Friday, 13 November 2015

जाटों को मंडी-फंडी से सीखना होगा कि अपनी कौम के लीडरों और हुतात्माओं को कैसे निर्विवाद सर्वोपरी रखना होता है!

"ब्रिटेन की संसद के बाहर महात्मा गाँधी की प्रतिमा गौरव की बात!" - नरेन्द्र मोदी

यह बात यह जनाब तब कहे हैं जब खुद आरएसएस और बीजेपी गांधी के हत्यारे नत्थूराम को अपना प्रेरणास्त्रोत मानती है| है ना कमाल की बात, इनको गांधी भी चाहिए और गोडसे भी?

जबकि जाट, जो अजित सिंह खेमे का हो गया, जो बंसीलाल खेमे का हो गया, जो देवीलाल खेमे का हो गया, जो बादल खेमे का हो गया, जो कप्तान अमरिंदर खेमे का हो गया, जो नाथूराम मिर्धा खेमे का हो गया या जो हुड्डा खेमे का हो गया; तो मजाल है जो आपस में एक-दूसरे खेमे वाले जाट लीडर की प्रशंसा कर लेवें? हाँ उल्टा पब्लिकली कोसते जरूर मिल जायेंगे| न्यूट्रल रहने का तो शायद स्कोप ही नहीं होता कि चलो भाई अगर तारीफ नहीं कर सकते तो अपनी ही कौम के लीडर के बारे बुरा बोलने की बजाय न्यूट्रल रह लो|

मेरे ख्याल से कौम के हीरो की और कौम के लीडर की दूसरे खेमे में होते हुए भी कैसे इज्जत बना के रखनी है वो कोई मोदी से सीखें| मोदी बनिया जाति से हैं और गांधी भी बनिया जाति से, राजनैतिक विचारधारा भिन्न होते हुए भी गांधी को इज्जत देने से नहीं कतराते| जबकि कोई हुड्डा खेमे का जाट देवीलाल को या अजित खेमे का जाट अगर चौटाला की प्रसंशा करता हुआ मिल जाए तो बवाल हो जाते हैं, अपने खेमे के प्रति उसकी निष्ठां संदेह में घेर दी जाती है|

झूठे हैं हमारे दावे कि हम जाट सबसे ज्यादा कौम के प्रति वफ़ादारी या कटटरता रखते हैं जबकि हमसे ज्यादा आपसी टांग खिंचाई कोई नहीं करता होगा|

मेरे ख्याल से यह एक ऐसा अध्याय है राजनीति का जिसको जाट जितना जल्दी सीख लेंगे, उतना जल्दी अपनी राजनैतिक ताकत को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा लेंगे| राजनीति किसी के घर की नहीं, परन्तु कौम का नेता सबका होता है| मंडी-फंडी से और कुछ नहीं परन्तु इतना तो सीख ही सकते हैं|

वोट डालने की चॉइस और कौम के तमाम लीडरों और हुतात्माओं को सम्मान देने को अलग-अलग रखके चलना होगा, वर्ना राजनीति ही जाट-कौम को खा जाएगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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