Monday, 9 November 2015

जातिपाति की सड़ांध मारते अनुपम खेर और भारतीय मीडिया!

अभी श्रीमान अनुपम खेर जी ने दो-चार दिन पहले इनटॉलेरेंस के मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक "वाक फॉर नेशन" लांच किया और उसमें कश्मीर से विस्थापित पंडितों का मसला उठाया।

ऐसे ही जब-जब कश्मीर से विस्थापितों की बात होती है तो भारतीय मीडिया की तमाम प्रिंट एंड इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्ट्स में भी सिर्फ कश्मीरी पंडितों का ही नाम आता है।

क्या वाकई में कश्मीर से सिर्फ पंडितों को ही खदेड़ा गया है? खदेड़ने वालों का हिन्दू धर्म की सिर्फ इसी एक जाति से ही बैर है या वहाँ हिन्दू धर्म की अन्य जातियाँ भी बसती हैं? और अगर अन्य जातियाँ भी बसती हैं तो क्या उनको नहीं खदेड़ा गया? और अगर उनको भी खदेड़ा गया तो फिर यह सिर्फ एक जाति विशेष के ही विस्थापन का जिक्र क्यों होता है, किया जाता है और वो भी अनुपम खेर जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी और सुलझे व्यक्तित्व से ले खुद को भारत के लोकतंत्र का चौथा खम्बा क्लेम करने वाले मीडिया द्वारा?

और इसपे भी कमाल तो यह है कि जनाब अनुपम खेर उस पार्टी की वकालत करने उतरे थे जिसका नारा ही "हिन्दू एकता और बराबरी" होता है। तो ऐसे में वो सिर्फ हिन्दू की एक जाति के उत्पीड़न तक कैसे सिमित रह सकते हैं, उन्हें हिन्दू होते हुए सारे हिन्दू ना दिखने की बजाय अकेली एक जाति क्यों दिखती हैं? लगता है यह "हिन्दू एकता और बराबरी" भी नारा नहीं, जुमला ही होता होगा इनके लिए।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: