Wednesday, 11 November 2015

भाईचारे को चुराने वालो बाज आ जाओ, इस देश में चारा-चोर माफ़ किये जा सकते हैं परन्तु भाईचारा चोर नहीं!

1791 में रघुनाथ राव पटवर्धन के कुछ मराठा सवारों ने श्रृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ पर छापा मारा। उन्होंने मठ की सभी मूल्यवान संपत्ति लूट ली। इस हमले में कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए। शंकराचार्य ने मदद के लिए टीपू सुल्तान को अर्जी दी। शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 राहत (फ़नम) नक़द धन और अन्य उपहार दिये जायें।

टीपू सुल्तान का भले ही भारतीय शासकों ने साथ नहीं दिया, पर टीपू ने किसी भी भारतीय शासक के विरूद्ध, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, अंग्रेज़ों से गठबंधन नहीं किया। जब टीपू अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में जुटा था, तब पेशवा, तंजौर के राजा और त्रावणकोर नरेश ब्रिटिश के साथ संधि कर चुके थे। टीपू इन राजाओं के खिलाफ भी लड़ा। अब इसका क्या किया जा सकता है कि ये राजा हिंदू थे। टीपू हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ भी लड़ा जो मुसलमान था। स्कूल की किताबों में तीसरा मैसूर युद्ध देखिए। इसमें टीपू के खिलाफ अंग्रेजों, पेशवा और निज़ाम की संयुक्त फ़ौज लड़ी थी।

यह हिंदू बनाम मुसलमान का मामला ही नहीं है। भारत को बचाने के लिए टीपू अपनी आखरी साँस तक अंग्रेजो से लड़ते लड़ते शहीद हो गए| पर इसका नतीजा भी वही हुआ जो होता आया है, आखिरकार टीपू सुल्तान जैसे देश के महान सपूत की कुर्बानी को भी सस्ता कर ही दिया गया, अफसोस| बहुत से लोगों ने सिर्फ इतना याद रखा कि टीपू सुल्तान एक मुसलमान था| फिर उसकी अज़ीम शहादत, उसकी वतन पर जां निसारी, उसकी अपनी गैर मुस्लिम आवाम से मोहब्बत, ये सारी बातें झूठ और फरेब मान ली गईं|

इसका मतलब तो यह हुआ कि यह चड्ढीधारी आज टीपू सुल्तान के खिलाफ इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि टीपू ने अंग्रेजों की गुलामी नहीं स्वीकारी और जो हिन्दू नरेश अंग्रेजों से संधि कर रहे थे टीपू उनसे भी लड़ा? तो देश बेचने वाले वो हिन्दू राजा थे या टीपू?

इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर यह चड्ढीधारी यूँ ही बेलगाम भोंकते रहे तो यह हिले-हिले कल जाटों के खिलाफ भी मोर्चा खोलेंगे? क्योंकि जाटों की पेशवाओं, होल्करों, राजपूतों सबसे लड़ाइयां हुई हैं और विरोध रहे हैं? जयपुर में सवाई ईश्वरी सिंह को गद्दी दिलवाने हेतु मशहूर बांगरू की लड़ाई में तो महाराजा सूरजमल ने मराठा-राजपूत-होल्कर-मुस्लिम सब एक साथ हराए थे| भरतपुर-धौलपुर और उधर पंजाब में महाराजा रणजीत जैसों के राज्यों ने अंग्रेजों-मुस्लिमों से लोहा लेने हेतु बड़े-बड़े रण लड़े तो क्या कल को अब इसकी भी आग सुलगाएंगे यह लोग और नया रंग देंगे?

पानीपत के तीसरे युद्ध में जब महाराजा सूरजमल और महाराष्ट्री पेशवाओं में समझौता होने के बाद भी उसको तोड़ते हुए पेशवा दिल्ली को मुग़लों को देने पे आमादा थे परन्तु जाटों को नहीं तो क्या अब यह चड्ढीधारी गैंग उसको भी नया रंग दे के उछालेंगे कि इन्होनें हमारे द्वारा पानीपत जीत जाने की स्थिति में भी दिल्ली मुस्लिमों को देनी नहीं स्वीकारी थी तो यह देशद्रोही हुए?

बाज आ जाओ भाईचारे को चुराने वालो, इस देश में चारा-चोर माफ़ किये जा सकते हैं परन्तु भाईचारा चोर नहीं|
देश को क्या डूबाधानी की तरफ घसीट रहे हैं यह नादान लोग, 1300 साल भी कम पड़ गए क्या तुम्हें अक्ल लेने के लिए? खा लिया खून इन लोगों ने कसम से, "शिकार के वक्त कुत्तिया हगाई" प्रवृति के यह लोग देश में यह निर्धारित कर रहे हैं कि कौन देशभक्त और कौन राष्ट्रभक्त| तब कहाँ मर गए थे जब इन्हीं मुग़लों के राज में कोई राजपुरोहित तो कोई महाजन बनके मजे मारा करता था?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: