Tuesday 24 November 2015

यह है असली असहिषुणता, अगर किसी नेता-अभिनेता-लेखक से इसपे आवाज उठाई जाती हो तो उठा लो!

असहिषुणता का असली मुद्दा अगर किसी को उठाना है तो वो मरते किसान की, आत्महत्या करते किसान की आवाज के साथ उठाओ, मैं गारंटी देता हूँ या तो कोई तुम्हारा विरोध नहीं करेगा अन्यथा वास्तव में असहिष्णु लोगों के चेहरे सामने आ जायेंगे|

लो मैं कहता हूँ देश का किसान मर रहा है, कहीं आत्महत्या करके तो कहीं भूख से तो कहीं कर्जे से तो कहीं सूखे और अकाल से तो कहीं उसकी मेहनत पर मची लूट से|

क्या किसी को चुपचाप मरते देखना असहिषुणता नहीं होती? किसी के दर्द को और बढ़ाना, उसको जानबूझकर फसलों के दाम ना देना और फसल का सीजन जाते ही फसलों के दोगुने दाम कर लेना, क्या यह असहिषुणता नहीं इस बात की कि किसान की जेब में उसकी मेहनत के बराबर तक का भी पैसा मत जाने दो, पंरतु अपनी जेबें भर लो?

ताजा उदाहरण चाहिए किसी को तो हरयाणा में आ के देख लो, महीना भर पहले जिस धान (चावल) की फसल को सरकार और व्यापारी 1200 रूपये में भी नहीं खरीद रहे थे, आज उसी धान का भाव वापिस 3000 रूपये चल रहा है| अगला सीजन आएगा तो इसको फिर से यह बीजेपी और आरएसएस वाले 1200 करवा देंगे और सीजन निकलते ही वापिस 3000|

लगता है असहिषुणता शब्द को भुनाने वालों ने जानबूझकर इसकी दिशा बदली हुई है और ऐसे लोगों के बयानों पे इस शब्द को टिका रहे हैं, जिनके बोलने से आमजन को कुछ फर्क नहीं पड़ना| शायद यह जानते हैं कि ऐसे शब्दों को उधर नहीं मोड़ा गया तो कहीं किसान-कमेरे-दलित की आवाज ना फूट पड़े और इनके कान बहरे हो जाएँ| इन फाइव-स्टार लोगों की असहिषुणता सुनने और उसको भुनाने से किसी को फुर्सत मिल जाए तो यह मेरे वाली उठाई असहिषुणता की तरफ भी ध्यान घुमा लेना|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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