Wednesday, 25 November 2015

और हमारे देश और धर्म की सदियों से कड़वी सच्चाई है ही यह कि!

ना हमारे धर्माधीस सहिष्णु हैं, और ना ही देश को जातिवाद के जहर के दम पे देश चलाने वाले सहिष्णु हैं| वो कैसे, उसकी एक झलक इस कड़वी सच्चाई में झांक के खुद का चेहरा आईनें में देखने की भांति स्वत: ही देख लीजिये|

दलितो के अत्याचार पर देश मे असहिष्णुता का माहौल क्यो नही बना?

वर्षो से आजादी के बाद से आज तक दलितो पर अत्याचार हो रहे है। देश का ऐसा कोई कोना नही जहाँ इन्होने अपमान ना झेला हो। इनके घर की औरतो को हवस का शिकार नही बनाया गया हो। तरह-तरह से प्रताडित किया जाता रहा है। ये समाज आज भी आजादी की लडाई लड रहा है। इतना सब होने के बाद भी भारत मे असहिष्णुता नजर नही आयी। किसी ने इस पर अवार्ड नही लौटाया। किसी ने मार्च नही निकाला। किसी बुद्विजीवी प्राणी, सेलिब्रिटी, राजनीतिक पार्टी या किसी फेसबुकिया गिरोह ने इस पर चर्चा नही की। जिन टी.वी चैनलो पर लम्बे टाईम से असहिष्णुता पर बहस जारी है उन्होने इस पर बात करना ठीक नही समझा। ये सब इसलिए है क्योकि वो दलित् है? और ये सब झेलना तो उनका अधिकार है।

आश्चर्य की बात तो ये है कि जो दलित आज की असहिष्णुता पर हल्ला मचा रहे है वो अपने समाज पर बढ रही असहिष्णुता समझ ही नही पाये है। उन्हे ऊपर के सवालो पर सोचना चाहिए। साथ मे ये भी कि आज तक कितने लोग उनके प्रति इस असहिष्णुता पर आगे आये है? उन्हे बहती गंगा मे हाथ न धोकर कुछ जरुरी तर्क भी करने चाहिए।

दलितो पर अत्याचार सबकी सरकारो मे होते है। लेकिन सफाई देने के अलावा किसी ने कुछ नही किया। ये असहिष्णुता सिर्फ एक विशेष धर्म के लिए ही क्यो? इतनी हमदर्दी दलितो के लिए क्यो नही? क्या दलितो को कोई अपना नही समझता?

Phool Malik

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