़ा कोई किसान मसीहा हुआ हो तो मैं जरूर उसका नाम जानना चाहूंगा।

लेख के शीर्षक पर आगे बढ़ते हुए कहना चाहूंगा कि जब गुलामी के दौर में मंडी-फंडी पर अंग्रेजों का चाबुक रहता था तो यह कंट्रोल में रहते थे। बेशक हम उनके गुलाम थे परन्तु किसान के दर्द और दुःख से वो कभी भी इस तरह विमुख हो कर या तो खुद ही नहीं बैठते थे और अगर यदि बैठते थे तो सर छोटूराम जैसे मसीहा उनको विवश कर देते थे किसानों की सुनने के लिए।

अंग्रेजों के जाने के बाद, मंडी-फंडी के खुल्ले बारणे हुए और 1300 साल की घोर गुलामी से कुछ भी प्रेरणा ना लेते हुए मंडी-फंडी लग गया किसानी एकता को तोड़ने पर। और इसमें भी तल्लीन तरीके से किसानी एकता की धुर्री जाट जाति को इससे अलग करने पर। इनको पहली बड़ी कामयाबी तब मिली थी जब 1990 में इन्होनें वीपी सिंह (एक राजपूत) और ताऊ देवीलाल (एक जाट) की जोड़ी को तोड़ा था। उसके बाद से ही यह लग गए किसान जातियों में से जाट का प्रभाव खत्म करने पर। हालाँकि बाबा टिकैत ने फिर भी किसानों को एक पिरोये रखा, पंरतु बाबा के जाने के बाद और उनके जैसे जज्बे का कोई उत्तराधिकारी अभी तक किसानों को नहीं मिलने की वजह से आज किसान बिलकुल अनाथ सा भटक रहा है।

राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य जैसों के माध्यम से तो अब मंडी-फंडी किसान के बिल्कुल वही हालात लाने की ओर अग्रसर है जब ना किसानों में एकता रहे और ना ही किसान हकों की कोई बात भी उठाने वाला रहे। सिर्फ इतना ही नहीं इनकी मंजिल जाती है किसानों में इतनी हीन-भवन भरने तक कि कोई किसान नेता किसानों की बात करने तक से घबराये। अभी जो सैनी और आर्य जैसे कठपुतली नेताओं के जरिये से चल रहा है यह मंडी-फंडी का यही मिशन चल रहा है कि किसानों में तुम्हारे नाम का इतना भय बैठा दिया जाए कि किसान सिर्फ तुम्हारा बंधुआ मजदूर बनके रहे जाए। और अगर ऐसा हुआ तो सैनी और आर्य जैसे लोग इसके जिम्मेदार होंगे।

जरूर सैनी और आर्य जैसे लोगों में किसान-कमेरे का नेता बनने की ललक होगी, परन्तु इन्होनें जो रास्ता अख्तियार कर रखा है वो एक दम गलत है। इनको अगर वाकई में किसान का मसीहा बनना है तो इन ऊपर चर्चित किसान मसीहाओं की जीवनी इन्हें पढ़नी चाहिए। वर्ना तो जाट को कोसने के रस्ते चलके यह खुद को कितने ओबीसी के शुभचिंतक साबित कर पाएंगे यह तो ओबीसी ही जाने, परन्तु किसान की किस्मत में अँधेरे-ही-अँधेरे भर देंगे यह जरूर सुनिश्चित है।

हालाँकि ताऊ देवीलाल के सानिध्य में राजनीति के गुर सीखे हुए लालू यादव, शरद यादव और नितीश कुमार से बिहार चुनाव के बाद से कुछ आस जगी है, परन्तु यह कितना इन किसान मसीहाओं जैसा साबित कर पाएंगे, यह भी देखने वाली बात रहेगी| सच कहूँ तो आज के दिन एक ऐसे वक्त में जब बाकी के किसान नेता सत्ता में नहीं हैं तो इन लोगों के पास मौका है उत्तर भारत में किसानों के अगला मसीहा बनने का और किसानी एकता को मजबूत कर मंडी-फंडी पर इस एकता का चाबुक चलाने का|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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