Monday, 23 November 2015

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो!

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा,
वो खुदाई दुनिया ने दादा, आपमें पाई थी|
पढ़ा ब्रामण समाज तोड़े, पढ़ा जाट समाज जोड़े,
किसान-दलित की ऐसी जोट तूने बनाई थी||
आ फिर से समाज जोड़ना, ना तो हो जा धिंगताणा हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

दमनचक्र काले अंग्रेजों का,
गौरों की लय पे चढ़ आया है|
मंडी के हितैषी गांधी-लाजपत खड़े,
इनके आगे अड़ने का बुलावा आया है||
आजा सपूत साँपले के, घना अँधेरा छाँट जा हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

किसानों के भाव देते ना,
किसानों को भाव देते ना!
अंग्रेजों से अड़ के जिद्द पे जैसे,
किवंटल पे 6 के 11 दिलवाए थे|
ऐसे ही आज, इन काले अंग्रेजों से दिलवाना हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

हिन्दू बाँट दिया, मुसलमान बाँट दिया,
मंडी ने बाँट दिया, फंडी ने बाँट दिया|
कहीं आपसी नादानी ने, जहर जख्म का टांट दिया,
जिन्ना-नेहरुओं ने मिलके, बाग़ तेरा उजाट किया||
हरयाणा-पंजाब एक रखने को, जिन्नाओं को बॉम्बे भगाना हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

अजगर-ब्राह्मण-सैनी-खाती-छिम्बी सबकी,
पक्की किसानी-मल्कियत करवाई थी|
बंधुवा और बालमजदूरी के संग,
साहूकारी-कर्जदारी की जड़ उखड़वाई थी|
सबसे पहले लाहौर सचिवालय में,
दलित-पिछड़ों की आरक्षण पे नौकरी लगाई थी|
उसी आरक्षण को अब, जनसंख्या अनुपात में करवाना हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

जज्बे की बात कर ज्या,
दादा हो जज्बात भर ज्या|
खाली तेरा डेरा हो रह्या,
किसानां का भाग सो रहया||
तेरे भोलों के हक पे बैठा, यह काग उड़ाणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

तेवर वही चाहियें फिर से,
जिनसे गांधीं थर-थर ठिठकें,
'फुल्ले-भगत' के जज्बात छलकें,
मंडी-फंडी को कैसे लूँ डट के,
इनको होश में लाऊँ कैसे, इसका राहगोर बनाणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Special tribute to Sir Chhoturam on thou birth anniversary (24th Nov, 1881)!

No comments: